रावण पुत्र मेघनाथ को इंद्रजीत क्यों कहा जाता है?

Indrajeet Name Meaning In Hindi

रावण का सबसे बड़ा पुत्र था मेघनाथ जो अपने पिता से भी कही अधिक बलशाली था (Indrajeet Name Meaning In Hindi)। रावण ने उसके जन्म से ही उसके लिए तैयारी कर दी थी व सभी ग्रहों व नक्षत्रों की चाल उसके अनुसार कर दी थी। इसके बाद समय-समय पर मेघनाथ ने कई यज्ञ व तप किये व राक्षसों के गुरु शुक्राचार्य की सहायता से कई शक्तियां भी अर्जित की (Indrajeet Ramayan)।

एक समय के बाद मेघनाथ एक तरह से अविजयी व अतिपराक्रमी योद्धा बन चुका था जिसे हराना किसी भी मानव, देवता, दानव, गन्धर्व के लिए असंभव था। एक ऐसा समय भी आया था जब मेघनाथ ने देवों के राजा इंद्र को भी परास्त कर दिया था तब से उनका नाम इंद्रजीत पड़ गया था अर्थात जो इंद्र को भी जीत सके। आइये जानते है उस युद्ध के बारे में।

मेघनाथ का नाम इंद्रजीत पड़ना (Indrajeet Name Meaning In Hindi)

रावण व देवताओं के बीच युद्ध (Ravan Indra Ka Yuddh)

एक बार लंका का राजा अपने विश्व विजयी अभियान पर निकला था (Ravan Aur Indra Ka Yuddh)। अपने अहंकार में चूर रावण ने देवलोक में देवताओं पर भी आक्रमण कर दिया था। तब सभी देवताओं व रावण की सेना के बीच भीषण युद्ध हुआ था जिसमे अंत में देवताओं की विजयी हुई थी। देव इंद्र ने रावण को बंदी बना लिया (Ravan Ko Bandi Banaya) व कारावास में डाल दिया था।

मेघनाथ गया युद्ध करने (Indra Vs Meghnath)

जब रावण के पुत्र मेघनाथ को इस बात का पता चला तो वह अत्यंत क्रोधित हो गया। वह उसी समय अपने सभी अस्त्र-शस्त्र लेकर देवलोक गया व देवताओं पर आक्रमण कर दिया (Indra Meghnath Yudh)। चूँकि उसके पास भगवान ब्रह्मा, विष्णु व महेश के दिए गये सबसे बड़े अस्त्र थे इसलिये उसने देवताओं को इंद्र समेत परास्त कर दिया। यह सभी अस्त्र व शक्तियां उसे राक्षसों के गुरु शुक्राचार्य की सहायता से प्राप्त हुई थी (Why Did Meghnad Fight With Indra)।

सभी देवताओं के परास्त होने के बाद मेघनाथ ने अपने पिता रावण को वहां से मुक्त करवाया व देव राजा इंद्र को बंदी बनाकर लंका ले आया। अब इंद्र देव लंका में रावण व मेघनाथ के बंदी बन चुके थे। दोनों ने एक दिन इंद्र का वध करने का निश्चय किया।

ब्रह्मा जी आये इंद्र को बचाने (Meghnath Ne Indra Ko Bandi Banaya)

जब भगवान ब्रह्मा को रावण व मेघनाथ के द्वारा इंद्र के वध करने की योजना के बारें में पता लगा तो वे मेघनाथ के पास आये व इंद्र को मुक्त करने को कहा। ब्रह्मा जी जानते थे कि मेघनाथ इतनी जल्दी नही मानने वाला है इसलिये उन्होंने मेघनाथ को इंद्र को मुक्त करने के बदले उनसे कोई वरदान मांगने को कहा।

मेघनाथ ने माँगा अमर होने का वरदान

इंद्र को मुक्त करने के बदले में मेघनाथ ने भगवान ब्रह्मा से अमर होने का वर मांग लिया तो भगवान ब्रह्मा ने मना कर दिया। उन्होंने कहा कि यह सृष्टि के नियमों के विरुद्ध है व यदि भगवान भी मानव रूप में जन्म लेते है तो उन्हें भी एक दिन अपनी देह का त्याग करना होता है। इसलिये वे उन्हें अमर होने का वरदान नही दे सकते।

ब्रह्मा का मेघनाथ को वरदान (Brahma Boon To Meghnath)

भगवान ब्रह्मा ने मेघनाथ को अमर होने का वरदान देने से तो मना कर दिया लेकिन उन्होंने उसे एक अन्य वरदान दिया जो अमर होने के समान ही था। उनके अनुसार यदि मेघनाथ किसी भी युद्ध में जाने से पहले अपनी कुलदेवी निकुंबला (Nikumbla Devi) का यज्ञ पूरा कर लेगा तो उसे कोई भी परास्त नही कर पायेगा। उस युद्ध में उसकी विजय निश्चित होगी लेकिन इसी के साथ ब्रह्मा जी ने यह भी बताया कि जो कोई भी उसके यज्ञ को बीच में ध्वस्त कर देगा तो उसी मनुष्य के हाथों मेघनाथ की मृत्यु होगी।

ब्रह्मा ने दी मेघनाथ को इंद्रजीत की उपाधि (Meghnath As Indrajit)

मेघनाथ यह वरदान पाकर अत्यंत प्रसन्न था व उसने ब्रह्मा के कहे अनुसार देव इंद्र को मुक्त कर दिया। मेघनाथ के पराक्रम को देखकर भगवान ब्रह्मा अत्यंत प्रसन्न हुए व उन्होंने उसे इंद्रजीत की उपाधि दी। इससे उन्होंने एक तो मेघनाथ को सम्मानित किया ताकि वह पूरे विश्व में इंद्र को जीतने वाले राक्षस के रूप में जाना जाएँ व साथ में इससे उन्होंने इंद्र के अहंकार पर भी चोट की।

लेखक के बारें में: कृष्णा

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