भगवान परशुराम की पूजा क्यों नहीं होती? जाने भगवान परशुराम की कहानी

भगवान परशुराम का इतिहास

आज हम आपको भगवान परशुराम का इतिहास (Parshuram In Hindi) बताने वाले हैं। भगवान परशुराम का जन्म भगवान विष्णु के दस पूर्ण अवतारों में से छठे अवतार के रूप में हुआ था। इस अवतार का मुख्य उद्देश्य पृथ्वी से पाप का अंत करना, भगवान विष्णु के भविष्य के अवतारों के समय अपनी निर्धारित भूमिका को निभाना तथा अंतिम विष्णु अवतार कल्कि को शिक्षा प्रदान करना है।

भगवान परशुराम की भूमिका को देखते हुए उनका जीवनकाल कलियुग के अंत तक निर्धारित है। आज हम आपके सामने भगवान परशुराम की कहानी (Parshuram Ki Kahani) शुरू से अंत तक रखने वाले हैं। इसके माध्यम से हम उनके जीवनकाल में घटित हुई प्रमुख घटनाओं का वर्णन करेंगे।

परशुराम का इतिहास (Parshuram In Hindi)

भगवान परशुराम का जन्म ब्राह्मण कुल में हुआ था। उनके पिता ब्राह्मण जमदग्नि तथा माता क्षत्रिय रेणुका थी। इसलिये उनके अंदर ब्राह्मण तथा क्षत्रिय दोनों के गुण थे। बचपन में उनका नाम राम रखा गया था किंतु भगवान शिव से प्राप्त अस्त्र परशु/ कुल्हाड़ी के कारण उन्हें परशुराम के नाम से जाना जाने लगा। वर्तमान में उनका जन्मस्थल मध्य प्रदेश राज्य के इंदौर में जनापाव नामक पहाड़ियां है।

भगवान विष्णु के दस पूर्ण अवतार है जिनमें से परशुराम उनके छठे अवतार थे। सामान्य तौर पर भगवान विष्णु अपना अगला पूर्ण अवतार तभी लेते है जब उससे पूर्व का अवतार उनके अंदर समा जाता है। हालाँकि परशुराम एकलौता ऐसा पूर्ण अवतार है जो अगले चार अवतारों के समयकाल का भी साक्षी था और रहेगा। इस कारण से उन्हें पूर्ण अवतार की जगह अंशावतार भी कह दिया जाता है जिसका उल्लेख रामायण में देखने को मिलता है।

परशुराम को भार्गव राम, जामदग्न्य राम और रामभद्र के नाम से भी जाना जाता है। उनका जन्म वैशाख माह के शुक्ल पक्ष की तृतीय को हुआ था। इसी दिन हम सभी परशुराम जयंती भी मनाते हैं। उनके चार बड़े भाई थे जिनके नाम रुक्मवाण, सुषेण, वसु व विश्वासु थे। हालाँकि भगवान परशुराम के आजीवन ब्रह्मचारी रहने का उल्लेख देखने को मिलता है। फिर भी कुछ जगह माँ लक्ष्मी के रूप धरणी को उनकी पत्नी के रूप में चित्रित किया गया है।

आइए भगवान परशुराम के जीवन में घटी प्रमुख घटनाओं के माध्यम से परशुराम का इतिहास (Parshuram In Hindi) हैं।

परशुराम ने अपनी मां को क्यों मारा?

एक बार परशुराम की माता रेणुका स्नान करने नदी पर गयी हुई थी। वहां उनका मन एक राजा पर आ गया। जब उनके पिता जमदग्नि को यह बात पता चली तो उन्होंने परशुराम को अपनी माँ का मस्तक काटने का आदेश दिया। पिता की आज्ञा पाकर परशुराम ने अपनी माँ का सिर धड़ से अलग कर दिया। इससे प्रसन्न होकर उनके पिता ने उनसे वर मांगने को कहा। अपने वर में परशुराम ने पुनः अपनी माता को जीवित करने को कहा। इस प्रकार उनकी माता पुनः जीवित हो उठी थी।

परशुराम ने क्षत्रियों का विनाश क्यों किया था?

