Mahavidya Kali: महाविद्या काली की कथा, महत्व, साधना मंत्र व लाभ

काली महाविद्या (Kali Mahavidya)

आज हम काली महाविद्या (Kali Mahavidya) के बारे में बात करेंगे। माता सती के 10 रूप हैं जिन्हें दस महाविद्या के नाम से जाना जाता है। यह 10 महाविद्या माता सती ने भगवान शिव को अपना महत्व दिखाने के लिए प्रकट की थी जिनके पीछे एक रोचक कथा जुड़ी हुई है। माँ काली उन्हीं 10 महाविद्याओं में से प्रथम महाविद्या मानी जाती हैं।

माँ काली महाविद्या का रूप अत्यंत भयंकर व दुष्टों का संहार करने वाला है। आज हम आपको प्रथम महाविद्या काली (Mahavidya Kali) की कथा, महत्व, उत्पत्ति, साधना मंत्र इत्यादि के बारे में संपूर्ण जानकारी देंगे।

Kali Mahavidya | काली महाविद्या

माँ काली को कौन नहीं जानता। हालाँकि काली माता का प्राकट्य एक बार नहीं बल्कि कई बार हो चुका है। एक बार तो भगवान शिव को अपना प्रभाव दिखाने के उद्देश्य से किया गया था तो दूसरी बार राक्षसों का संहार करने के लिए। इसमें काली के जिस रूप को महाविद्या की संज्ञा दी गयी है, उनका प्राकट्य शिवजी को अपना प्रभाव दिखाने के लिए किया गया था।

हालाँकि Mahavidya Kali का रूप माँ काली जैसा ही है और दोनों में कोई अंतर नहीं है। सबसे पहले तो हम महाविद्या काली की कहानी आपके साथ सांझा करेंगे। उसके बाद उनके रूप व स्वभाव का वर्णन सहित, माँ काली की साधना व उससे मिलने वाले लाभ के बारे में आपको बताएँगे।

महाविद्या काली की कथा

यह कथा बहुत ही रोचक है जो भगवान शिव व उनकी प्रथम पत्नी माता सती से जुड़ी हुई है। हालाँकि उनकी दूसरी पत्नी माता पार्वती माँ सती का ही पुनर्जन्म मानी जाती हैं। काली महाविद्या की कहानी के अनुसार, एक बार माता सती के पिता राजा दक्ष ने विशाल यज्ञ का आयोजन करवाया था।

चूँकि राजा दक्ष भगवान शिव से द्वेष भावना रखते थे और अपनी पुत्री सती के द्वारा उनसे विवाह किये जाने के कारण शुब्ध थे, इसलिए उन्होंने उन दोनों को इस यज्ञ में नहीं बुलाया। भगवान शिव इस बारे में जानते थे लेकिन माता सती इस बात से अनभिज्ञ थी।

यज्ञ से पहले जब माता सती ने आकाश मार्ग से सभी देवी-देवताओं व ऋषि-मुनियों को उस ओर जाते देखा तो अपने पति से इसका कारण पूछा। भगवान शिव ने माता सती को सब सत्य बता दिया और निमंत्रण ना होने की बात कही। तब माता सती ने भगवान शिव से कहा कि एक पुत्री को अपने पिता के यज्ञ में जाने के लिए निमंत्रण की आवश्यकता नहीं होती है।

माता सती अकेले ही यज्ञ में जाना चाहती थी। इसके लिए उन्होंने अपने पति शिव से अनुमति मांगी किंतु उन्होंने मना कर दिया। माता सती के द्वारा बार-बार आग्रह करने पर भी शिव नहीं माने तो माता सती को क्रोध आ गया और उन्होंने शिव को अपनी महत्ता दिखाने का निर्णय लिया।

तब माता सती ने भगवान शिव को अपने 10 रूपों के दर्शन दिए जिनमें से प्रथम माँ काली थी। मातारानी के यही 10 रूप दस महाविद्या कहलाए। अन्य नौ रूपों में क्रमशः तारा, षोडशी, भुवनेश्वरी, भैरवी, छिन्नमस्ता, धूमावती, बगलामुखी, मातंगीकमला आती हैं।

काली महाविद्या का रूप

माँ सती का यह रूप महाविद्याओं में प्रथम महाविद्या इसलिए माना जाता है क्योंकि यह सबसे भीषण और सभी गुणों में उच्च थी। माता सती ने क्रोधवश सबसे पहले माँ काली महाविद्या को ही अपने में से प्रकट किया था जो अत्यधिक भीषण व दुष्टों का संहार करने वाली थी।

