Adinath Bhagwan: जैन धर्म के पहले तीर्थंकर आदिनाथ भगवान का जीवन परिचय

आदिनाथ भगवान (Adinath Bhagwan)

आदिनाथ भगवान (Adinath Bhagwan) को जैन धर्म का संस्थापन तथा प्रथम तीर्थंकर माना जाता है। उनका जन्म भारतभूमि में ही हुआ था। इनको ऋषभदेव (Rishabhdev) या वृषभदेव के नाम से भी जाना जाता है। जैन धर्म की पवित्र पुस्तक आदि पुराण में इनका विस्तृत रूप से उल्लेख मिलता है जैसे कि इनका जन्म, तपस्या, केवल्य ज्ञान तथा मोक्ष प्राप्ति इत्यादि।

जैन धर्म में कुल 24 तीर्थंकर हुए हैं जिनमें से ऋषभ देव जी जैन धर्म के पहले तीर्थंकर (Jain Dharm Ke Pahle Tirthankar) थे। एक तरह से ऋषभ देव भगवान ने ही जैन धर्म की स्थापना की थी जिस कारण इन्हें आदिनाथ भगवान की संज्ञा भी दी गयी है। इसलिए आज हम आपके साथ आदिनाथ भगवान का इतिहास, जीवनी, कथा, संदेश, ज्ञान प्राप्ति तथा मोक्ष इत्यादि सब सांझा करेंगे।

Adinath Bhagwan: आदिनाथ भगवान का जीवन परिचय

जैन धर्म के प्रथम तीर्थंकर के बारे में जानने को सभी बहुत जिज्ञासु रहते हैं। वह इसलिए क्योंकि जैन धर्म के अंतिम तीर्थंकर महावीर स्वामी जी के बारे में तो लगभग सभी जानते हैं लेकिन प्रथम तीर्थंकर जिन्होंने जैन धर्म की स्थापना की थी, उनके बारे में भी तो जानना आवश्यक हो जाता है।

जैन धर्म के लोग उन्हें भगवान आदिनाथ के साथ ही ऋषभ देव भगवान (Rishabh Dev Bhagwan) भी कहते हैं क्योंकि उनका असली नाम यही था। आदिनाथ तो उन्हें उपाधि दी गयी है। ऐसे में अब हम आपके सामने भगवान ऋषभदेव का इतिहास रखने जा रहे हैं।

भगवान आदिनाथ का जन्म

भगवान ऋषभनाथ का जन्म (Adinath Bhagwan Ka Janm) भारत के पावन शहर अयोध्या की भूमि पर हुआ था। वही अयोध्या भूमि जहाँ मर्यादापुरुषोत्तम भगवान श्रीराम ने माता कौशल्या के गर्भ से जन्म लिया था। आदिनाथ का जन्म चैत्र माह के कृष्ण पक्ष की नवमी तिथि को उत्तरषाढ़ा नक्षत्र में हुआ था। जैन धर्म के अनुसार यह तृतीय काल था। इनका जन्म इश्वाकु वंश में हुआ था।

जैन धर्म की मान्यता के अनुसार किसी भी तीर्थंकर का जन्म उसकी माता को शुभ स्वप्न आने से होता है। इसी कारण आदिनाथ जी की माता को भी उनके जन्म से पहले 14 शुभ स्वप्न आये थे और उसके पश्चात ही उनका जन्म हुआ था।

भगवान आदिनाथ का परिवार

अब हम ऋषभ देव भगवान (Rishabh Dev Bhagwan) के परिवार के बारे में जानकारी ले लेते हैं। यहाँ हम आपको यह भी बता दें कि आदिनाथ भगवान के ही एक पुत्र के नाम पर इस देश का नाम भारत पड़ा था। ऐसा जैन ग्रंथों में लिखा गया है। आइये आदिनाथ भगवान के परिवार के बारे में जान लेते हैं।

