अन्नपूर्णा चालीसा हिंदी में – अर्थ, महत्व व लाभ सहित

Annapurna Chalisa

आज हम अन्नपूर्णा चालीसा (Annapurna Chalisa) का पाठ करेंगे। हमें जीवित रहने के लिए भोजन की आवश्यकता होती है और इसी से ही हमारे शरीर में काम करने की शक्ति आती है। यदि भोजन ना हो तो हम ज्यादा दिनों तक जीवित नही रह सकते हैं। हिन्दू धर्म में भोजन को ईश्वर का प्रसाद माना गया है और उसके लिए माँ अन्नपूर्णा को अन्न की देवी माना गया है। ऐसे में हमें भोजन ग्रहण करने से पहले ईश्वर व माँ अन्नपूर्णा को धन्यवाद अर्पित करना चाहिए।

आज के इस लेख में हम आपके साथ अन्नपूर्णा माता की चालीसा (Annpurna Chalisa) ही साझा करने जा रहे हैं। इतना ही नहीं, हम आपके साथ मां अन्नपूर्णा चालीसा को अर्थ सहित भी सांझा करेंगे ताकि आप उसका संपूर्ण भावार्थ समझ सकें। अंत में आपको अन्नपूर्णा चालीसा का महत्व व लाभ भी पढ़ने को मिलेगा। तो आइए सबसे पहले पढ़ते हैं श्री अन्नपूर्णा चालीसा।

