दुर्गा कवच हिंदी में (Durga Kavach In Hindi) | दुर्गा कवच का पाठ (Durga Kavach Ka Paath)

Durga Kavach

विश्व में कोई अन्य ऐसा धर्म नहीं है जहाँ ईश्वरीय शक्ति के रूप में नारीत्व की पूजा की जाती हो जबकि सनातन धर्म में माँ आदिशक्ति जिन्हें हम माँ दुर्गा के नाम से भी जानते हैं, वह ईश्वर के लिए भी पूजनीय है। श्रीराम जब रावण के साथ अंतिम युद्ध पर जा रहे थे तब उन्होंने माँ दुर्गा का ही ध्यान किया था और सर्वोच्च ईश्वर भी माँ की आराधना करते हुए देखे जा सकते हैं। यही कारण है कि सनातन धर्म के अनुयायियों के लिए दुर्गा कवच (Durga Kavach) का महत्व अत्यधिक बढ़ जाता है।

आज के इस लेख में आप अवश्य ही दुर्गा कवच हिंदी में (Durga Kavach In Hindi) में पढ़ने आये होंगे किन्तु आपको माँ दुर्गा का कवच कहीं से भी आसानी से मिल जाएगा। यह आपको हर तरह की धार्मिक पुस्तकों, विभिन्न तरह की वेबसाइट इत्यादि में मिल जाएगा किन्तु प्रश्न यह है कि धर्मयात्रा की इस वेबसाइट पर लिखे गए इस लेख में आपको अलग से क्या जानने को मिलेगा जो अन्यत्र नहीं मिलेगा!!

तो इस प्रश्न का उत्तर यह है कि यहाँ पर आपको ना केवल मां दुर्गा कवच का पाठ (Durga Kavach Ka Paath) करने को मिलेगा अपितु उसी के साथ माँ दुर्गा कवच का हिन्दी अर्थ भी जानने को मिलेगा। इसके पश्चात आपको देवी कवच का महत्व, लाभ व नियम सहित कई अन्य महत्वपूर्ण जानकारियां भी पढ़ने को मिलेगी जो आपके लिए जाननी अति-आवश्यक है। तो सबसे पहले करते हैं दुर्गा रक्षा कवच का पाठ।

दुर्गा कवच (Durga Kavach)

।। विनियोगः ।।

ॐ अस्य श्रीचण्डीकवचस्य ब्रह्मा ऋषिः, अनुष्टुप् छन्दः, चामुण्डा देवता, अङ्गन्यासोक्तमातरो बीजम्, दिग्बन्धदेवतास्तत्त्वम्, श्रीजगदम्बाप्रीत्यर्थे सप्तशतीपाठाङ्गत्वेन जपे विनियोगः।

