आरती

नव दुर्गा की आरती – 9 आरतियाँ महत्व व लाभ सहित

आज के इस लेख में हम आपके साथ नव दुर्गा माता की आरती (Navdurga Mata Ki Aarti) का पाठ करने जा रहे हैं। हम हर वर्ष नवरात्र का पावन त्यौहार बहुत ही धूमधाम के साथ मनाते हैं। नवरात्र नौ दिवस का पर्व है जिसमें हर दिन मातारानी के भिन्न रूप की पूजा की जाती है। उन्हें हम नवदुर्गा के नाम से जानते हैं। इसमें मातारानी का हरेक रूप अपने भिन्न गुणों व शक्तियों के कारण पूजनीय है।

इस लेख में आपको दुर्गा माता के सभी नौ रूपों को समर्पित नव दुर्गा की आरती (Nav Durga Ki Aarti) पढ़ने को मिलेगी। ऐसे में आपको नवरात्र के हर दिन नव दुर्गा के रूप के अनुसार उनकी आरती करनी चाहिए ताकि आपको उसका पूरा लाभ मिल सके। अंत में हम आपके साथ नव दुर्गा आरती पढ़ने के लाभ व महत्व भी साझा करेंगे। तो आइए सबसे पहले पढ़ते हैं नव दुर्गा माता की आरती हिंदी में

नव दुर्गा माता की आरती | Navdurga Mata Ki Aarti

माँ दुर्गा का हर रूप उनके भिन्न गुणों का परिचायक है। ऐसे में भक्तगण अपनी इच्छानुसार फल प्राप्ति के लिए उनके किसी भी रूप की भक्ति कर सकता है। किसी रूप में माँ दुष्टों का नाश कर भक्तों को अभय प्रदान करती हैं तो किसी में भक्तों को रिद्धि-सिद्धि प्रदान की जाती है। माँ का कोई रूप भक्तों को सौभाग्य का वरदान देता है तो कोई रूप उनके मानसिक विकास के लिए लाभदायक होता है।

ऐसे में नवरात्र के हर दिन माँ के एक रूप की पूजा की जाती है। उस दिन उनके उसी रूप को समर्पित आरती का पाठ किया जाना होता है। ऐसे में आज हम आपके साथ नवरात्रि आरती के माध्यम से नव दुर्गा की आरती साझा करने जा रहे हैं जो उनके नौ रूपों को समर्पित है।

#1. पहले नवरात्रि की आरती

नवरात्रि के पहले दिन माँ दुर्गा के प्रथम रूप शैलपुत्री माता की पूजा की जाती है। माँ शैलपुत्री शक्ति का प्रतीक मानी जाती हैं और उनकी आराधना करने से हमारे अंदर ऊर्जा आती है। ऐसे में आइये सबसे पहले करते हैं नवरात्रि के पहले दिन की आरती जो शैलपुत्री माँ को समर्पित है।

शैलपुत्री मां बैल असवार। करें देवता जय जयकार।
शिव शंकर की प्रिय भवानी। तेरी महिमा किसी ने ना जानी॥

पार्वती तू उमा कहलावे। जो तुझे सिमरे सो सुख पावे।
ऋद्धि-सिद्धि परवान करे तू। दया करे धनवान करे तू॥

सोमवार को शिव संग प्यारी। आरती तेरी जिसने उतारी।
उसकी सगरी आस पुजा दो। सगरे दुख तकलीफ मिला दो॥

घी का सुंदर दीप जला के। गोला गरी का भोग लगा के।
श्रद्धा भाव से मंत्र गाएं। प्रेम सहित फिर शीश झुकाएं॥

जय गिरिराज किशोरी अंबे। शिव मुख चंद्र चकोरी अंबे।
मनोकामना पूर्ण कर दो। भक्त सदा सुख संपत्ति भर दो॥

