आज हम रक्षाबंधन की कथा (Raksha Bandhan Ki Katha) आपके सामने रखने जा रहे हैं। वैसे तो रक्षाबंधन की एक नहीं कई कथाएं हैं लेकिन उनमें से पौराणिक कथाएं केवल दो है। इसमें से एक कथा देवराज इंद्र और उनकी पत्नी इंद्राणी से जुड़ी हुई है। हालाँकि दूसरी कथा का संबंध सीधे तौर पर रक्षाबंधन के उद्देश्य से है क्योंकि इसमें भाई-बहन के रिश्ते की नींव रखने का काम किया गया था।
यह रक्षाबंधन कथा (Raksha Bandhan Katha) माता लक्ष्मी व पाताल लोक के राजा बलि से जुड़ी हुई है। यह उस समयकाल की बात है जब भगवान विष्णु के वामन अवतार ने बलि को पाताल लोक भेज दिया था। आइए जाने उस दौरान और उसके बाद क्या कुछ घटित हुआ था।
Raksha Bandhan Ki Katha | रक्षाबंधन की कथा
यह सतयुग के समय की बात है जब भगवान विष्णु ने वामन अवतार लेकर राजा बलि के अहंकार को दूर किया था। राजा बलि भगवान विष्णु के परम भक्त प्रह्लाद के पौत्र थे जिसने अपनी शक्ति से संपूर्ण पृथ्वी तथा स्वर्ग को अपने अधीन कर लिया था। जब वह सौवां यज्ञ करने जा रहा था तब भगवान विष्णु उसके पास वामन का अवतार लेकर आए तथा उससे तीन पग धरती मांगी।
चूँकि राजा बलि दानवीर तथा अपने वचन को निभाने वाला राजा था इसलिए उन्होंने उस वामन को तीन पग धरती दान में दे दी। तब भगवान विष्णु ने अपना विशाल अवतार लेकर केवल दो पग में ही संपूर्ण पृथ्वी तथा स्वर्ग लोक को नाप दिया। उनका तीसरा पग रखने के लिए जगह शेष नहीं बची थी इसलिए उन्होंने राजा बलि से पूछा कि अब वे अपना तीसरा पग कहाँ रखें?
इस पर राजा बलि ने दानवीरता दिखाते हुए अपना मस्तक आगे कर दिया तथा तीसरा पग उस पर रखने को कहा। भगवान विष्णु उसकी भक्ति तथा दानवीरता से अत्यधिक प्रसन्न हुए तथा वरदान मांगने को कहा। इस पर राजा बलि ने उन्हें अपने साथ पाताल लोक में जाकर रहने को कहा ताकि वह उनकी सेवा कर सके।
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विष्णु गए पाताल लोक
अपने भक्त के इस आग्रह को भगवान विष्णु ठुकरा न सके तथा अब वे राजा बलि के साथ पाताल लोक में जाकर रहने लगे। उधर वैकुंठ धाम में जब भगवान विष्णु कई दिन बीत जाने के पश्चात भी नहीं लौटे तो माता लक्ष्मी परेशान हो उठी। उन्होंने पता लगाया तो सब घटना का उन्हें ज्ञान हुआ। एक तरह से अब यहीं से रक्षाबंधन कथा (Raksha Bandhan Katha) की शुरुआत होती है क्योंकि माता लक्ष्मी इसके लिए राजा बलि को अपना भाई बना लेती है।
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रक्षाबंधन राजा बलि की कथा
तब माता लक्ष्मी एक साधारण महिला का भेष बनाकर पाताल लोक गई तथा राजा बलि से मिली। उन्होंने राजा बलि को अपना भाई बनाते हुए उनके हाथ में रक्षा सूत्र बांध दिया। राजा बलि ने भी माता लक्ष्मी को बहन रूप में स्वीकार किया तथा उन्हें कुछ मांगने को कहा। इस पर माता लक्ष्मी अपने असली अवतार में आ गई तथा उनसे अपने पति भगवान विष्णु को मांग लिया।
राजा बलि ने अपनी बहन का यह आग्रह स्वीकार कर लिया तथा भगवान विष्णु को उन्हें सौंप दिया। इस प्रकार माता लक्ष्मी ने अपनी चतुराई से भगवान विष्णु को पुनः प्राप्त किया तथा उन्हें अपने साथ वैकुंठ धाम ले आई। तो यह थी रक्षाबंधन की कथा (Raksha Bandhan Ki Katha) और राजा बलि से उसका संबंध।
रक्षाबंधन की कथा से संबंधित प्रश्नोत्तर
प्रश्न: रक्षा बंधन की कहानी क्या है?
उत्तर: रक्षा बंधन की कहानी एक नहीं बल्कि कई है। मुख्य तौर पर इसका संबंध भगवान श्रीकृष्ण व द्रौपदी से है। वहीं अन्य कथाओं के अनुसार इसका संबंध इंद्र-इंद्राणी व माता लक्ष्मी-राजा बलि से है।
प्रश्न: रक्षाबंधन का इतिहास क्या है?
उत्तर: रक्षाबंधन का इतिहास सतयुग काल का है। उस समय इंद्र देव की पत्नी शुची ने देवासुर संग्राम से पहले उनकी कलाई पर रक्षा सूत्र बाँधा था। इसके बाद भी इससे कई ऐतिहासिक कथाएं जुड़ी हुई है।
प्रश्न: रक्षा बंधन के लिए लघु कथा क्या है?
उत्तर: रक्षा बंधन के लिए लघु कथा यही है कि यह त्यौहार भगवान श्रीकृष्ण व उनकी धर्म बहन द्रौपदी के द्वारा मनाया जाता था। द्रौपदी श्रीकृष्ण की कलाई पर राखी बाँधा करती थी और श्रीकृष्ण ने भी चीरहरण के समय उसके मान की रक्षा की थी।
प्रश्न: सबसे पहले राखी किसने बांधी थी?
उत्तर: सबसे पहले राखी देवराज इंद्र को उनकी पत्नी इंद्राणी/ शुची ने बांधी थी। हालाँकि इसे राखी नहीं बल्कि रक्षा सूत्र कहा गया है।
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aapne lekh ke aarambh me likha ki bhagwan ne BARAHA avatar lekar raja bali ka ahankar choor kiya tha. Jabki wo BAMAN avatar tha.
जी आपका आभार। गलती को सुधार लिया गया है और वराह की जगह वामन कर दिया गया है।