ॐ नमश्‍चण्डिकायै।।

।। मार्कण्डेय उवाच ।।

ॐ यद्‌गुह्यं परमं लोके सर्वरक्षाकरं नृणाम्।

यन्न कस्यचिदाख्यातं तन्मे ब्रूहि पितामह।।1।।

।। ब्रह्मोवाच ।।

अस्ति गुह्यतमं विप्र सर्वभूतोपकारकम्।

देव्यास्तु कवचं पुण्यं तच्छृणुष्व महामुने।।2।।

प्रथमं शैलपुत्री च द्वितीयं ब्रह्मचारिणी।

तृतीयं चन्द्रघण्टेति कूष्माण्डेति चतुर्थकम्।।3।।

पञ्चमं स्कन्दमातेति षष्ठं कात्यायनीति च।

सप्तमं कालरात्रीति महागौरीति चाष्टमम्।।4।।

नवमं सिद्धिदात्री च नवदुर्गाः प्रकीर्तिताः।

उक्तान्येतानि नामानि ब्रह्मणैव महात्मना।।5।।

अग्निना दह्यमानस्तु शत्रुमध्ये गतो रणे।

विषमे दुर्गमे चैव भयार्ताः शरणं गताः।।6।।

न तेषां जायते किंचिदशुभं रणसंकटे।

नापदं तस्य पश्यामि शोकदुःखभयं न हि।।7।।

यैस्तु भक्त्या स्मृता नूनं तेषां वृद्धिः प्रजायते।

ये त्वां स्मरन्ति देवेशि रक्षसे तान्न संशयः।।8।।

प्रेतसंस्था तु चामुण्डा वाराही महिषासना।

ऐन्द्री गजसमारुढा वैष्णवी गरुडासना।।9।।

माहेश्‍वरी वृषारुढा कौमारी शिखिवाहना।

लक्ष्मीः पद्मासना देवी पद्महस्ता हरिप्रिया।।10।।

श्‍वेतरुपधरा देवी ईश्‍वरी वृषवाहना।

ब्राह्मी हंससमारुढा सर्वाभरणभूषिता।।11।।

इत्येता मातरः सर्वाः सर्वयोगसमन्विताः।

नानाभरणशोभाढ्या नानारत्नोपशोभिताः।।12।।

दृश्यन्ते रथमारुढा देव्यः क्रोधसमाकुलाः।

शङ्खं चक्रं गदां शक्तिं हलं च मुसलायुधम्।।13।।

खेटकं तोमरं चैव परशुं पाशमेव च।

कुन्तायुधं त्रिशूलं च शार्ङ्गमायुधमुत्तमम्।।14।।

दैत्यानां देहनाशाय भक्तानामभयाय च।

धारयन्त्यायुधानीत्थं देवानां च हिताय वै।।15।।

नमस्तेऽस्तु महारौद्रे महाघोरपराक्रमे।

महाबले महोत्साहे महाभयविनाशिनि।।16।।

त्राहि मां देवि दुष्प्रेक्ष्ये शत्रूणां भयवर्धिनि।

प्राच्यां रक्षतु मामैन्द्री आग्नेय्यामग्निदेवता।।17।।

दक्षिणेऽवतु वाराही नैर्ऋत्यां खड्गधारिणी।

प्रतीच्यां वारुणी रक्षेद् वायव्यां मृगवाहिनी।।18।।

उदीच्यां पातु कौमारी ऐशान्यां शूलधारिणी।

ऊर्ध्वं ब्रह्माणि मे रक्षेदधस्ताद् वैष्णवी तथा।।19।।

एवं दश दिशो रक्षेच्चामुण्डा शववाहना।

जया मे चाग्रतः पातु विजया पातु पृष्ठतः।।20।।

अजिता वामपार्श्वे तु दक्षिणे चापराजिता।

शिखामुद्योतिनि रक्षेदुमा मूर्ध्नि व्यवस्थिता।।21।।

मालाधरी ललाटे च भ्रुवौ रक्षेद् यशस्विनी।

त्रिनेत्रा च भ्रुवोर्मध्ये यमघण्टा च नासिके।।22।।

शङ्खिनी चक्षुषोर्मध्ये श्रोत्रयोर्द्वारवासिनी।

कपोलौ कालिका रक्षेत्कर्णमूले तु शांकरी।।23।।

नासिकायां सुगन्धा च उत्तरोष्ठे च चर्चिका।

अधरे चामृतकला जिह्वायां च सरस्वती।।24।।

दन्तान् रक्षतु कौमारी कण्ठदेशे तु चण्डिका।

घण्टिकां चित्रघण्टा च महामाया च तालुके।।25।।

कामाक्षी चिबुकं रक्षेद् वाचं मे सर्वमङ्गला।

ग्रीवायां भद्रकाली च पृष्ठवंशे धनुर्धरी।।26।।

नीलग्रीवा बहिःकण्ठे नलिकां नलकूबरी।

स्कन्धयोः खङ्‍गिनी रक्षेद् बाहू मे वज्रधारिणी।।27।।

हस्तयोर्दण्डिनी रक्षेदम्बिका चाङ्गुलीषु च।

नखाञ्छूलेश्‍वरी रक्षेत्कुक्षौ रक्षेत्कुलेश्‍वरी।।28।।

स्तनौ रक्षेन्महादेवी मनः शोकविनाशिनी।

हृदये ललिता देवी उदरे शूलधारिणी।।29।।

नाभौ च कामिनी रक्षेद् गुह्यं गुह्येश्‍वरी तथा।

पूतना कामिका मेढ्रं गुदे महिषवाहिनी।।30।।

कट्यां भगवती रक्षेज्जानुनी विन्ध्यवासिनी।

जङ्घे महाबला रक्षेत्सर्वकामप्रदायिनी।।31।।

गुल्फयोर्नारसिंही च पादपृष्ठे तु तैजसी।

पादाङ्गुलीषु श्री रक्षेत्पादाधस्तलवासिनी।।32।।

नखान् दंष्ट्राकराली च केशांश्‍चैवोर्ध्वकेशिनी।

रोमकूपेषु कौबेरी त्वचं वागीश्‍वरी तथा।।33।।

रक्तमज्जावसामांसान्यस्थिमेदांसि पार्वती।

अन्त्राणि कालरात्रिश्‍च पित्तं च मुकुटेश्‍वरी।।34।।

पद्मावती पद्मकोशे कफे चूडामणिस्तथा।

ज्वालामुखी नखज्वालामभेद्या सर्वसंधिषु।।35।।

शुक्रं ब्रह्माणि मे रक्षेच्छायां छत्रेश्‍वरी तथा।

अहंकारं मनो बुद्धिं रक्षेन्मे धर्मधारिणी।।36।।

प्राणापानौ तथा व्यानमुदानं च समानकम्।

वज्रहस्ता च मे रक्षेत्प्राणं कल्याणशोभना।।37।।

रसे रुपे च गन्धे च शब्दे स्पर्शे च योगिनी।

सत्त्वं रजस्तमश्‍चैव रक्षेन्नारायणी सदा।।38।।

आयू रक्षतु वाराही धर्मं रक्षतु वैष्णवी।

यशः कीर्तिं च लक्ष्मीं च धनं विद्यां च चक्रिणी।।39।।

गोत्रमिन्द्राणि मे रक्षेत्पशून्मे रक्ष चण्डिके।

पुत्रान् रक्षेन्महालक्ष्मीर्भार्यां रक्षतु भैरवी।।40।।

पन्थानं सुपथा रक्षेन्मार्गं क्षेमकरी तथा।

राजद्वारे महालक्ष्मीर्विजया सर्वतः स्थिता।।41।।

रक्षाहीनं तु यत्स्थानं वर्जितं कवचेन तु।

तत्सर्वं रक्ष मे देवि जयन्ती पापनाशिनी।।42।।

पदमेकं न गच्छेत्तु यदीच्छेच्छुभमात्मनः।

कवचेनावृतो नित्यं यत्र यत्रैव गच्छति।।43।।