#2. दूसरे नवरात्रि की आरती

नवरात्रि के दूसरे दिन माँ दुर्गा के द्वितीय रूप ब्रह्मचारिणी माता की पूजा की जाती है। माँ ब्रह्मचारिणी तप का प्रतीक मानी जाती हैं और उनकी आराधना करने से हमारा स्वाधिष्ठान चक्र मजबूत होता है जिससे मन को नियंत्रण में किया जा सकता है। ऐसे में आइये सबसे पहले करते हैं नवरात्रि के दूसरे दिन की आरती जो ब्रह्मचारिणी माँ को समर्पित है।

जय अंबे ब्रह्माचारिणी माता।
जय चतुरानन प्रिय सुख दाता।
ब्रह्मा जी के मन भाती हो।
ज्ञान सभी को सिखलाती हो॥

ब्रह्मा मंत्र है जाप तुम्हारा।
जिसको जपे सकल संसारा।
जय गायत्री वेद की माता।
जो मन निस दिन तुम्हें ध्याता॥

कमी कोई रहने न पाए।
कोई भी दुख सहने न पाए।
उसकी विरति रहे ठिकाने।
जो ​तेरी महिमा को जाने॥

रुद्राक्ष की माला ले कर।
जपे जो मंत्र श्रद्धा दे कर।
आलस छोड़ करे गुणगाना।
मां तुम उसको सुख पहुंचाना॥

ब्रह्माचारिणी तेरो नाम।
पूर्ण करो सब मेरे काम।
भक्त तेरे चरणों का पुजारी।
रखना लाज मेरी महतारी॥

#3. तीसरे नवरात्रि की आरती

नवरात्रि के तीसरे दिन माँ दुर्गा के तृतीय रूप चंद्रघंटा माता की पूजा की जाती है। माँ चंद्रघंटा वीरता का प्रतीक मानी जाती हैं और उनकी आराधना करने से हमारे अंदर वीरता, शौर्य व साहस में बढ़ोत्तरी होती है। ऐसे में आइये सबसे पहले करते हैं नवरात्रि के तीसरे दिन की आरती जो चंद्रघंटा माँ को समर्पित है।

जय मां चंद्रघंटा सुख धाम।
पूर्ण कीजो मेरे सभी काम॥

चंद्र समान तुम शीतल दाती।
चंद्र तेज किरणों में समाती॥

क्रोध को शांत करने वाली।
मीठे बोल सिखाने वाली॥

मन की मालक मन भाती हो।
चंद्र घंटा तुम वरदाती हो॥

सुंदर भाव को लाने वाली।
हर संकट मे बचाने वाली॥

हर बुधवार जो तुझे ध्याये।
श्रद्धा सहित जो विनय सुनाएं।
मूर्ति चंद्र आकार बनाएं।
सन्मुख घी की ज्योति जलाएं।
शीश झुका कहे मन की बाता।
पूर्ण आस करो जगदाता॥

कांचीपुर स्थान तुम्हारा।
करनाटिका में मान तुम्हारा॥

नाम तेरा रटूं महारानी।
भक्त की रक्षा करो भवानी॥

#4. चौथे नवरात्रि की आरती

नवरात्रि के चौथे दिन माँ दुर्गा के चतुर्थ रूप कूष्मांडा माता की पूजा की जाती है। माँ कूष्मांडा निरोगी काया का प्रतीक मानी जाती हैं और उनकी आराधना करने से हमारा शारीरिक स्वास्थ्य ठीक रहता है तथा हम रोगों से दूर रहते हैं। ऐसे में आइये सबसे पहले करते हैं नवरात्रि के चौथे दिन की आरती जो कूष्मांडा माँ को समर्पित है।