Annapurna Chalisa | अन्नपूर्णा चालीसा

॥ दोहा ॥

विश्वेश्वर-पदपदम की रज-निज शीश-लगाय।
अन्नपूर्णे! तब सुयश बरनौं कवि-मतिलाय॥

॥ चौपाई ॥

नित्य आनंद करिणी माता, वर-अरु अभय भाव प्रख्याता।

जय! सौंदर्य सिंधु जग-जननी, अखिल पाप हर भव-भय हरनी।

श्वेत बदन पर श्वेत बसन पुनि, संतन तुव पदसेवत ऋषिमुनि।

काशी पुराधीश्वरी माता, माहेश्वरी सकल जग-त्राता।

वृषभारुढ़ नाम रुद्राणी, विश्व विहारिणि जय! कल्याणी।

पदिदेवता सुतीत शिरोमनि, पदवी प्राप्त कीन्ह गिरि-नंदिनी।

पति-विछोह दुःख सहि नहि पावा, योग अग्नि तब बदन जरावा।

देह तजत शिव-चरण सनेहू, राखेहू जाते हिमगिरी-गेहू।

प्रकटी गिरिजा नाम धरायो, अति आनंद भवन मँह छायो।

नारद ने तब तोहिं भरमायहु, ब्याह करन हित पाठ पढ़ायहु।

ब्रह्मा – वरुण – कुबेर – गनाये, देवराज आदिक कहि गाये।

सब देवन को सुजस बखानी, मतिपलटन की मन मँह ठानी।

अचल रहीं तुम प्रण पर धन्या, कीन्ही सिद्ध हिमाचलकन्या।

निज कौ तब नारद घबराये, तब प्रण-पूरण मंत्र पढ़ाये।

करन हेतु तप तोहिं उपदेशेउ, संत-बचन तुम सत्य परेखेहु।

गगनगिरा सुनि टरी न टारे, ब्रह्मा, तब तुव पास पधारे।

कहेउ पुत्रि वर माँगु अनूपा, देहूँ आज तुव मति अनुरुपा।

तुम तप कीन्ह अलौकिक भारी, कष्ट उठायहु अति सुकुमारी।

अब संदेह छाँड़ि कछु मोसों, है सौगंध नहीं छल तोसों।

करत वेद विद ब्रह्मा जानहु, वचन मोर यह सांचो मानहु।

तजि संकोच कहहु निज इच्छा, देहौं मैं मन मानी भिक्षा।

सुनि ब्रह्मा की मधुरी बानी, मुखसों कछु मुसुकायि भवानी।

बोली तुम का कहहु विधाता, तुम तो जगके स्रष्टाधाता।

मम कामना गुप्त नहिं तोंसों, कहवावा चाहहु का मोंसों।

इज्ञ यज्ञ महँ मरती बारा, शंभुनाथ पुनि होहिं हमारा।

सो अब मिलहिं मोहिं मनभाय, कहि तथास्तु विधि धाम सिधाये।

तब गिरिजा शंकर तव भयऊ, फल कामना संशय गयऊ।

चन्द्रकोटि रवि कोटि प्रकाशा, तब आनन महँ करत निवासा।

माला पुस्तक अंकुश सोहै, करमँह अपर पाश मन मोहै।

अन्नपूर्णे! सदपूर्णे, अज-अनवघ अनंत अपूर्णे।

कृपा सगरी क्षेमकरि माँ, भव-विभूति आनंद भरी माँ।

कमल बिलोचन विलसित भाले, देवि कालिके! चण्डि कराले।

तुम कैलास मांहि है गिरिजा, विलसी आनंदसाथ सिंधुजा।

स्वर्ग-महालछमी कहलायी, मर्त्य-लोक लछमी पद पायी।

विलसी सब मँह सर्व सरुपा, सेवत तोहिं अमर पुर-भूपा।

जो पढ़िहहिं यह तुव चालीसा, फल पइहहिं शुभ साखी ईसा।

प्रात समय जो जन मन लायो, पढ़िहहिं भक्ति सुरुचि अधिकायो।

स्त्री-कलत्र पुनि मित्र-पुत्र युत, परमैश्वर्य लाभ लहि अद्भुत।

राज विमुखको राज दिवावै, जस तेरो जन-सुजस बढ़ावै।

पाठ महा मुद मंगल दाता, भक्त मनो वांछित निधि पाता।

॥ दोहा ॥

जो यह चालीसा सुभग, पढ़ि नावहिंगे माथ।
तिनके कारज सिद्ध सब साखी काशी नाथ॥

Annpurna Chalisa | अन्नपूर्णा चालीसा हिंदी में – अर्थ सहित

॥ दोहा ॥

विश्वेश्वर-पदपदम की रज-निज शीश-लगाय।
अन्नपूर्णे! तब सुयश बरनौं कवि-मतिलाय॥

मैं इस सृष्टि के निर्माता व ईश्वर के चरणों की धूल अपने मस्तक पर लगाकर, माँ अन्नपूर्णा के यश का वर्णन इस अन्नपूर्णा चालीसा के माध्यम से करता हूँ

॥ चौपाई ॥

नित्य आनंद करिणी माता, वर-अरु अभय भाव प्रख्याता।

जय! सौंदर्य सिंधु जग-जननी, अखिल पाप हर भव-भय हरनी।

श्वेत बदन पर श्वेत बसन पुनि, संतन तुव पदसेवत ऋषिमुनि।

काशी पुराधीश्वरी माता, माहेश्वरी सकल जग-त्राता।

अन्नपूर्णा माता हमें आनंद, वरदान व अभय प्रदान करने वाली हैं। उनका रूप बहुत सुन्दर है और वे ही इस सृष्टि की जननी हैं। उनके द्वारा ही हर लोक में पाप व भय को दूर किया जाता है। उनके शरीर का रंग सफेद है तथा उन्होंने सफेद रंग के ही वस्त्र पहने हुए हैं। आपकी सेवा तो सभी ऋषि-मुनि भी करते हैं। आपका काशी नगरी की पुराधीश्वरी हो और संपूर्ण जगत आपको माहेश्वरी के नाम से जानता है।

वृषभारुढ़ नाम रुद्राणी, विश्व विहारिणि जय! कल्याणी।

पदिदेवता सुतीत शिरोमनि, पदवी प्राप्त कीन्ह गिरि-नंदिनी।

पति-विछोह दुःख सहि नहि पावा, योग अग्नि तब बदन जरावा।

देह तजत शिव-चरण सनेहू, राखेहू जाते हिमगिरी-गेहू।

वृषभ के वाहन पर आरूढ़ होकर आप रुद्राणी कहलाती हो और संपूर्ण विश्व में भ्रमण कर उसका कल्याण करती हो। आपके पति स्वयं महादेव हैं और आप हिमालय पर्वत की पुत्री हो। सती के रूप में जब आपने आत्म-दाह कर लिया तब पति का वियोग आपसे सहा नहीं गया और आप अग्नि की ज्वाला में जलने लगी। आपकी देह को लेकर शिव इधर-उधर भागने लगे और उसकी कुछ राख हिमालय पर्वत पर भी गिरी।

