आखिर बालि ने सुग्रीव को क्यों निकाल दिया था

Bali Sugriv Ki Kahani

बालि सुग्रीव का बड़ा भाई व किष्किन्धा नगरी का राजा था (Bali Sugriv Ki Kahani)। बालि व सुग्रीव दोनों वानर जाति से थे व अत्यंत बलशाली थे किंतु भगवान ब्रह्मा जी से वरदान मिले होने के कारण बालि अत्यंत बलशाली था। बालि को यह वरदान प्राप्त था कि उसे किसी भी युद्ध में अपने से सामने वाले शत्रु की आधी शक्ति प्राप्त हो जाएगी व उसके शत्रु की आधी शक्ति समाप्त हो जाएगी (Bali Sugriv Story In Hindi)।

बालि के इसी वरदान के कारण उसे विश्व के अति बलवान लोग व राक्षस उसे युद्ध के लिए चुनौती दिया करते थे। बालि किसी की भी चुनौती को अस्वीकार नही करता था व सबसे युद्ध करके उनके परास्त कर देता था।

बालि ने सुग्रीव को राज्य से क्यों निकाला? (Bali Sugriv Ki Kahani)

मायावी राक्षस की बालि को चुनौती

एक दिन मायावी नाम के एक राक्षस ने बालि को युद्ध के लिए चुनौती दी थी जिसे बालि ने स्वीकार कर लिया था। मायावी का बड़ा भाई दुंदुभी राक्षस पहले बालि के हाथों मारा जा चुका था जिसका प्रतिशोध उसे लेना था। वह राक्षस अत्यंत मायावी था इसलिये बालि के युद्ध में जाते समय उसके छोटे भाई सुग्रीव को चिंता हुई। उसने भी बालि के साथ युद्ध में जाने की जिद्द की जिसे बालि ने मान लिया।

बालि व मायावी राक्षस का युद्ध (Mayavi Rakshas Bali Yudh)

दोनों भाइयों को साथ में आता देखकर मायासी राक्षस दूर भाग गया व एक गुफा में चला गया। बालि को वह कई बार चुनौती दे चुका था इसलिये बालि इस बार उसका वध करने का निश्चय करके ही बाहर आया था। बालि उसे मारने के लिए उसकी गुफा में जाने लगा तो सुग्रीव ने मना किया। बालि ने सुग्रीव को यह कहकर बाहर खड़ा होने का आदेश दिया कि वह यहाँ गुफा के द्वार पर पहरा दे व उसकी प्रतीक्षा करें। यह कहकर बालि उस राक्षस से युद्ध करने गुफा के अंदर चला गया।

सुग्रीव को गुफा के बाहर खड़े कई महीने बीत गए लेकिन बालि बाहर नही आया। फिर एक दिन उसे अंदर से रक्त की धारा बाहर आती हुई दिखाई दी व किसी के कराहने की आवाज़ सुनाई दी। सुग्रीव को लगा कि उसका भाई उस मायावी के हाथों मारा जा चुका हैं। कही वह राक्षस बाहर आकर उस पर भी हमला ना कर दे व किष्किन्धा को ना हड़प ले, इसी डर से सुग्रीव ने गुफा का द्वार एक विशाल चट्टान के सहारे बंद कर दिया व किष्किन्धा लौट आया।

सुग्रीव बना किष्किन्धा नरेश

सुग्रीव ने वापस आकर सभी को बालि की मृत्यु का समाचार दिया। चूँकि सुग्रीव किष्किन्धा का राजकुमार था इसलिये बालि की मृत्यु के पश्चात उसे किष्किन्धा का राजा बनाया गया। अब वह किष्किन्धा का राजभार संभालने लगा था किंतु वहां बालि नही उस मायावी राक्षस की मृत्यु हुई थी। बालि जब उस राक्षस को मारकर गुफा के द्वार पर आया तो द्वार बंद देखकर क्रोधित हो गया। उसने अपनी शक्ति से गुफा का द्वार तोड़ डाला व किष्किन्धा के राजमहल में पहुँच गया।

वहां आकर उसने देखा कि उसका भाई किष्किन्धा का राजा बन चुका है। यह देखकर बालि का गुस्सा और भी प्रबल हो गया। उसे लगा कि उसके भाई ने सब जानते हुए भी यह षड़यंत्र रचा व उसे गुफा के अंदर बंद कर दिया व स्वयं किष्किन्धा नगर का राजा बन गया। उसने भरी सभा में सुग्रीव पर यह लांछन लगाया। सुग्रीव ने उनके चरणों में गिरकर क्षमा याचना की लेकिन बालि ने सभी के सामने उसे दुत्कार दिया व उसे बुरी तरह मारने लगा।

सुग्रीव किसी तरह अपनी जान बचाकर वहां से भागा। बालि ने उसकी पत्नी रुमा को भी हड़प लिया व सुग्रीव को देश निकाला दे दिया। बालि के डर से सुग्रीव को किसी ने भी शरण नही दी व साथ ही बालि के सिपाही उसकी हत्या की ताक में थे। इसी कारण सुग्रीव ने ऋषयमूक पर्वत पर जाकर अपनी जान बचाई क्योंकि बालि को ऋषि मतंग का श्राप था कि वह उस पर्वत पर गया तो उसकी मृत्यु हो जाएगी।

इस प्रकार बालि ने सुग्रीव को ना केवल किष्किन्धा से अपमानित करके बाहर निकाला अपितु उसकी धर्म पत्नी को भी उसके साथ नही जाने दिया व उसे अपने साथ राजमहल में अपनी पत्नी बनाकर रखा। बाद में सुग्रीव ने स्वयं भगवान श्रीराम की सहायता से बालि का वध करवाया व पुनः किष्किन्धा का राजा बना।

लेखक के बारें में: कृष्णा

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