कूष्मांडा जय जग सुखदानी।
मुझ पर दया करो महारानी॥

पिंगला ज्वालामुखी निराली।
शाकंबरी माँ भोली भाली॥

लाखों नाम निराले तेरे।
भक्त कई मतवाले तेरे॥

भीमा पर्वत पर है डेरा।
स्वीकारो प्रणाम ये मेरा॥

सबकी सुनती हो जगदंबे।
सुख पहुँचाती हो माँ अंबे॥

तेरे दर्शन का मैं प्यासा।
पूर्ण कर दो मेरी आशा॥

माँ के मन में ममता भरी।
क्यों ना सुनेगी अरज हमरी॥

तेरे दर पर किया है डेरा।
दूर करो माँ संकट मेरा॥

मेरे कारज पूरे कर दो।
मेरे तुम भंडारे भर दो॥

तेरा दास तुझे ही ध्याए।
भक्त तेरे दर शीश झुकाए॥

#5. पांचवे नवरात्रि की आरती

नवरात्रि के पांचवे दिन माँ दुर्गा के पंचम रूप स्कंद माता की पूजा की जाती है। स्कंदमाता संतान प्राप्ति का प्रतीक मानी जाती हैं और उनकी आराधना करने से हमें मनचाही संतान की प्राप्ति होती है। ऐसे में आइये सबसे पहले करते हैं नवरात्रि के पाचवें दिन की आरती जो स्कंद माता को समर्पित है।

जय तेरी हो स्कंद माता।
पांचवां नाम तुम्हारा आता॥

सबके मन की जानन हारी।
जग जननी सबकी महतारी॥

तेरी जोत जलाता रहू मैं।
हरदम तुम्हें ध्याता रहू मैं॥

कई नामों से तुझे पुकारा।
मुझे एक है तेरा सहारा॥

कहीं पहाड़ों पर है डेरा।
कई शहरों में तेरा बसेरा॥

हर मंदिर में तेरे नजारे।
गुण गाए तेरे भक्त प्यारे॥

भक्ति अपनी मुझे दिला दो।
शक्ति मेरी बिगड़ी बना दो॥

इंद्र आदि देवता मिल सारे।
करे पुकार तुम्हारे द्वारे॥

दुष्ट दैत्य जब चढ़ कर आए।
तुम ही खंडा हाथ उठाए॥

दास को सदा बचाने आयी।
चमन की आस पुजाने आयी॥

#6. छठे नवरात्रि की आरती

नवरात्रि के छठे दिन माँ दुर्गा के षष्ठ रूप कात्यायनी माता की पूजा की जाती है। माँ कात्यायनी अभय का प्रतीक मानी जाती हैं और उनकी आराधना करने से हमारा आज्ञा चक्र मजबूत होता है जिससे हम कार्यों को तेजी व कुशलता के साथ पूरा कर पाते है। ऐसे में आइये सबसे पहले करते हैं नवरात्रि के छठे दिन की आरती जो कात्यायनी माँ को समर्पित है।

जय जय अम्बे, जय कात्यायनी।
जय जगमाता, जग की महारानी॥

बैजनाथ स्थान तुम्हारा।
वहां वरदाती नाम पुकारा॥

कई नाम हैं, कई धाम हैं।
यह स्थान भी तो सुखधाम है॥

हर मंदिर में जोत तुम्हारी।
कहीं योगेश्वरी महिमा न्यारी॥

हर जगह उत्सव होते रहते।
हर मंदिर में भक्त हैं कहते॥

कात्यायनी रक्षक काया की।
ग्रंथि काटे मोह माया की॥

झूठे मोह से छुड़ाने वाली।
अपना नाम जपाने वाली॥

बृहस्पतिवार को पूजा करियो।
ध्यान कात्यायनी का धरियो॥

हर संकट को दूर करेगी।
भंडारे भरपूर करेगी॥

जो भी मां को भक्त पुकारे।
कात्यायनी सब कष्ट निवारे॥

#7. सातवें नवरात्रि की आरती

नवरात्रि के सातवें दिन माँ दुर्गा के सप्तम रूप कालरात्रि माता की पूजा की जाती है। माँ शैलपुत्री अभय का प्रतीक मानी जाती हैं और उनकी आराधना करने से हमारे सभी तरह के भय दूर हो जाते हैं और शत्रुओं पर विजय मिलती है। ऐसे में आइये सबसे पहले करते हैं नवरात्रि के सातवें दिन की आरती जो कालरात्रि माँ को समर्पित है।

