दीपावली से जुड़ी भगवान श्रीराम की कथा

Shri Ram Diwali Story In Hindi

दिवाली से जुड़ी कई कथाएं (Diwali Motivational Story In Hindi) प्रचलन में हैं जो हमे अलग-अलग शिखाएं भी देती हैं किंतु जिस कारण दीपावली का त्यौहार इतनी धूमधाम से मनाया जाता हैं उसके सूत्रधार हैं श्रीराम (Ramayana The Story Of Diwali In Hindi)। श्रीराम असंख्य लोगों के आराध्य हैं तथा हमेशा रहेंगे। वे भगवान विष्णु के एकलौते ऐसे अवतार थे (Deepavali Kyo Manai Jati Hai) जिन्होंने अपने पूरे जीवनकाल में आदर्श स्थापित किए। इसलिये ही तो कहा जाता हैं कि श्रीराम चमत्कारों के लिए नही अपितु अपने गुणों के कारण प्रसिद्ध हैं।

श्रीराम का हिंदू धर्म के मुख्य पर्व दीपावली से क्या संबंध हैं (Diwali Kyu Manate Hai) तथा क्यों लोग उन्हें उस दिन याद करते हैं यह तो हम सभी जानते हैं। उस दिन भगवान श्रीराम का अयोध्या आगमन हुआ था लेकिन उस दिन को इतने महत्वपुर्ण रूप में क्यों मनाया जाता हैं, इससे बहुत कम लोग परिचित हैं।

आखिर श्रीराम के जीवन का मुख्य उद्देश्य तो पापी रावण का अंत करना था। रावण के अंत वाले दिन को हम दशहरा के रूप में आयोजित करते हैं तो फिर क्यों दीपावली की इतनी महत्ता (Diwali Kyu Manaya Jata Hai In Hindi) हैं? आइए जानते हैं दीपावली का श्री रामकथा से संबंध (Diwali Ka Ramkatha Se Sambandh)।

दिवाली की श्रीराम से जुड़ी कथा (Diwali Story In Hindi)

त्रेतायुग में राक्षसों का राजा रावण था जिसकी राजधानी लंका में थी किंतु उसके राक्षस संपूर्ण पृथ्वी पर फैले हुए थे। इतना ही नही रावण ने अपने प्रताप से तीनो लोको में त्राहिमाम मचा रखा था। लोगो के लिए भगवान की आराधना करना मुश्किल हो गया था।

तब देवताओं की प्रार्थना पर भगवान विष्णु ने मृत्यु लोक पर अपना सातवाँ अवतार लिया (Short Story Of Diwali Festival In Hindi) जो श्रीराम के नाम से जाना गया। यह अवतार एक ऐसा अवतार था जिसने मानव जीवन के हर एक पहलु को दिखाया गया अर्थात इसमें भगवान ने जन्म से लेकर मृत्यु तक अपने कर्तव्यों का निर्वहन किया।

श्रीराम अयोध्या के राजा दशरथ के पुत्र थे तथा बचपन से ही विनम्र स्वभाव, प्रजा के हितैषी व हमेशा धर्म के मार्ग पर चलने वाले व्यक्तित्व के थे। उनके गुणों की ख्याति (Short History Of Diwali In Hindi) प्रजा में इस प्रकार व्याप्त हुई कि अयोध्या की प्रजा उन्हें केवल अपने आगामी राजा नही अपितु भगवान समझने लगी।

जब श्रीराम के राज्याभिषेक की घड़ी निकट आयी तो पूरी अयोध्या उल्लास से भर उठी। जिस क्षण की प्रतीक्षा अयोध्या की प्रजा (Diwali Ki Katha In Hindi) श्रीराम के जन्म से ही कर रही थी वह क्षण बस आने ही वाला था। किंतु समय के कालचक्र ने ऐसा चक्र चला कि श्रीराम का राज्याभिषेक रुक गया व उन्हें चौदह वार्स का कठोर वनवास मिला।

यह वनवास उनके पिता दशरथ के द्वारा उनकी सौतेली माँ कैकेयी (Diwali Ki Kahani Hindi Mein) के कहने पर दिया गया था। इन चौदह वर्षो में उन्हें अपना जीवन केवल वनों में रहकर ही व्यतीत करना था। उनके साथ उनकी पत्नी सीता व छोटे भाई लक्ष्मण ने भी वन में जाने का निर्णय किया।

अगले दिन श्रीराम रथ में बैठकर जब वन में प्रस्थान करने लगे तो मानो अयोध्या में चीख-पुकार मच गयी। अयोध्या की प्रजा उन्हें जाने देने के लिए बिल्कुल भी तैयार नही थी। श्रीराम के समझाने के पश्चात (Deepawali Story In Hindi) वे सभी समझ तो गए लेकिन अब वे लोग उनके साथ वन में ही रहना चाहते थे। अर्थात अयोध्या की प्रजा उन्हें जाने देने से तो नही रोक सकती थी लेकिन उन्होंने निर्णय लिया कि जहाँ उनके आराध्य श्रीराम रहेंगे वे सभी वही रहेंगे। कुछ इस प्रकार का स्नेह था प्रजा का श्रीराम से।

