आज के इस लेख में हम आपको गायत्री चालीसा इन हिंदी (Gayatri Chalisa In Hindi) में अर्थ सहित देंगे। हम सभी जब स्कूल में पढ़ते थे तब अवश्य ही हम सभी ने गायत्री मंत्र का जाप किया होगा। यहाँ तक कि हर पूजा पाठ से पहले भी गायत्री मंत्र का जाप किया जाता है और यह हम सभी को याद भी होता है। गायत्री माता को भगवान ब्रह्मा की पत्नी माना गया है जो हमें सभी प्रकार की सिद्धियाँ देने वाली होती हैं।
यदि हम गायत्री चालीसा का पाठ (Gayatri Chalisa Lyrics In Hindi) करने के साथ-साथ उसका अर्थ भी जान लेते हैं तो इसका ज्यादा प्रभाव देखने को मिलता है। इसी के साथ ही आपको गायत्री चालीसा का महत्व भी जानने को मिलेंगे। लेख के अंत में आपको गायत्री चालीसा के फायदे भी पढ़ने को मिलेंगे। तो आइये सबसे पहले करते हैं गायत्री चालीसा का पाठ हिंदी में।
Gayatri Chalisa In Hindi | गायत्री चालीसा इन हिंदी
॥ दोहा ॥
जयति जयति अम्बे जयति, यज्ञ गायत्री देवी।
ब्रह्मज्ञान धारणिहृदय, आदिशक्ति सुरसेवी॥
हे माँ अम्बे!! आपकी जय हो, जय हो। हे माँ यज्ञ देवी व गायत्री माता!! आपकी जय हो। आपने ब्रह्म ज्ञान को अपने हृदय में धारण किया हुआ है और सभी देवता आपके सेवक हैं। आप ही माँ आदिशक्ति हो।
॥ चौपाई ॥
जयति जयति गायत्री अम्बा, काटहु कष्ट न करहु विलम्बा।
तब ध्यावत विधि विष्णु महेशा, लहत अगम सुख-शांति हमेशा।
तुहि जन ब्रह्मज्ञान उर धारणी, जग तारणि मग मुक्ति प्रसारणी।
जन तन संकट नासन हारी, हरणि पिशाच प्रेत दै तारी।
हे माँ गायत्री व अम्बा!! आपकी जय हो, जय हो। आप हमारे कष्ट दूर करने में देरी ना करें। भगवान विष्णु व शिव भी आपका ध्यान कर सुख व शांति को पाते हैं। आपने ही ब्रह्मज्ञान को धारण किया हुआ है और आप ही हम सभी को मुक्ति प्रदान करने वाली हो। आप हम सभी के संकटों को दूर करने वाली और भूत, प्रेत व पिशाच का संहार करने वाली हो।
मंगल मोद भरणी भय नासनि, घट-घट वासिनि बुद्धि प्रकासिनि।
पूरण ज्ञान रत्न की खानि, सकल सिद्धि दानी कल्याणी।
शम्भु नेत्र नित निरत करैया, भव भय दारुण दर पहरइया।
सर्व काम क्रोधादि माया, ममता मत्सर मोह अदाया।
आप हम सभी का मंगल करने वाली और भय का नाश करने वाली हैं। आप हर जगह निवास करती हैं और बुद्धि का प्रकाश फैलाती हैं। आप ज्ञान का अथाह भंडार हैं और आप ही हम सभी को सिद्धियाँ प्रदान कर हमारा कल्याण करती हैं। आप ही शिवजी भगवान की तीसरी आँख में बस कर हम सभी का भय दूर करती हो। आप ही क्रोध, माया, ममता, मोह इत्यादि सभी काम की जननी हो।
अगम अनिष्ट हरण महाशक्ति, सहज भरण भक्तन उर भक्ति।
‘ॐ, रूपकलि कलषु विभंजनि, ‘भूर्भवः’ ‘स्वः’ स्वतः निरंजनि।
शब्द ‘तत्सवितु’ हंस सवारी, अरु ‘वरेण्यं’ ब्रह्म ‘दुलारी’।
‘भर्गो’ -जनतनु क्लेश भगावत, प्रेम सहित ‘देवस्य’ जु ध्यावत।