  • आदिनाथ भगवान के पिता का नाम राजा नाभि था। नाभि पावन नगरी अयोध्या के राजा थे।
  • आदिनाथ भगवान की माता का नाम मरूदेवी था।
  • जैन मान्यता के अनुसार आदिनाथ के दो विवाह हुए थे जिनके नाम सुमंगला तथा सुनंदा थे।
  • आदिनाथ भगवान की पहली पत्नी का नाम सुमंगला था जबकि दूसरी पत्नी का नाम सुनंदा था।
  • सुमंगला से उन्हें 99 पुत्र (चक्रवर्ती राजा भरत सहित) तथा एक पुत्री ब्राह्मी हुए थे। इस तरह से सुमंगला से उन्हें 100 संतान की प्राप्ति हुई थी।
  • सुनंदा से उन्हें एक पुत्र बाहुबली तथा एक पुत्री सुंदरी हुए थे।

अपने पिता नाभि के बाद ऋषभ देव भगवान को अयोध्या का अगला राजा घोषित किया गया थाबाद में चलकर Rishabhdev भगवान धर्म की खोज और ज्ञान प्राप्ति के लिए निकल पड़े। स्वयं के मुनि बन जाने के बाद उन्होंने अपने पुत्र भरत को अयोध्या का राजा घोषित कर दिया था। बाकी सभी पुत्रों और उनके पुत्रों में भारत के अन्य राज्य बाँट दिए थे। जैन मान्यता के अनुसार भरत के नाम पर ही इस देश का नाम भारत पड़ा था।

आदिनाथ भगवान के नाम

भगवान आदिनाथ के कई अन्य नाम थे। यहाँ तक कि आदिनाथ नाम भी उनका बाद में पड़ा था। बचपन में उनका नाम ऋषभदेव (Rishabhdev) था। आइए उनके अन्य नाम और उनका अर्थ जानते हैं।

  • ऋषभदेव/ ऋषभनाथ- असली नाम (माता-पिता द्वारा दिया गया)।
  • आदिनाथ- जैन धर्म के संस्थापक होने के कारण (अर्थात जिसने इस सृष्टि की शुरुआत की हो)।
  • वृषभनाथ- वृषभ (बैल) का चिन्ह होने के कारण।
  • नाभिया- पिता का नाम नाभि होने के कारण।
  • आदिपुरुष- जैन धर्म की स्थापना करने वाले प्रथम पुरुष।
  • आदिब्रह्मा- मनुष्य को प्रथम बार ज्ञान देने के कारण उन्हें आदिब्रह्मा कहा गया।
  • प्रजापति- प्रजा को सब सिखाने के लिए उन्हें प्रजापति कहा गया।

इसके अलावा उन्हें पुरुदेव, आदिश्वर, युगादिदेव, प्रथमराजेश्वर, आदिजिन, आदर्श पुरुष, आदीश इत्यादि नाम से भी जाना जाता है। एक तरह से जैन धर्म के पहले तीर्थंकर (Jain Dharm Ke Pahle Tirthankar) होने के कारण उन्हें यह सब नाम दिए गए हैं। मुख्य तौर पर उनके तीन नाम आदिनाथ, ऋषभदेव व वृषभनाथ ही जगत प्रसिद्ध है।

आदिनाथ भगवान का इतिहास

भगवान ऋषभदेव का इतिहास (Bhagwan Rishabhdev History In Hindi) भी बहुत रोचक है। क्या आप सोच सकते हैं कि जैन धर्म के प्रथम तीर्थंकर की आयु लाखों वर्ष की रही होगी। इतना ही नहीं, भगवान आदिनाथ के इतिहास से जुड़ी और भी रोचक चीज़े हैं। इसमें हम आदिनाथ भगवान के शरीर, आयु, गणधर इत्यादि के बारे में जानेंगे।

  • आदिनाथ भगवान से पहले तीर्थंकर- इस युग के प्रथम तीर्थंकर आदिनाथ ही थे किंतु पिछले युग के अंतिम तीर्थंकर भगवान सम्प्रत्ति थे। भगवान सम्प्रत्ति उस युग के अंतिम (चौबीसवें) तीर्थंकर थे।
  • आदिनाथ भगवान के बाद के तीर्थंकर- भगवान आदिनाथ के बाद के तीर्थंकर भगवान अजीतनाथ बने थे जो जैन धर्म के दूसरे तीर्थंकर कहलाए।
  • भगवान आदिनाथ का चिन्ह- उनका चिन्ह वृषभ था जिसे बैल भी कहा जाता है।
  • भगवान आदिनाथ का वर्ण- क्षत्रिय (इश्वाकू वंश)
  • देहवर्ण- स्वर्ण रंग (नारंगी-पीला)
  • लंबाई/ ऊंचाई- 500 तीर के बराबर/ 4920 फीट/ 1500 मीटर/ 1312 एल्स
  • आयु- 84 लाख वर्ष
  • वृक्ष- वट वृक्ष

