मत्स्य अवतार कब हुआ? जाने मत्स्य अवतार की कहानी

मत्स्य अवतार (Matsya Avatar In Hindi)

भगवान विष्णु के कुल दस पूर्ण अवतार हुए हैं जिनमें से मत्स्य अवतार (Matsya Avatar In Hindi) उनका प्रथम अवतार था। यह अवतार उन्होंने एक कल्प के अंत तथा एक नए कल्प के निर्माण के समय लिया था अर्थात एक युग के अंत होने पर जब नया युग शुरू होता है तब उन्होंने इस अवतार को लिया था। कल्प/ युग वह होता हैं जिसमें चारों युग (सतयुग, त्रेतायुग, द्वापरयुग तथा कलियुग) आते हैं।

जब पिछले कल्प के कलियुग का अंत आने वाला था तथा नए कल्प के सतयुग का उदय होने वाला था, उस समय भगवान श्रीहरि ने सृष्टि के नव निर्माण के उद्देश्य से मत्स्य अवतार लिया था। आज हम आपके साथ इसी मत्स्य अवतार की कथा (Matsya Avatar Story In Hindi) साझा करने जा रहे हैं।

मत्स्य अवतार (Matsya Avatar In Hindi)

कल्प के अंत के समय एक महान राजा सत्यव्रत राज किया करते थे जो भगवान विष्णु के बहुत बड़े भक्त तथा धर्म के पालक थे। एक दिन वे प्रातःकाल स्नान करने के पश्चात नदी में सूर्य देव को जल अर्पण कर रहे थे। तभी हाथ में जल लेते समय उसमे एक छोटी मछली भी आ गयी। जब वे वापस उस मछली को समुंद्र में डालने लगे तभी वह मछली राजा से बात करने लगी।

उस मछली ने राजा से विनती की कि वह उसे वापस समुंद्र में ना छोड़े। यदि वे उसे वापस समुंद्र में छोड़ देंगे तो बड़ी मछलियाँ उसे खा जाएगी। उसने कहा कि उसने सुना हैं कि राजा सत्यव्रत बहुत उदारवादी है, इसलिये वह उसे अपने पास सुरक्षित रखे। यह सुनकर राजा सत्यव्रत अत्यधिक प्रसन्न हुए तथा उस मछली से कहा कि उनका राजभवन बहुत बड़ा है तथा वह छोटी सी मछली वहां आराम से रहेगी।

  • मत्स्य का महल में आना

इसके बाद राजा सत्यव्रत उस मछली को लेकर अपने राजभवन में आ गए तथा सैनिकों से उस मछली को एक सोने के पात्र में रखने का आदेश दिया। जैसे ही उन्होंने उस मछली को उस पात्र में डाला तो वह अपने आकार में बड़ी हो गयी जिससे वह पात्र उसके लिए छोटा पड़ गया। यह देखकर उस मछली ने राजा से उसे बड़े पात्र में रखने की याचना की।

  • मछली का बड़ा होते जाना

राजा सत्यव्रत ने भी बिना देरी किये मछली के लिए बड़ा पात्र मंगवाया तथा उसे उस पात्र में रखा। कुछ देर बाद वह पात्र भी मछली के लिए छोटा पड़ गया क्योंकि अब वह पहले से भी ज्यादा विशाल हो चुकी थी। यह देखकर राजा सत्यव्रत आश्चर्यचकित तो हुए लेकिन उन्होंने उसके लिए एक और बड़ा पात्र मंगवाया तथा उसे उसमे डलवा दिया। कुछ समय बाद जब वह पात्र भी छोटा पड़ गया तो उससे भी बड़ा पात्र मंगवाया गया।

  • राजा सत्यव्रत का अहंकार टूटना

यह देखकर राजा विस्मित रह गए थे तथा उन्हें अपनी गलती का अनुभव हो गया था। उन्होंने मछली से कहा कि उन्होंने अहंकारवश उसे तुच्छ प्राणी की संज्ञा दी थी तथा अब उन्हें अनुभव हो चुका हैं कि यह महल भी उसके लिए छोटा है। इसलिये राजा ने उस मछली से हाथ जोड़कर क्षमा याचना की तथा पुनः उसे समुंद्र में छोड़ आये।

