मत्स्य न्याय किसे कहते है?

Matsya Nyaya Theory in Hindi

मनुस्मृति में मत्स्य न्याय के बारे में बताया गया है (Matsya Nyaya in Hindi)। इसके अलावा इसकी व्याख्या तथा प्रभाव के बारे में महाभारत तथा कौटिल्य के अर्थशास्त्र में भी लिखा गया है। इसे प्राकृतिक न्याय या जंगल का न्याय या मछली का न्याय (Law of Fish in Hindi) भी कहा जाता है। आखिर मत्स्य न्याय क्या होता है तथा इसका प्रकृति से क्या संबंध है? आज हम इसी के बारे में जानेंगे।

मत्स्य न्याय क्या है? (Meaning of Matsy Nyay)

मत्स्य न्याय (Matsyanyaya) का अर्थ है एक मछली का न्याय जिसमे एक बड़ी मछली छोटी मछली को खा जाती है तथा उसी प्रकार उससे बड़ी मछली उसे खा जाती है। इस तरह से ही समुंद्र में न्याय होता है तथा सभी मछलियों का पेट भरता है। इसलिये इसे मछली के न्याय की संज्ञा दी गयी है (Matsyanyaya Meaning in Hindi)।

यदि हम प्रकृति में देखेंगे जहाँ पर केवल जंगल है तो वहां भी यही न्याय चलता है। वनों में एक सशक्त पशु या पक्षी के द्वारा अपने से छोटे या निर्बल पशु पक्षी को मारकर अपना आहार बनाया जाता है। इसी प्रकार एक जंगल चलता है तथा सभी का भरण-पोषण होता है।

मत्स्य न्याय का उदाहरण (Matsya Nyaya in History in Hindi)

यदि हम इसको उदाहरण के रूप में समझना चाहे तो हम अपने विद्यालय की पुस्तकों का उदाहरण ले सकते है जिसमे हमें पशु पक्षियों की खाद्य श्रंखला समझायी जाती थी। इसके अनुसार जिस प्रकार एक कीट पतंगे को मेंढक खा जाता है तो मेंढक को सांप खा जाता है और उसी सांप को एक बाज या उल्लू खा जाता है। इसी प्रकार यह श्रंखला चलती है।

पेड़-पौधों में भी यही देखने को मिलता है। यदि आप दो पेड़ों को एक साथ लगा देंगे तो आप पाएंगे कि ज्यादा शक्तिशाली पेड़ के द्वारा कम शक्तिशाली पेड़ का अन्न, जल, खाद ले ली जाती है तथा धीरे-धीरे वह और बड़ा होकर उसकी भूमि भी हड़प लेता है व सूर्य का प्रकाश भी ले लेता है। इस प्रकार शक्तिशाली पेड़ ही बचता है तथा कमजोर पेड़ नष्ट हो जाता है।

मत्स्य न्याय का सिद्धांत (Matsya Nyaya Theory in Hindi)

इसे प्रकृति का नियम इसलिये कहा जाता है क्योंकि पृथ्वी पर सबकुछ अरण्य/ वनों से ही शुरू होता है तथा वहां केवल प्रकृति का नियम ही चलता है। इसका सिद्धांत ही यही हैं कि एक मजबूत, शक्तिशाली जीव ही अपने भोजन को प्राप्त कर पाता है तथा जीवित रहता है और जो बूढा, कमजोर व निर्बल हो जाता है उसे भोजन नही मिल पाता तथा उसकी मृत्यु हो जाती है।

मत्स्य न्याय में कोई नियम, सिद्धांत, कानून, व्यवस्था, अधिकारी नही होते। इसका केवल एक सिद्धांत है और वो है कि सशक्त जीवित रहेगा तथा निर्बल मारा जायेगा। प्रकृति में सब कुछ वनों से ही शुरू होगा तथा उसी में सब समाप्त हो जायेगा।

धर्म ग्रंथों में शासन व्यवस्था का उल्लेख (Matsyanyaya Meaning in Hinduism)

इसी मत्स्य न्याय को समाप्त करने की शक्ति केवल मानव जाति में होती है क्योंकि ईश्वर ने उसे जो चीज दी हैं वह किसी अन्य जीव में नही और वह है असीमित बुद्धि तथा ज्ञान को अर्जित करने की क्षमता। इसी का उपयोग कर मनुष्य शासन व्यवस्था बनाता है तथा सभी को समान अधिकार दिलाता है। इसमें सभी नियम, व्यवस्था निर्धारित होते है तथा सभी को न्याय दिया जाता है व शास्त्रों में इसे ही धर्म की संज्ञा दी गयी है जो मत्स्य न्याय को समाप्त करता है।

लेखक के बारें में: कृष्णा

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