रामायण में काकभुशुण्डि कौन थे? जाने काकभुशुण्डि का रहस्य

काकभुशुण्डि (Kakbhushundi)

तुलसीदास जी रचित रामायण में काकभुशुण्डि (Kakbhushundi) एक प्रमुख पात्र है। वाल्मीकि जी के द्वारा रामायण की रचना करने से पहले ही काकभुशुण्डि जी ने संपूर्ण रामायण गरुड़ देवता को सुना दी थी। इतना ही नहीं, उन्हें तो स्वयं भगवान श्रीराम से अमरत्व का वरदान मिला था। उनके बारे में कहा जाता है कि वे समय की यात्रा कर सकते हैं जिसे आज हम टाइम ट्रेवल के नाम से जानते हैं।

ऐसे में ये काकभुशुण्डि कौन थे (Kakbhushundi Kaun The) और इनका श्रीराम से क्या संबंध है? साथ ही इन्हें संपूर्ण रामायण का ज्ञान कैसे हुआ और किस तरह से उन्होंने वाल्मीकि जी से पहले रामायण को गरुड़ देव को सुना दिया था। आज हम आपको काकभुशुण्डि के बारे में संपूर्ण जानकारी देंगे।

Kakbhushundi | काकभुशुण्डि

काकभुशुण्डि एक कौवा थे जो भगवान विष्णु के रूप श्रीराम के अनन्य भक्त थे। जब भगवान श्रीराम छोटे थे तथा अपने राजमहल में बाल क्रीड़ाएं करते थे। तब काकभुशुण्डि छुपकर वहाँ आते थे तथा श्रीराम के बाल रूप के साथ खेला करते थे। जब श्रीराम अपने कक्ष में अकेले हुआ करते थे तब काकभुशुण्डि उनके पास आते तथा उनके साथ क्रीड़ाएं करते। उसी समय उन्हें भगवान विष्णु से अमरत्व का वरदान मिला था।

श्रीराम जो भोजन खाते तथा उसमें से झूठन छोड़ देते थे, Kakbhushundi उसी में से खा लेते थे। एक दिन इसी खेल-खेल में उन्होंने प्रभु के हाथ से रोटी का टुकड़ा छीन लिया। यह देखकर श्रीराम का बाल स्वरुप जोर-जोर से रोने लगा। काकभुशुण्डि ने जब प्रभु को एक रोटी के टुकड़े के लिए इस तरह विलाप करते देखा तो उनकी आँखों पर माया का पर्दा पड़ गया तथा उनसे उनका मोहभंग हो गया। वे उसी समय वहाँ से उड़कर चले गए।

  • काकभुशुण्डि की कथा

जब काकभुशुण्डि प्रभु की शक्ति को अनदेखा कर आकाश में उड़ गए तो उन्होंने पीछे देखा कि वही रोता हुआ बालक उनके साथ-साथ आकाश में उड़ रहा है। यह देखकर वे और जोर से उड़ने लगे तथा हर लोक में भागे लेकिन प्रभु ने उनका पीछा नहीं छोड़ा। अंत में वे थक हारकर वापस प्रभु के कक्ष में आ गए तथा उनसे क्षमा याचना की।

काकभुशुण्डि को क्षमा याचना करता देखकर प्रभु ने उन्हें अपने असली रूप के दर्शन दिए तथा उन्हें अपने सभी गुणों का ज्ञान दिया। श्रीराम ने उन्हें कुछ मांगने को कहा। इस पर काकभुशुण्डि ने उनसे केवल प्रभु भक्ति की माँग की थी। यह सुनकर प्रभु अत्यधिक प्रसन्न हुए तथा उसे वरदान दिया। आइए जाने श्रीराम ने Kakbhushundi को क्या वरदान दिया था।

  • काकभुशुण्डि का वरदान

उन्होंने काकभुशुण्डि को अपने सभी गुण दे दिए तथा उसे अपने सभी रूपों को पहचानने का वरदान दिया। उनके दिए वरदान के अनुसार काल कभी भी उन्हें नहीं मार सकेगा। उनका अंत कल्प के अंतिम समय में प्रलय काल में ही होगा। यह कहकर प्रभु अंतर्धान हो गए। इस तरह काकभुशुण्डि हमेशा के लिए अमर हो गए।

