नवग्रह आरती – दो तरह की नवग्रह की आरती हिंदी अर्थ सहित

Navgrah Aarti

Navgrah Aarti: हमारे वेदों व पुराणों में आज से लाखों वर्ष पूर्व ही सूर्य देव के आभामंडल, पृथ्वी की सरंचना तथा अन्य ग्रहों की स्थिति के बारे में बता दिया गया था। साथ ही उनमें हमारे नवग्रहों के बारे में भी विस्तार से बताया गया है, मुख्यतया ज्योतिष शास्त्र में क्योंकि इनके प्रभाव और स्थिति के कारण ही हमारी कुंडली व भाग्य का निर्माण होता है। ऐसे में नवग्रह आरती कर सभी ग्रहों को प्रसन्न किया जा सकता है।

नवग्रह की आरती (Navagraha Aarti) एक नही बल्कि दो है। ऐसे में आज हम आपके साथ दोनों नवग्रह आरती अर्थ सहित साझा करेंगे ताकि आप इसका संपूर्ण ज्ञान ले सकें। आइए करें आरती नवग्रह की हिंदी में

Navgrah Aarti | नवग्रह आरती – प्रथम

आरती श्री नवग्रहों की कीजै।
बाध, कष्ट, रोग, हर लीजै॥

सूर्य तेज व्यापे जीवन भर।
जाकी कृपा कबहुत नहिं छीजै॥

रुप चंद्र शीतलता लायें।
शांति स्नेह सरस रसु भीजै॥

मंगल हरे अमंगल सारा।
सौम्य सुधा रस अमृत पीजै॥

बुद्ध सदा वैभव यश लीये।
सुख सम्पति लक्ष्मी पसीजै॥

विद्या बुद्धि ज्ञान गुरु से ले लो।
प्रगति सदा मानव पै रीझे॥

शुक्र तर्क विज्ञान बढ़ावै।
देश धर्म सेवा यश लीजे॥

न्यायधीश शनि अति ज्यारे।
जप तप श्रद्धा शनि को दीजै॥

राहु मन का भरम हरावे।
साथ न कबहु कुकर्म न दीजै॥

स्वास्थ्य उत्तम केतु राखै।
पराधीनता मनहित खीजै॥

नवग्रह आरती अर्थ सहित

अब हम आपके साथ ऊपर दी गई नवग्रह आरती को हिंदी में (Navgrah Aarti In Hindi) अर्थ सहित साझा करेंगे।

आरती श्री नवग्रहों की कीजै। बाध, कष्ट, रोग, हर लीजै॥

हम सभी नवग्रहों की आरती करते हैं। नवग्रह आरती करने से वे हमारे सभी प्रकार के कष्ट, शरीर के रोग, मानसिक रोग, बाधाएं इत्यादि समाप्त कर देते हैं।

सूर्य तेज व्यापे जीवन भर। जाकी कृपा कबहुत नहिं छीजै॥

हमे जीवनभर सूर्य देव का तेज व रोशनी प्राप्त होती है। उनकी कृपा हमारे सिर से कभी भी नही हटती है अर्थात वे हमेशा पृथ्वी के लिए विद्यमान हैं।

रुप चंद्र शीतलता लायें। शांति स्नेह सरस रसु भीजै॥

रात्रि में चंद्रमा अंधकार में शीतलता को प्रदान करते हैं। चंद्रमा ग्रह ही इस पृथ्वी पर शांति, स्नेह व प्रेम के रस को प्रवाहित करते हैं।

मंगल हरे अमंगल सारा। सौम्य सुधा रस अमृत पीजै॥

मंगल ग्रह सभी तरह के अमंगल कार्यों को समाप्त कर देते हैं। उनके द्वारा हमे अमृत रस, सुंदरता व सौम्यता प्राप्त होती है।

बुद्ध सदा वैभव यश लीये। सुख सम्पति लक्ष्मी पसीजै॥

बुद्ध ग्रह के द्वारा हमे वैभव व यश की प्राप्ति होती है। उनके द्वारा ही हमें धन, संपदा व सुख प्राप्त होता है।