प्रकटी गिरिजा नाम धरायो, अति आनंद भवन मँह छायो।

नारद ने तब तोहिं भरमायहु, ब्याह करन हित पाठ पढ़ायहु।

ब्रह्मा – वरुण – कुबेर – गनाये, देवराज आदिक कहि गाये।

सब देवन को सुजस बखानी, मतिपलटन की मन मँह ठानी।

उसके कुछ समय के बाद आप हिमालय पर्वत की पुत्री के रूप में जन्मी और उसे देखकर सब जगह आनंद छा गया। नारद मुनि ने वहां आकर आपको भ्रम में डाला लेकिन आपने भगवान शिव से विवाह करने की ठान ली। आपको समझाने भगवान ब्रह्मा, वरुण, कुबेर इत्यादि गण आये और देवराज इंद्र भी आपके सामने गाने लगे। सभी देवताओं ने आपका मन बदलने की ठान ली।

अचल रहीं तुम प्रण पर धन्या, कीन्ही सिद्ध हिमाचलकन्या।

निज कौ तब नारद घबराये, तब प्रण-पूरण मंत्र पढ़ाये।

करन हेतु तप तोहिं उपदेशेउ, संत-बचन तुम सत्य परेखेहु।

गगनगिरा सुनि टरी न टारे, ब्रह्मा, तब तुव पास पधारे।

किन्तु आप भी अपनी इच्छा पर अडिग रही और शिव से विवाह करने की इच्छा नहीं छोड़ी। यह देखकर नारद मुनि घबरा गए और आपको बहुत समझाया। आपने शिव को पाने के लिए कठिन तपस्या की और उनकी परीक्षा ली। आपकी तपस्या का ताप बहुत ऊपर जाने लगा और यह देखकर भगवान ब्रह्मा आपके पास आये।

कहेउ पुत्रि वर माँगु अनूपा, देहूँ आज तुव मति अनुरुपा।

तुम तप कीन्ह अलौकिक भारी, कष्ट उठायहु अति सुकुमारी।

अब संदेह छाँड़ि कछु मोसों, है सौगंध नहीं छल तोसों।

करत वेद विद ब्रह्मा जानहु, वचन मोर यह सांचो मानहु।

भगवान ब्रह्मा ने आपसे कहा कि अब आप उनसे वर मांगे और वे आपकी बुद्धि के अनुरूप आपको वरदान देंगे। आपने तो बहुत भारी तप किया था और उसके लिए बहुत संकट मोल लिए थे। ब्रह्मा ने आपसे कहा कि आप सभी तरह का संकोच त्याग कर, अपनी इच्छा से जो भी वर माँगना चाहती हो, वह माँग लो।

तजि संकोच कहहु निज इच्छा, देहौं मैं मन मानी भिक्षा।

सुनि ब्रह्मा की मधुरी बानी, मुखसों कछु मुसुकायि भवानी।

बोली तुम का कहहु विधाता, तुम तो जगके स्रष्टाधाता।

मम कामना गुप्त नहिं तोंसों, कहवावा चाहहु का मोंसों।

ब्रह्मा ने पार्वती से कहा कि तुम अपना संकोच त्याग कर जो भी वरदान मांगोगी, वह मैं तुम्हे दूंगा। भगवान ब्रह्मा की मधुर वाणी सुनकर माँ पार्वती मंद-मंद मुस्कायी। उन्होंने भगवान ब्रह्मा से कहा कि आप तो अंतर्यामी हैं और आपको मैं क्या ही कहूँ। मेरी जो इच्छा है, वह आपसे छुपी हुई नहीं है और मैं अपने मुहं से उसे क्या ही बोलूं।