मत्स्य अवतार की कथा (Matsya Avatar Story In Hindi)

जैसे ही राजा सत्यव्रत ने उस मछली को पुनः समुंद्र में छोड़ा तब उसने अपना आकार इतना ज्यादा विशाल कर लिया कि वह समुंद्र से भी बड़ी हो गयी। यह देखकर राजा सत्यव्रत को अहसास हो गया कि यह मछली कोई और नही बल्कि स्वयं भगवान विष्णु का ही रूप है क्योंकि ऐसी दिव्य शक्ति केवल उन्ही में ही हो सकती है। इसलिये उन्होंने उसके सामने हाथ जोड़कर अपने असली रूप में आने की प्रार्थना की।

राजा सत्यव्रत के निश्छल मन तथा सत्य वचन को सुनकर भगवान विष्णु ने मत्स्य अवतार में उन्हें दर्शन दिए जिसका ऊपरी भाग श्रीहरि तथा निचला भाग मत्स्य का था। उन्होंने सत्यव्रत से कहा कि अब प्रलय का समय निकट आ चुका है तथा अब से सात दिन के पश्चात एक महाप्रलय आएगी जिसमें संपूर्ण पृथ्वी डूब जाएगी तथा जीवन का अंत हो जायेगा।

उन्होंने राजा सत्यव्रत से कहा कि उस समय श्रीहरि की कृपा से एक विशाल नौका उनके पास आएगी। उन्हें उस नौका में सप्त ऋषि, सभी प्रकार के प्राणियों के सूक्ष्म रूप और सभी वनस्पतियों, पेड़-पौधों तथा अन्य वस्तुओं के बीज संग्रहित करके रखने होंगे। इसके पश्चात श्रीहरि पुनः मत्स्य रूप में उनके पास आएंगे जिसके सिर के पास एक विशाल सींग होगा। सत्यव्रत को वासुकी नाग की सहायता से उस नौका को उस मत्स्य के सींग से बांध देना है। इसके पश्चात वह मत्स्य उस प्रलय से नौका को पार लगवाएँगी व उसमें उपस्थित सभी की रक्षा करेगी।

मत्स्य अवतार कब हुआ?

इसके सात दिन के पश्चात सृष्टि में महाप्रलय आ गयी। राजा सत्यव्रत भगवान विष्णु के कहेनुसार सप्त ऋषियों समेत अन्य सभी वस्तुओं को अपने साथ लेकर एक ऊँचें पहाड़ की चोटी पर चढ़ गए। तभी एक विशाल नाव उनके पास आई जिसमें उन्होंने समस्त बीजों तथा प्राणियों के सूक्ष्म शरीर को रखा। इसके पश्चात वे सभी उस नाव में बैठे तथा वह नाव प्रलय में तैरती हुई आगे बढ़ने लगी।

जब धीरे-धीरे प्रलय ने भयानक रूप लिया तब उनकी नौका भी हिलने-डुलने लगी तथा पानी अंदर आने लगा। उस समय भगवान विष्णु मत्स्य अवतार (Bhagwan Vishnu Ka Matsya Avatar) में वहां आये जिसका एक विशाल सींग था। वासुकी नाग भी उनके साथ आया तथा सत्यव्रत ने उसकी सहायता से नाव को मछली के सींग से बांध दिया।

इसके बाद सृष्टि में प्रलय आती रही तथा सबका अंत हो गया। प्रलय के शांत होने के पश्चात वह नाव एक किनारे धरती पर पहुंची तथा भगवान विष्णु ने पुनः अपने मत्स्य अवतार में दर्शन दिए। अब सृष्टि में केवल सत्यव्रत राजा (मनु), सप्तऋषि तथा अन्य वस्तुएं शेष थी जो वे अपने साथ लाये थे।

