राणी सती की आरती (Rani Sati Ki Aarti)

Rani Sati Dadi Ki Aarti

राणी सती दादी आरती (Rani Sati Dadi Aarti) – अर्थ, महत्व व लाभ सहित

भारत देश में समय-समय पर कई महापुरुषों, वीरांगनाओ, गुरुओं ने जन्म लिया है जिन्होंने देश व धर्म का मान बढ़ाने का कार्य किया है। इसी में एक वीरांगना है राणी सती जो राजस्थान के झुंझुनू शहर में पैदा हुई थी। उनकी वीर कथा के कारण ही झुंझुनू शहर में उनका विशाल मंदिर बना हुआ है जहाँ प्रति वर्ष लाखों श्रद्धालु मत्था टेकने आते हैं। ऐसे में आज के इस लेख में हम आपके साथ राणी सती दादी की आरती (Rani Sati Dadi Ki Aarti) का पाठ ही करने जा रहे हैं।

दरअसल राणी सती को दादी माँ कहकर भी संबोधित किया जाता है। आज के इस लेख में आपको राणी सती दादी आरती हिंदी में (Rani Sati Dadi Aarti In Hindi) भी पढ़ने को मिलेगी ताकि आप उसका संपूर्ण भावार्थ समझ सकें। अंत में आपको राणी सती की आरती (Rani Sati Ki Aarti) पढ़ने के लाभ व महत्व भी जानने को मिलेंगे। आइये सबसे पहले पढ़ते हैं राणी सती आरती।

राणी सती दादी की आरती (Rani Sati Dadi Ki Aarti)

ॐ जय श्री राणी सती माता, मैया जय राणी सती माता।
अपने भक्त जनन की, दूर करन विपत्ती॥
ॐ जय श्री राणी सती माता…

अपनि अनंतर ज्योति अखंडीत, मंडित चहुँककुम्भा।
दुर्जन दलन खडग की, विद्युतसम प्रतिभा॥
ॐ जय श्री राणी सती माता…

मरकत मणि मंदिर अति मंजुल, शोभा लखि न बड़े।
ललित ध्वजा चहुँ ओर, कंचन कलश धरे॥
ॐ जय श्री राणी सती माता…

घंटा घनन घड़ावल बाजे, शंख मृदंग घुरे।
किन्नर गायन करते, वेद ध्वनि उचरे॥
ॐ जय श्री राणी सती माता…

सप्त मातृका करें आरती, सुरगण ध्यान धरे।
विविध प्रकार के व्यजंन, श्री फल भेंट धरे॥
ॐ जय श्री राणी सती माता…

संकट विकट विदारणि, नाशनि हो कुमति।
सेवक जन हृदय पटले, मृदुल करन सुमति॥
ॐ जय श्री राणी सती माता…

अमल कमल दल लोचनी, मोचनी त्रय तापा।
दास आयो शरण आपकी, लाज रखो माता॥
ॐ जय श्री राणी सती माता…

श्री राणीसती मैयाजी की आरती, जो कोई नर गावे।
सदनसिद्धि नवनिधि, मनवांछित फल पावे॥
ॐ जय श्री राणी सती माता, मैया जय राणी सती माता।
अपने भक्त जनन की, दूर करन विपत्ती॥
ॐ जय श्री राणी सती माता…

राणी सती दादी आरती हिंदी में (Rani Sati Dadi Aarti In Hindi)

ॐ जय श्री राणी सती माता, मैया जय राणी सती माता।
अपने भक्त जनन की, दूर करन विपत्ती॥

श्री राणी सती माता की जय हो। वे हम सभी की माता हैं और उनकी जय हो। राणी सती अपने भक्तों की हर विपत्ति, संकट व कष्ट को दूर कर देती हैं।

अपनि अनंतर ज्योति अखंडीत, मंडित चहुँककुम्भा।
दुर्जन दलन खडग की, विद्युतसम प्रतिभा॥

राणी सती दादी की ज्योत अखंडित है जो निरंतर जल रही है। उनकी महिमा तो सभी लोकों में फैली हुई है। वे दुष्टों व कपटी लोगों का नाश कर देती हैं और उनकी प्रतिभा अर्थात तेज बिजली के समान है।

मरकत मणि मंदिर अति मंजुल, शोभा लखि न बड़े।
ललित ध्वजा चहुँ ओर, कंचन कलश धरे॥

उनके मंदिर में उनकी शोभा बहुत बढ़ रही है जिसका वर्णन नहीं किया जा सकता है। उनकी धर्म ध्वजा हर जगह लहरा रही है और उनके सामने कंचन का कलश रखा हुआ है।

घंटा घनन घड़ावल बाजे, शंख मृदंग घुरे।
किन्नर गायन करते, वेद ध्वनि उचरे॥

माता सती की आरती में घंटा, घड़ावल, शंख, मृदंग इत्यादि बजाये जा रहे हैं। उनकी आरती में तो किन्नर भी गा रहे हैं और वेदों की ध्वनि गुंजायेमान हो रही है।

सप्त मातृका करें आरती, सुरगण ध्यान धरे।
विविध प्रकार के व्यजंन, श्री फल भेंट धरे॥