तत्र तत्रार्थलाभश्‍च विजयः सार्वकामिकः।

यं यं चिन्तयते कामं तं तं प्राप्नोति निश्‍चितम्।

परमैश्‍वर्यमतुलं प्राप्स्यते भूतले पुमान्।।44।।

निर्भयो जायते मर्त्यः संग्रामेष्वपराजितः।

त्रैलोक्ये तु भवेत्पूज्यः कवचेनावृतः पुमान्।।45।।

इदं तु देव्याः कवचं देवानामपि दुर्लभम्।

यः पठेत्प्रयतो नित्यं त्रिसन्ध्यं श्रद्धयान्वितः।।46।।

दैवी कला भवेत्तस्य त्रैलोक्येष्वपराजितः।

जीवेद् वर्षशतं साग्रमपमृत्युविवर्जितः।।47।।

नश्यन्ति व्याधयः सर्वे लूताविस्फोटकादयः।

स्थावरं जङ्गमं चैव कृत्रिमं चापि यद्विषम्।।48।।

अभिचाराणि सर्वाणि मन्त्रयन्त्राणि भूतले।

भूचराः खेचराश्‍चैव जलजाश्‍चोपदेशिकाः।।49।।

सहजा कुलजा माला डाकिनी शाकिनी तथा।

अन्तरिक्षचरा घोरा डाकिन्यश्‍च महाबलाः।।50।।

ग्रहभूतपिशाचाश्‍च यक्षगन्धर्वराक्षसाः।

ब्रह्मराक्षसवेतालाः कूष्माण्डा भैरवादयः।।51।।

नश्यन्ति दर्शनात्तस्य कवचे हृदि संस्थिते।

मानोन्नतिर्भवेद् राज्ञस्तेजोवृद्धिकरं परम्।।52।।

यशसा वर्धते सोऽपि कीर्तिमण्डितभूतले।

जपेत्सप्तशतीं चण्डीं कृत्वा तु कवचं पुरा।।53।।

यावद्भूमण्डलं धत्ते सशैलवनकाननम्।

तावत्तिष्ठति मेदिन्यां संततिः पुत्रपौत्रिकी।।54।।

देहान्ते परमं स्थानं यत्सुरैरपि दुर्लभम्।

प्राप्नोति पुरुषो नित्यं महामायाप्रसादतः।।55।।

लभते परमं रुपं शिवेन सह मोदते।।ॐ।।56।।

दुर्गा कवच हिंदी में (Durga Kavach In Hindi)

।। विनियोगः ।।

ॐ अस्य श्रीचण्डीकवचस्य ब्रह्मा ऋषिः, अनुष्टुप् छन्दः, चामुण्डा देवता, अङ्गन्यासोक्तमातरो बीजम्, दिग्बन्धदेवतास्तत्त्वम्, श्रीजगदम्बाप्रीत्यर्थे सप्तशतीपाठाङ्गत्वेन जपे विनियोगः।

ॐ नमश्‍चण्डिकायै।।

माँ दुर्गा के चंडी रूप को हमारा नमन है। यह भगवान ब्रह्मा जी के द्वारा लिखा गया चंडी कवच है जिसमे कुल छप्पन छन्द हैं। चामुंडा देवता, दिग्बंध देवता, जगदम्बा माता इत्यादि का ध्यान कर हम इस दुर्गा सप्तशती का पाठ शुरू करने जा रहे हैं।

।। मार्कण्डेय उवाच ।।

ॐ यद्‌गुह्यं परमं लोके सर्वरक्षाकरं नृणाम्।

यन्न कस्यचिदाख्यातं तन्मे ब्रूहि पितामह।।1।।

इस छन्द में मार्कण्डेय जी पितामह ब्रह्मा से कह रहे हैं कि हे भगवान ब्रह्मा!! जो इस विश्व में गोपनीय व रहस्यपूर्ण है तथा जो सभी की रक्षा करता है और हमें अधर्म से बचाता है, साथ ही जिसे आपने अभी तक किसी को दिखाया भी नहीं है, ऐसा कोई साधन या उपाय आप मुझे बताइए।

।। ब्रह्मोवाच ।।

अस्ति गुह्यतमं विप्र सर्वभूतोपकारकम्।

देव्यास्तु कवचं पुण्यं तच्छृणुष्व महामुने।।2।।

मार्कण्डेय जी के इस प्रश्न पर भगवान ब्रह्मा कहते हैं कि उस साधन का नाम तो देवी कवच ही है जो इस विश्व में अत्यधिक गोपनीय है। यह देवी कवच सभी का कल्याण करने वाला, पवित्रता व पुण्य देने वाला है। आपको इसी का ही जाप करना चाहिए जिससे कि आपका उद्धार हो।

प्रथमं शैलपुत्री च द्वितीयं ब्रह्मचारिणी।

तृतीयं चन्द्रघण्टेति कूष्माण्डेति चतुर्थकम्।।3।।

माँ दुर्गा का प्रथम रूप माँ शैलपुत्री है, दूसरा रूप माँ ब्रह्मचारिणी है, तीसरा रूप माँ चंद्रघंटा है तथा चौथा रूप माँ कूष्मांडा है।

पञ्चमं स्कन्दमातेति षष्ठं कात्यायनीति च।

सप्तमं कालरात्रीति महागौरीति चाष्टमम्।।4।।

उनका पांचवां रूप स्कंदमाता, छठा रूप माँ कात्यायिनी, सातवाँ रूप माँ कालरात्रि, आठवां रूप माँ महागौरी है।

नवमं सिद्धिदात्री च नवदुर्गाः प्रकीर्तिताः।

उक्तान्येतानि नामानि ब्रह्मणैव महात्मना।।5।।

माँ दुर्गा का नौवां रूप माँ सिद्धिदात्री है। यही नवदुर्गा के रूप हैं जिसे भगवान ब्रह्मा के द्वारा वेदों के माध्यम से बताया गया है।

अग्निना दह्यमानस्तु शत्रुमध्ये गतो रणे।

विषमे दुर्गमे चैव भयार्ताः शरणं गताः।।6।।

जो मनुष्य अग्नि में जल रहा हो, सभी ओर से शत्रुओं से घिर गया हो, विपरीत परिस्थितयों का सामना कर रहा हो और उस समय यदि वह माँ दुर्गा की शरण में जाता है तो उसका कभी भी बुरा नहीं हो सकता है अर्थात माँ दुर्गा का ध्यान किये जाने पर माँ दुर्गा उसकी हर परिस्थिति में सहायता करती हैं।

न तेषां जायते किंचिदशुभं रणसंकटे।

नापदं तस्य पश्यामि शोकदुःखभयं न हि।।7।।

यदि युद्ध का समय हो और मनुष्य संकटों से घिरा हुआ तो भी माँ दुर्गा के प्रभाव से उसका कुछ भी बुरा नहीं होता है। माँ दुर्गा उसके दुःख, पीड़ा, भय इत्यादि का नाश कर देती हैं।

यैस्तु भक्त्या स्मृता नूनं तेषां वृद्धिः प्रजायते।

ये त्वां स्मरन्ति देवेशि रक्षसे तान्न संशयः।।8।।

जो भी भक्तगण माँ दुर्गा की भक्ति करता है, माँ दुर्गा अवश्य ही उन्हें अभय दान देती हैं। जो कोई भी देवी दुर्गा का ध्यान करता है, माँ दुर्गा उसकी हर प्रकार से रक्षा करती हैं और इस बात में कोई भी संशय नहीं है।

