जल्लीकट्टू कैसे खेला जाता है? जाने जल्लीकट्टू त्योहार के बारे में

Jallikattu Festival In Hindi

आज हम जानेंगे कि जल्लीकट्टू क्या है (Jallikattu Festival In Hindi) और यह क्यों मनाया जाता है। जल्लीकट्टू तमिलनाडु राज्य का एक मुख्य त्यौहार हैं जिसे ज्यादातर ग्रामीण इलाको में किसानो के द्वारा आयोजित करवाया जाता हैं। यह पर्व तमिलनाडु के प्रमुख त्यौहार पोंगल के तीसरे दिन पड़ता है जिसे मट्टू पोंगल भी कहते है।

जल्लीकट्टू त्योहार (Jallikattu In Hindi) में किसान अपने बैलों (सांड) को खेल में भाग लेने के लिए लाते हैं और गाँव के शक्तिशाली युवक उस पर नियंत्रण पाने का प्रयास करते है। आइए जल्लीकट्टू खेल के बारे में विस्तार से जान लेते हैं।

Jallikattu Festival In Hindi | जल्लीकट्टू क्या है?

यह दो शब्दों के मेल से बना हैं जो सल्लिकासु शब्द का एक अपभ्रंश हैं। इसे सल्लिकट्टू भी कह देते हैं। इसमें सल्ली का अर्थ सिक्को की थैली से हैं तो कासु का अर्थ बांधा हुआ होता हैं अर्थात सिक्कों की थैली को बांधना। जल्लीकट्टू के अन्य नाम एरूथाजहूवुथल व मंजू विराट्टू भी हैं। इसमें एरूथाजहूवुथल का अर्थ बैल को गले लगाने से हैं तो वही मंजू विराट्टू का अर्थ बैल का पीछा करने हैं।

आप शायद सोच रहे होंगे कि इन नामो का क्या अर्थ? आगे हम आपको यह बताएँगे कि इस त्यौहार को खेला कैसे जाता हैं और इसके क्या नियम होते हैं तो आपको इन सभी नामो का औचित्य समझ में आ जाएगा।

जल्लीकट्टू कैसे खेला जाता है?

जल्लीकट्टू खेल (Jallikattu Festival In Hindi) में गाँव के सभी किसान अपने-अपने बैलों/ सांड को लेकर पहुँचते हैं। उन्हें सजाकर तैयार किया जाता हैं। इसके बाद बैल के सींघों पर सिक्कों से भरी पोटली बाँध दी जाती है। फिर उसे उकसाकर खुला छोड़ दिया जाता हैं।

गाँव के नवयुवक उस बैल का पीछा करते हैं और उसे काबू में करने का प्रयास करते हैं। इस प्रयास में वे उसके कूबड़ को गले लगाते हैं और उसके सींघ पर बंधी सिक्कों की पोटली को उतारने का प्रयास करते हैं। जो भी नवयुवक बैल को नियंत्रण में करके सिक्के की पोटली को प्राप्त कर लेता हैं उसे विजेता घोषित कर दिया जाता है। साथ ही उसे उपहार के रूप में कुछ न कुछ दिया जाता है।

जल्लीकट्टू किससे संबंधित है?

दरअसल जल्लीकट्टू खेल पोंगल त्यौहार का ही एक अंग हैं। पोंगल चार दिनों का एक महापर्व हैं जिसमे प्रथम दिन इंद्र देव की, दूसरे दिन सूर्य देव की और तीसरे दिन पशुओं की पूजा की जाती हैं। चूँकि यह किसानो का पर्व हैं, इसलिये इन तीनों की ही कृषि में प्रधानता होती हैं। इंद्र देव वर्षा के लिए, सूर्य देव फसलो को धूप देने के लिए और बैल खेत जोतने में काम आते हैं।

इसलिये इस दिन खेती में सहायता करने वाले बैलो की पूजा कर इस खेल का आयोजन किया जाता हैं। पोंगल में तीसरे दिन को मट्टू पोंगल के नाम से जाना जाता है और इसी दिन जल्लीकट्टू त्योहार (Jallikattu In Hindi) का आयोजन होता है।

जल्लीकट्टू खेल की तैयारियां

इस उत्सव की तैयारियां कई दिनों पूर्व से ही शुरू हो जाती हैं। सभी किसान चाहते हैं कि उनका बैल सबसे अच्छा प्रदर्शन करे क्योंकि इसमें केवल नवयुवक ही नही बल्कि बैल भी जीतते हैं। इसमें यह देखा जाता हैं कि किस किसान का बैल सबसे शक्तिशाली, कर्मठ और तेज हैं।

मजबूत बैल प्रजनन क्षमता के लिए भी उत्तम माने जाते हैं। इसलिये किसान कुछ दिनों पूर्व से ही अपने बैलों को इस खेल की तैयारियां करवानी शुरू कर देते हैं। इसके लिए उन्हें अच्छा खान-पान करवाया जाता हैं, दौड़ने का अभ्यास करवाया जाता हैं इत्यादि।

जल्लीकट्टू त्योहार का विवाह से संबंध

प्राचीन समय में जल्लीकट्टू का त्योहार केवल पैसो तक ही सिमित नही था बल्कि इसे एक स्वयंवर के रूप में भी देखा जाता था। दरअसल गाँव की विशेष कन्या से विवाह के लिए सभी नवयुवको में होड़ लगती थी। जो भी नवयुवक किसी विशेष बैल को नियंत्रण में करने में सफल रहता था तो उस कन्या का विवाह उससे होता था।

जल्लीकट्टू किस राज्य का त्योहार है?