इज्ञ यज्ञ महँ मरती बारा, शंभुनाथ पुनि होहिं हमारा।

सो अब मिलहिं मोहिं मनभाय, कहि तथास्तु विधि धाम सिधाये।

तब गिरिजा शंकर तव भयऊ, फल कामना संशय गयऊ।

चन्द्रकोटि रवि कोटि प्रकाशा, तब आनन महँ करत निवासा।

पिछले जन्म में तो मैं सती के रूप में यज्ञ अग्नि में जल कर मर गयी थी किन्तु इस जन्म में शिव फिर से मेरे हो जाए। यह सुनकर भगवान ब्रह्मा ने उन्हें फिर से शिव की पत्नी बनने का आशीर्वाद दिया और पुनः अपने धाम को चले गए। शिव शंकर का पुनः पार्वती माता से विवाह होगा और इसमें किसी को संशय नहीं करना चाहिए। चन्द्रमा व सूर्य ने अपना प्रकाश फैलाया और शिव के धाम में निवास करने लगे।

माला पुस्तक अंकुश सोहै, करमँह अपर पाश मन मोहै।

अन्नपूर्णे! सदपूर्णे, अज-अनवघ अनंत अपूर्णे।

कृपा सगरी क्षेमकरि माँ, भव-विभूति आनंद भरी माँ।

कमल बिलोचन विलसित भाले, देवि कालिके! चण्डि कराले।

अन्नपूर्णा माँ के हाथों में माला, पुस्तक, अंकुश व पाश होता है जो हमारे मन को मोह लेता है। अन्नपूर्णा माता का कोई अंत नहीं है और वे हर जगह व्याप्त हैं। मुझ से यदि कोई भूल हो गयी है तो उसे क्षमा कीजिये और इस विश्व को आनंद से भर दीजिये। आप ही माँ काली व माँ चंडी का रूप हो।

तुम कैलास मांहि है गिरिजा, विलसी आनंदसाथ सिंधुजा।

स्वर्ग-महालछमी कहलायी, मर्त्य-लोक लछमी पद पायी।

विलसी सब मँह सर्व सरुपा, सेवत तोहिं अमर पुर-भूपा।

जो पढ़िहहिं यह तुव चालीसा, फल पइहहिं शुभ साखी ईसा।

आप ही शिव के साथ कैलाश पर्वत पर निवास करती हो और स्वर्ग में महालक्ष्मी के नाम से जानी जाती हो। इस धरती पर आप लक्ष्मी के नाम से प्रसिद्ध हो। आपके कई रूप हैं और उन रूपों में आप अपने भिन्न-भिन्न गुणों को दिखाती हो। आपके भक्त आपकी सेवा करते हैं। जो भी इस अन्नपूर्णा चालीसा का पाठ करता है, उसकी सभी इच्छाएं पूर्ण हो जाती है।

प्रात समय जो जन मन लायो, पढ़िहहिं भक्ति सुरुचि अधिकायो।

स्त्री-कलत्र पुनि मित्र-पुत्र युत, परमैश्वर्य लाभ लहि अद्भुत।

राज विमुखको राज दिवावै, जस तेरो जन-सुजस बढ़ावै।

पाठ महा मुद मंगल दाता, भक्त मनो वांछित निधि पाता।

जो भक्तगण सुबह जल्दी उठकर अन्नपूर्णा चालीसा का पाठ करता है, उसे उसकी मनचाही स्त्री, मित्र, पुत्र इत्यादि की प्राप्ति होती है और उसका यश संपूर्ण विश्व में फैलता है। माता अन्नपूर्णा के आशीर्वाद से वंचित राजा को अपना राज्य पुनः मिलता है तो दीन बंधुओं के मान में वृद्धि होती है। जो भी अन्नपूर्णा चालीसा का पाठ करता है, उसकी सभी इच्छाएं व मनोकामना पूर्ण हो जाती है।

॥ दोहा ॥

जो यह चालीसा सुभग, पढ़ि नावहिंगे माथ।
तिनके कारज सिद्ध सब साखी काशी नाथ॥

जो भी माँ अन्नपूर्णा की यह चालीसा भक्तिसहित व प्रेम के साथ पढ़ लेता है, काशी विश्वनाथ की कृपा से उसके सभी काम बन जाते हैं