प्रेतसंस्था तु चामुण्डा वाराही महिषासना।

ऐन्द्री गजसमारुढा वैष्णवी गरुडासना।।9।।

चामुंडा माता का वाहन प्रेत है और वे उस पर सवारी करती हैं। वाराही माता का वाहन भैंसा है। ऐन्द्री माता का वाहन हाथी है तो वहीं वैष्णवी माता का वाहन गरुड़ है।

माहेश्‍वरी वृषारुढा कौमारी शिखिवाहना।

लक्ष्मीः पद्मासना देवी पद्महस्ता हरिप्रिया।।10।।

भगवान शिव की पत्नी व सभी की ईश्वर माँ पार्वती का वाहन वृषभ है। कुमारी माता का वाहन मोर है। लक्ष्मी माता कमल के आसन पर विराजमान हैं और उन्होंने अपने हाथों में भी कमल लिया हुआ है। वे भगवान विष्णु को अत्यधिक प्रिय हैं।

श्‍वेतरुपधरा देवी ईश्‍वरी वृषवाहना।

ब्राह्मी हंससमारुढा सर्वाभरणभूषिता।।11।।

वृषभ पर बैठी हुई माँ पार्वती का रंग सफेद है। भगवान ब्रह्मा की पत्नी माँ ब्राह्मी या माँ सरस्वती हंस पर बैठी हुई हैं और सभी प्रकार के आभूषण पहने हुए हैं।

इत्येता मातरः सर्वाः सर्वयोगसमन्विताः।

नानाभरणशोभाढ्या नानारत्नोपशोभिताः।।12।।

इस प्रकार से मातारानी अपने भिन्न-भिन्न रूपों में सभी तरह के योग व शक्तियों को ली हुई हैं। उन्होंने कई प्रकार के आभूषण व रत्न पहने हुए हैं जो उनकी शोभा को बढ़ा रहे हैं।

दृश्यन्ते रथमारुढा देव्यः क्रोधसमाकुलाः।

शङ्खं चक्रं गदां शक्तिं हलं च मुसलायुधम्।।13।।

माँ दुर्गा का एक रूप अत्यधिक क्रोध में रथ पर बैठा हुआ दिखाई देता है जो दुष्टों का नाश करने के लिए है। वे अपने हाथ में शंख, सुदर्शन चक्र, गदा, हल, मूसल इत्यादि लिए हुए हैं।

खेटकं तोमरं चैव परशुं पाशमेव च।

कुन्तायुधं त्रिशूलं च शार्ङ्गमायुधमुत्तमम्।।14।।

इसके अलावा उन्होंने अपने हाथों में खेटक, तोमर, परशु, पाश, त्रिशूल तथा उत्तम कोटि का धनुष भी लिया हुआ है।

दैत्यानां देहनाशाय भक्तानामभयाय च।

धारयन्त्यायुधानीत्थं देवानां च हिताय वै।।15।।

माँ दुर्गा दैत्यों, दुष्टों व राक्षसों का नाश कर देती हैं, भक्तों का कल्याण करती हैं तथा देवताओं का सदैव हित करती हैं। इसी उद्देश्य के तहत ही उन्होंने भिन्न-भिन्न भांत के अस्त्र-शस्त्र लिए हुए हैं।

नमस्तेऽस्तु महारौद्रे महाघोरपराक्रमे।

महाबले महोत्साहे महाभयविनाशिनि।।16।।

माँ दुर्गा के महारूद्र, प्रलयंकारी, पराक्रमी, महाशक्तिशाली, अत्यधिक उत्साही तथा भय का नाश कर देने वाले इस रूप को हम सभी नमस्कार करते हैं।

त्राहि मां देवि दुष्प्रेक्ष्ये शत्रूणां भयवर्धिनि।

प्राच्यां रक्षतु मामैन्द्री आग्नेय्यामग्निदेवता।।17।।

माँ देवी के इस प्रलयकारी रूप की ओर देखना भी बहुत मुश्किल है जो शत्रुओं का भय बढ़ाने का कार्य करता है। पूर्व दिशा में इंद्री देवी मेरी रक्षा कीजिये। आग्नेय दिशा में अग्नि देवी मेरी रक्षा कीजिये।

दक्षिणेऽवतु वाराही नैर्ऋत्यां खड्गधारिणी।

प्रतीच्यां वारुणी रक्षेद् वायव्यां मृगवाहिनी।।18।।

दक्षिण दिशा में वाराही माता, नैर्ऋत्य कोण में खड्गधारी माँ, पश्चिम दिशा में वारुणी देवी और वायव्य कोण में मृगवाहिनी देवी मेरी रक्षा कीजिये।

उदीच्यां पातु कौमारी ऐशान्यां शूलधारिणी।

ऊर्ध्वं ब्रह्माणि मे रक्षेदधस्ताद् वैष्णवी तथा।।19।।

उत्तर दिशा में माँ कुमारी, ईशान कोण में शूलधारिणी, आकाश से अर्थात ऊपर से माँ ब्रह्माणी तथा नीचे अर्थात पाताल लोक से माँ वैष्णवी मेरी रक्षा कीजिये।

एवं दश दिशो रक्षेच्चामुण्डा शववाहना।

जया मे चाग्रतः पातु विजया पातु पृष्ठतः।।20।।

राक्षसों के शवों को अपने वाहन के रूप में उपयोग में लाने वाली माँ चामुंडा देवी!! आप दसों दिशाओं से मेरी रक्षा कीजिये। आगे से माँ जया तथा पीछे से माँ विजया आप मेरी रक्षा कीजिये।

अजिता वामपार्श्वे तु दक्षिणे चापराजिता।

शिखामुद्योतिनि रक्षेदुमा मूर्ध्नि व्यवस्थिता।।21।।

माँ अजिता मेरे वाम भाग में और दक्षिण दिशा में अपराजिता देवी मेरी रक्षा करे। मेरी शिखा की रक्षा उद्योतिनी देवी और माँ उमा मेरे सिर की रक्षा करे अर्थात उसमे वास करे।

