मेरा नाम लविश हैं और मैं भगवान श्रीकृष्ण से अत्यधिक प्रेम करता हूँ। बहुत समय से मेरे मन में इच्छा था कि एक बार होली पर मथुरा वृंदावन अवश्य होकर आऊंगा व वहां की होली का आनंद उठाऊंगा (Vrindavan Holi)। इस बार मेरी जॉब दिल्ली में ही थी और दिल्ली से मथुरा केवल 3 से 4 घंटो का ही रास्ता था (Mathura Vrindavan Yatra)। होली पास में थी तो मैंने इस बार होली पर वृंदावन जाने का ठान ही लिया (Barsana Holi 2020)।
बनाया होली पर मथुरा जाने का मन
मैं अकेला था फिर भी मैंने अपने कार्यालय से 2 दिन की छुट्टी ले ली थी। मैंने अपने एक दोस्त से होली के कार्यक्रम की पूरी सूची मंगवा ली। मुझे 3 व 4 तारिख को वहां जाना था व उन दो दिन माता राधा की नगरी में लड्डू व लट्ठमार होली का कार्यक्रम था (Lathmar Holi Barsana 2020)। वहां जाने से एक दिन पहले मैं अपने ऑफिस में बैठा काम कर रहा था और सोच रहा था कि अकेला सब कैसे मैनेज करूँगा क्योंकि मैं पहली बार होली पर वहां जा रहा था व साथ ही इस समय वहां बहुत ज्यादा भीड़ भी होती हैं।
मेरा दोस्त अंतरिक्ष भी साथ में आ गया
यही सोचते-सोचते मेरे मन में मेरे बहुत पुराने व परम मित्र अंतरिक्ष का ख्याल आया जिसे मैं लगभग पिछले 15 वर्षों से जानता था लेकिन वह जयपुर रहता था। मैंने उससे साथ चलने का पूछा और आश्चर्य की बात हैं कि वह मान गया और दिल्ली के लिए उसी समय निकल पड़ा। अब मेरे उत्साह की कोई सीमा नही थी क्योंकि अब मैं अकेला नही था व साथ में मेरा परम मित्र अंतरिक्ष भी था।
और निकल पड़े हम मथुरा के लिए
अगले दिन सुबह-सुबह हम मथुरा के लिए नक़ल पड़े किंतु कुछ कारणों से हमे देरी हो गयी व हम शाम को मथुरा पहुंचे। मथुरा पहुंचकर सबसे पहले हम वृंदावन गए व होटल लिया। चूँकि हमारा मुख्य कार्यक्रम बरसाना में ही जाने का था लेकिन मेरे परिवार वालो व दोस्तों ने बताया था कि वहां हमे रुकने के लिए कुछ भी नही मिलेगा। इसलिये हमने वृंदावन में कमरा बुक किया और उस दिन वृंदावन ही घूमने का मन बनाया। थोड़ी देर आराम करने के बाद हमने प्रेम मंदिर व हरे कृष्णा मंदिर के दर्शन किये। इतने में ही रात हो गयी और हम वापस होटल आ गए। अगले दिन हमे प्रातः जल्दी बरसाना के लिए निकलना था।
लो चले बरसाना को
अगले दिन हम जल्दी उठे, नहा धोकर खाना खाया व बरसाना के लिए निकल पड़े। वहां पहुंचकर हमारे आनंद की कोई सीमा नही थी। चारो और गुलाल उड़ रहे थे, भगवान के भक्त इतने कि पूछो मत लेकिन हर कोई प्रसन्न व अपनी भक्ति में डूबा हुआ था। आज ही के दिन शाम को यहाँ लट्ठमार होली का कार्यक्रम था जिसे बरसाना की गलियों में खेला जाता था। इसलिये हमने पहले वहां के प्रसिद्ध माता राधा रानी मंदिर के दर्शन करने का सोचा।
माता राधा रानी का मंदिर
हम भी भीड़ के साथ हो लिए व माता के मंदिर में जाने लगे। बहुत लंबी लाइन लगी थी व अंदर पहुँचते-पहुँचते लगभग 1 घंटे के पास लग गया लेकिन जैसे ही हम मंदिर के अंदर मुख्य प्रांगन में पहुंचे तो पाया जैसे कि हम स्वर्ग में आ गये हो। वहां हर कोई खुशी से नाच रहा था, भक्ति में झूम रहा था, भजन गाये जा रहे थे, रंगों से सब लबालब भरे पड़े थे, आसमान में हर तरह के रंग उड़ रहे थे। हम भी भगवान कृष्ण व माता राधा की भक्ति में झूमकर बहुत नाचे व होली खेले।
इसी तरह 1-2 घंटे वहां आनंद उठाने के पश्चात हम नीचे आ गये। फिर हम थोड़ी देर इधर-उधर घूमे व बरसाना के विभिन्न स्थानों का आनंद लिया। इसके बाद हमने दोपहर का खाना खाया और शाम की होली की प्रतीक्षा करने लगे।