विद्या बुद्धि ज्ञान गुरु से ले लो। प्रगति सदा मानव पै रीझे॥

गुरु ग्रह से हमें विद्या व बुद्धि मिलती है। उनकी कृपा से मनुष्य प्रगति करता है व आगे बढ़ता है।

शुक्र तर्क विज्ञान बढ़ावै। देश धर्म सेवा यश लीजे॥

शुक्र ग्रह के प्रभाव से हमारे अंदर तार्किक व विज्ञान की शक्ति का विकास होता है। उनके कारण हम देश व धर्म की सेवा करते हैं व यश को प्राप्त करते हैं।

न्यायधीश शनि अति ज्यारे। जप तप श्रद्धा शनि को दीजै॥

शनि ग्रह हम सभी के साथ न्याय करते हैं व पापियों को दंड देने का कार्य करते हैं। इसलिए हमें श्रद्धाभाव से शनि देव का नाम जपना चाहिए और उनकी पूजा करनी चाहिए।

राहु मन का भरम हरावे। साथ न कबहु कुकर्म न दीजै॥

राहु ग्रह हमारे मन से मायाजाल व भ्रम को नष्ट करते हैं। वे कभी भी पाप करने वाले मनुष्य का साथ नही देते हैं।

स्वास्थ्य उत्तम केतु राखै। पराधीनता मनहित खीजै॥

केतु ग्रह के प्रभाव से हमारा स्वास्थ्य उत्तम रहता है। उन्हें पराधीनता मन ही मन बहुत बुरी लगती है।

Navagraha Aarti | नवग्रह की आरती – द्वितीय

नवग्रह हैं देव हमारे, मिलकर आये हैं सारे।
जिनकी करें हैं हम आरती।
भानुजी, हम सब उतारें तेरी आरती॥

मण्डल मध्य सूर्यदेव हैं, रक्त वर्ण है जिनका।
सबको दे प्रकाश हरें अंधकार सभी जन-जन का॥

महिमा है इनकी न्यारी, सारे जग के रखवारी।
जिनकी करें हैं हम आरती।
भानुजी, हम सब उतारें तेरी आरती॥

पूर्व दिशा में शुक्रदेव हैं सुन्दर रूप विराजे।
ईशान कोण और अग्नि कोण में बुध चन्द्रमा साजे॥

जो इनकी पूजा करता, लक्ष्मी से पूरा भरता।
जिनकी करें हैं हम आरती।
भानुजी, हम सब उतारें तेरी आरती॥

उत्तर दिशा में बृहस्पति जो देव गुरु कहलाये।
दक्षिण दिशा में भूमिपुत्र श्री भौम रूप धर आये॥

महिमा है इनकी न्यारी, झोली नित भरें हमारी।
जिनकी करें हैं हम आरती।
भानुजी, हम सब उतारें तेरी आरती॥

पश्चिम दिशा में तीन देव हैं, शक्ति जिनकी भारी।
राहु, केतु और शनिदेव नित रक्षा करें हमारी॥

मूरति है जिनकी काली, सारे जग के यह वाली।
जिनकी करें हैं हम आरती।
भानुजी, हम सब उतारें तेरी आरती॥

अधिदेव, प्रत्याधिदेव, दिग्पाल देव सब साजें।
‘ओंकार’ ब्रह्मा विष्णु शिव मण्डल बीच विराजे॥

सृष्टि के जीवन दाता, जन-जन के भाग्य विधाता।
जिनकी करें हैं हम आरती।
भानुजी, हम सब उतारें तेरी आरती॥

नवग्रह आरती इन हिंदी

अब हम दूसरी नवग्रह आरती को हिंदी में अर्थ सहित (Navgrah Aarti In Hindi) साझा करने जा रहे हैं।

नवग्रह हैं देव हमारे, मिलकर आये हैं सारे।
जिनकी करें हैं हम आरती।
भानुजी, हम सब उतारें तेरी आरती॥

नवग्रह हम सभी के देवता हैं और वे सभी मिलकर हमारे पास आये हैं। हम सभी नवग्रह की आरती करते हैं। हम सभी नवग्रह में प्रमुख सूर्य देव की आरती करते हैं।