किंतु श्रीराम थे मर्यादा व धैर्य की खान। जब उन्होंने देखा कि प्रजा अब उनकी नहीं सुनेगी (Shri Ram In Ayodhya Diwali Story In Hindi) व उनके साथ ही चलेगी तो उन्होंने एक योजना के तहत कार्य किया। जब सारी प्रजा रात में सो रही थी तब वे भोर होने से पूर्व ही लक्ष्मण व सीता के साथ वन में निकल गए। प्रातःकाल जब अयोध्या की प्रजा उठी तो श्रीराम को वहां नही पाकर विलाप करने लगी। उन्हें पता चल गया था कि श्रीराम अपने धर्म का पालन करने हेतु अकेले निकल पड़े हैं। यह देखकर सबकी दृष्टि में उनका सम्मान और अधिक बढ़ गया था।

इसके पश्चात श्रीराम ने अपने पिता के वचनों को पालन करते हुए (Shri Ram Ayodhya Aagman Ramayan) चौदह वर्ष वनवासी के रूप में एक कठोर जीवन व्यतीत किया। वे प्रतिदिन भूमि पर सोते, कंद-मूल खाते व पूजा-पाठ करते। इसी के साथ वे जहाँ रह रहे थे वहां से उन्होंने राक्षसों का सफाया करना भी शुरू कर दिया तथा एक-एक करके पूरी भारत भूमि को राक्षसविहीन कर दिया। अब संपूर्ण भारतभूमि श्रीराम की कृपा से राक्षस मुक्त हो चुकी थी किंतु राक्षस राजा लंका में अभी भी जीवित था।

श्रीराम के वनवास के अंतिम वर्ष में रावण ने धोखे से माता सीता का अपहरण कर लिया तथा उन्हें अपनी पत्नी बनाने के उद्देश्य से लंका ले गया। जब श्रीराम को इसका पता चला तो (Deepawali Is The Festival Of Lord Rama Return To Ayodhya) उन्होंने किष्किन्धा के वानर राजा सुग्रीव के साथ मित्रता कर लंका पर चढ़ाई कर दी।

श्रीराम ने रावण की राक्षस सेना के साथ युद्ध करने के लिए केवल नीति व नियमो का ही आश्रय लिया। उनके पास सुग्रीव की वानरों की सेना थी जिनके सामने राक्षसों की सेना अति-विशाल, भीमकाय व अधिक शक्तिशाली थी। किंतु श्रीराम फिर भी विचलित नही हुए तथा रावण की सेना के साथ युद्ध किया।

एक-एक करके श्रीराम ने रावण के सभी योद्धाओं, भाई-पुत्रों इत्यादि का वध कर दिया (Dipawali And Shree Ram In Hindi) तथा अंतिम दिन रावण का भी वध हो गया जिसे हम दशहरा के रूप में मनाते हैं। रावण वध के पश्चात आधिकारिक तौर पर श्रीराम लंका के राजा थे तथा उन्हें यह पद मिल भी गया था लेकिन उन्होंने राज्य स्वीकार करना तो दूर नगर में भी जाना उचित नही समझा।

ऐसा इसलिये क्योंकि उन्हें अपने पिता के वचन का पालन करते हुए चौदह वर्ष की अवधि पूर्ण होने से पहले किसी भी नगर में जाना वर्जित था। इसी के साथ उन्होंने कहा कि उनका लक्ष्य लंका पर अधिकार करना नहीं (Shri Ram Ki Diwali) अपितु अपनी भार्या सीता को सम्मान सहित वापस लाना व आततायी राक्षस रावण व उसकी सेना का अंत करना था। तत्पश्चात उन्होंने लंका का राज्य रावण के ही छोटे भाई विभीषण को सौंप दिया जो धर्मावलंबी राजा था।

रावण वध की सूचना पूरे विश्व में फैल गयी क्योंकि उसके आंतक से सभी भयभीत थे। जब यह सूचना अयोध्या पहुंची व उन्हें पता चला कि उनके आराध्य श्रीराम ने राक्षस राजा रावण का अंत कर धरती को पापमुक्त कर दिया हैं तो उनकी खुशी का कोई ठिकाना नही रहा। इसके साथ ही अब श्रीराम के पुनः अयोध्या आने व वहां का राजसिंहासन सँभालने की घड़ी नजदीक आ चुकी थी।

जिस दिन श्रीराम को वापस आना था उस दिन अयोध्या की प्रजा की मानो दिल की धड़कने रुक गयी थी। वह पूर्ण अमावस्या की रात थी जिस दिन वर्ष की सबसे काली रात होती है। किंतु अयोध्या की प्रजा ने अयोध्या को इस प्रकार रोशनी से नहला दिया था कि वह आसमान से भी दिखाई पड़े।

चौदह वर्षों से अयोध्या की प्रजा की आँखें इसी क्षण की प्रतीक्षा कर रही थी कि कब उनके श्रीराम वापस आएंगे। इसी के साथ अब तो वे राक्षस राजा रावण का वध करके लौट रहे थे तो उनकी खुशी भी दुगुनी हो गयी थी। इस उपलक्ष्य में उन्होंने अपने घरो, चौराहों, अयोध्या के राजमहल को दीपक की रोशनी से सजा दिया था कि वह अँधेरी रात भी जगमगा उठी थी।

यह घटना इतनी बड़ी थी कि लोग इसे आज तक याद करके श्रीराम के अयोध्या आगमन पर दीपावली का त्यौहार पूरे भारतवर्ष में बड़ी ही धूमधाम के साथ मनाते हैं। आज भी कार्तिक अमावस्या की रात को पूरा देश दीपक की रोशनी से जगमगा उठता हैं व सभी लोग हर्षौल्लास से भर जाते हैं।

लेखक के बारें में: कृष्णा

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