श्री कृष्ण स्तुति अर्थ सहित – महत्व व लाभ भी

श्री कृष्ण स्तुति (Shri Krishna Stuti)

भगवान श्री कृष्ण स्तुति (Shri Krishna Stuti) मन को लुभा देने वाली होती है। हालाँकि श्री कृष्ण के रूपों के अनुसार कई तरह की स्तुतियाँ प्रचलित है। इसलिए आज हम आपको मुख्य कृष्ण स्तुति तो देंगे ही, साथ ही दूसरी श्री कृष्ण स्तुति इन संस्कृत और तीसरी श्री कृष्ण स्तुति श्लोक सहित मिलेगी

इस लेख में सर्वप्रथम आपको मुख्य श्री कृष्ण स्तुति पढ़ने को मिलेगी। तत्पश्चात श्री कृष्ण स्तुति अर्थ सहित (Krishna Stuti In Hindi) समझाई जाएगी। फिर दूसरी व तीसरी कृष्ण स्तुति पढ़ने को मिलेगी। अंत में कृष्ण स्तुति पढ़ने के फायदे और महत्व के बारे में बताया जाएगा। आइए पढ़ते हैं श्री कृष्ण भगवान की स्तुति।

Shri Krishna Stuti | श्री कृष्ण स्तुति

कस्तुरी तिलकम ललाट पटले,
वक्षस्थले कौस्तुभम।
नासाग्रे वरमौक्तिकम करतले,
वेणु करे कंकणम॥

सर्वांगे हरिचन्दनम सुललितम,
कंठे च मुक्तावलि।
गोपस्त्री परिवेश्तिथो विजयते,
गोपाल चूडामणी॥

मूकं करोति वाचालं,
पंगुं लंघयते गिरिम्‌।
यत्कृपा तमहं,
वन्दे परमानन्द माधवम्‌॥

Krishna Stuti In Hindi | श्री कृष्ण स्तुति अर्थ सहित

कस्तुरी तिलकम ललाट पटले,
वक्षस्थले कौस्तुभम।
नासाग्रे वरमौक्तिकम करतले,
वेणु करे कंकणम॥

श्री कृष्ण भगवान अपने माथे पर कस्तूरी का तिलक लगाते हैं। उनकी छाती पर कौस्तुभ मणि सुशोभित है। नाक में मोती पहना हुआ है तो हाथों में बांसुरी पकड़ी हुई है। श्री कृष्ण ने हाथों में कंगन पहने हुए हैं।

सर्वांगे हरिचन्दनम सुललितम,
कंठे च मुक्तावलि।
गोपस्त्री परिवेश्तिथो विजयते,
गोपाल चूडामणी॥

आपने अपने शरीर पर चंदन का लेप किया हुआ है और गले में मोतियों की माला पहनी हुई है। गोपाल का वेश बनाकर श्री कृष्ण विचरण करते हैं और हमेशा विजयी रहते हैं। वे गायों की रक्षा करने वाले हैं।

मूकं करोति वाचालं,
पंगुं लंघयते गिरिम्‌।
यत्कृपा तमहं,
वन्दे परमानन्द माधवम्‌॥

भगवान श्री कृष्ण की कृपा से एक गूंगा व्यक्ति भी उनके भजन करने लगता है और अपंग व्यक्ति भी पहाड़ों को पार कर लेता है। जिस किसी पर भी श्री कृष्ण की कृपा होती है उसे परम आनंद की प्राप्ति होती है।

#2. श्री कृष्ण स्तुति इन संस्कृत

भजे व्रजै कमंडनं समस्त पाप खंडनं,
स्वभक्त चित्त रंजनं सदैव नंद नंदनम्।
सुपिच्छ गुच्छ मस्तकं सुनाद वेणु हस्तकं,
अनंग रंग सागरं नमामि कृष्ण नागरम्॥

मनो जगर्व मोचनं विशाल लोल लोचनं,
विधूत गोप शोचनं नमामि पद्म लोचनम्।
करार विन्द भूधरं स्मिताव लोक सुंदरं,
महेन्द्र मान दारणं नमामि कृष्ण वारणम्॥

कदंब सून कुण्डलं सुचारु गंड मण्डलं,
व्रजांगनैक वल्लभं नमामि कृष्ण दुर्लभम्।
यशोदया समोदया सगोपया सनन्दया,
युतं सुखैक दायकं नमामि गोप नायकम्॥

सदैव पाद पंकजं मदीय मानसे निजं,
दधान मुक्त मालकं नमामि नंद बालकम्।
समस्त दोष शोषणं समस्त लोक पोषणं,
समस्त गोप मानसं नमामि नंद लालसम्॥

भुवो भराव तारकं भवाब्धि कर्ण धारकं,
यशोमती किशोरकं नमामि चित्त चोरकम्।
दृगन्तकान्त भंगिनं सदा सदा लिसंगिनं,
दिने-दिने नवं-नवं नमामि नंद संभवम्॥

गुणा करं सुखा करं कृपा करं कृपा परं,
सुर द्विषन्नि कन्दनं नमामि गोप नंदनं।
नवीन गोप नागरं नवीन केलि लम्पटं,
नमामि मेघ सुन्दरं तडित्प्रभाल सत्पटम्॥