जल्लीकट्टू त्योहार (Jallikattu In Hindi) का इतिहास करीब दो हज़ार वर्ष से भी ज्यादा पुराना है। पहले इसका संबंध तमिलनाडु के अय्यर समुदाय से था जो बाद में अन्य समुदायों में भी लोकप्रिय हो गया। धीरे-धीरे इसने एक प्रतियोगिता का रूप ले लिया जिसमे कई लोग भाग लेते थे और उपहार जीतते थे। इससे संबंधित एक अति-प्राचीन नक्काशी की हुई मूर्ति दिल्ली के राष्ट्रीय संग्रहालय में भी रखी हुई है।

जल्लीकट्टू से जुड़ा विवाद

हालाँकि इससे कुछ विवाद भी जुड़े जिस कारण भारत की पूर्व कांग्रेस सरकार ने इसे प्रतिबंधित करने का प्रयास किया और भारत की सर्वोच्च न्यायालय द्वारा इसे प्रतिबंधित भी कर दिया गया। इसके लिए सर्वोच्च न्यायालय में पेटा संगठन ने याचिका दायर की थी और इस त्यौहार में जानवरों पर होने वाली क्रूरता का उदाहरण दिया था।

कुछ किसान अपने बैल को सर्वश्रेष्ठ सिद्ध करने के लिए उन्हें जल्लीकट्टू त्योहार से पूर्व शराब पिला दिया करते थे या उन्हें बहुत मारा करते थे या सुइयां चुभो देते थे जो कि सरासर गलत हैं। इसी के साथ कई बार कुछ नवयुवक जोश-जोश में गलतियाँ कर बैठते और घायल हो जाते। यह सब अनुचित तो हैं लेकिन इसका अर्थ यह नही कि त्यौहार पर ही बैन लगा दिया जाए।

देश में कई ऐसे हिन्दू विरोधी संगठन हैं जिन्हें केवल हिंदू त्योहारों में ही सब कमियां दिखाई देती हैं जबकि अन्य धर्मो के प्रति उनकी ओर से कोई बयान तक नही आता। फिलहाल तमिलनाडु की साहसी जनता के द्वारा सर्वोच्च न्यायालय के निर्णय के विरुद्ध व्यापक आन्दोलन किया गया जिसके बाद तमिलनाडु और भारत सरकार ने इस बैन को समाप्त कर दिया। अब जल्लीकट्टू खेल (Jallikattu Festival In Hindi) पहले की ही भांति तमिलनाडु में खेला जाता है लेकिन कुछ नियमो को ध्यान में रखकर।

जल्लीकट्टू त्योहार से संबंधित प्रश्नोत्तर

प्रश्न: जल्लीकट्टू आंदोलन क्या है?

उत्तर: धर्म विरोधी ताकतों ने मिलकर सनातन त्यौहार पोंगल के अंग जल्लीकट्टू को सर्वोच्च न्यायालय से बैन करवा दिया था इसके विरुद्ध तमिलनाडु व देश की जनता ने व्यापक आंदोलन किया था

प्रश्न: जल्लीकट्टू खेल क्या है?

उत्तर: जल्लीकट्टू खेल में किसानों के द्वारा अपने बैलों की दौड़ करवाई जाती है इसी के साथ गाँव के हष्ट-पुष्ट नौजवानों को बैलों के साथ युद्ध भी करना होता है

प्रश्न: जल्लीकट्टू कब है?

उत्तर: तमिलनाडु राज्य में जल्लीकट्टू को मुख्य तौर पर 16 जनवरी के आसपास मनाया जाता है हालाँकि इसकी तैयारियां कई महीनो पहले से ही शुरू कर दी जाती है

प्रश्न: जल्लीकट्टू कैसे खेलते हैं?

उत्तर: जल्लीकट्टू में प्रतिभागियों को बैल को नियंत्रण में लेना होता है जो भी प्रतिभागी ऐसा सबसे जल्दी करने में सक्षम होता है, उसे ही विजयी घोषित किया जाता है

नोट: यदि आप वैदिक ज्ञान 🔱, धार्मिक कथाएं 🕉️, मंदिर व ऐतिहासिक स्थल 🛕, भारतीय इतिहास, शारीरिक व मानसिक स्वास्थ्य 🧠, योग व प्राणायाम 🧘‍♂️, घरेलू नुस्खे 🥥, धर्म समाचार 📰, शिक्षा व सुविचार 👣, पर्व व उत्सव 🪔, राशिफल 🌌 तथा सनातन धर्म की अन्य धर्म शाखाएं ☸️ (जैन, बौद्ध व सिख) इत्यादि विषयों के बारे में प्रतिदिन कुछ ना कुछ जानना चाहते हैं तो आपको धर्मयात्रा संस्था के विभिन्न सोशल मीडिया खातों से जुड़ना चाहिए। उनके लिंक हैं:

अन्य संबंधित लेख:

Recommended For You

लेखक के बारें में: कृष्णा

सनातन धर्म व भारतवर्ष के हर पहलू के बारे में हर माध्यम से जानकारी जुटाकर उसको संपूर्ण व सत्य रूप से आप लोगों तक पहुँचाना मेरा उद्देश्य है। यदि किसी भी विषय में मुझ से किसी भी प्रकार की कोई त्रुटी हो तो कृपया इस लेख के नीचे टिप्पणी कर मुझे अवगत करें।

प्रातिक्रिया दे

आपका ईमेल पता प्रकाशित नहीं किया जाएगा. आवश्यक फ़ील्ड चिह्नित हैं *