मण्डल मध्य सूर्यदेव हैं, रक्त वर्ण है जिनका।
सबको दे प्रकाश हरें अंधकार सभी जन-जन का॥
महिमा है इनकी न्यारी, सारे जग के रखवारी।

नवग्रह के मंडल में सबसे बीच में सूर्य देव विराजमान हैं और उनका वर्ण रक्त के समान लाल है। सूर्य देव ही हम सभी को प्रकाश देते हैं और अंधकार का नाश करते हैं। उनकी महिमा सबसे अपरंपार है और वे इस जगत के रखवाले हैं अर्थात उन्हीं के कारण इस पृथ्वी का अस्तित्व है।

पूर्व दिशा में शुक्रदेव हैं सुन्दर रूप विराजे।
ईशान कोण और अग्नि कोण में बुध चन्द्रमा साजे॥
जो इनकी पूजा करता, लक्ष्मी से पूरा भरता।

इस मंडल की पूर्व दिशा में शुक्र देव विराजमान हैं जिनका रूप अत्यधिक सुंदर है। ईशान कोण पर बुध देव तो अग्नि कोण पर चंद्रमा विराजित है। जो मनुष्य इन तीनों ग्रहों की पूजा करता है उसके जीवन में कभी भी धन-संपदा की कमी नही होती है।

उत्तर दिशा में बृहस्पति जो देव गुरु कहलाये।
दक्षिण दिशा में भूमिपुत्र श्री भौम रूप धर आये॥
महिमा है इनकी न्यारी, झोली नित भरें हमारी।

इस मंडल की उत्तरी दिशा में बृहस्पति ग्रह विराजित हैं जो सभी देवताओं के गुरु कहलाते हैं। दक्षिण दिशा में भूमि के पुत्र भौम रूप में विराजित हैं। इन दोनों की महिमा अपरंपार है और इनकी पूजा करने से हमें मनचाहा फल प्राप्त होता है।

पश्चिम दिशा में तीन देव हैं, शक्ति जिनकी भारी।
राहु, केतु और शनिदेव नित रक्षा करें हमारी॥
मूरति है जिनकी काली, सारे जग के यह वाली।

पश्चिम दिशा में तीन देव विराजित हैं जिनकी शक्ति अत्यधिक प्रचंड है। इन तीन देवों या ग्रहों के नाम राहु, केतु व शनि है जो हमारी रक्षा करते हैं। इन तीनों की मूर्ति का रंग काला होता है और ये संपूर्ण जगत की रखवाली करते हैं।

अधिदेव, प्रत्याधिदेव, दिग्पाल देव सब साजें।
‘ओंकार’ ब्रह्मा विष्णु शिव मण्डल बीच विराजे॥
सृष्टि के जीवन दाता, जन-जन के भाग्य विधाता।

इस आभामंडल में देवों के देव, इंद्र, दिगपाल सभी विराजित हैं। ओंकार के रूप में भगवान ब्रह्मा, विष्णु व महेश के कारण ही इस आभामंडल का अस्तित्व है और वे ही इसे चलाते हैं। वे ही इस सृष्टि को जीवन देने वाले और सभी का भाग्य बनाने वाले हैं।

निष्कर्ष

आज के इस लेख के माध्यम से आपने दोनों तरह की नवग्रह आरती (Navgrah Aarti) पढ़ ली है। साथ ही आपने इनका अर्थ भी जान लिया है। यदि आप हमसे कुछ पूछना चाहते हैं या इस लेख पर अपनी प्रतिक्रिया देने को इच्छुक है तो नीचे कमेंट कर सकते हैं। हम जल्द से जल्द आपको प्रत्युत्तर देंगे।

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लेखक के बारें में: कृष्णा

सनातन धर्म व भारतवर्ष के हर पहलू के बारे में हर माध्यम से जानकारी जुटाकर उसको संपूर्ण व सत्य रूप से आप लोगों तक पहुँचाना मेरा उद्देश्य है। यदि किसी भी विषय में मुझसे किसी भी प्रकार की कोई त्रुटी हो तो कृपया इस लेख के नीचे टिप्पणी कर मुझे अवगत करें।

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