मालाधरी ललाटे च भ्रुवौ रक्षेद् यशस्विनी।

त्रिनेत्रा च भ्रुवोर्मध्ये यमघण्टा च नासिके।।22।।

आप मेरे ललाट की मालाधारी के रूप में और भौहों का यशस्विनी के रूप में सरंक्षण करे। भौहों के बीच में त्रिनेत्र के रूप में और नाक की यमघंटा के रूप में रक्षा करे।

शङ्खिनी चक्षुषोर्मध्ये श्रोत्रयोर्द्वारवासिनी।

कपोलौ कालिका रक्षेत्कर्णमूले तु शांकरी।।23।।

दोनों आँखों के बीच में शंख माता के रूप में और कानो की द्वारवासिनी के रूप में रक्षा करे। मेरे कपाल की कालिका के रूप में और कानो के मूल की शांकरी देवी रक्षा करे।

नासिकायां सुगन्धा च उत्तरोष्ठे च चर्चिका।

अधरे चामृतकला जिह्वायां च सरस्वती।।24।।

नासिका की सुगंधा देवी और होंठ के ऊपरी भाग की चर्चिका देवी रक्षा करे। होंठ के निचले भाग की अमृतकला देवी और जीभ की सरस्वती देवी रक्षा करे।

दन्तान् रक्षतु कौमारी कण्ठदेशे तु चण्डिका।

घण्टिकां चित्रघण्टा च महामाया च तालुके।।25।।

मेरे दांतों की कुमारी देवी, कंठ की चंडिका देवी, घंटिका की चित्रघंटा देवी और तालु की महामाया रक्षा करे।

कामाक्षी चिबुकं रक्षेद् वाचं मे सर्वमङ्गला।

ग्रीवायां भद्रकाली च पृष्ठवंशे धनुर्धरी।।26।।

मेरी ठोढ़ी की कामाक्षी देवी, वाणी की सर्वमंगला देवी, ग्रीवा की भद्रकाली तथा मेरुदंड की धनुर्धारी देवी रक्षा करे।

नीलग्रीवा बहिःकण्ठे नलिकां नलकूबरी।

स्कन्धयोः खङ्‍गिनी रक्षेद् बाहू मे वज्रधारिणी।।27।।

बाहरी कंठ की नीलग्रीवा देवी, कंठ नलिका की नलकूबरी, कंधों की खड्गिनी देवी और भुजाओं की वज्रधारिणी देवी रक्षा करे।

हस्तयोर्दण्डिनी रक्षेदम्बिका चाङ्गुलीषु च।

नखाञ्छूलेश्‍वरी रक्षेत्कुक्षौ रक्षेत्कुलेश्‍वरी।।28।।

दोनों हाथों की दंडिनी देवी, अँगुलियों की जगदम्बिका माता, नाखूनों की शुलेश्वरी देवी और पेट की कुलेश्वरी देवी रक्षा करे।

स्तनौ रक्षेन्महादेवी मनः शोकविनाशिनी।

हृदये ललिता देवी उदरे शूलधारिणी।।29।।

स्तनों की महादेवी, मन की शोकविनाशिनी देवी, हृदय की ललिता देवी और उदर की शूलधारिणी देवी रक्षा करे।

नाभौ च कामिनी रक्षेद् गुह्यं गुह्येश्‍वरी तथा।

पूतना कामिका मेढ्रं गुदे महिषवाहिनी।।30।।

नाभि की कामिनी देवी, गुहा की गुहेश्वरी देवी, लिंग की पूतना व कामिका देवी तथा गुदा की महिषवाहिनी देवी रक्षा करे।

कट्यां भगवती रक्षेज्जानुनी विन्ध्यवासिनी।

जङ्घे महाबला रक्षेत्सर्वकामप्रदायिनी।।31।।

कटिभाग की भगवती देवी, घुटनों की विन्ध्यवासिनी देवी, जाँघों की महाबला देवी रक्षा करे और सभी कामनाओं को पूरा करे।

गुल्फयोर्नारसिंही च पादपृष्ठे तु तैजसी।

पादाङ्गुलीषु श्री रक्षेत्पादाधस्तलवासिनी।।32।।

मेरी घुट्ठियों की नारसिंही देवी, पैरों के आगे भाग की तैजसी देवी, पैरों की अँगुलियों की श्रीदेवी और पैरों के तल की तलवासिनी देवी रक्षा करे।

नखान् दंष्ट्राकराली च केशांश्‍चैवोर्ध्वकेशिनी।

रोमकूपेषु कौबेरी त्वचं वागीश्‍वरी तथा।।33।।

पैरों के नाखूनों की दंष्ट्राकराली देवी, केशों की उर्ध्वकेशिनी देवी, रोम छिद्रों की कौबेरी देवी तथा त्वचा की वागीश्वरी देवी रक्षा करे।

रक्तमज्जावसामांसान्यस्थिमेदांसि पार्वती।

अन्त्राणि कालरात्रिश्‍च पित्तं च मुकुटेश्‍वरी।।34।।

माँ पार्वती देवी मेरे रक्त, मांस, हड्डियों इत्यादि की रक्षा करे। आँतों की कालरात्रि देवी और पित्त की मुकुटेश्वरी देवी रक्षा करे।

पद्मावती पद्मकोशे कफे चूडामणिस्तथा।

ज्वालामुखी नखज्वालामभेद्या सर्वसंधिषु।।35।।

पद्मकोशों की माँ पद्मावती देवी, कफ की चूड़ामणि देवी, नाखूनों की धार की ज्वालामुखी देवी और शरीर की संधियों की अभेद्या देवी रक्षा करे।