हुई लट्ठमार होली की शुरुआत (Lathmar Holi Barsana 2020)
लट्ठमार होली की शुरुआत शाम 4 बजे के बाद होनी थी लेकिन बरसाना की गलियों में जहाँ लट्ठमार होली खेली जानी थी वहां लाखों की संख्या में श्रद्धालु पहले ही पहुँच चुके थे। उन गलियों में जगह-जगह होली खेली जा रही थी व मंदिरों के बाहर ढोल नगाड़े बज रहे थे।
हम भी उन्ही गलियों में भीड़ के साथ चलते गए और आनंद उठाते गये। मैं आपको बता दूँ कि वहां की गलियां संकरी होती हैं व भीड़ आधी-आधी गली को बांटती हुई दोनों दिशा में जा रही थी। तभी चलते-चलते भीड़ अचानक से इतनी ज्यादा बढ़ गयी कि हमे लगा अब बस भगदड़ मचेगी और हमारा अंत निश्चित हैं। ऐसा अनुभव मैं अपने जीवन में पहली बार महसूस कर रहा था। मैंने और मेरे दोस्त ने एक दूसरे का हाथ मजबूती से पकड़ रखा था व हम दोनों आगे चले जा रहे थे। वहां से निकलने का कोई भी रास्ता नही था व हमे बस भीड़ के साथ आगे ही चलना था।
शरीर का कोई भी अंग ऐसा नही था जो भीड़ में ना दबा हो। भीड़ इतनी ज्यादा थी कि बूढ़े, बच्चे, महिलाएं व शारीरिक रूप से अक्षम व्यक्ति वहां से नही गुजर पाए। केवल हम जैसे युवा या अधेड़ उम्र के व्यक्ति या जिसका हौसला मजबूत हो, वह ही उन गलियों से होकर गुजर सकता हैं।
अब हमारे मन में बस यही ख्याल था कि कैसे भी करके यह गली खत्म हो और हम भीड़ से निकले। हमारी सांसे जैसे कि हलक में लटकी हुई थी। लगभग 15 मिनट तक लगातार धीरे-धीरे हम भीड़ के साथ आगे चलते रहे व उसके बाद भीड़ थोड़ी कम हुई और हमारे शरीर पर दबाव भी। हमारी साँस में साँस आई और हमने भगवान का धन्यवाद किया कि हम बच गए।
अब हम जल्दी से एक खुली जगह पर गए और सबसे पहले चैन की साँस ली। इसके बाद हमने चाय पी और बात करने लगे कि क्या भीड़ थी लेकिन फिर भी कोई भगदड़ नही। साथ ही भीड़ में जो भी लोग थे, आसपास अपने घरो में जो भी खड़े थे, सब प्रसन्न थे, रंगों से खेल रहे थे। हालाँकि भीड़ में तो सभी फंसे थे लेकिन सभी उसका आनंद भी उठा रहे थे। यह हम पर निर्भर करता था कि जो हम भीड़ में सबके साथ फंसे है और पूरा शरीर लगभग दब सा गया हैं, उसका चिंतन करे या फिर चारो ओर जो गुलाल उड़ रहा हैं, उत्साह का माहौल है, भजन चल रहे है, रंग आपके मुख पर गिर रहा है, ढोल नगाड़े बज रहे है, गली तो क्या हर घर, छत, बालकनी लोगो से पटी पड़ी है, फिर भी हमारी पंक्ति व विपरीत पंक्ति लगातार आगे बढ़ती जा रही हैं।
यही सोचते-सोचते हमने यह निश्चय किया कि अब तो उन गलियों से वापस होकर आयेंगे। हमने जल्दी से अपने चाय पी और निकल पड़े उन्ही गलियों से फिर से एक नया अनुभव लेने। आप यकीन नही मानेंगे कि इस बार भी वही भीड़ थी, हम वैसे ही फंसे थे लेकिन इस बार हमे इसका आनंद आ रहा था। हमने स्वयं को कृष्णा की भक्ति में डुबो दिया था। आप विश्वास नही करेंगे कि उसके बाद हम उन गलियों से 5 से 6 बार होकर गुजरे व हर बार यह लगा कि इस बार अंत निश्चित हैं लेकिन आनंद की भी कोई सीमा नही थी।
जब वापस दिल्ली जाने का आया समय
इसी तरह अंत में लट्ठमार होली भी खेली गयी व उसके बाद सब कार्यक्रम समाप्त हो गया। अब बरसाना जो सुबह से लोगों की असंख्य भीड़ से खचाखच भरा हुआ था वह खाली होने लगा था। अगले दिन का कार्यक्रम भगवान कृष्ण की नगरी वृंदावन में था इसलिये कुछ लोग जो लंबी छुट्टी लेकर आये थे वे वृंदावन जा रहे थे व बाकि अपने-अपने घरो को। हमे भी दिल्ली वापस लौटना था। मन तो बहुत था लेकिन क्या करे काम तो काम है। हमने देखा कि हमारे पास कैश खत्म होने को हैं व अभी हमने शाम या रात ना कुछ खाया था व साथ में वापस भी जाना था। फिर हमने शुरू कि एटीएम की खोज। बहुत पैदल चलने के बाद मुश्किल से एक एटीएम मिला लेकिन वह भी खाली।
