सदियों से न्यायालय में चले आ रहे मामले को आखिरकार सुलझा लिया गया तथा हमें हमारी राम जन्मभूमि पुनः प्राप्त हुई (Ayodhya Ramlala Dress In Hindi)। शुभ वर्ष 1992 को कलंक व अत्याचार के प्रतीक बाबरी मस्जिद को गिरा दिया गया था व अब 5 अगस्त को श्रीराम मंदिर का भूमिपूजन होगा (Ram Lala Ki Poshak)। इस अवसर पर आज हम आपका परिचय उस परिवार से करवाएंगे जो कई पीढ़ियों से रामलला तथा उनके परिवारवालो के लिए वस्त्र सीलते आ रहे हैं।
इस परिवार की कई पीढ़ियाँ श्रीराम के लिए हर दिन के अनुसार अलग-अलग रंगों के वस्त्र सीलती हैं (Ayodhya Story Of Ramlala Tailor)। साथ ही इनके परिवार को ही श्रीराम तथा उनके परिवारवालों के सटीक माप की भी जानकारी हैं।
श्री बाबु लाल टेलर्स की दुकान (Babulal Tailors Ramlala)
यह दुकान बाबूलाल जी के नाम पर हैं जिनका अब देहांत हो चुका हैं। अब उनके दोनों पुत्र भगवत प्रसाद पहाड़ी जी (Tailor Bhagwat Prasad Pahadi Ayodhya) व शंकर लाल जी (Tailor Shankar Lal Ayodhya) रामलला के लिए कपड़े सिलने का कार्य करते हैं। शंकर लाल जी का कहना हैं कि उनकी चार पीढ़ियाँ रामलला के लिए कपड़े सीलती आ रही हैं तथा वे अपने आगे आने वाली पीढ़ियों को भी इस शुभ कार्य में लगाएंगे।
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सन 1985 से बाबूलाल जी रामलला के कपड़े सिलने के लिए अपनी मशीन को लेकर राम जन्मभूमि परिसर में जाते थे तथा वहां बैठकर उनके वस्त्र बनाने का कार्य करते थे (Babulal’s Family Is Stiching Clothers For Ramlala)। सन 1992 के बाद से जब दुष्ट बाबर द्वारा बनवायी गयी मस्जिद को गिरवा दिया गया तब से वे अपनी दुकान पर बैठकर कपड़े सिलने लगे।
इसके लिए कपड़ा मंदिर के मुख्य पुजारी के द्वारा आ जाया करता था तथा वे रामलला के लिए वस्त्र सीलकर दे दिया करते थे। भगवत जी तथा शंकर जी ने एक ओर रोचक बात साँझा की कि हर दिन के अनुसार रामलला तथा उनके परिवारवालों के लिए अलग-अलग रंग की पोशाक बनती हैं।
रामलला के लिए दिन के अनुसार पोशाक (Ayodhya Ramlala Clothes Colour Tradition Daywise)
जब 5 अगस्त को श्रीराम जन्मभूमि का पूजन होगा तब उन्हें हरे रंग की पोशाक पहनायी जाएगी। इस पर कई रामभक्तों ने अनुरोध किया कि उस पावन दिन उन्हें भगवा या लाल रंग की पोशाक पहनायी जाए लेकिन पुजारी जी ने इसके लिए मना कर दिया। उन्होंने कहा कि बुधवार के दिन रामलला को हरे रंग के वस्त्र ही पहनाए जाते हैं तो वे उस दिन वही पहनेंगे। आइए जानते हैं दिन के अनुसार रामलला के लिए वस्त्रों के रंग:
- सोमवार- श्वेत/ सफेद
- मंगलवार- लाल
- बुधवार- हरा
- गुरुवार- पीला/ केसरिया
- शुक्रवार- क्रीम/ दूधिया
- शनिवार- नीला
- रविवार- गुलाबी