आप हर जगह हैं और आप ही अनहोनी को दूर करती हो। आप ही अपने भक्तों के हृदय को भक्तिभाव से भर देती हो। ॐ जैसे शक्तिशाली मंत्र के रूप में आप ही कलियुग के पापों का नाश करने वाली हैं। आप ही इस सृष्टि की देवी हैं और हर जगह व्याप्त हैं। तत्सवितु शब्द से हम यह जानते हैं कि आपकी सवारी हंस है और वरेण्यं शब्द का अर्थ आप भगवान ब्रह्मा को प्रिय हैं। भर्गो शब्द से आप अपने भक्तों के शरीर के रोग दूर कर देती हैं और देवस्य शब्द के द्वारा प्रेम का संचार होता है।
‘धीमहि’ – धीर धरत उर माहीं, ‘धियो’ बुद्धि बल विमल सुहाही।
‘यो नः’ नित नवभक्ति प्रकाशन, ‘प्रचोदयात्’ पुंज अघनाशन।
अक्षर-अक्षर महं गुण रूपा, अगम अपार सुचरित अनूपा।
धीमहि शब्द के द्वारा आप मनुष्य के मन को शांत करती हैं, धियो शब्द के द्वारा मनुष्य के दिमाग का विकास होता है और उसमे बुद्धि आती है। यो नः शब्द के द्वारा मनुष्य को नवधा भक्ति प्राप्त होती है। प्रचोदयात शब्द के द्वारा आप सभी तरह के संकटों का नाश कर देती हैं। गायत्री मंत्र के प्रत्येक अक्षर में अलग गुण हैं जो अगम, अपार व अनूप है।
जो गणमंत्र न तुम्हरो जाना, शब्द अर्थ जो सुना न काना।
सो नर दुर्लभ असतन पावत, पारस गहतन कनक बनावत।
जब लगि ब्रह्म कृपा नहिं तेरी, रहहि तबहि लगि ज्ञान की देरी।
प्राकृति ब्रह्म शक्ति बहु तेरी, महा ‘व्यहृती’ नाम घनेरी।
जिस भी व्यक्ति ने आपके मंत्र को नहीं जाना या उसके अर्थ को नहीं समझा, उस व्यक्ति को भगवान ने शरीर तो दे दिया लेकिन वह अपने पारस रुपी घड़े को पाप के घड़े में बदल रहा है। जब तक उस पर आपकी कृपा नहीं होती है, तब तक वह ज्ञान को नहीं पा सकता है। आपकी ब्रह्म शक्ति के कारण ही यह प्रकृति है और आपके कारण ही हम सभी का जीवन है।
ॐ-तत्व निर्गुण जग जाना, भूः-मम रूप चतुर्दल माना।
र्भुवः- भुवन पालन शुचिकारी, स्वः- रक्षा सोलह दलधारी।
त- विधि रूप जन पालन हारी, त्स- रस रूप ब्रह्म सुखकारी।
वि- कचित गंध शिशिर संयुक्ता, तु- रमित घट घट जीवन मुक्ता।
यह तो सभी को पता है कि गायत्री मंत्र का प्रथम अक्षर ॐ इस सृष्टि का निर्गुण व प्रथम शब्द है। भू का अर्थ पृथ्वी से है जिस पर हम टिके हुए हैं। र्भुवः शब्द का अर्थ इस पृथ्वी का पालन करने वाले अर्थात भगवान विष्णु से है। स्वः शब्द के द्वारा विष्णु इसकी रक्षा सोलह सेनाओं के साथ करते हैं। त शब्द के द्वारा इस जगत का पालन किया जाता है तथा त्स शब्द आनंद व सुख देने वाला है। वि शब्द अपने में सुगंध लिए हुए है जो चन्द्रमा के समान है। तु शब्द हर मनुष्य में जीवन को प्रदान करने वाला है।
व- नत शब्द सुविग्रह कारण, रे- स्व शरीर तत्वनत धारण।
ण्य- सर्वत्र सुपालन कर्त्ता, भ- भवन बीच मुद मंगल भर्ता।
र्गो- संयुक्त गंध अविनाशी, दे- तन बुद्धि वचन सुखरासी।
व- सत् ब्रह्म युग बाहु स्वरुपा, स्य- तनु लसत षत दल अनुरूपा।
व शब्द हमारे शरीर के रूप का परिचायक है जबकि रे शब्द शरीर जिन पंच तत्वों से बना है, उसे दिखाता है। ण्य शब्द से हर जगह हमारा पालन-पोषण होता है तो वहीं भ हमारा मंगल करता है। र्गो से हमे सभी तरह की सुगंध का आभास होता है और दे शब्द से हमारे शरीर को सुख मिलता है। व शब्द ब्रह्मा के स्वरुप को प्रदर्शित करता है जबकि स्य हमारे शरीर के अनुरूप होने को दिखाता है।