आदिनाथ भगवान की कथा

आदिनाथ को इस युग के निर्माता के रूप में जाना जाता है। इनसे पहले मनुष्य कोई काम नही करते थे अर्थात पढ़ना-लिखना, खेती, व्यापार इत्यादि किसी भी चीज़ का प्रावधान नही था। जैन मान्यता के अनुसार उस समय तक मनुष्य की सभी आवश्यकताएं कल्पवृक्ष से पूरी हो जाया करती थी लेकिन धीरे-धीरे कल्पवृक्ष की शक्तियां कम होती (Adinath Bhagwan Story In Hindi) गयी।

इसके बाद भगवान आदिनाथ ने ही मनुष्य को सब ज्ञान दिया। उन्होंने मनुष्य को जीवन जीने के लिए छह काम सिखाये थे, जो हैं:

  • असि- रक्षा करने के लिए अर्थात सैनिक कर्म
  • मसि- लिखने का कार्य अर्थात लेखन
  • कृषि- खेती करना और अन्न उगाना
  • विद्या- ज्ञान प्राप्त करने से संबंधित कर्म
  • वाणिज्य- व्यापार से संबंधित
  • शिल्प- मूर्तियों, नक्काशियों, भवनों इत्यादि का निर्माण।

कहने का तात्पर्य यह हुआ कि भगवान आदिनाथ ने ही लोगों को सुनियोजित तरीके से भवन निर्माण करना, नगर बसाना, खेती करके अन्न उगाना और उससे भोजन करना, शिक्षा प्राप्त करना और उससे समाज में नियमों की स्थापना करना, व्यापार करके उन्नति करना और पैसे कमाना, अपनी या अपने परिवार या देश की रक्षा करना तथा इन सभी को लिपिबद्ध करना इत्यादि सिखाया। इस तरह से मनुष्य को मूलभूत चीज़ों को सिखाने का श्रेय भगवान आदिनाथ जी को जाता है।

जैन धर्म के अनुसार उन्होंने ही प्रथम बार अपनी नगरी अयोध्या में शासन-व्यवस्था, नियम-सिद्धांत, अधिकार-कर्तव्य इत्यादि की स्थापना की थी। इसके बाद सब कुछ नियमों के अनुसार चलने लगा था तथा धर्म की स्थापना हुई थी।

भगवान आदिनाथ का सांसारिक मोह त्याग

जैन मान्यता के अनुसार, एक बार हिंदू देवता व स्वर्ग के राजा इंद्र देव आदिनाथ की सभा में आये हुए थे। तब वे दोनों नृतकियों का नृत्य देख रहे थे। उसी समय नीलांजना नामक एक नृतकी की आयु पूरी हो गयी और उसकी मृत्यु हो गयी। यह देखकर भगवान आदिनाथ को मृत्यु के दुखद सत्य का ज्ञान हुआ।

उन्होंने उसी समय सांसारिक मोह-माया, राजपाठ इत्यादि त्याग कर सन्यासी बन जाने का निर्णय लिया। उन्होंने अपना राज्य अपने पुत्र भरत को सौंप दिया और बाकि के पुत्रों में राज्य का भाग बाँट कर सिद्धार्थ नगर चले गए। इसके बाद वहां जाकर उन्होंने वस्त्रों का त्याग किया और नग्न अवस्था में आ गए। अब ऋषभनाथ पूरी तरह से मुनि बन चुके थे।

