नारायणी देवी जो अपनी रामेश्वरम की यात्रा पर अपना सबसे जरुरी बैग दिल्ली एअरपोर्ट पर ही भूल गयी

मैं नारायणी देवी, अपने बेटे राजेश, पोते प्रेरक और बेटी सरोज के साथ रामेश्वरम की यात्रा पर गयी थी (Rameshwaram Temple)। वैसे तो मेरे बेटे को वहां मेरे पोते की आंखों की टेस्टिंग के लिए जाना था परंतु वह मुझे और अपनी बहन को भी जबरदस्ती साथ ले गया था और कहने लगा कि आपको रामेश्वरम के महाज्योतिर्लिंग के दर्शन (Rameshwaram Jyotirlinga) और मदुरई में मीनाक्षी मंदिर (Minakshi Mandir) के दर्शन करवाऊंगा।

हम चारों को रामेश्वरम के लिए दिल्ली के हवाईअड्डे से प्लेन पकड़ना था (Delhi to Rameshwaram Yatra in Hindi)। मेरी बहू ने हमारी सारी तैयारियां बहुत अच्छे से कर दी थी। मैं और मेरी बेटी बहुत उत्सुक थे। यह हमारी बहुत ही खास यात्रा थी क्योंकि एक तो इतने बड़े ज्योतिर्लिंग के दर्शन और ऊपर से जीवन में एक बार फ्लाइट में बैठने की तमन्ना थी वह भी पूरी होने जा रही थी।

हम सब हवाई अड्डे पर पहुंच गए और मेरे बेटे ने सारा सामान हवाई अड्डे पर जमा करा दिया। हम दोनों को तो कुछ पता नहीं था और मेरा पोता छोटा था तो सारी जिम्मेदारियां मेरे बेटे पर ही थी। इसी भाग दौड़ में हमसे एक बैग जो कि छोटा सा था वह कही छूट गया परंतु यह छोटा सा बैग ही बहुत काम का था क्योंकि इसमें हमारे सभी के डाक्यूमेंट्स थे और उसमें मेरी और मेरी बेटी की दवाइयां भी थी और मेरे पोते की डॉक्टरों की पर्चियां भी।

हम सभी बहुत उत्साहित थे और अपनी यात्रा का भरपूर आनंद उठा रहे थे। इसी कारण जो बैग हम भूल गए थे वह तो हमें याद ही नहीं था। इसी तरह हम चेन्नई पहुँच गए व जब हम होटल में पहुंचे और डॉक्यूमेंट दिखाने के लिए वह बैग देखने लगे तब हमें वह बैग कही नही मिला। उस समय मानों कि जैसे हमारे हाथ पांव ही फूल गए हो। हम सभी यही याद करने को कोशिश कर रहे थे कि हम उस बैग को कहां भूल गए परंतु हमें याद ही नहीं आ रहा था।

जब हम एयरपोर्ट से होटल आ रहे थे तब हम रास्ते में दो जगह रुके थे, एक जगह जूस पीने के लिए व एक जगह चाय पीने के लिए। समझ नहीं आ रहा था कि बैग कहीं वहां तो नहीं छूट गया। हम सभी ने बहुत याद करने की कोशिश की परंतु हमें याद नहीं आ रहा था। हमे घर भी फोन करके पूछा की कही बैग घर पर ही ना रह गया हो लेकिन मेरी बहु ने बताया कि उसने एक दम याद से वह बैग डाला था। हम सबको डाक्यूमेंट्स की बहुत चिंता सता रही थी व साथ ही होटल वाले भी बिना डॉक्यूमेंट के कमरा देने से मना कर रहे थे।

हम सभी लंबी यात्रा के बाद बहुत थक भी चुके थे और आराम भी करना चाहते थे। साथ ही हमारे सारे जरूरी कागजात, सारी दवाइयां और डॉक्टर की सारी पर्चियां जो बैग में थी, उसकी चिंता भी लगातार हमें सताए जा रही थी। हमें ज्यादा चिंता डाक्यूमेंट्स की थी क्योंकि दवाइयां तो मेडिकल स्टोर से वैसे भी मिल जाएगी परंतु डाक्यूमेंट्स सारे दोबारा बनाने पड़ेंगे और सरकारी कामों में बहुत समय भी लगता है।

हमारी हालत देखकर होटल वालो ने हमे कमरा तो दे दिया लेकिन हम सभी चिंता में ही थे। कमरे में जाते ही हम सबकी आंख लग गई क्योंकि हम पूरी तरह से थक चुके थे और मैंने तो शाम से दवाइयां भी नहीं ली थी। जैसे ही हमारी आंख लगी उसी समय दिल्ली एयरपोर्ट से मेरे बेटे के मोबाइल पर फोन आया और उन्होंने बताया कि आपका एक बैग एअरपोर्ट पर ही छूट गया है। यह सुनते ही हम सबकी मानो सांस में सांस आ गयी हो और ऐसे महसूस हुआ जैसे सारी थकान एक दम से ही उतर गई हो।

एअरपोर्ट के अधिकारीयों ने हमें बताया कि आपको बैग की चिंता करने की कोई आवश्यकता नहीं है, आपका बैग बिल्कुल सुरक्षित है। आप आराम से अपनी यात्रा का आनंद उठा सकते हैं और वापस जाते समय अपना बैग सुरक्षित ले जा सकते हैं। यह सुनकर हम सब की चिंता दूर हो गई और हम निश्चिंत हो गए कि हमारा बैग बिल्कुल सुरक्षित है।

थोड़ी देर आराम करने के बाद हमने बाजार से नयी दवाईयां भी खरीद ली। पोते के डॉक्टर की पर्ची की फोटो मंगवा ली। पैसो की तो कोई चिंता नही ती क्योंकि वो हम सबके पास थे। फिर हमने निश्चिंत होकर अपनी यात्रा का भरपूर आनंद उठाया। यात्रा समाप्त होने पर जब हम दिल्ली वापस पहुंचे तब हमने अपना बैग ले लिया और हम चारों ने एयरपोर्ट के अधिकारीयों का बहुत-बहुत धन्यवाद किया। इसी तरह मेरी यह यात्रा मेरे जीवन की एक यादगार यात्रा बन गई।

— नारायणी देवी की कहानी

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लेखक के बारें में: कृष्णा

सनातन धर्म व भारतवर्ष के हर पहलू के बारे में हर माध्यम से जानकारी जुटाकर उसको संपूर्ण व सत्य रूप से आप लोगों तक पहुँचाना मेरा उद्देश्य है। यदि किसी भी विषय में मुझ से किसी भी प्रकार की कोई त्रुटी हो तो कृपया इस लेख के नीचे टिप्पणी कर मुझे अवगत करें।

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