धी- जनु प्रकृति शब्द नित कारण, म- नितब्रह्म रूपिणी नित धारण।
हि- यहिसर्व परब्रह्म प्रकाशन, धियो- बुद्धि बल विद्या वासन।
यो- सर्वत्रलसत थल जल निधि, नः- नित तेज पुंज जग बहु विधि।
प्र- बलअनि अकाया नित कारण, चो- परिपूरण श्री शिव धारण।
द- मन करति अघ प्रगटनि शक्ति, यात- ज्ञान प्रविशन हरि भक्ति।
धी शब्द प्रकृति की उत्पत्ति के कारण का बोध कराता है तो वहीं म शब्द ब्रह्म रूप का बोध कराता है। हि शब्द ज्ञान के प्रकाश का सूचक है तो वहीं धियो शब्द हमें बुद्धि, विद्या व बल प्रदान करता है। यो शब्द भूमि, समुंद्र व निधि का बोध कराता है तो वहीं नः शब्द गायत्री माता के संपूर्ण जगत में फैले हुए तेज को बताता है।
प्र शब्द हमारी प्राणवायु का सूचक है जिससे हम सांस ले पाते हैं तो वहीं चो शब्द शिव भगवान का सूचक है जो हमारा अंत करेंगे। द शब्द हमारे मन के अंदर पैदा हो रहे नकारात्मक विचारों का अंत करने वाली शक्ति तो वहीं यात शब्द श्री विष्णु की भक्ति का सूचक है।
जयति जयति जय जय जगधात्री, जय जय महामंत्र गायत्री।
तुहि श्रीराम राधिका सीता, तुहि कृष्ण मुखर्सित गीता।
आदिशक्ति तुहि भक्ति भवानी, जगत जननि फल वांछित दानी।
तुहि श्रीदुर्गा दुर्ग नाशिनी, उमा रमा बैकुण्ठ वासिनी।
हे इस जगत की माता गायत्री देवी!! आपकी जय हो, जय हो। आपका गायत्री महामंत्र बहुत ही शक्तिशाली है। आप ही भगवान श्रीराम की पत्नी माता सीता हो। आप ही श्रीकृष्ण की राधा व उनके मुख से निकली भगवत गीता हो। आप ही माँ आदिशक्ति व भवानी हो। आप ही हम सभी की इच्छाओं की पूर्ति करती हो। आप ही माँ दुर्गा की भांति राक्षसों का अंत करती हो और आप ही माँ पार्वती, लक्ष्मी व सरस्वती हो।
तुहि श्री भक्ति भैरव बानी, तुम्हीं मातु मंगला मृडानी।
जेते मंत्र जगत के माहीं, पर गायत्री सम कोई नाहीं।
जाहि ब्रह्म हत्यादिक लागै, गायत्रिहिं जप सो अघ भागै।
धनिहो धनि त्रैलोक्य वंदिनी, जय हो श्री ब्रह्म नंदिनी।
आप ही माँ भैरवी व श्री अर्थात लक्ष्मी हो। आप ही हम सभी की माता हो और हमारा मंगल करती हो। इस जगत में जितने भी मंत्र हैं, वह गायत्री मंत्र से महान नहीं है। जिस भी व्यक्ति पर ब्रह्म हत्या अर्थात ब्राह्मण हत्या का दोष लगा हुआ है, वह भी गायत्री मंत्र के जाप से दूर हो जाता है। आप तीनों लोकों में पूजी जाती हो और आप धन्य हो। ब्रह्मा भगवान की नंदिनी!! आपकी जय हो।
॥ दोहा ॥
श्री गायत्री चालीसा, पाठ करै सानंद सहज
तरै पातक हरै, हरै न पुनि भव फंद॥
बास होई गृह लक्ष्मी, गहि मन वांछित आस,
आस पूर्णलहि सकल विधि, विरच्यो सुन्दर दास॥
जो भी व्यक्ति सच्चे मन से गायत्री चालीसा का पाठ कर लेता है, उसके सभी दुःख दूर हो जाते हैं, वह भवसागर को पार कर लेता है और हरि को प्राप्त कर लेता है। उसके घर में माँ लक्ष्मी का वास होता है और उसकी सभी इच्छाएं पूरी हो जाती है। सुन्दरदास कहते हैं कि इस गायत्री चालीसा के पाठ से उसके सभी काम बन जाते हैं।