शुक्रं ब्रह्माणि मे रक्षेच्छायां छत्रेश्‍वरी तथा।

अहंकारं मनो बुद्धिं रक्षेन्मे धर्मधारिणी।।36।।

मेरे वीर्य की माँ ब्रह्माणी देवी, छाया की छत्रेश्वरी देवी तथा धर्मधारिणी देवी मेरे अहंकार, मन व बुद्धि की रक्षा करे।

प्राणापानौ तथा व्यानमुदानं च समानकम्।

वज्रहस्ता च मे रक्षेत्प्राणं कल्याणशोभना।।37।।

हे माँ दुर्गा!! आप मेरे प्राणों, व्यान, उदान की समान रूप से रक्षा करें। वज्रहस्ता देवी मेरे प्राणों की रक्षा करे और मेरा कल्याण करें।

रसे रुपे च गन्धे च शब्दे स्पर्शे च योगिनी।

सत्त्वं रजस्तमश्‍चैव रक्षेन्नारायणी सदा।।38।।

आप मेरी सभी इन्द्रियों (रस, रूप, गंध, शब्द व स्पर्श) में बसती हैं। हे नारायणी देवी!! आप मेरे सत्वगुण, रजगुण व तमोगुण की रक्षा करें।

आयू रक्षतु वाराही धर्मं रक्षतु वैष्णवी।

यशः कीर्तिं च लक्ष्मीं च धनं विद्यां च चक्रिणी।।39।।

मेरी आयु की वाराही देवी, वैष्णवी देवी धर्म की, यश व कीर्ति की लक्ष्मी देवी तथा धन व विद्या की चक्रिणी देवी रक्षा करे।

गोत्रमिन्द्राणि मे रक्षेत्पशून्मे रक्ष चण्डिके।

पुत्रान् रक्षेन्महालक्ष्मीर्भार्यां रक्षतु भैरवी।।40।।

इंद्रा देवी मेरे गोत्र की, चंडी देवी मेरे पशुओं की, महालक्ष्मी देवी मेरे पुत्रों की और भैरवी देवी मेरी पत्नी की रक्षा करे।

पन्थानं सुपथा रक्षेन्मार्गं क्षेमकरी तथा।

राजद्वारे महालक्ष्मीर्विजया सर्वतः स्थिता।।41।।

मेरे पथ की सुपथा देवी और उस मार्ग की क्षेमकरी देवी, राजा के दरबार में महालक्ष्मी देवी तथा सभी जगह निवास करने वाली विजया देवी मेरे भय की रक्षा करे।

रक्षाहीनं तु यत्स्थानं वर्जितं कवचेन तु।

तत्सर्वं रक्ष मे देवि जयन्ती पापनाशिनी।।42।।

हे माँ दुर्गा!! जो भी स्थान या अंग इस देवी कवच में रह गया है और वह अभी भी रक्षा करने योग्य है तो आप उसकी भी रक्षा कीजिये। आप मेरे पापों का नाश कर मेरा उद्धार कीजिये।

पदमेकं न गच्छेत्तु यदीच्छेच्छुभमात्मनः।

कवचेनावृतो नित्यं यत्र यत्रैव गच्छति।।43।।

माँ दुर्गा की आज्ञा के बिना कोई भी व्यक्ति इस विश्व में एक कदम भी आगे नहीं बढ़ सकता है। हम यदि कहीं भी जा रहे हैं तो हमें अवश्य ही इस देवी कवच का पाठ करना चाहिए और उसके बाद ही प्रस्थान करना चाहिए।

तत्र तत्रार्थलाभश्‍च विजयः सार्वकामिकः।

यं यं चिन्तयते कामं तं तं प्राप्नोति निश्‍चितम्।

परमैश्‍वर्यमतुलं प्राप्स्यते भूतले पुमान्।।44।।

इस दुर्गा रक्षा कवच के पाठ से हमें हर जगह लाभ व सफलता मिलती है और हमारे सभी काम बन जाते हैं। हम जब भी माँ दुर्गा का ध्यान करते हैं, वैसे ही हमारे सभी काम बनते चले जाते हैं। उस व्यक्ति को इस पृथ्वी पर बिना किसी तुलना के परम यश व वैभव प्राप्त होता है।

निर्भयो जायते मर्त्यः संग्रामेष्वपराजितः।

त्रैलोक्ये तु भवेत्पूज्यः कवचेनावृतः पुमान्।।45।।

जो भी भक्तगण इस देवी रक्षा कवच का पाठ करता है, उसका भय समाप्त हो जाता है, युद्ध में उसकी विजय होती है तथा वह तीनों लोकों में पूजनीय हो जाता है।

इदं तु देव्याः कवचं देवानामपि दुर्लभम्।

यः पठेत्प्रयतो नित्यं त्रिसन्ध्यं श्रद्धयान्वितः।।46।।

दैवी कला भवेत्तस्य त्रैलोक्येष्वपराजितः।

जीवेद् वर्षशतं साग्रमपमृत्युविवर्जितः।।47।।

देवी माता का यह रक्षा कवच देवताओं तक के लिए बहुत दुर्लभ होता है। जो व्यक्ति इस देवी कवच का तीनों समय श्रद्धा भाव के साथ पाठ करता है, उसे देवी माता की कृपा से तीनों लोकों में विजय मिलती है, वह अकाल मृत्यु के भय से दूर होता है तथा सौ वर्षों से भी अधिक समय तक जीवित रहता है।

नश्यन्ति व्याधयः सर्वे लूताविस्फोटकादयः।

स्थावरं जङ्गमं चैव कृत्रिमं चापि यद्विषम्।।48।।

इस दुर्गा कवच के पाठ से व्यक्ति के शरीर में होने वाले हर तरह के रोग समाप्त हो जाते हैं। उसके शरीर में बनने वाला विष समाप्त हो जाता है तथा कोई रोग उसका कुछ बिगाड़ नहीं सकता है।

अभिचाराणि सर्वाणि मन्त्रयन्त्राणि भूतले।

भूचराः खेचराश्‍चैव जलजाश्‍चोपदेशिकाः।।49।।

जो भी मनुष्य इस दुर्गा रक्षा कवच को अपने हृदय में धारण कर लेता है, उस पर इस पृथ्वी पर होने वाले सभी तरह के अभिचारण मंत्र, तंत्र का प्रभाव समाप्त हो जाता है।