परशुराम की कहानी (Parshuram Ki Kahani) में संपूर्ण क्षत्रियों का नाश करने की बात कोरी अफवाह है। यह केवल और केवल लोगों के बीच भ्रम उत्पन्न करने के लिए फैलाया गया एक झूठ है। यदि परशुराम ने भूमि को क्षत्रिय विहीन कर ही दिया था तो उसी समय भगवान श्रीराम का कुल कैसे जीवित था जो क्षत्रिय जाति से ही था। ऐसे में आइए इस कथा के बारे में जान लेते हैं।

एक बार राजा सहस्त्रबाहु अपने सैनिकों के साथ ऋषि जमदग्नि के आश्रम में आये थे। तब उनका मन ऋषि जमदग्नि की गाय कामधेनु पर आ गया था लेकिन जमदग्नि ने उन्हें वह गाय देने से मना कर दिया। अहंकार में राजा सहस्त्रबाहु ने आश्रम को तहस-नहस कर दिया तथा वह गाय लेकर चले गए। जब परशुराम को इस बात का ज्ञान हुआ तो उन्होंने सहस्त्रबाहु का वध कर दिया तथा कामधेनु को वापस ले आये।

उसके पश्चात अपने पिता के कहने पर परशुराम तीर्थयात्रा पर चले गए। पीछे से सहस्त्रबाहु के पुत्रों ने जमदग्नि का वध कर दिया। जब परशुराम तीर्थयात्रा से वापस लौटे तब अपने पिता की हत्या से इतने क्रोधित हो उठे कि उन्होंने 21 बार राजा सहस्त्रबाहु के हैहय क्षत्रिय वंश का पृथ्वी से समूचा विनाश कर दिया। इसके पश्चात उन्होंने सन्यास ले लिया।

यह एक मिथ्या बात हैं कि भगवान परशुराम ने संपूर्ण पृथ्वी से पूर्णतया 21 बार क्षत्रियों का संहार कर दिया था अर्थात पृथ्वी को क्षत्रिय जाति रहित कर दिया था। दरअसल उन्होंने क्षत्रिय जाति के हैहय वंश का इस पृथ्वी से 21 बार संहार किया था क्योंकि उन्होंने उनके पिता का वध किया था।

रामायण में परशुराम

कुछ समय पश्चात अयोध्या में भगवान विष्णु ने अपना सातवाँ अवतार श्रीराम के रूप में लिया। जब श्रीराम अपने गुरु विश्वामित्र के साथ माता सीता के स्वयंवर में आये थे तब उन्होंने शिव धनुष को तोड़ डाला था। शिव धनुष के टूटने की गर्जना तीनों लोकों में फैल गयी थी तथा महेंद्रगिरी पर्वत पर तपस्या कर रहे परशुराम को भी यह सुनी थी।

उसके पश्चात वे क्रोध में राजा जनक की नगरी पहुंचे तथा शिव धनुष तोड़ने वाले का नाम पूछा। तब उनकी श्रीराम के छोटे भाई तथा शेषनाग के अवतार लक्ष्मण से तीखी बहस हुई लेकिन जब उन्हें यह ज्ञान हुआ कि श्रीराम स्वयं भगवान विष्णु का सातवाँ रूप हैं तो वे वहां से चले गए। रामायण में यह बताया गया है कि जब भगवान परशुराम को श्रीराम के अंदर भगवान विष्णु की छवि दिखी तो उन्हें पता चल गया कि श्रीहरि ने अपना पूर्ण अवतार ले लिया है। इसके बाद उन्होंने सबकुछ छोड़ दिया था और वहां से चले गए थे।

महाभारत में परशुराम

श्रीराम के पश्चात भगवान विष्णु ने द्वापर युग में श्रीकृष्ण के रूप में आठवां अवतार लिया। उस समय श्रीकृष्ण का मुख्य उद्देश्य महाभारत के युद्ध का नेतृत्व करना था। उस युद्ध के कई महान योद्धाओ को भगवान परशुराम ने ही शिक्षा दी थी। भगवान परशुराम के द्वारा भीष्म पितामह, गुरु द्रोणाचार्य तथा कर्ण को अस्त्र-शस्त्र की शिक्षा दी गयी थी।