ऊपर आपने गायत्री चालीसा का पाठ (Gayatri Chalisa Lyrics In Hindi) अर्थ सहित पढ़ लिया है। अब बारी आती है गायत्री चालीसा पढ़ने के फायदे और उसके महत्व को जानने की। तो चलिए वह भी जान लेते हैं।
गायत्री चालीसा का महत्व
गायत्री माता माँ आदिशक्ति का ही एक रूप हैं या फिर यूँ कहें कि माँ आदिशक्ति ही गायत्री माता हैं। सनातन धर्म में देवी माता के हर रूप का एक गुण होता है और इसी कारण उनकी पूजा की जाती है किन्तु गायत्री माता इन सभी से बिल्कुल भिन्न हैं। वह इसलिए क्योंकि इन्हें धर्म की स्थापना करने वाली प्रमुख देवी माना जाता है। हिन्दू धर्म का मुख्य आधार वेद ही हैं और यही सबसे पुराने ग्रंथ हैं जो सृष्टि की रचना से पहले और बाद में भी रहेंगे।
तो इन्हीं चारों वेदों की जननी गायत्री माता को माना जाता है। चारों वेदों की शक्तियां भी गायत्री मंत्र में ही निहित होती है और इसकी छाप गायत्री चालीसा में भी देखने को मिलती है। गायत्री चालीसा के माध्यम से हम गायत्री माता के द्वारा प्रदान की जाने वाली शक्तियां ग्रहण कर सकते हैं और आत्म-ज्ञान को प्राप्त कर सकते हैं। गायत्री चालीसा का महत्व यही है कि इसके जाप से आप स्वयं ब्रह्म को अपने अंदर अनुभव कर सकते हैं और परम ज्ञान प्राप्त कर सकते हैं।
गायत्री चालीसा के फायदे
ऊपर आपने गायत्री चालीसा के महत्व को पढ़ा तो उससे आपको गायत्री चालीसा के फायदे भी कुछ सीमा तक समझ में आ गए होंगे। फिर भी हम इसे विस्तार देते हुए बता दें कि गायत्री माता को केवल चारों वेदों की ही नहीं अपितु सभी तरह के शास्त्रों व पुराणों की भी जननी माना जाता है। उनके द्वारा ही धर्म व संस्कृति की स्थापना की गयी थी तथा मनुष्य जाति को जीवन पद्धति व मानव कल्याण का संदेश दिया गया था।
यदि हम गायत्री चालीसा का नियमित रूप से पाठ करते हैं तो हम अपने अंदर एक नयी चेतना का अनुभव करते हैं। इस चेतना के माध्यम से हम में कार्य करने की शक्ति आती है और साथ के साथ हम मेधावी भी बनते हैं। इससे हमारे दिमाग का विकास होता है और हमारी सोचने-समझने की शक्ति भी बढ़ती है। कुल मिलाकर नियमित रूप से गायत्री चालीसा को से हमारे दिमाग व शरीर का संपूर्ण रूप में विकास होता है।
निष्कर्ष
आज के इस लेख के माध्यम से आपने गायत्री चालीसा इन हिंदी (Gayatri Chalisa In Hindi) में पढ़ ली है। साथ ही आपने गायत्री चालीसा के फायदे और उसके महत्व के बारे में भी जान लिया है। यदि आप हमसे कुछ पूछना चाहते हैं तो नीचे कमेंट कर सकते हैं। हम जल्द से जल्द आपके प्रश्न का उत्तर देने का प्रयास करेंगे।
नोट: यदि आप वैदिक ज्ञान 🔱, धार्मिक कथाएं 🕉️, मंदिर व ऐतिहासिक स्थल 🛕, भारतीय इतिहास, शारीरिक व मानसिक स्वास्थ्य 🧠, योग व प्राणायाम 🧘♂️, घरेलू नुस्खे 🥥, धर्म समाचार 📰, शिक्षा व सुविचार 👣, पर्व व उत्सव 🪔, राशिफल 🌌 तथा सनातन धर्म की अन्य धर्म शाखाएं ☸️ (जैन, बौद्ध व सिख) इत्यादि विषयों के बारे में प्रतिदिन कुछ ना कुछ जानना चाहते हैं तो आपको धर्मयात्रा संस्था के विभिन्न सोशल मीडिया खातों से जुड़ना चाहिए। उनके लिंक हैं:
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