जैन धर्म से अन्य मतों की उत्पत्ति

ऋषभदेव जी के त्याग को देखते हुए उनके साथ कई राजा व प्रजा के लोग भी आये थे जिन्होंने सन्यास ले लिया था। इसमें उनके पुत्र व प्रपोत्र भी थे। आदिनाथ अब केवल भिक्षा मांगकर अपना जीवनयापन करते थे। चूँकि वह पहले तीर्थंकर थे, इसलिए लोगों को यह नही पता था कि उन्हें भिक्षा में क्या दें। इसलिए वे उन्हें आभूषण, हीरे-मोती इत्यादि बहुमूल्य वस्तुएं दिया करते थे, ना कि भोजन।

इससे उनके साथ के लोगों में व्याकुलता होने लगी और वे भूख-प्यास से बेहाल होने लगे। तब उनमें से कईयों ने जैन धर्म में से कई अन्य मतों/ संप्रदायों (Jain Dharm Ke Sampraday) की शुरुआत की थी।

जैन धर्म में अक्षय तृतीया का महत्व

इसी तरह भगवान आदिनाथ को भूखे रहते हुए 13 माह से ऊपर हो गए थे। एक दिन वे भ्रमण करते हुए हस्तिनापुर पहुंचे जहाँ उनके प्रपोत्र श्रेयांश ने उन्हें इक्षुजल (मीठा पानी) पीने को दिया। उन्होंने लगभग 1 वर्ष बाद कुछ ग्रहण किया था, इसलिए इस दिन का महत्व बढ़ गया। यह दिन हिंदू कैलेंडर के अनुसार वैशाख माह की शुक्ल तृतीया थी जिसे आज अक्षय तृतीया के रूप में मनाया जाता है। इस दिन का जैन धर्म में बहुत महत्व है।

भगवान ऋषभ देव को केवल्य ज्ञान की प्राप्ति

इसके पश्चात आदिनाथ भगवान (Adinath Bhagwan) ने लगभग एक हज़ार वर्षों तक कठोर तपस्या की थी। अंत में फाल्गुन मास के कृष्ण पक्ष की एकादशी को प्रयागराज के पुर्वतालपुर उद्यान में वटवृक्ष के नीचे उन्हें कैवल्य ज्ञान की प्राप्ति हुई थी। यहाँ पर कैवल्य ज्ञान से अर्थ भूत, वर्तमान व भविष्य का संपूर्ण ज्ञान प्राप्ति से है।

इसके बाद इंद्र देव व बाकि देवताओं ने मिलकर भगवान आदिनाथ के उपदेश देने के लिए समवशरण नामक जगह की स्थापना की थी। इसमें वे देवताओं, मनुष्यों, मुनियों इत्यादि को धर्म का उपदेश दिया करते थे। मान्यता के अनुसार भगवान आदिनाथ के 84 गणधर, 84 हज़ार मुनि (साधू या जैन भिक्षु, पुरुष) तथा 3.5 लाख के आसपास साध्वियां (जैन भिक्षु, महिला) थी।

भगवान ऋषभदेव को मोक्ष प्राप्ति

केवल ज्ञान प्राप्ति के पश्चात आदिनाथ तीर्थंकर के रूप में 99 हज़ार साल तक पृथ्वी पर रहे और धर्म का प्रचार-प्रसार किया। जब उनकी मृत्यु के 14 दिन शेष रह गए थे तब वे अष्टपद पर्वत (कैलाश पर्वत) चले गए थे। अंत में उन्होंने माघ मास की कृष्ण चतुर्दशी के दिन निर्माण/ मोक्ष को प्राप्त कर लिया था। इस दिन को जैन धर्म में भगवान आदिनाथ के निर्वाणोत्सव या मोक्ष प्राप्ति के रूप में मनाया जाता है।

उनके साथ ही उनके कई भक्तों/ मुनियों ने समाधि ले ली थी तथा मोक्ष को प्राप्त किया था। इसके पश्चात स्वयं इंद्र देव सभी देवताओं के साथ कैलाश पर्वत आये थे और भगवान आदिनाथ के शरीर का अंतिम संस्कार किया था। उसके कुछ वर्षों में तृतीय काल का अंत हो गया था तथा जैन धर्म का चतुर्थ काल शुरू हुआ था।

