माँ के उग्र रूप प्रत्यंगिरा की कथा जिसनें शिव के शरभ अवतार व विष्णु के गंडभेरुंड अवतार को शांत किया

Pratyangira Devi In Hindi

माँ देवी के समय-समय पर कई रूप हुए है जिन्होंने दुष्टों, पापियों तथा अधर्मियों का नाश किया (Pratyangira Avatar In Hindi) हैं। इसी के साथ माँ ने कई अवतार अपनी महिमा, शक्ति व पराक्रम को दिखाने के लिए भी लिए हैं। इसी में उनका एक रूप था माँ प्रत्यंगिरा/ प्रत्यङ्गिरा का रूप जो अति भयानक तथा प्रलयकारी (Pratyangira Devi In Hindi) था।

यह रूप (Pratyangira Devi Story In Hindi) उन्होंने किसी दुष्ट राक्षस या दैत्य का वध करने के लिए नही अपितु भगवान शिव तथा भगवान विष्णु के बीच चल रहे युद्ध को समाप्त करने के उद्देश्य से लिया था। आइये उस रोचक घटना के बारे में जानते है।

माँ का उग्र प्रत्यंगिरा रूप लेने की कथा (Pratyangira Avatar Story In Hindi)

यह कथा सतयुग में भगवान के नृसिंह अवतार लेने तथा हिरण्यकश्यप के वध होने के बाद से जुड़ी हुई हैं। हालाँकि विभिन्न पुराणों तथा शास्त्रों में इसका अलग-अलग वर्णन किया गया हैं। सबसे प्राचीन मान्यता वह है जो स्वयं भगवान श्रीकृष्ण ने कही थी जिसके अनुसार भगवान नृसिंह हिरण्यकश्यप का वध करने के पश्चात प्रह्लाद को उसका उत्तराधिकारी घोषित करके अंतर्धान हो गए थे।

अर्थात जब भगवान नृसिंह ने हिरण्यकश्यप का वध कर दिया तब उनका क्रोध प्रह्लाद ने शांत कर दिया था। उसके पश्चात उन्होंने प्रह्लाद का राज्याभिषेक किया तथा पुनः भगवान विष्णु में समा गए। किंतु शिव पुराण, स्कन्द पुराण तथा कुछ अन्य धर्म शास्त्रों में इस घटना के बाद की कथा का वर्णन किया गया है। आज हम आपको उसी के बारे में बताएँगे तथा समझाएंगे कि आखिर क्यों माँ को अपना उग्र रूप प्रत्यंगिरा लेना पड़ा।

भगवान नृसिंह व भगवान शरभ के बीच युद्ध (Sharabha Avatar Vs Narasimha In Hindi)

शिव पुराण के अनुसार हिरण्यकश्यप का वध करने के पश्चात भी जब नृसिंह अवतार का क्रोध शांत नही हुआ तथा वे इधर-उधर विचरण करने लगे तब उनके क्रोध को शांत करने के लिए शिव ने शरभ अवतार लिया। यह अवतार दो गरुड़ पंख, शेर के पंजे, सिंह मुख, जटाएं तथा चंद्रमा लिए हुए था। यह नृसिंह अवतार से कही अधिक बड़ा था।

तब शरभ अवतार ने नृसिंह भगवान को पंजो में जकड़ लिया तथा उसे चोंच मारकर घायल करने लगे। यह देखकर भगवान विष्णु के नृसिंह अवतार को और ज्यादा क्रोध आ गया।

भगवान शरभ तथा भगवान गंडभेरुंड के बीच युद्ध (Sharabha Avatar Vs Gandaberunda In Hindi)

अपने ऊपर होते इस प्रहार को देखकर भगवान नृसिंह अवतार ने उससे भी भयानक तथा बड़ा रूप धारण कर लिया। यह गंडभेरुंड अवतार था जो दो पक्षी के मुख वाला था। अब शरभ तथा गंडभेरुंड अवतार के बीच भीषण युद्ध शुरू हो गया जो 18 दिनों तक चलता रहा।

उनके युद्ध के कारण तीनों लोको में त्राहिमाम मच गया। दोनों के बीच चल रहे भीषण युद्ध को रोकने की शक्ति तीनों लोकों में से किसी के पास नही थी। देवता, दानव, मनुष्य सब भय के मारे कांप रहे थे। तब माँ आदिशक्ति सृष्टि के कल्याण के उद्देश्य से उनका युद्ध रुकवाने के लिए स्वयं प्रकट हुई।

माँ आदिशक्ति का प्रत्यंगिरा रूप (Pratyangira Devi History In Hindi)

माँ देवी ने अपनी शक्ति के द्वारा भयंकर अवतार धारण कर लिया जिसका मुख शेर के समान था। उसमें शिव के शरभ अवतार, विष्णु के दोनों अवतारों (नरसिंह व गंडभेरुंड) की शक्तियां समाहित थी। यह रूप इतना विशाल था कि उसके समक्ष ब्रह्मांड में कोई भी रूप इतना शक्तिशाली नही था। भयंकर प्रत्यंगिरा रूप धारण करके माँ आदिशक्ति शरभ तथा गंडभेरुंड अवतार के पास गयी तथा एक जोरदार चिंघाड़ मारी।

अपने सामने इतने भयंकर तथा विशालकाय रूप को देखकर शरभ और गंडभेरुंड दोनों में भय व्याप्त हो गया। उन दोनों ने युद्ध रोक दिया तथा अपने असली अवतार में वापस आ गए। इस प्रकार माँ आदिशक्ति ने भगवान शिव तथा भगवान विष्णु के बीच चल रहे भीषण युद्ध का अंत किया।

रामायण में माँ प्रत्यंगिरा (Ramayan Pratyangira Devi Story In Hindi)

रामायण में भी माँ प्रत्यंगिरा का उल्लेख मिलता है। जब मेघनाथ तथा लक्ष्मण का अंतिम युद्ध होने वाला था तब वह माँ निकुंभला का यज्ञ करने वाला था। इन्हीं माँ निकुंभला को ही माँ प्रत्यंगिरा कहा जाता हैं। यदि वह यज्ञ पूर्ण करने में सफल हो जाता तो स्वयं श्रीराम के लिए उसका वध करना असंभव हो जाता। इसलिये हनुमान ने पहले ही उसका यज्ञ विफल कर दिया था जिसके पश्चात लक्ष्मण ने उसका वध कर दिया था।

प्रत्यंगिरा का अर्थ (Pratyangira Meaning In Hindi)

प्रत्यंगिरा शब्द दो शब्दों के मेल से बना हैं जिसका अर्थ होता है किसी प्रकार के आक्रमण/ तंत्र/ काला जादू को पलट देना अर्थात माँ प्रत्यंगिरा की पूजा करने से किसी प्रकार की नकारात्मक शक्ति, काला जादू इत्यादि के प्रभाव को समाप्त किया जा सकता है। माँ प्रत्यंगिरा अधर्म रुपी कार्य कर रहे किसी भी प्राणी को दंड देने में सक्षम होती है फिर चाहे वह त्रिदेव ही क्यों न हो।

लेखक के बारें में: कृष्णा

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