मत्स्य अवतार का रहस्य

अंत में भगवान विष्णु ने मनु को अपने मत्स्य अवतार (Bhagwan Vishnu Ka Matsya Avatar) लेने का उद्देश्य प्रकट किया। उन्होंने उसे बताया कि जिस प्रकार एक किसान अपनी फसल की कटाई के समय कुछ बीजों को अपने पास रख लेता है तथा उसके पश्चात उन्हीं बीजों की सहायता से पूरा धन-धन्य पुनः उगाता है। उसी प्रकार सृष्टि के अंत के पश्चात उसके पुनः निर्माण के लिए कुछ बीजों का रखा जाना आवश्यक था।

भगवान विष्णु ने मनु को सभी चीज़ों के बीज रखने का आदेश दिया था चाहे वह दुःख देने वाली हो या सुख। उदाहरण के तौर पर पुष्प तथा कांटे दोनों, कोयल तथा कौवा दोनों क्योंकि सृष्टि में हर जीव का अपना औचित्य तथा महत्ता है। इसके साथ ही सप्त ऋषि का चुनाव इसलिये महत्वपूर्ण था क्योंकि ज्ञान के बिना मनुष्य अधुरा है। इसलिये सृष्टि में संतुलन स्थापित करने के उद्देश्य से उनका बचना आवश्यक था।

इसके साथ ही भगवान विष्णु ने मनु को चारों वेद प्रदान किये जिनकी रक्षा स्वयं श्रीहरि ने की थी। उन्होंने चारों वेदों को अपने मुख में दबाकर रखा था तथा अब मनु को सृष्टि के कल्याण के लिए लौटा दिए थे।

मनुस्मृति लिखने का आदेश

अंत में भगवान विष्णु ने अपने धाम को जाने से पहले मनु को आदेश दिया कि चूँकि वह प्राचीन कल्प से बचा हुआ एक मात्र प्राणी शेष है तो वह उस कल्प की सभी अच्छी बाते एक पुस्तक में लिखे। इसके साथ ही उस पुस्तक में उन बातों का भी उल्लेख करे जिस कारण उस सृष्टि का अंत हुआ तथा एक नयी सृष्टि का निर्माण संभव हो सका। इस पुस्तक की सहायता से आने वाले कल्प में लोग प्रेरणा ले सकेंगे।

इस पुस्तक को मनुस्मृति के नाम से जाना जायेगा अर्थात मनु को जो-जो भी याद रहा वह उसने उस पुस्तक में लिख दिया। यह कहकर भगवान विष्णु के मत्स्य अवतार (Matsya Avatar In Hindi) का औचित्य पूर्ण हुआ तथा वे अपने धाम को लौट गए।

मत्स्य अवतार से संबंधित प्रश्नोत्तर

प्रश्न: भगवान विष्णु ने मत्स्य अवतार क्यों लिया था?

उत्तर: जब पिछले युग के कलियुग का अंत हने वाला था तब नए युग के सतयुग का निर्माण करने हेतु भगवान विष्णु ने मत्स्य अवतार लिया था इसके माध्यम से उन्होंने मानव जीवन सहित अन्य जीव-जंतुओं को नए युग में सुरक्षित पहुंचाने का कार्य किया था

प्रश्न: मत्स्य अवतार में मनु कौन था?

उत्तर: मत्स्य अवतार में मनु पिछले युग के राजा सत्यव्रत थे उन्होंने ही भगवान विष्णु के आदेश पर सभी जीव-जंतुओं, पेड़-पौधों के बीज एकत्रित कर उन्हें अगले युग में पहुंचाने का कार्य किया था

प्रश्न: धरती पर पहला अवतार किसका था?

उत्तर: धरती पर पहला अवतार भगवान विष्णु ने मत्स्य के रूप में लिया था उन्होंने ही राजा सत्यव्रत के माध्यम से इस युग के सतयुग की शुरुआत की थी जिनका एक और नाम मनु था

प्रश्न: मत्स्य के अवतार में कौन सी मछली थी?

उत्तर: भगवान विष्णु ने मत्स्य के अवतार में रोहिता नामक मछली का रूप लिया था इसके माध्यम से ही राजा मनु की नाव सुनामी से बच पाई थी

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लेखक के बारें में: कृष्णा

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