अब हमे चिंता होने लगी क्योंकि अँधेरा होने लगा था व हमारे पास खाने व वापस जाने के पैसे नही थे। हालाँकि हमारे एटीएम में पैसे थे व साथ में मोबाइल से ऑनलाइन पेमेंट के लिए भी किंतु कहते हैं ना भगवान को अपने भक्तों को परेशान करने में बहुत मजा आता हैं।
हम एटीएम को ढूंढते-ढूंढते 5-6 किलोमीटर इधर-उधर पैदल चले लेकिन जो भी एटीएम मिलता वह खाली ही होता। अब सब एटीएम हम देख चुके थे व किसी में भी पैसे नही थे। थक हारकर हमने कुछ दुकानवालो से सहायता मांगी और उनसे कहा कि वह हमे कैश दे दे व हम उनके खाते में उसी समय ऑनलाइन पैसे जमा करा देंगे लेकिन कोई नहीं माना।
हमने ऑनलाइन ट्रेन की टिकट करवाने का सोचा लेकिन वह भी जा चुकी थी। अब हमारे पास कोई रास्ता नही बचा था व हम इधर-उधर लोगों से सहायता मांग रहे थे। फिर एक व्यक्ति ने हमे बताया कि इस समय एक दुकान खुली हो सकती हैं जो आधार कार्ड की सहायता से आपको कैश दे देगी। हम बहुत आशा से उस दुकान पर गए लेकिन वह भी बंद हो चुकी थी।
हम सुबह से बरसाना में थे इसलिये बहुत ज्यादा थक भी चुके थे। साथ ही यह नयी चिंता जिसके कारण हम ना कुछ खा पा रहे थे व ना ही वापस जा पा रहे थे लेकिन कहते हैं ना कि भगवान अपने भक्तों की परीक्षा लेते हैं तो हल निकालने भी स्वयं ही आ जाते हैं।
एक 60-70 वर्ष के बुजुर्ग उसी दुकान के बाहर खड़े थे व हमारी समस्या भी सुन रहे थे। अंत में उन्होंने हमे कहा कि आप चिंता ना करे व हमसे पूछा कि हमें कितने पैसो की आवश्यकता हैं। हमने कुछ खाने पीने व वापस दिल्ली जाने का मिलाकर लगभग 500 रूपए कहा। उन्होंने झट से 500 रूपए निकाल कर हमे दे दिए। मैंने उन्हें ऑनलाइन पैसे भेजने के लिए अपना मोबाइल निकाला लेकिन उन्होंने मना कर दिया। उन्होंने कहा कि वे ऑनलाइन बैंकिंग का इस्तेमाल नही करते हैं व उन्हें अपना खाता इत्यादि का भी नही पता हैं।
फिर हमने पूछा कि हम उनको पैसे कैसे देंगे तो उन्होंने कहा कि इसे भगवान कृष्ण की कृपा समझो लेकिन हम नही माने और जिद्द करने लगे। हमने उनसे उनका मोबाइल नंबर माँगा ताकि जब वे वापस अपने घर जाये तो किसी से पूछकर हमे ऑनलाइन डिटेल दे सके ताकि हम उस खाते में पैसे जमा करा सके। उन्होंने कहा कि वे मोबाइल भी नही रखते हैं तो हम निराश हो गए और बोले कि फिर हम यह पैसे नही ले सकते। यह देखकर उन्होंने कहा कि वह अपने एक रिश्तेदार का मोबाइल नंबर हमे देंगे जिस पर हम घर पहुंचकर बात करके पैसे पहुंचा सकते है। हमने नंबर लिखा और सेव करने के लिए उनका नाम पूछा तो उन्होंने राधे-राधे बताया। हमे अटपटा तो लगा लेकिन हमने कुछ पूछा नही क्योंकि हमे नंबर तो मिल ही चुका था।
हमने उन बुजुर्ग व्यक्ति का बहुत धन्यवाद किया व उनसे पैसे लेकर कुछ खाया व वापस दिल्ली आ गये। देर रात से हम घर पहुंचे और आते ही हम जल्दी से नहा धोकर सो गये। अगले दिन हमने उनको पैसे भेजने के लिए उस नंबर पर कॉल मिलाया तो आश्चर्य कि बात हैं कि वह नंबर गलत था। सच में उन्हें भगवान कृष्ण ने ही हमारी सहायता करने को भेजा था। ऐसे विरले भक्त भगवान कृष्ण की नगरी में ही मिल सकते हैं।
तो यह थे कुछ ऐसे अनुभव जिसने मेरी मथुरा वृंदावन की यात्रा को हमेशा के लिए एक यादगार अनुभव में बदल दिया। इसी के साथ हम दोनों ने प्रण लिया कि अगली बार होली पर मथुरा वृंदावन के पूरे कार्यक्रम का भाग हम अवश्य बनेंगे। इसी के साथ आप सभी को जय श्री कृष्ण।