समस्त गोप मोहनं, हृदम्बुजैक मोदनं,
नमामि कुंज मध्यगं प्रसन्न भानु शोभनम्।
निकाम काम दायकं दृगन्त चारु सायकं,
रसाल वेणु गायकं नमामि कुंज नायकम्॥

विदग्ध गोपि कामनो मनोज्ञतल्प शायिनं,
नमामि कुंज कानने प्रवृद्ध वह्निपायिनम्।
किशोर कान्ति रंजितं दृगंजनं सुशोभितं,
गजेन्द्र मोक्ष कारिणं नमामि श्री विहारिणम्॥

#3. श्री कृष्ण स्तुति श्लोक

भये प्रगट गोपाला दीन दयाला यशुमति के हितकारी।
हर्षित महतारी सुर मुनि हारी मोहन मदन मुरारी॥

कंस असुर जाना मन अनुमाना पूतना वेगी पठाई।
तेहि हर्षित धाई मन मुस्काई गयी जहाँ यदुराई॥

तब जाय उठायो हृदय लगायो पयोधर मुख मे दीन्हा।
तब कृष्ण कन्हाई मन मुस्काई प्राण तासु हर लीन्हा॥

जब इन्द्र रिसायो मेघ पठायो बस ताहि मुरारी।
गौअन हितकारी सुर मुनि हारी नख पर गिरिवर धारी॥

कंस असुर मारो अति हँकारो बत्सासुर संघारो।
बक्कासुर आयो बहुत डरायो ताकर बदन बिडारो॥

तेहि अतिथि न जानी प्रभु चक्रपाणि ताहिं दियो निज शोका।
ब्रह्मा शिव आये अति सुख पाये मगन भये गये लोका॥

यह छन्द अनूपा है रस रूपा जो नर याको गावै।
तेहि सम नहि कोई त्रिभुवन सोयी मन वांछित फल पावै॥

नंद यशोदा तप कियो मोहन सो मन लाय।
देखन चाहत बाल सुख रहो कछुक दिन जाय॥

जेहि नक्षत्र मोहन भये सो नक्षत्र बड़िआय।
चार बधाई रीति सो करत यशोदा माय॥

इस तरह से आज आपने श्री कृष्ण स्तुति अर्थ सहित (Krishna Stuti In Hindi) पढ़ ली है। अब हम कृष्ण स्तुति पढ़ने से मिलने वाले लाभ और उसके महत्व को भी जान लेते हैं।

श्री कृष्ण स्तुति का महत्व

भगवान श्री कृष्ण की स्तुति के माध्यम से हमें श्रीकृष्ण के गुणों, शक्तियों, महिमा, महत्व इत्यादि के बारे में जानकारी मिलती है। श्रीकृष्ण भगवान विष्णु का एक ऐसा पूर्ण अवतार है जो सभी गुणों से संपन्न है। उन्होंने अपने पूरे जीवनकाल में एक नहीं बल्कि कई उद्देश्यों को पूरा किया है। अपने कर्मों के द्वारा उन्होंने हमें कई तरह की शिक्षा भी दी है।

श्रीकृष्ण ने द्वापर युग में ही कलियुग के अंत तक की शिक्षा दे दी थी। जैसे-जैसे कलियुग का समयकाल आगे बढ़ता जा रहा है, वैसे-वैसे ही श्रीकृष्ण भी अधिक प्रासंगिक होते जा रहे हैं। ऐसे में श्रीकृष्ण के बारे में और अधिक जानने और उनके गुणों को आत्मसात करने के उद्देश्य से ही कृष्ण स्तुति का पाठ किया जाता है। यहीं श्री कृष्ण स्तुति का महत्व है।

कृष्ण स्तुति पढ़ने के फायदे

यदि आप प्रतिदिन सच्चे मन के साथ श्री कृष्ण स्तुति का पाठ करते हैं तो इससे श्रीकृष्ण आपसे प्रसन्न होते हैं। श्रीकृष्ण के प्रसन्न होने का अर्थ हुआ, आपकी सभी तरह की दुविधाओं, संकटों, कष्टों, परेशानियों, विघ्नों, दुविधाओं, उलझनों, मतभेदों, समस्याओं, नकारात्मकता, द्वेष, ईर्ष्या, इत्यादि का अंत हो जाना।

श्रीकृष्ण की कृपा से हमारा जीवन सरल हो जाता है, घर में सुख-शांति का वास होता है, व्यापार, करियर व नौकरी में उन्नति होती है, शिक्षा में अव्वलता आती है, स्वास्थ्य उत्तम होता है, रिश्ते मधुर बनते हैं और समाज में प्रतिष्ठा में बढ़ोत्तरी देखने को मिलती है। इसलिए आपको शुद्ध तन, निर्मल मन और स्वच्छ स्थान पर श्री कृष्ण स्तुति का पाठ करना चाहिए।

निष्कर्ष

आज के इस लेख के माध्यम से आपने श्री कृष्ण स्तुति (Shri Krishna Stuti) को अर्थ सहित पढ़ लिया है। आशा है कि आपको धर्मयात्रा संस्था के द्वारा दी गई यह जानकारी पसंद आई होगी। यदि आप अपनी प्रतिक्रिया देना चाहते हैं या इस विषय पर हमसे कुछ पूछना चाहते हैं तो आप नीचे कमेंट कर सकते हैं। हमारी और से आप सभी को जय श्रीकृष्ण।

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लेखक के बारें में: कृष्णा

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