हिंदू धर्म में आदिनाथ भगवान का उल्लेख

हिंदू धर्म के कई ग्रंथों में ऋषभदेव या आदिनाथ जी के नाम का उल्लेख मिलता है। महापुराण में उन्हें भगवान विष्णु के 24 अवतारों में से एक अवतार बताया गया है। सर्वप्रसिद्ध भागवतपुराण में भी लिखा गया है कि जैन धर्म के संस्थापक ऋषभ देव भगवान (Rishabh Dev Bhagwan) ही थे। उन्हें एक महान ऋषि व तपस्वी की संज्ञा दी गयी है।

आदिनाथ भगवान के प्रश्न-उत्तर

ऋषभ देव भगवान से जुड़े कई तरह के प्रश्न हैं जिनका उत्तर हम सभी जानना चाहते हैं। ऐसे में हमने आदिनाथ भगवान के प्रश्न-उत्तर की एक श्रंखला इधर रखी है जिसे आपको पढ़ना चाहिए।

प्रश्न #1. भगवान आदिनाथ के परिवार में कितने शलाका पुरुष थे ?

उत्तर: 63 शलाका पुरुष

प्रश्न #2. भगवान आदिनाथ का समवशरण कितने योजन का था?

उत्तर: 12 योजन

प्रश्न #3. भगवान आदिनाथ के समय अयोध्या का दूसरा नाम क्या था?

उत्तर: विनीतानगर

प्रश्न #4. भगवान आदिनाथ को तीर्थंकर प्रकृति का बंध किस भव में हुआ ?

उत्तर: पूर्व भव में

प्रश्न #5. आदिनाथ भगवान के कितने गणधर थे?

उत्तर: 84

प्रश्न #6. आदिनाथ भगवान की आयु कितनी थी?

उत्तर: 84 लाख वर्ष

प्रश्न #7. आदिनाथ भगवान का महल कितने मंजिल का था?

उत्तर: 45 मंजिल

प्रश्न #8. आदिनाथ भगवान का जन्म कहां हुआ था?

उत्तर: अयोध्या

प्रश्न #9. आदिनाथ भगवान के पहले कौन मोक्ष गए?

उत्तर: कोई नहीं

प्रश्न #10. ऋषभदेव का जन्म किस स्थान पर हुआ था?

उत्तर: अयोध्या

प्रश्न #11. ऋषभदेव के पुत्र कौन थे?

उत्तर: भरत व अन्य 100 पुत्र

प्रश्न #12. ऋषभदेव का जन्म कब हुआ था

उत्तर: चैत्र माह के कृष्ण पक्ष की नवमी तिथि को उत्तरषाढ़ा नक्षत्र

प्रश्न #13. आदिनाथ भगवान का जन्म कब हुआ था?

उत्तर: चैत्र माह के कृष्ण पक्ष की नवमी तिथि को उत्तरषाढ़ा नक्षत्र

प्रश्न #14. ऋषभदेव का जन्म कब और कहां हुआ?

उत्तर: चैत्र माह के कृष्ण पक्ष की नवमी तिथि को उत्तरषाढ़ा नक्षत्र, अयोध्या नगरी

प्रश्न #15. ऋषभदेव का जन्म कितने साल पहले हुआ?

उत्तर: ज्ञात नहीं

इस तरह से आज के इस लेख में आपने आदिनाथ भगवान (Adinath Bhagwan) के बारे में संपूर्ण जानकारी ले ली है। यदि अभी भी आपके मन में आदिनाथ जी को लेकर कोई प्रश्न है तो आप नीचे कमेंट कर हमसे पूछ सकते हैं।

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लेखक के बारें में: कृष्णा

सनातन धर्म व भारतवर्ष के हर पहलू के बारे में हर माध्यम से जानकारी जुटाकर उसको संपूर्ण व सत्य रूप से आप लोगों तक पहुँचाना मेरा उद्देश्य है। यदि किसी भी विषय में मुझसे किसी भी प्रकार की कोई त्रुटी हो तो कृपया इस लेख के नीचे टिप्पणी कर मुझे अवगत करें।

7 Comments

    1. जो दोनों के ग्रंथ भिन्न भिन्न है, भगवान श्रीराम का जन्म त्रेतायुग में हुआ था जबकि भगवान आदिनाथ के बारे में इतनी जानकारी उपलब्ध नहीं है

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