कालरात्रि जय-जय-महाकाली।
काल के मुह से बचाने वाली॥

दुष्ट संघारक नाम तुम्हारा।
महाचंडी तेरा अवतार॥

पृथ्वी और आकाश पे सारा।
महाकाली है तेरा पसारा॥

खड्ग खप्पर रखने वाली।
दुष्टों का लहू चखने वाली॥

कलकत्ता स्थान तुम्हारा।
सब जगह देखूं तेरा नजारा॥

सभी देवता सब नर-नारी।
गावें स्तुति सभी तुम्हारी॥

रक्तदंता और अन्नपूर्णा।
कृपा करे तो कोई भी दुःख ना॥

ना कोई चिंता रहे बीमारी।
ना कोई गम ना संकट भारी॥

उस पर कभी कष्ट ना आवें।
महाकाली माँ जिसे बचाबे॥

तू भी भक्त प्रेम से कह।
कालरात्रि माँ तेरी जय॥

#8. आठवें नवरात्रि की आरती

नवरात्रि के आठवें दिन माँ दुर्गा के अष्टम रूप महागौरी माता की पूजा की जाती है। माँ महागौरी सौभाग्य का प्रतीक मानी जाती हैं और उनकी आराधना करने से अविवाहित लोगों को मनचाहे जीवनसाथी की प्राप्ति होती है तो वहीं विवाहित लोगों का अपने साथी के साथ संबंध मधुर बनता है। ऐसे में आइये सबसे पहले करते हैं नवरात्रि के आठवें दिन की आरती जो महागौरी माँ को समर्पित है।

जय महागौरी जगत की माया।
जया उमा भवानी जय महामाया॥

हरिद्वार कनखल के पासा।
महागौरी तेरा वहां निवासा॥

चंद्रकली और ममता अम्बे।
जय शक्ति जय जय मां जगदम्बे॥

भीमा देवी विमला माता।
कौशिकी देवी जग विख्याता॥

हिमाचल के घर गौरी रूप तेरा।
महाकाली दुर्गा है स्वरूप तेरा॥

सती ‘सत’ हवन कुंड में था जलाया।
उसी धुएं ने रूप काली बनाया॥

बना धर्म सिंह जो सवारी में आया।
तो शंकर ने त्रिशूल अपना दिखाया॥

तभी मां ने महागौरी नाम पाया।
शरण आनेवाले का संकट मिटाया॥

शनिवार को तेरी पूजा जो करता।
मां बिगड़ा हुआ काम उसका सुधरता॥

भक्त बोलो तो सोच तुम क्या रहे हो।
महागौरी मां तेरी हरदम ही जय हो॥

#9. नौवें नवरात्रि की आरती

नवरात्रि के नौवें दिन माँ दुर्गा के नवम रूप सिद्धिदात्री माता की पूजा की जाती है। माँ सिद्धिदात्री सिद्धि का प्रतीक मानी जाती हैं और उनकी आराधना करने से हमें आठों सिद्धियों की प्राप्ति होती है। ऐसे में आइये सबसे पहले करते हैं नवरात्रि के नौवें दिन की आरती जो सिद्धिदात्री माँ को समर्पित है।

जय सिद्धिदात्री मां तू सिद्धि की दाता।
तू भक्तों की रक्षक तू दासों की माता।
तेरा नाम लेते ही मिलती है सिद्धि।
तेरे नाम से मन की होती है शुद्धि॥

कठिन काम सिद्ध करती हो तुम।
जभी हाथ सेवक के सिर धरती हो तुम।
तेरी पूजा में तो ना कोई विधि है।
तू जगदम्बे दाती तू सर्व सिद्धि है॥