इनका वर्ण एकदम काला था तथा केश खुले हुए थे। उनके शरीर पर एक भी वस्त्र नहीं था अर्थात वे नग्न अवस्था में थी। उनकी भगवान शिव की भांति तीन आँखें थी। साथ ही माँ काली के चार हाथ थे जिसमें से एक हाथ में कटा हुआ राक्षस का सिर, दूसरे में खड्ग (मुड़ी हुई तलवार), तीसरा हाथ वरदान मुद्रा में और चौथा हाथ अभय मुद्रा में था।

Kali Mahavidya के गले में राक्षसों के कटे हुए सिर की माला बंधी हुई थी। इतना ही नहीं, उन्होंने राक्षसों के नरमुंडों की एक माला अपनी पीठ पर कमरबंध के रूप में बाँधी हुई थी। उनकी जीभ अत्यधिक लंबी व लाल थी जिसमें से रक्त टपक रहा था। अन्य कुछ रूपों में माँ काली का उनके कर्मों के अनुसार अलग-अलग चित्रण किया गया है। आइए उनके उन रूपों के बारे में भी जाने।

  • माँ काली का जीभ निकला रूप

जब माँ काली का क्रोध शांत नहीं हो रहा होता है और वे भयंकर नृत्य कर रही होती हैं तब भगवान शिव मृत अवस्था में उनके चरणों में लेट जाते हैं। भगवान शिव को अपने चरणों में देखकर माँ काली की जीभ निकल जाती है। इसलिए माँ के इस रूप में वे जीभ निकली हुई दिखाई देती हैं।

  • माँ काली का चामुंडा रूप

इस रूप में माँ काली की खड्ग से निरंतर रक्त बहता हुआ दिखाई देता है और वे कई राक्षसों के सिर को धारण किये हुए रहती हैं। इस रूप में माता काली ने चंड व मुंड नाम के दो राक्षसों का उनकी सेना सहित वध किया था। चंड व मुंड का वध करने के कारण ही माँ काली का नाम चामुंडा देवी पड़ा।

  • माँ काली का कालरात्रि रूप

इस रूप में Mahavidya Kali अपने चार हाथों में से एक हाथ में राक्षस का कटा हुआ सिर पकड़ती हैं जिसमे से रक्त टपक रहा होता है। तो वहीं दूसरा हाथ ठीक उसके नीचे एक रक्त भरा कटोरा पकड़े हुए होता है जो उस रक्त को धरती पर गिरने नहीं देता। तीसरे हाथ में खड्ग व चौथा हाथ अभय मुद्रा में होता है। साथ ही इस रूप में माँ काली की जीभ अत्यधिक लंबी व रक्त से भरी हुई होती है।

Kali Mahavidya ने यह रूप रक्तबीज नामक राक्षस का वध करने के लिए लिया था क्योंकि उसकी रक्त की बूंद धरती पर गिरते ही वह अपना एक और रूप प्रकट कर लेता था। इसलिए माँ काली ने उसके रक्त की एक भी बूंद धरती पर गिरने से पहले ही उसे पी लिया था। कालरात्रि माता की पूजा नवरात्रों के सातवें दिन की जाती है।

काली महाविद्या का महत्व

माँ काली का यह रूप प्रथम महाविद्या होने के साथ-साथ हमें कई तरह की शिक्षाएं देकर जाता है जिस कारण इसकी महत्ता बढ़ जाती है। जैसे कि:

  • काली महाविद्या को समय व परिवर्तन की देवी माना गया है अर्थात वह समय से परे है। उनकी तीन आखें भूतकाल, भविष्यकाल व वर्तमानकाल को प्रदर्शित करती हैं। ब्रह्मांड में समय हमेशा गतिमान है जिसका प्रतिनिधित्व माँ का यह रूप करता है।
  • माँ का यह भीषण रूप दुष्टों, पापियों व अधर्मियों को अत्यधिक डराने वाला है। इस रूप से माँ का तात्पर्य यह है कि जब अधर्म बहुत बढ़ जाएगा तो माँ चंडी का रूप धारण कर उनका वध करने में सक्षम होगी।
  • साथ ही माँ का यह रूप अपने भक्तों को अभय प्रदान करता है। माँ का एक हाथ अभय मुद्रा में है। वह अपने भक्तों के मन से भय को भगाने व आत्म-विश्वास को बढ़ाने का परिसूचक है।
  • माँ का एक हाथ आशीर्वाद मुद्रा में है। इससे वह भक्तों के मन में यह आशा प्रकट करती है कि उनका यह भीषण रूप केवल दुष्टों के लिए ऐसा है जबकि भक्तों के ऊपर उनका आशीर्वाद हमेशा बना रहेगा।

