आज हम वट सावित्री व्रत कथा (Vat Savitri Vrat Katha) पढ़ेंगे जो एक पतिव्रता स्त्री के धर्म से जुड़ी हुई है। वह माता सावित्री ही थी जो अपने सुहाग की रक्षा करने के लिए मृत्यु के देवता यमराज तक से लड़ गई थी। उनके द्वारा अपने सुहाग की रक्षा करने के फलस्वरूप महिलाएं आज तक वट सावित्री का व्रत रखती हैं और वट वृक्ष की पूजा करती हैं।
ऐसा करने से उनके पति की आयु लंबी होती है और वे स्वस्थ रहते हैं। वट वृक्ष को बरगद का पेड़ भी कहा जाता है। अब यहाँ एक प्रश्न यह उठता है कि इस व्रत में महिलाएं बरगद के वृक्ष की ही पूजा क्यों करती हैं? इसके लिए आपको वट सावित्री व्रत की कथा (Vat Savitri Vrat Katha In Hindi) को जानना होगा। तो आइए संपूर्ण कथा के बारे में जान लेते हैं।
Vat Savitri Vrat Katha | वट सावित्री व्रत कथा
वट सावित्री व्रत की कथा लकड़हारे सत्यवान और राजकुमारी सावित्री से जुड़ी हुई है। सावित्री भारत के महान राजा अश्वपति की पुत्री थी जिसका विवाह सत्यवान से हुआ था। एक दिन सावित्री अपने राजभवन के पास के वन में घूमने गई थी तो वहाँ उसे सत्यवान दिखाई दिए थे। पिछले कुछ समय से अश्वपति अपनी पुत्री सावित्री के लिए एक योग्य वर की खोज में थे लेकिन सावित्री को कोई पसंद नहीं आ रहा था।
जब सावित्री ने सत्यवान को देखा तो उसे देखकर ही वह आकर्षित हो गई थी। उसने उसी समय ठान लिया था कि वह इसी से ही विवाह करेगी। यह निर्णय लेकर वह पुनः राजभवन आ गई थी। इसके बाद जो कुछ घटित हुआ, आइए उसके बारे में जान लेते हैं।
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सावित्री का निर्णय
सावित्री ने जब से सत्यवान को देखा था तब से ही उसने उसे पति मान लिया था। हालाँकि वह कोई राजकुमार ना होकर एक लकड़हारा था। इसलिए उसके मन में यह बेचैनी थी कि उसके पिता सत्यवान से उसके विवाह की हाँ करेंगे या नहीं। किंतु सावित्री अपने निर्णय पर अडिग थी और उसने किसी भी स्थिति में सत्यवान के साथ ही विवाह करने का सोच लिया था। मन पक्का कर सावित्री ने अपना निर्णय अश्वपति को सुना दिया था। अश्वपति यह सुनकर आश्चर्यचकित रह गए थे।
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सत्यवान का अल्पायु होना
उसी समय देवर्षि नारद मुनि वहाँ से गुजर रहे थे और वे राजा अश्वपति के राजभवन पधारे। अश्वपति ने अपनी दुविधा नारद मुनि के सामने रखी। नारद मुनि ने अपनी दिव्य दृष्टि से देखा कि सत्यवान के पिता पहले राजा हुआ करते थे लेकिन किसी परिस्थिति में उनसे यह छीन गया था। हालाँकि उन्होंने यह भी पता लगाया कि सत्यवान अल्पायु है और आज से लगभग एक वर्ष के पश्चात उसकी मृत्यु हो जाएगी।
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सत्यवान सावित्री का विवाह
जब सावित्री को इस बारे में पता चला तो भी वह सत्यवान के साथ ही विवाह करने को अडिग रही। अश्वपति व नारद मुनि ने उसे बहुत समझाया कि सत्यवान की मृत्यु के बाद उसे विधवा का जीवन व्यतीत करना पड़ेगा लेकिन सावित्री नहीं मानी। अंततः सभी को उसके आगे झुकना पड़ा और सत्यवान और सावित्री का विवाह करवा दिया गया। विवाह के बाद सावित्री राजभवन की सब सुख-सुविधा का त्याग कर सत्यवान के साथ वन में चली गई थी।
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सावित्री के व्रत
