स्वयंप्रभा (Swayamprabha Ramayan) मेरुसावर्नी की पुत्री थी जिसका जन्म भगवान ब्रह्मा के वरदान से हुआ था। जब भगवान हनुमान वानर दल के साथ दक्षिण दिशा में माता सीता की खोज में निकले थे तब उनकी भेंट माता स्वयंप्रभा (Swayam Prabha) से हुई थी। माता सीता को ढूंढते-ढूंढते वानर दल को भूख व प्यास लगी थी तभी उन्हें एक गुफा दिखाई दी। उन्होंने उस गुफा में जाने का निश्चय किया व अंदर जाकर देखा तो वहां कई प्रकार के स्वादिष्ट फल, जल इत्यादि खाने की वस्तुएं थी जिन्हें खाकर संपूर्ण वानर दल अपना पेट भर सकता था (Who Is Swayamprabha In Ramayana)।
तब वानर दल को स्वयंप्रभा ने दर्शन दिए व अपना परिचय दिया। उन्होंने बताया कि इस वन का निर्माण मय नाम के मायावी ने अपनी माया के प्रभाव से किया था। मय एक दानव था जिसका मन माया नाम की एक अप्सरा पर आ गया था (Swayamprabha In Ramayana In Hindi)।
तब मय ने माया अप्सरा को पाने के लिए देव इंद्र से युद्ध किया जिसमे देव इंद्र ने उसका वध कर डाला। उसके वध के पश्चात इस सुंदर वन की रक्षा करने का उत्तरदायित्व भगवान ब्रह्मा ने हेमा को सौंप दिया। हेमा ने इसका दायित्व माँ स्वयंप्रभा (Swayam Prabha In Hindi) को दिया।
उसके पश्चात स्वयंप्रभा ही उस वन की रक्षा कर रही थी। उनकी आज्ञा के बिना कोई भी उस वन में नही आ सकता था व अगर आ जाये तो जीवित बाहर नही जा सकता था। यह सुनकर हनुमान, जाम्बवंत ने अपना परिचय दिया व यहाँ आने का औचित्य बताया। यह सुनकर माता स्वयंप्रभा ने वानर दल को वहां भोज करने की अनुमति दे दी। इसके बाद वानर दल ने वहां अपनी भूख प्यास मिटायी व जमकर भोजन किया।
सभी के भोजन करने के पश्चात माता स्वयंप्रभा ने वानर दल की माता सीता को खोजने में सहायता करने का सोचा। उनकी सहायता करने के लिए माता ने संपूर्ण वानर दल को अपनी शक्ति के प्रभाव से सीधे समुंद्र तट तक पहुंचा दिया। वहां पहुँचाने के बाद माता स्वयंप्रभा बद्रिक आश्रम की ओर प्रस्थान कर गयी।