अन्नपूर्णा चालीसा का महत्व

अभी तक के लेख में आपने अन्नपूर्णा चालीसा पढ़ ली है और साथ ही उसका अर्थ भी जान लिया है। इसे पढ़कर आपको अवश्य ही माँ अन्नपूर्णा के गुणों, महत्व व सिद्धि का ज्ञान हो गया होगा। अन्नपूर्णा चालीसा के माध्यम से यही बताने का प्रयास किया गया है कि मनुष्य व अन्य जीव-जंतुओं के लिए भोजन का कितना महत्व होता है और हमें उसका निरादर करने से मना किया गया है।

यदि इस विश्व में भोजन है, तभी हमारा अस्तित्व है और हम उसी के माध्यम से काम करने की शक्ति व ऊर्जा को प्राप्त कर पाते हैं। बिना भोजन के हम कुछ भी कर पाने में असमर्थ होंगे। इसी भाव को व्यक्त करते हुए यह अन्नपूर्णा चालीसा लिखी गयी है। अन्नपूर्णा माता को हमेशा से ही पूजनीय माना गया है और इसी कारण उनका मुख्य मंदिर काशी विश्वनाथ मंदिर के पास में स्थित है।

अन्नपूर्णा चालीसा के लाभ

अब यदि आप प्रतिदिन अन्नपूर्णा माता की चालीसा का सच्चे मन से पाठ करते हैं और जब भी भोजन ग्रहण करें तब माँ अन्नपूर्णा का ध्यान करते हैं तो आपको कभी भी भोजन की कमी नहीं होगी। इसी के साथ ही ना ही आपको स्वास्थ्य संबंधित किसी तरह की समस्या होने पायेगी। आप हमेशा स्वस्थ बने रहेंगे और घर में भी सुख-शांति का वास होगा।

माँ अन्नपूर्णा चालीसा के निरंतर पाठ से व्यक्ति के शरीर में एक नयी ऊर्जा का संचार होता है जो उसे नए काम शुरू करने तथा अपने पुराने काम को बेहतर ढंग से करने की शक्ति प्रदान करती है। साथ ही यदि उस व्यक्ति को कोई शारीरिक व मानसिक रोग है तो वह भी दूर हो जाता है। इस तरह से मां अन्नपूर्णा चालीसा के माध्यम से व्यक्ति नयी ऊर्जा व स्वस्थ शरीर के साथ काम करने में समर्थ होता है।

निष्कर्ष

आज के इस लेख के माध्यम से आपने अन्नपूर्णा चालीसा हिंदी में अर्थ सहित (Annapurna Chalisa) पढ़ ली हैं। साथ ही आपने अन्नपूर्णा चालीसा के लाभ और महत्व के बारे में भी जान लिया है। यदि आप हमसे कुछ पूछना चाहते हैं तो नीचे कमेंट कर सकते हैं। हम जल्द से जल्द आपके प्रश्न का उत्तर देने का प्रयास करेंगे।

अन्नपूर्णा चालीसा से संबंधित प्रश्नोत्तर

प्रश्न: अन्नपूर्णा कहाँ स्थित है?

उत्तर: अन्नपूर्णा नाम का पर्वत नेपाल देश के उत्तर-मध्य में हिमालय पर्वत पर स्थित है। इस पर्वत की ऊँचाई 8091 मीटर (26,545 फीट) है।

प्रश्न: अन्नपूर्णा माता का दूसरा नाम क्या है?

उत्तर: अन्नपूर्णा माता का दूसरा नाम अन्नदा, अन्नपूर्णेश्वरी व शाकुम्भरी देवी है जो अन्न की देवी मानी जाती है।

प्रश्न: अन्नपूर्णा नाम का अर्थ क्या होता है?

उत्तर: अन्नपूर्णा माँ अन्न की देवी मानी जाती है जो हमारे भोजन की सभी आवश्यकताओं की पूर्ति करती है।

प्रश्न: अन्नपूर्णा माता किसकी कुलदेवी है?

उत्तर: अन्नपूर्णा माता सभी हिन्दुओं के लिए अन्न की देवी मानी जाती है। इनका कुलदेवी होना व्यक्ति के अपने परिवार व जाति पर निर्भर करता है।

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लेखक के बारें में: कृष्णा

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