सत्यवान के माता-पिता अंधे थे। ऐसे में सावित्री ने अपने सास-ससुर व पति की बहुत सेवा की। इसी तरह एक वर्ष बीत गया और नारद मुनि के अनुसार सत्यवान की मृत्यु का दिन पास आने लगा। सावित्री ने सत्यवान की मृत्यु से तीन दिन पहले अन्न-जल का त्याग कर दिया और कठोर व्रत करने लगी। जिस दिन सत्यवान की मृत्यु होनी थी, उस दिन सावित्री भी उसके साथ वन में गई थी।
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सत्यवान की मृत्यु
वट सावित्री व्रत कथा (Vat Savitri Vrat Katha) के अनुसार, सत्यवान एक वट/ बरगद के पेड़ के ऊपर चढ़ ही रहा था कि अचानक से उसके सिर में बहुत तेज दर्द होने लगा। वह बेहोशी की हालत में नीचे उतरा और सावित्री की गोद में सिर रखकर लेट गया। कुछ देर में सावित्री देखती है कि यमराज वहाँ आते हैं और सत्यवान की आत्मा को वहाँ से लेकर जाने लगते हैं। इस तरह से सत्यवान सावित्री की गोद में ही दम तोड़ देते हैं।
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सावित्री का पतिव्रत धर्म
सावित्री का पतिव्रत धर्म इतना मजबूत था कि उसी समय सावित्री की आत्मा भी उसके शरीर से निकल जाती है और यमराज के पीछे-पीछे चलने लगती है। यमराज सत्यवान की आत्मा को लेकर दक्षिण दिशा में यमलोक जा रहे होते हैं और सावित्री भी उनके पीछे ही चलती जाती है। यमराज सावित्री को वापस लौट जाने को कहते हैं लेकिन वह नहीं मानती है।
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सावित्री और यमराज की कहानी
जब कई बार मना करने के बाद भी सावित्री नहीं मानती है तो यमराज भी परेशान हो जाते हैं। साथ ही वे सावित्री की शक्ति को देखकर भी प्रभावित होते हैं जो उनके साथ-साथ यमलोक की यात्रा पर जा रही थी। हालाँकि यदि वह यमलोक पहुँच जाती तो यह नीति विरुद्ध होता। ऐसे में सावित्री को पुनः धरती पर भेजने के लिए यमराज उसे तीन वरदान मांगने को कहते हैं।
तब सावित्री अपनी चतुराई से यमराज से तीन ऐसे वरदान मांगती है जो ना केवल उसके पति सत्यवान को पुनः जीवित कर देते हैं बल्कि उसका खोया वैभव और राज्य भी लौटा देते हैं। आइए जाने सावित्री ने यमराज से क्या कुछ वरदान मांगे थे।
– सावित्री का पहला वरदान
सावित्री ने अपने वरदान के अनुसार यमराज को कहा कि वह उसके सास-ससुर की खोई हुई दृष्टि को वापस लौटा दे अर्थात उनकी आँखों को ठीक कर दे। इससे उसके सास-ससुर का जीवन बहुत सुगम हो जाता।
– सावित्री का दूसरा वरदान
दूसरे वरदान के अनुसार सावित्री ने अपने पति का खोया हुआ राज्य उसे पुनः लौटा देने को कहा था। इस वरदान से सावित्री व सत्यवान दोनों का जीवन ही सुखमय हो जाता और उसके पिता अश्वपति भी चिंतामुक्त हो जाते।
– सावित्री का तीसरा वरदान
तीसरे वरदान को सावित्री ने बहुत ही चतुराई से माँगा। उसने यमराज से कहा कि वह सौ पुत्रों की माँ बनना चाहती है। अब यदि सावित्री को पुत्र चाहिए तो उसके लिए सत्यवान को जीवित होना पड़ता। सनातन धर्म में पुनर्विवाह की कोई प्रथा नहीं थी। ऐसे में सावित्री को सत्यवान से ही पुत्र प्राप्ति हो सकती थी।
यमराज सावित्री के पतिव्रत धर्म और बुद्धिमता से बहुत ज्यादा प्रभावित हुए थे। उन्होंने उसी समय सावित्री के तीनों वरदान सफल किए और उसे तथास्तु कहकर वहाँ से अंतर्धान हो गए। वट सावित्री व्रत कथा (Vat Savitri Vrat Katha) के अनुसार, इसके बाद सावित्री की चेतना वापस आ जाती है। वह उसी बरगद के पेड़ के नीचे बैठी होती है और देखती है कि कुछ ही देर में उसके पति सत्यवान भी उठकर बैठ गए हैं।
Vat Savitri Vrat Katha In Hindi | वट सावित्री व्रत की कथा