रविवार को तेरा सुमिरन करे जो।
तेरी मूर्ति को ही मन में धरे जो।
तू सब काज उसके करती है पूरे।
कभी काम उसके रहे ना अधूरे॥

तुम्हारी दया और तुम्हारी यह माया।
रखे जिसके सिर पर मैया अपनी छाया।
सर्व सिद्धि दाती वह है भाग्यशाली।
जो है तेरे दर का ही अम्बे सवाली॥

हिमाचल है पर्वत जहां वास तेरा।
महा नंदा मंदिर में है वास तेरा।
मुझे आसरा है तुम्हारा ही माता।
भक्ति है सवाली तू जिसकी दाता॥

तो यह थी नव दुर्गा की आरती (Nav Durga Ki Aarti) जो माँ के नौ रूपों को समर्पित है। अब हम नव दुर्गा माता की आरती करने से मिलने वाले लाभ और उसके महत्व को भी जान लेते हैं।

नव दुर्गा की आरती का महत्व

आपने ऊपर मातारानी के हरेक रूप की आरती पढ़ी और उसके जरिये उनके बारे में जाना। अब दुर्गा माता की आरती तो अलग है जो आप सभी को पता ही होगी किन्तु माँ ने अपने यह जो नौ रूप लिए हैं और जिन्हें हम नवदुर्गा के नाम से भी जानते हैं, उनका महत्व बताने तथा उनकी आराधना करने के उद्देश्य से ही नवदुर्गा आरती की रचना की गयी है।

अब जब नवरात्रि का पर्व आता है तो भक्तगण नवदुर्गा के उसी रूप की पूजा करते हैं जिसका उस दिन महत्व होता है। ऐसे में यदि उस रूप को समर्पित नव दुर्गा की आरती का पाठ किया जाए तो इससे ज्यादा लाभ देखने को मिलता है। साथ ही नव दुर्गा आरती के माध्यम से हमें मातारानी के उस स्वरूप का ज्ञान भी हो जाता है। यही नव दुर्गा माता की आरती का महत्व होता है।

नव दुर्गा आरती पढ़ने के लाभ

माँ दुर्गा का हरेक रूप भिन्न-भिन्न शक्तियों, गुणों, कर्मों व उद्देश्य का प्रतिनिधित्व करता है। भक्तगण उनके जिस रूप की उपासना करते हैं, उन्हें उसी रूप के अनुसार ही फल की प्राप्ति होती है। जैसे कि सिद्धिदात्री माता हमें सिद्धियाँ प्रदान करती हैं तो महागौरी सौभाग्य का वरदान देती हैं। कालरात्रि माता हमारे शत्रुओं व भय का नाश करती हैं तो स्कंदमाता संतान प्राप्ति का वरदान देती हैं।

ऐसे में यदि आप नवरात्रि के नौ दिनों में सच्चे मन के साथ नवदुर्गा की आरती करते हैं और माँ में अपना ध्यान लगाते हैं तो आपका उद्धार तय है। माँ के नौ रूपों की आरती करने से आपको वह हर चीज़ मिल जाती है, जिसकी आप इच्छा रखते हैं। आपके सभी बिगड़े हुए काम बन जाते हैं और मोक्ष का द्वार खुल जाता है। आप ना केवल शारीरिक रूप से स्वस्थ हो जाते हैं बल्कि मन को नियंत्रण में करना भी सीख जाते हैं। यही नव दुर्गा की आरती के लाभ होते हैं।

निष्कर्ष

आज के इस लेख के माध्यम से आपने नव दुर्गा माता की आरती (Navdurga Mata Ki Aarti) पढ़ ली हैं। साथ ही आपने नव दुर्गा की आरती करने से मिलने वाले लाभ और महत्व के बारे में भी जान लिया है। यदि आप हमसे कुछ पूछना चाहते हैं तो नीचे कमेंट कर सकते हैं। हम जल्द से जल्द आपके प्रश्न का उत्तर देने का प्रयास करेंगे।

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कृष्णा

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