एक बार उनका अपने ही शिष्य भीष्म पितामह से भयंकर युद्ध हुआ था। यह युद्ध भगवान परशुराम ने काशी की राजकुमारी अंबा को न्याय दिलवाने के लिए लड़ा था। चूँकि भीष्म को अपनी इच्छा के अनुसार मृत्यु का वरदान था, इसलिये इस युद्ध में कोई परास्त नही हुआ था। अंत में देवताओं व इंद्र के द्वारा यह युद्ध रुकवा दिया गया था।

महाभारत के एक और महान योद्धा कर्ण ने भगवान परशुराम से झूठ बोलकर शिक्षा ग्रहण की थी। कर्ण के इस असत्य से भगवान परशुराम इतने ज्यादा क्रोधित हो गए थे कि उन्होंने उसे श्राप दिया था कि जब भी उसे अपनी इस विद्या की सबसे ज्यादा आवश्यकता होगी उस समय वह उसको पूर्णतया भूल जायेगा।

परशुराम का कोंकण बसाना

कहते हैं कि एक समय भारत के पश्चिमी तट की भूमि जलमग्न थी। तब भगवान परशुराम ने अपनी कुल्हाड़ी से समुंद्र के पानी पर प्रहार किया तथा उसे पीछे धकेल दिया। इससे वहां भूमि का निर्माण हुआ जिसे कोंकण की भूमि कहा गया। इसमें वर्तमान का गोवा और केरल, महाराष्ट्र तथा गुजरात के कुछ भूभाग सम्मिलित है। गोवा के निर्माण में भगवान परशुराम की अतिमहत्वपूर्ण भूमिका थी। इसलिये आज भी गोवा के निर्माता के रूप भगवान परशुराम को धन्यवाद किया जाता है।

भगवान परशुराम व भगवान कल्कि अवतार

इस लेख में आप भगवान परशुराम का इतिहास (Parshuram In Hindi) जान रहे हैं लेकिन उसके साथ-साथ भगवान परशुराम का भविष्य भी जान लीजिए। दरअसल भगवान परशुराम चिरंजीवी हैं तथा उनका अंत कलियुग की समाप्ति के साथ ही होगा। यह वह समय होगा जब भगवान विष्णु अपना अंतिम तथा दसवां अवतार कल्कि के रूप में लेने इस पृथ्वी पर आयेंगे।

उस समय दुनिया में अधर्म बहुत ज्यादा बढ़ चुका होगा। ऐसे में भगवान कल्कि को अस्त्र-शस्त्र की विद्या देने का भार भगवान परशुराम पर ही होगा। एक तरह से भगवान परशुराम भगवान कल्कि के लिए गुरु की भूमिका निभाएंगे। तब जाकर इस मृत्यु लोक पर परशुराम अवतार का कर्तव्य पूर्ण माना जायेगा।

परशुराम की मृत्यु कैसे हुई?

जैसा कि हमनें आपको ऊपर ही बताया कि भगवान परशुराम का कर्तव्य अभी भी पूर्ण नही हुआ हैं। वे भगवान विष्णु के छठे अवतार थे जबकि इस कल्प में भगवान विष्णु को कुल दस अवतार लेने हैं। भगवान परशुराम का कर्तव्य केवल अपने समय काल तक का ही नही था अपितु उनकी भूमिका भगवान विष्णु के सातवें अवतार (श्रीराम के समय) और आठवें अवतार (श्रीकृष्ण के समय) भी रही हैं।

इसी के साथ उनकी मुख्य भूमिका भगवान विष्णु के अंतिम अवतार कल्कि भगवान को शिक्षा देने और अस्त्र-शस्त्र चलाने की विद्या देने की होगी। भगवान कल्कि को संपूर्ण ज्ञान देने के बाद भगवान परशुराम का कर्तव्य पूर्ण हो जाएगा और वे इस मृत्यु लोक को छोड़कर श्रीहरि में समा जाएंगे। इस तरह से आज आपने भगवान परशुराम की कहानी (Parshuram Ki Kahani) व उनके जीवन के हरेक महत्वपूर्ण घटनाक्रम के बारे में जान लिया है।

परशुराम की कहानी से संबंधित प्रश्नोत्तर

प्रश्न: परशुराम के गुरु कौन थे?

