मैं सरोज, अपनी गंगासागर की यात्रा की कहानी आप सब के साथ साँझा करना चाहती हूं (Ganga sagar ki kahani)। बात उन दिनों की है जब ना कोई मोबाइल होता था, ना कोई एटीएम कार्ड और ना ही कोई अन्य ऑनलाइन आदि की सुविधाएं। सन 1985 में मैं, मेरे पति और घर परिवार के अन्य 6 सदस्य मिलकर गंगासागर स्नान करने गए थे (Gangasagar Yatra)।
गंगासागर का स्नान एक बहुत ही पवित्र स्नान माना जाता है (Ganga Sagar Yatra)। उस समय कोई चीज़ खरीदने के लिए ऑनलाइन पैसो के लेनदेन का सिस्टम नहीं था। यदि जेब में नगद पैसे हो तभी आप कोई चीज खरीद सकते थे अन्यथा नहीं। उस समय महिलाएं आधा पैसा अपने पास रखती थी ताकि कोई घटना घटित होने पर या आवश्यकता पड़ने पर वह पैसे उसके काम आ सके। इसलिए मैंने भी ऐसा ही किया।
गंगासागर पहुंचने पर हम सब इकट्ठे होकर स्नान करने के लिए गए। जब हम नहाने लगे तो हम महिलाओं ने सोचा कि हमारे पास जो पैसे हैं वह नहाते समय चोरी ना हो जाए। इसलिए हमने वह सारे पैसे अपने पतियों की जेब में डाल दिए। परंतु हमें यह एहसास नहीं था कि हमारे साथ दूसरे अनजान शहर में कुछ ऐसा घटित होने वाला है जिससे हम अपने आपको बहुत असहाय महसूस कर रहे होंगे।
पता नहीं किसी ने बहुत ही चालाकी और होशियारी से सारे आदमियों की पेंट को चुरा लिया। जब हम स्नान करके बाहर आए तो हम सब का सारा सामान गायब हो गया था और हम सब यह देखकर आश्चर्यचकित हो गए थे। हम सबको यही चिंता सता रही थी कि अब हम क्या खाएंगे, होटल कैसे जाएंगे, कैसे होटल वाले का पेमेंट करेंगे। हम घर वालों से भी संपर्क नहीं कर सकते थे और करते भी तो भी वे हमारे लिए कुछ नहीं कर सकते थे। ऐसे में हम सबको यही चिंता सता रही थी कि अब हम क्या करेंगे। हमारे पास तो एक भी पैसा नहीं है।
ऐसे सोचते-सोचते सुबह से शाम हो गई और ऐसे लग रहा था जैसे अब तो मांग कर ही खाना पड़ेगा। हमें हमारी लापरवाही पर गुस्सा भी आ रहा था और यही सोच रहे थे कि हमने दूसरे शहर में आकर सतर्कता क्यों नहीं बरती। भूख के मारे सबकी जान निकली जा रही थी। नया शहर नए लोग, ना कोई सहायता करने को तैयार था और सहायता मांगे भी तो किससे, कोई हमारी जान पहचान वाला थोड़ी ना था। उस समय इतनी सुविधाएं भी नहीं थी।
रात होने को आई थी और हम सब भगवान को याद कर रहे थे। कहा जाता है कि यदि भगवान को दिल से याद किया जाए तो भगवान अपने भक्तों की सुनने अवश्य आते हैं। हमारे साथ भी ऐसा ही हुआ। हम सब बैठे भगवान को याद कर ही रहे थे कि एक व्यक्ति वहां आया और उसने हमारी चिंता का कारण पूछा। हमने बहुत ही दुखी मन से अपने साथ घटित हुई सारी घटना उस सज्जन व्यक्ति को बताई। उसने हमारी व्यथा को समझा और हमे अपनी जेब से पैसे निकालकर दिए। हमने उससे रुपए लिए और हमारी यात्रा समाप्त करके अपने घर को लौट आए।
घर लौटते ही सबसे पहले हमने उस आदमी के पते पर ड्राफ्ट बनाकर पैसों का भेजा और उसे एक पत्र भी लिखा। उस पत्र में हमने उसका बहुत-बहुत धन्यवाद किया। इस तरह हमारी यात्रा उस व्यक्ति की वजह से सफल हो पाई। इस यात्रा से हमें यह चीज सिखने को मिली कि यात्रा के दौरान मनोरंजन के साथ-साथ हमें सतर्क भी रहना चाहिए, तभी हमारी यात्रा सफल होती है।
— सरोज देवी जी की कहानी