जानिए उस महिला की कहानी जिसने अमरनाथ की यात्रा में भयानक मंजर व लाशों का ढेर देखा

बात सन 1995 की है जब मैं अपने परिवार के साथ अमरनाथ यात्रा पर गई थी। मुझे आज भी याद है जब मेरे पति दुकान से वापस घर आए और आकर मुझे बोले कि हमें एक सप्ताह बाद अमरनाथ की यात्रा पर जाना है। यह सुनकर तो जैसे मैं फूली न समाई और इतना खुश हुई कि जैसे मुझे पर लग गए हो क्योंकि अमरनाथ जाने की मेरी बहुत इच्छा थी। हो भी क्यों ना क्योंकि यह भोलेनाथ की पूरी दुनिया में एक ऐसी अद्भुत, अलौकिक और चमत्कारिक जगह है जहां साल भर में सिर्फ एक बार ही श्रावण मास में प्राकृतिक तरीके से बर्फ का शिवलिंग बनता है।

मैंने अमरनाथ जाने के लिए तैयारियां शुरू कर दी और साथ ही मन ही मन में यह सपने भी बुनती रही की वहां जाकर यह करूंगी, वह करूंगी, यह देखूंगी परंतु कहावत है कि भगवान के दर्शन करना इतना सरल कहां होता है।  इनके दर्शन के लिए हमें बहुत सारी परीक्षाएं देनी होती है तब जाकर इनके दर्शन होते हैं।

अंत में वह दिन आ ही गया जब हमें अमरनाथ के लिए निकलना था। मैं, मेरे पति, मेरा बेटा और अन्य रिश्तेदार भी थे साथ में। हम सब बस में थे। सबसे पहले हम पहल ग्राम और फिर चंदनबाड़ी पहुंचे। वहां से शुरू हुई हमारी पैदल यात्रा जो कि एक सपाट रास्ता था। इसके बाद अब चढ़ाई शुरू होने वाली थी और हमारी मुश्किलें भी बढ़ने वाली थी क्योंकि हमारा अगला स्टॉप पिस्सु घाटी था।

परंतु यहां पहुंचने पर हमें खुजली होने लगी थी। ऐसे लग रहा था मानो पूरे शरीर में कांटे चुभ रहे हो, गला सूखने लगा था। 3 किलोमीटर का यह रास्ता बहुत ही दुर्गम और मुश्किलों से भरा था। अब अगला पड़ाव शेषनाग जो कि और भी ज्यादा मुश्किलों से भरा हुआ था। यहां काफी अंधेरा था और घुटन महसूस हो रही थी।

हम सब जैसे तैसे करके शेषनाथ तक पहुंचे परंतु जैसे ही हम वहां तक पहुंचे, मानो प्रलय हमारी ही प्रतीक्षा कर रही थी। आसमान से जैसे बर्फ की आग बरसने लगी थी। तूफान इतना तेज़ आया और बर्फ इतनी ज्यादा गिरी कि देखते ही देखते हमारे सामने वहां लाशों के ढेर लग गए। हम सभी बहुत ज्यादा सहम गए। हमारी आत्मा मानो जैसे सिहर सी गई थी इतनी सारी लाशों का ढेर देख कर और लाशों पर चलकर आगे बढ़ना बहुत ही मुश्किल काम था। एक जवान लड़का जिसे मैंने कुछ समय पहले अपने से आगे चलते हुए देखा था अब उसका शव मेरे पैरों के पास पड़ा था जिसे देखकर मेरा मन भर आया था।

हमें ऐसा महसूस हो रहा था कि हमारा अगला कदम हमें मौत  के मुंह में लेकर जा रहा है परंतु इतना सब होने के बाद भी हम सकारात्मक सोच के साथ और अपनों का साथ होने के कारण आगे बढ़ते गए। बरसात रुकने का नाम नहीं ले रही थी। बर्फ इतनी ज्यादा पड़ रही थी कि सारे तंबू और खाने के लंगर सारे बर्फ से ढक चुके थे। हम भूखे प्यासे बस आगे बढ़ते जा रहे थे। सभी भगवान भोलेनाथ का नाम लेते और उसी के सहारे आगे बढ़ते रहें।