सातों तरह की माता उनकी आरती कर रही हैं और देवता राणी सती का ध्यान कर रहे हैं। राणी सती दादी की आरती में तरह-तरह के व्यंजन बनाकर उन्हें भेंट चढ़ाये जा रहे हैं।

संकट विकट विदारणि, नाशनि हो कुमति।
सेवक जन हृदय पटले, मृदुल करन सुमति॥

राणी सती हमारे सभी तरह के संकटों व विपत्तियों को दूर कर देती हैं और हमारी अज्ञानता का नाश करती हैं। उनके सेवकों के हृदय में राणी सती निवास करती हैं। राणी सती दादी ही हमें बुद्धि व ज्ञान देती हैं।

अमल कमल दल लोचनी, मोचनी त्रय तापा।
दास आयो शरण आपकी, लाज रखो माता॥

राणी सती का ताप हर जगह फैला हुआ है और वे हर किसी का उद्धार करती हैं। मैं आपका दास आपकी शरण में आया हूँ और अब आप मेरे मान-सम्मान की रक्षा कीजिये।

श्री राणीसती मैयाजी की आरती, जो कोई नर गावे।
सदनसिद्धि नवनिधि, मनवांछित फल पावे॥

जो कोई भी भक्तगण राणी सती दादी आरती का पाठ करता है, उसे सभी प्रकार की सिद्धियाँ व निधियां प्राप्त होती है। इसी के साथ ही उसके मन की हरेक इच्छा भी पूरी हो जाती है।

राणी सती आरती (Rani Sati Aarti) – महत्व

देश में समय-समय पर कई ऐसे महापुरुषों व वीरांगनाओं ने जन्म लिया है जिन्होंने अपने कर्मों से देश व दुनिया को एक महत्वपूर्ण संदेश दिया है। राणी सती भी कुछ ऐसे ही महान कर्म करने के लिए जन्मी थी जिन्होंने युद्ध भूमि में अपने पति की मृत्यु हो जाने पर उसके हत्यारे का वध कर दिया था। इसके पश्चात वे अपने पति के साथ ही अग्नि की चिता में जलकर भस्म हो गयी थी। इसके बाद से ही उनकी मान्यता झुंझुनू नगरी से पूरे राजस्थान और फिर भारतवर्ष में फैल गयी।

यही कारण है कि लोगों में उनकी आस्था व श्रद्धा बढ़ती चली गयी और देशभर से लाखों की संख्या में श्रद्धालु उनके मंदिर में आने लगे। राणी सती के आदर्शों, कर्मों, शक्तियों तथा गुणों को दिखाने के उद्देश्य से ही यह राणी सती आरती लिखी गयी है। इस आरती के माध्यम से राणी सती के महत्व को ही बताने का कार्य किया गया है। ऐसे में हर किसी को राणी सती दादी आरती का पाठ करना चाहिए।

राणी सती की आरती (Rani Sati Ki Aarti) – लाभ

अब यदि आप नित्य रूप से राणी सती दादी की आरती का पाठ करते हैं और उनका ध्यान करते हैं तो इससे कई तरह के लाभ देखने को मिलते हैं। इसका सबसे बड़ा लाभ तो यही है कि आपके अंदर अपने शत्रुओं से निपटने की शक्ति विकसित होती है। इसी के साथ ही आपके जीवन में जो भी विपदाएं या संकट आ रहे थे, उन्हें सुलझाने का मार्ग प्रशस्त होता है। इससे आप बेहतरी से अपना कार्य कर पाते हैं और उसमें सफल होते हैं।

राणी सती की आरती के माध्यम से व्यक्ति का मानसिक विकास तेजी से होता है तथा वह साहसी बनता है। यदि आपको किसी चीज़ का भय सताता है या कोई शंका मन में बनी रहती है, तो वह भी स्वतः ही दूर हो जाती है और आपको शांति का अनुभव होता है। ऐसे में श्री राणी सती दादी की आरती कई तरह के लाभ देने वाली होती है।

राणी सती दादी आरती से संबंधित प्रश्नोत्तर

प्रश्न: रानी सती दादी की उम्र कितनी है?

उत्तर: इसके बारे में कई तरह की किवंद्तियाँ है जिनके अनुसार राणी सती का जन्म बारहवीं शताब्दी से लेकर सत्रहवी शताब्दी के बीच का माना जाता है।

प्रश्न: रानी सती का वास्तविक नाम क्या है?

उत्तर: रानी सती का वास्तविक नाम नारायणी था किन्तु अपने पति की चिता में सती हो जाने के कारण उन्हें राणी सती दादी नाम दिया गया।

प्रश्न: लोग रानी सती दादी की पूजा क्यों करते हैं?

उत्तर: लोग रानी सती दादी की पूजा इसलिए भी करते हैं क्योंकि उनके द्वारा आज तक कई तरह के चमत्कार किये गए हैं और अपने भक्तों का उद्धार किया गया है।

प्रश्न: रानी सती दादी जी का जन्म कब हुआ था?

उत्तर: इसके बारे में कई तरह की किवंद्तियाँ है जिनके अनुसार राणी सती का जन्म बारहवीं शताब्दी से लेकर सत्रहवी शताब्दी के बीच का माना जाता है।

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लेखक के बारें में: कृष्णा

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