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उनके अनुसार भगवान को सभी रंग प्रिय होते हैं। किसी अन्य धर्म के द्वारा केवल एक रंग को महत्ता देने का यह अर्थ नही कि सनातन धर्म उस रंग या वर्ण से दूरी बना ले (Ramlala Dress For Bhoomipujan)। सनातन धर्म की सबसे बड़ी पहचान ही यही हैं कि यहाँ पर सभी के प्रति अपनत्व की बात कही गयी हैं। तभी जिसे विश्व के अन्य धर्म अपना ना समझकर उसे ठुकरा देते हैं तो वही सनातन धर्म में सभी का स्थान हैं इसलिये ही यह धर्म सबसे प्राचीन, विशाल व उदारवादी हैं।
इसलिये इसी परंपरा का पालन करते हुए पुजारी जी ने हरे रंग की ही पोशाक पहनाने को कहा हैं। चूँकि 5 अगस्त को बुधवार पड़ रहा हैं तो उस दिन रामलला परंपरा के अनुसार हरे रंग के वस्त्र ही धारण करेंगे।
मीडिया के द्वारा इसमें भी मुस्लिम भाईचारा दिखाने का प्रयास करना
यह तो हम सभी जानते हैं कि अधिकांश भारतीय मीडिया मुख्यतया अंग्रेजी माध्यम के समाचार चैनल व अन्य संस्थाएं, समय-समय पर हिंदू धर्म के लोगों को असहिष्णु बताने व मुस्लिमों का भाईचारा दिखाने को लालायित रहती हैं। अपनी इसी महत्वाकांक्षा को पूर्ण करने के लिए वे कभी-कभी मनगढ़ंत बातों का आश्रय लेकर हमें भ्रमित करने का प्रयास करते हैं।
रामलला के वस्त्र सिलने के लिए भी उन्होंने कुछ ऐसा ही प्रयास किया। दरअसल बाबूलाल जी की दुकान अयोध्या में जहाँ पर स्थित हैं वहां पर बाबू खान नाम से एक मुस्लिम व्यक्ति की भी दुकान हैं जो उन्ही की भांति कपड़े सिलने का कार्य करता हैं। भारतीय मीडिया को जब यह पता चला तो उन्होंने अपनी बड़ी-बड़ी हैडलाइन के साथ हिंदू मुस्लिम भाईचारे तथा मुस्लिमों के द्वारा रामलला के कपड़े सिलने के समाचार छाप दिए।
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किंतु अंत में सच्चाई सामने आ गयी तथा लोगों को पता चल गया कि वह बाबू खान नही अपितु बाबू लाल हैं जिनकी एक छोटी सी दुकान हैं। उनकी दुकान के बाहर बोर्ड पर भी साफ-साफ अक्षरों में लिखा गया हैं कि राम जन्मभूमि व रामलला के कपड़े यही सीले जाते हैं।
भारतीय मीडिया को यह समझना चाहिए कि यदि दूसरे पक्ष में इतना ही भाईचारा होता तो हमें राम जन्मभूमि को पाने के लिए इतना बड़ा संघर्ष नही करना पड़ता तथा ना ही इतना बलिदान देना पड़ता। इतिहास में क्या हुआ यह किसी से भी छुपा नही हैं। इसलिये दूसरे पक्ष का यह दायित्व बनता था कि वह अपने दुष्ट पूर्वजों के द्वारा की हुई गलती को सुधारते हुए शांति से स्वयं रामजन्मभूमि हमें वापस सौंपते व भाईचारे का संदेश देते।
हिंदुओं के भाईचारे का अंदाजा आप इसी से लगा सकते है कि अभी भी रामजन्मभूमि के आसपास 6 मस्जिदे व 2 मकबरे हैं लेकिन किसी को भी इससे कोई आपत्ति नही क्योंकि हमें राम जन्मभूमि से मतलब था, ना की किसी की भूमि को हथियाकर उस पर भगवान को स्थापित करने का।