महाविद्या काली का स्वभाव

माता सती के प्रथम रूप Kali Mahavidya का स्वभाव भी अपने पति भगवान शिव के समान ही है। जिस प्रकार भगवान शिव बहुत जल्दी प्रसन्न और क्रोधित हो जाते हैं, ठीक उसी प्रकार माँ काली को भी जल्दी क्रोध आ जाता है। भगवान शिव के क्रोधित अवतार को रूद्र अवतार कहा जाता है और माँ काली तो स्वयं क्रोधित अवतार ही हैं। इसलिए माँ काली का स्वभाव अपने भक्तों पर जल्दी प्रसन्न होने वाला और दुष्टों पर जल्दी क्रोधित होने वाला है।

महाविद्या काली मंत्र (Kali Mahavidya Mantra)

ॐ क्रीं क्रीं क्रीं हूँ हूँ ह्रीं ह्रीं दक्षिणे कालिका।

क्रीं क्रीं क्रीं हूँ हूँ ह्रीं ह्रीं स्वाहा॥

काली महाविद्या साधना के फायदे

यदि आप Mahavidya Kali की पूजा करते हैं तो निश्चित रूप से आपको इसका लाभ मिलेगा। माँ काली की साधना करने से भक्तों के मन से भय दूर होता है व बीमारियों का नाश होता है। माँ काली हमारे मन को अभय बनाने का काम करती हैं।

यदि आपको किसी चीज़ का भय, शत्रु से किसी प्रकार का डर या मन में किसी बात को लेकर आशंका का भाव है तो वह माँ काली की पूजा करने से दूर होता है। यदि आप नित्य रूप से माँ काली की पूजा करेंगे तो आपको अपने अंदर आत्म-विश्वास की बढ़ोत्तरी देखने को मिलेगी जिससे आप दृढ़-निश्चयी होकर कार्य संपन्न कर पाएंगे।

माँ काली महाविद्या की पूजा मुख्य रूप से गुप्त नवरात्रों में की जाती है। गुप्त नवरात्रों में मातारानी की 10 महाविद्याओं की ही पूजा की जाती है जिसमें से सर्वप्रथम महाविद्या काली की पूजा करने का विधान है।

काली महाविद्या से संबंधित अन्य जानकारी

  • माँ काली का दिन: सोमवार
  • माँ काली की दिशा: पूर्व
  • माँ काली की पूजा की विशेष तिथि: अमावस्या
  • माँ काली का समय: रात्रि
  • माँ काली से संबंधित रुद्रावतार: महाकालेश्वर
  • माँ काली का मुख्य मंदिर: कलकत्ता, पश्चिम बंगाल
  • माँ काली से संबंधित अन्य मुख्य मंदिर: उज्जैन व गुजरात

इस तरह से आज आपने काली महाविद्या (Kali Mahavidya) के बारे में संपूर्ण जानकारी ले ली है। गुप्त नवरात्रि के प्रथम दिन इनकी पूजा करने का विधान है लेकिन उसे गुप्त रूप से ही किया जाना चाहिए।

काली महाविद्या से संबंधित प्रश्नोत्तर

प्रश्न: काली महाविद्या क्या है?

उत्तर: माता सती के 10 रूपों में से काली महाविद्या प्रथम रूप मानी जाती हैं इनकी पूजा गुप्त नवरात्रि के पहले दिन की जाती है

प्रश्न: मां काली का मूल मंत्र क्या है?

उत्तर: मां काली का मूल मंत्र “ॐ क्रीं क्रीं क्रीं हूँ हूँ ह्रीं ह्रीं दक्षिणे कालिका क्रीं क्रीं क्रीं हूँ हूँ ह्रीं ह्रीं स्वाहा” है इसे गुप्त नवरात्रों में जपने से अधिक लाभ मिलता है

प्रश्न: काली का शक्तिशाली मंत्र क्या है?

उत्तर: काली का शक्तिशाली मंत्र “ॐ क्रीं क्रीं क्रीं हूँ हूँ ह्रीं ह्रीं दक्षिणे कालिका क्रीं क्रीं क्रीं हूँ हूँ ह्रीं ह्रीं स्वाहा” है जिसका जाप गुप्त नवरात्रि में ज्यादा फलदायी होता है

प्रश्न: माँ काली को खुश कैसे करे?

उत्तर: माँ काली को खुश करने के लिए आप उनके मंत्रों, आरती व चालीसा का पाठ करें साथ ही उन्हें गुड़ का भोग लगायें

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लेखक के बारें में: कृष्णा

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