इतना ही नहीं, इस वरदान के फलस्वरूप उन्हें समय की यात्रा करने वाला भी बताया गया है। दरअसल प्रभु के वरदान के कारण Kakbhushundi इतने अधिक शक्तिशाली हो गए थे कि वे समय यात्रा अर्थात टाइम ट्रेवल कर सकते थे। वे एक ग्रह से दूसरे ग्रह में घूमते थे जिस कारण यह समय यात्रा संभव हो पाई।

Kakbhushundi Kaun The | काकभुशुण्डि कौन थे?

काकभुशुण्डि पहले एक सामान्य व्यक्ति थे। एक दिन किसी कारणवश लोमश ऋषि ने उन्हें कौवा बनने का श्राप दे दिया था। हालाँकि बाद में चलकर ऋषि को इस पर पछतावा हुआ और उन्होंने मुक्ति पाने का एक मार्ग बताया। इसके अनुसार उन्हें श्रीराम की भक्ति करनी थी और राम नाम का ही जाप करना था। उस समय श्रीराम का जन्म हुए कुछ ही समय हुआ था। Kakbhushundi तुरंत अयोध्या गए और प्रतिदिन अकेले में श्रीराम के बाल स्वरुप के साथ खेलने लगे थे।

इस कथा का विवरण हमने आपको ऊपर दे दिया है। इसके बाद ही उन्हें श्रीराम से वरदान मिला था। ऐसे ही समय बीतता गया और काकभुशुण्डि ने श्रीराम के जीवन में क्या कुछ घटित हो रहा है, उसे देखा और अपने मन में उतार लिया। कुछ लोग यह भी कहते हैं कि जब भगवान शिव माता पार्वती को रामायण सुना रहे थे, तब वहाँ Kakbhushundi भी बैठे हुए थे। सर्वप्रथम रामायण को भगवान शिव के द्वारा माता पार्वती को ही सुनाया गया था।

उस समय काकभुशुण्डि ने भी संपूर्ण रामायण को याद कर लिया था। इसके बाद वे इसे अन्य पशु-पक्षियों को भी सुनाया करते थे। इसी क्रम में एक दिन भगवान शिव के आदेश पर गरुड़ देवता भी काकभुशुण्डि से रामायण कथा सुनने आए थे। हालाँकि रामायण को पहली बार लिपिबद्ध करने का कार्य महर्षि वाल्मीकि जी के द्वारा किया गया था। इस तरह से यही Kakbhushundi की कथा है जिसका महर्षि तुलसीदास जी ने रामचरितमानस में उल्लेख किया है।

काकभुशुण्डि से संबंधित प्रश्नोत्तर

प्रश्न: काकभुशुण्डि पूर्व जन्म में कौन थे?

उत्तर: काकभुशुण्डि पूर्व जन्म में भी एक कौवा ही थे कहते हैं कि जब भगवान शिव माता पार्वती को रामकथा सुना रहे थे, तब उन्होंने भी इसे सुन लिया था इस कारण उन्हें संपूर्ण रामायण याद हो गई थी

प्रश्न: लोमश ऋषि ने काकभुशुण्डि को श्राप क्यों दिया?

उत्तर: लोमश ऋषि ने काकभुशुण्डि को श्राप क्यों दिया था, इसका कारण ज्ञात नहीं है ग्रंथों में केवल इसी बात का उल्लेख मिलता है कि उन्हें किसी कारणवश लोमश ऋषि ने श्राप दे दिया था

प्रश्न: काकभुशुंडी ने कितनी बार रामायण देखी?

उत्तर: इसके बारे में कुछ भी पक्के तौर पर नहीं कहा जा सकता है कहते हैं कि उन्होंने अलग-अलग समय पर 11 बार रामायण देखी है

प्रश्न: काकभुशुंडी ने रामायण में क्या देखा?

उत्तर: काकभुशुंडी ने रामायण में देखा कि वह संपूर्ण रामकथा के पूरी होने के बाद पुनः उसी क्षण में वापस आ जाता है, जहाँ से उसने शुरुआत की थी

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लेखक के बारें में: कृष्णा

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