ऊपर हमने आपको वट सावित्री व्रत की संपूर्ण कथा बता दी है। हालाँकि यह कथा विस्तृत रूप में दी गई है। अब यदि आप वट सावित्री का व्रत रख रही हैं और इस कथा को पढ़ना चाहती हैं तो इसे संक्षिप्त रूप में भी पढ़ सकती हैं। आइए इसे भी पढ़ लेते हैं।
राजा अश्वपति की पुत्री सावित्री को एक लकड़हारे सत्यवान से प्रेम हो जाता है। नारद मुनि उन्हें बताते हैं कि सत्यवान अल्पायु है और एक वर्ष बाद उसकी मृत्यु हो जाएगी। फिर भी सावित्री उससे विवाह करती है और पूरे जी जान से उसकी सेवा करती है। एक वर्ष पश्चात जब सत्यवान की मृत्यु का समय पास आता है तो सावित्री तीन दिन का कठोर व्रत रखती है। मृत्यु वाले दिन सावित्री भी उसके साथ वन में जाती है। बरगद के पेड़ पर चढ़ते समय अचानक से सत्यवान के सिर में दर्द उठता है और वह सावित्री की गोद में सिर रखकर मर जाता है।
यमराज सत्यवान की आत्मा को लेकर जा रहे होते हैं तो सावित्री भी उनके पीछे चलने लगती है। यमराज के कई बार मना करने पर भी जब सावित्री नहीं मानती है तो यमराज उसे तीन वरदान मांगने को कहते हैं। सावित्री अपने पहले वरदान में सास-ससुर की आँखों की रोशनी, दूसरे वरदान में अपने पति का खोया हुआ राज्य और तीसरे वरदान में सौ पुत्रों की माँ बनना मांगती है। यमराज सावित्री से प्रसन्न होते हैं और तीनों वरदान देकर वहाँ से चले जाते हैं। इसके फलस्वरूप सत्यवान पुनः जीवित हो जाता है और दोनों खुशी-खुशी अपना जीवनयापन करते हैं।
वट सावित्री व्रत कथा का महत्व
सावित्री के द्वारा अपने पति की लंबी उम्र के लिए व्रत किया जाता है। इसी के साथ ही उसके पति को जिस पेड़ के नीचे पुनः जीवन मिला था, वह बरगद का ही पेड़ था। इसी कारण आज भी विवाहित महिलाओं के द्वारा माता सावित्री का ध्यान किया जाता है, व्रत रखा जाता है और बरगद के पेड़ की पूजा की जाती है।
कहते हैं कि इस दिन वट सावित्री व्रत कथा (Vat Savitri Vrat Katha) को सुनने से महिलाओं को सदा सुहागिन रहने का आशीर्वाद स्वयं यमराज जी देते हैं। ऐसे में उनके पति का स्वास्थ्य भी ठीक रहता है और लंबी आयु को प्राप्त करते हैं।
वट सावित्री व्रत की कथा से संबंधित प्रश्नोत्तर
प्रश्न: वट सावित्री के पीछे क्या कहानी है?
उत्तर: वट सावित्री के पीछे राजकुमारी सावित्री और लकड़हारे सत्यवान की प्रेम कहानी है। यह सत्यवान की मृत्यु और सावित्री के पतिव्रत धर्म से जुड़ी हुई है जिसके बारे में हमने इस लेख में बताया है।
प्रश्न: वैट सावित्री की कथा क्या है?
उत्तर: वट सावित्री की कथा को हमने इस लेख में बताया है। इसके अनुसार सावित्री अपने पतिव्रत धर्म का पालन करते हुए अपने मरे हुए पति को भी पुनः जीवित कर देती है।
प्रश्न: सावित्री ने क्या वरदान मांगा?
उत्तर: सावित्री ने यमराज से एक नहीं बल्कि तीन वरदान मांगे थे। इसमें से एक मुख्य वरदान सौ पुत्रों की माँ बनना था जिस कारण उसके पति जीवित हो उठे थे।
प्रश्न: यमराज से अपने पति को किसने बचाया?
उत्तर: यमराज से अपने पति को सावित्री ने बचाया था। उसने तीन दिन तक कठिन व्रत किया था और उसके बाद अपनी शक्ति से यमराज के पीछे-पीछे यमलोक चल पड़ी थी।
प्रश्न: सावित्री ने यमराज से अपने पति के प्राण कैसे बचाएं?
उत्तर: सावित्री ने यमराज से अपने पति के प्राण वरदान की सहायता से बचाए थे। यमराज ने सावित्री को वरदान मांगने को कहा जिस पर सावित्री ने सौ पुत्रों की माँ होने का वरदान माँग लिया था।
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