सहजा कुलजा माला डाकिनी शाकिनी तथा।

अन्तरिक्षचरा घोरा डाकिन्यश्‍च महाबलाः।।50।।

ग्रहभूतपिशाचाश्‍च यक्षगन्धर्वराक्षसाः।

ब्रह्मराक्षसवेतालाः कूष्माण्डा भैरवादयः।।51।।

नश्यन्ति दर्शनात्तस्य कवचे हृदि संस्थिते।

मानोन्नतिर्भवेद् राज्ञस्तेजोवृद्धिकरं परम्।।52।।

सभी तरह की डाकिनी, शाकिनी, अन्तरिक्ष में रहने वाले अति शक्तिशाली व भयंकर डाकिन, भूत, पिशाच, यक्ष, गन्धर्व, राक्षस, ब्रह्म राक्षस, वेताल, कूष्मांडा, भैरव इत्यादि सभी तरह की नकारात्मक शक्तियों के प्रभाव इस दुर्गा कवच के माध्यम से समाप्त हो जाते हैं। इस रक्षा कवच का पाठ करने वाला व्यक्ति राजा से सम्मान प्राप्त करता है और उसकी सुख-संपत्ति में वृद्धि होती है।

यशसा वर्धते सोऽपि कीर्तिमण्डितभूतले।

जपेत्सप्तशतीं चण्डीं कृत्वा तु कवचं पुरा।।53।।

यावद्भूमण्डलं धत्ते सशैलवनकाननम्।

तावत्तिष्ठति मेदिन्यां संततिः पुत्रपौत्रिकी।।54।।

जो भी व्यक्ति इस देवी कवच का पाठ करता है, उसका हर जगह यश बढ़ता ही जाता है। जो भी इस कवच का सात बार जाप करता है, उसका वंश इस पृथ्वी के अंत तक रहता है।

देहान्ते परमं स्थानं यत्सुरैरपि दुर्लभम्।

प्राप्नोति पुरुषो नित्यं महामायाप्रसादतः।।55।।

इसके पश्चात जब उसकी मृत्यु हो जाती है, तब वह माँ दुर्गा के आशीर्वाद से परम स्थान प्राप्त करता है जो देवताओं को भी दुर्लभ है। उसे महामाया का प्रसाद मिलता है और उसकी मुक्ति हो जाती है।

लभते परमं रुपं शिवेन सह मोदते।।ॐ।।56।।

वह माँ दुर्गा के आशीर्वाद से सुन्दर रूप को धारण करता है और भगवान शिव के समान आनंद प्राप्त करता है।

दुर्गा कवच का पाठ करने के नियम (Durga Kavach Ka Paath – Niyam)

आपको इंटरनेट पर अलग-अलग लेखों के माध्यम से मां दुर्गा जी के कवच को पढ़ने के तरह-तरह के नियमों के बारे में बताया गया होगा जो कि अधिकतर व्यर्थ में ही लिखे गए होते हैं। पहली बात तो माँ का कोई भी भक्त देवी कवच का पाठ कर सकता है और इसके लिए माँ की ओर से किसी तरह की शर्त नहीं रखी गयी है। हालाँकि आपको नैतिक तौर पर कुछ बातों को अवश्य ध्यान में रखना चाहिए।

उदाहरण के तौर पर आप बिना नहाये या नहाने के पश्चात यदि शौच गए हैं तो दुर्गा कवच का पाठ करने से बचें। आप जहाँ भी देवी दुर्गा के कवच का पाठ कर रहे हैं, वह जगह स्वच्छ हो अर्थात किसी अनुचित जगह पर माँ दुर्गा कवच का पाठ करने से बचें। इसी के साथ ही जब भी आप दुर्गा कवच का पाठ करना शुरू करें तो अपने मन को भी शांत रखें और उसमे किसी भी तरह के अनुचित या बुरे विचार ना आने दें।

कुल मिलाकर हमारे कहने का तात्पर्य यह है कि दुर्गा मां के कवच को पढ़ने से पहले स्थान, तन व मन का स्वच्छ व निर्मल होना आवश्यक होता है। यदि आप बिना इसके भी मां दुर्गा के कवच का पाठ करते हैं तो आपको कोई हानि तो नहीं होगी किन्तु कुछ लाभ भी नहीं मिलेगा। इसलिए यह बहुत ही आवश्यक है कि आप स्नान करके स्वच्छ जगह पर और निर्मल मन के साथ ही दुर्गा कवच का पाठ करें।

देवी दुर्गा कवच का महत्व (Devi Durga Kavach – Mahatva)

सनातन धर्म में कई तरह की देवियों व उनके तरह-तरह के रूपों के बारे में बात की गयी है तथा उनका महत्व दर्शाया गया है किन्तु उन सभी का आधार माँ आदिशक्ति जिन्हें हम माँ दुर्गा के नाम से भी जानते हैं, वही हैं। कहने का तात्पर्य यह हुआ कि माँ पार्वती, माँ लक्ष्मी, माँ सरस्वती तथा अन्य देवियाँ माँ दुर्गा का ही एक रूप हैं या उनसे प्रकट हुई हैं। माँ दुर्गा ही इन सभी की आधार देवी मानी जाती हैं।

माँ दुर्गा कवच के माध्यम से हम सभी को यह बताने की चेष्ठा की गयी है कि उनके जैसा कोई दूसरा नहीं है और जो व्यक्ति दुर्गा माँ के कवच को पढ़ता है, उसका उद्धार होना तय है। श्री दुर्गा कवच के माध्यम से माँ दुर्गा के गुणों, शक्तियों, पराक्रम, कर्मों, महत्व इत्यादि के बारे में विस्तार से बताया गया है ताकि भक्तगण माँ के पराक्रम के बारे में अच्छे से जान सकें। यही दुर्गा कवच का महत्व होता है।

दुर्गा कवच पाठ के लाभ (Durga Kavach Ke Fayde)