फिर ऐसे कर करके हम पंचतरणी तक पहुंच गए। वहां से पवित्र गुफा सिर्फ 6 किलोमीटर दूर थी परंतु हमें यह रास्ता पता नहीं कितना ही लंबा लग रहा था। अन्ततः पवित्र गुफा में पहुंचकर हमने भोलेनाथ के दर्शन किए। दर्शन करके ऐसा लग रहा था जैसे सारी थकान दूर हो गई हो। वहां तक पहुंचते-पहुंचते हमें रात हो गई थी और हम रात को उसी गुफा में रुके थे।

आसमान से बर्फ की बरसात के कारण, इतनी ठंड थी कि मानो जान ही निकल जाएगी। वह तो शुक्र है कि वहां पर हमारी सहायता करने वाले फौजी भाइयों का जिन्होंने अपने पांव पर हमारे पांव रखवा कर हमें काफी रास्ता पार करवाया। अब हम वापस आ ही रहे थे कि एक और मुसीबत हमारा इंतजार कर रही थी।

हम सब आपस में बिछड़ गए थे। मैं कहीं और मेरे पति, बच्चा और रिश्तेदार कही और। ऊपर से सारी टेलीफोन सेवाएं बंद हो चुकी थी। 5 से 6 दिन के भूखे और कहीं रुकने की जगह नहीं और ऊपर से 5 दिन तक हम बस में ही बैठे रहे क्योंकि आगे का रास्ता बंद था। मेरी आंखों के आगे तो जैसे अंधेरा ही छा गया था। लगने लगा जैसे अब सब कुछ खत्म हो चुका है। वहां हमारी त्वचा भी काली और  रूखी हो गई थी। भूख के कारण हमारी शक्ल और हमारे हालत बिल्कुल दयनीय हो गए थे परंतु उन फौजी भाइयों ने हमारी इस घड़ी में भी बहुत सहायता की। वैसे लोग भी वहां पर खूब सेवा कर रहे थे और उन्होंने भी खूब लंगर लगाये हुये थे परंतु बर्फ के कारण सभी लंगर ढक गए थे।

जब मैं पहल गांव पहुंची तो वहां मेरी निगाहें सिर्फ और सिर्फ मेरे परिवार को ढूंढ रही थी। दुख तो उन मरने वालों का भी बहुत था मन में परंतु मैं कर भी क्या सकती थी। जैसे ही मुझे मेरे परिवार दिखा मेरी जान में जान आ गई और मैंने भोलेनाथ का धन्यवाद किया। उसके बाद हम सकुशल घर वापस आ गये।

आज जब भी मैं अमरनाथ की यात्रा याद करती हूं तो वही सब नजारा मेरी आंखों के सामने आ जाता है। वह बच्चों, जवानों और बूढ़ों की लाशें, मेरा परिवार से बिछड़ना इत्यादि। परंतु इतना होने के बाद भी मैं अपने आपको भाग्यशाली मानती हूं क्योंकि मैंने भोलेनाथ के दर्शन कर लिए थे। वरना बहुत से लोग तो ऐसे भी थे जो बिना दर्शन किए ही वापस आ गए थे। मुझे मेरी अमरनाथ की यह यात्रा हमेशा याद रहेगी।

— दुलारी देवी जी की कहानी

Recommended For You

लेखक के बारें में: कृष्णा

सनातन धर्म व भारतवर्ष के हर पहलू के बारे में हर माध्यम से जानकारी जुटाकर उसको संपूर्ण व सत्य रूप से आप लोगों तक पहुँचाना मेरा उद्देश्य है। यदि किसी भी विषय में मुझ से किसी भी प्रकार की कोई त्रुटी हो तो कृपया इस लेख के नीचे टिप्पणी कर मुझे अवगत करें।

प्रातिक्रिया दे

आपका ईमेल पता प्रकाशित नहीं किया जाएगा. आवश्यक फ़ील्ड चिह्नित हैं *