उत्तर: भगवान परशुराम के गुरु स्वयं भगवान शिव थे शिवजी ने ही उन्हें परशु अस्त्र प्रदान किया था जिसके बाद उनका नाम राम से परशुराम पड़ गया था साथ ही उन्हें अपने पिता जमदग्नि से भी शुरूआती शिक्षा मिली थी

प्रश्न: परशुराम किस जाति के थे?

उत्तर: परशुराम ब्राह्मण जाति के थे उनके पिता जमदग्नि ब्राह्मण जाति से थे जबकि माता रेणुका क्षत्रिय समाज से थी संतान को उसके पिता की ही जाति से ही जाना जाता है जिस कारण उनका संबंध ब्राह्मण जाति से था

प्रश्न: परशुराम के पिता कौन थे?

उत्तर: परशुराम के पिता का नाम महर्षि जमदग्नि था उनके पिता की राजा सहस्त्रबाहु के पुत्रों ने हत्या कर दी थी इसके फलस्वरूप उन्होंने 21 बार उनके कुल का नाश किया था

प्रश्न: परशुराम का वध किसने किया?

उत्तर: पहली बात तो परशुराम चिरंजीवी है और उन्हें कलियुग के अंत तक जीवित रहना है दूसरा परशुराम भगवान है और भगवान का वध नहीं होता है वे अपनी इच्छा से अपने प्राण त्यागते हैं

प्रश्न: भगवान परशुराम की पूजा क्यों नहीं होती?

उत्तर: ऐसा नहीं है कि भगवान परशुराम की पूजा नहीं होती है हालाँकि भगवान विष्णु के अभी तक नौ पूर्ण अवतार हो चुके हैं। इनमें से दो पूर्ण अवतारों श्रीराम और श्रीकृष्ण की पूजा मुख्य रूप से की जाती है जबकि अन्य सात अवतारों की कम

प्रश्न: परशुराम की माता किस जाति की थी?

उत्तर: परशुराम की माता क्षत्रिय जाति की थी उनका नाम रेणुका था जिनका विवाह ऋषि जमदग्नि के साथ हुआ था इसी से उन्हें पाचवें पुत्र के रूप में परशुराम की प्राप्ति हुई थी

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लेखक के बारें में: कृष्णा

सनातन धर्म व भारतवर्ष के हर पहलू के बारे में हर माध्यम से जानकारी जुटाकर उसको संपूर्ण व सत्य रूप से आप लोगों तक पहुँचाना मेरा उद्देश्य है। यदि किसी भी विषय में मुझ से किसी भी प्रकार की कोई त्रुटी हो तो कृपया इस लेख के नीचे टिप्पणी कर मुझे अवगत करें।

1 Comment

  1. bhgwan ka janm baikhuph hinduo ke dwara jayada ho jata hai. hamre writer bhakti bhawna me pagal ho ke apni bichar dhara ke adhar pe kishi bhi sadhu sant mahila ko bhgwan bana dete hai. ye tab ki bat hogi job paruram ek rishi ke ghar janm lete hai balsali honge inki father ki pahuch mahadev tak thi.hoga kya mahadev nahi jante ki ye bishnu hai aur innhe sastra vidjya ki kya jarurat hai ,mera bhisnu autar bolna galat hai. dusri bat ye ram ke time tapasya kar rahe the jaise hi dhanush tutne ki awaj aae ye waha pahuch gaye aut puche ki kisne toda dhanush ko to yaha bishnu ka dubble role ho gata hai es parsuram ko pata tha ki orginal bishnu aayenge aur wahi es dhanush ko tor sakte hai .aur rajputo ka ek bansh hhh ka nas kiye hai , apne father ke mritu ka badla lene ke liye , mai innhe bishnu ke autar nahi manta hu sammniye sadhu manta hu aur bhgwan mahadev se trening liye the to kishi ko bhi padha sakte hai unhe to karn bhi dhokha de diya ki mai rajput nahi hu aur dhokha se sastra vidhya hasil kar liya kya shri ram me aisha aagantaa dikha hai.
    jai jagannath.

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