अब आपको माँ दुर्गा कवच का पाठ करने से क्या कुछ लाभ मिलते हैं, इसके बारे में भी जानना होगा तो हम आपको निराश ना करते हुए इसके बारे में भी बताएँगे। दरअसल दुर्गा कवच का पाठ करने से व्यक्ति को एक नहीं बल्कि कई तरह के लाभ देखने को मिलते हैं जो उसके जीवन की दिशा तक को बदल सकते हैं। सीधे शब्दों में कहा जाए तो मां दुर्गा कवच का पाठ करने के फायदे बहुत सारे हैं।

जो व्यक्ति नियमित रूप से ऊपर बताये गए नियमों का पालन करते हुए दुर्गा कवच पढ़ता है, उसे अवश्य ही इसका प्रभाव कुछ ही सप्ताह में देखने को मिल जाता है। अब इनमे से कौन-कौन से लाभ आपको मिल सकते हैं, वह हम आपको नीचे बताने जा रहे हैं। आइये जाने दुर्गा कवच पढ़ने से मिलने वाले लाभ।

  • यदि आपका कोई काम नहीं बन पा रहा है या रह-रह कर उसमें किसी ना किसी तरह की रूकावट आ रही है तो माँ दुर्गा के प्रभाव से वह जल्दी ही बन जाता है।
  • यदि आपका मन खिन्न है या आप किसी बात को लेकर तनाव में हैं तो माँ दुर्गा कवच के प्रभाव से मन शांत होता है तथा तनाव दूर हो जाता है।
  • यदि आपको आगे का कोई मार्ग समझ नहीं आ रहा है या जीवन में क्या किया जाए, इसको लेकर चिंतित हैं तो आगे का मार्ग भी सुगम होता है तथा आपको एक नयी राह भी मिलती है।
  • माता दुर्गा के प्रभाव से और उनके कवच के नियमित पाठ से आपका यश परिवार, मित्रों व समाज में फैलता है तथा मान-सम्मान में वृद्धि देखने को मिलती है।
  • यदि आपके ऊपर कोई बुरा साया है या बुरी शक्तियों का प्रभाव है तो वह भी दुर्गा माँ के प्रभाव से समाप्त हो जाता है। यह लाभ तो आपको बस दुर्गा कवच के पाठ के कुछ दिनों में ही देखने को मिल जाएगा।

हालाँकि दुर्गा कवच को पढ़ने के इनके अलावा भी कई तरह के लाभ देखने को मिलते हैं जो हर व्यक्ति की स्थिति के अनुसार अलग-अलग प्रभाव डालते हैं। फिर भी हमने उनमें से कुछ चुनिंदा लाभों को आपके सामने रखा है ताकि आपको यह पता चल सके कि यदि आप नियमित रूप से दुर्गा कवच पढ़ेंगे तो आपके ऊपर उसका क्या प्रभाव होगा।

दुर्गा कवच से संबंधित प्रश्नोत्तर

प्रश्न: दुर्गा कवच क्या होता है?

उत्तर: दुर्गा कवच माँ दुर्गा का पाठ है जिसमे माँ दुर्गा की शक्तियों, रूपों, गुणों, महिमा, पराक्रम इत्यादि के बारे में बताया गया है। इसमें आपको माँ दुर्गा के सभी रूपों के नाम व उनकी शक्तियों तथा महिमा के बारे में जानने को मिलेगा।

प्रश्न: दुर्गा कवच पढ़ने के क्या फायदे हैं?

उत्तर: दुर्गा कवच पढ़ने के एक नहीं बल्कि कई तरह के फायदे देखने को मिलते हैं जिसमे व्यक्ति का मानसिक व आध्यात्मिक विकास होना महत्वपूर्ण है।

प्रश्न: दुर्गा कवच कैसे पढ़ना चाहिए?

उत्तर: दुर्गा कवच को पढ़ने से पहले आपको स्नान करना चाहिए और उसके पश्चात किसी स्वच्छ स्थान पर माँ दुर्गा के चित्र या मूर्ति के सामने निर्मल मन के साथ इसका जाप करना चाहिए।

प्रश्न: दुर्गा कवच कितने दिन में सिद्ध होता है?

उत्तर: वैसे तो हर भक्त को नियमित रूप से दुर्गा कवच का पाठ करना चाहिए किन्तु नवरात्र के नौ दिनों में इसका जाप किया जाए तो यह जल्दी सिद्ध होता है।

प्रश्न: दुर्गा कवच का मंत्र क्या है?

उत्तर: ॐ अस्य श्रीचण्डीकवचस्य ब्रह्मा ऋषिः, अनुष्टुप् छन्दः, चामुण्डा देवता, अङ्गन्यासोक्तमातरो बीजम्, दिग्बन्धदेवतास्तत्त्वम्, श्रीजगदम्बाप्रीत्यर्थे सप्तशतीपाठाङ्गत्वेन जपे विनियोगः।

प्रश्न: दुर्गा कवच पाठ कब करना चाहिए?

उत्तर: वैसे तो आप दुर्गा कवच का पाठ वर्ष के किसी भी दिन कर सकते हैं किन्तु नवरात्र के दिनों में दुर्गा कवच का पाठ किया जाना अधिक शुभकारी माना जाता है।

प्रश्न: देवी कवच ​​कितना शक्तिशाली है?

उत्तर: देवी कवच में कुल 55 चौपाई हैं व एक विनियोग है जो इसे अत्यधिक शक्तिशाली बनाते हैं। इसमें माँ दुर्गा के सभी रूपों और उनकी शक्तियों का वर्णन किया गया है।

प्रश्न: देवी कवच को कैसे सिद्ध करें?

उत्तर: यदि आप देवी कवच को सिद्ध करना चाहते हैं तो उसके लिए नियमित रूप से सुबह स्नान करने के पश्चात किसी स्वच्छ जगह पर दुर्गा मूर्ति या चित्र के सामने इसका निर्मल मन के साथ पाठ करें।

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लेखक के बारें में: कृष्णा

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