संकष्टी की कथा क्या है? पढ़ें गणेश चतुर्थी की कथा

Ganesh Chaturthi Vrat Katha

इस लेख में आपको गणेश चतुर्थी व्रत कथा (Ganesh Chaturthi Vrat Katha) पढ़ने को मिलेगी। हर वर्ष हम भाद्रपद मास के शुक्ल पक्ष की चतुर्थी को गणेश चतुर्थी का त्यौहार बड़ी ही धूमधाम के साथ मनाते हैं। इस दिन भगवान गणेश जी का जन्म हुआ था जिसके उपलक्ष्य में यह पर्व मनाया जाता है।

इस दिन व्रत रखने की भी परंपरा है जिससे एक रोचक कथा जुड़ी हुई है। अब बहुत लोगों को लगता होगा कि गणेश चतुर्थी की कथा (Ganesh Chaturthi Ki Katha) का संबंध भगवान गणेश के जन्म से होगा जबकि ऐसा नहीं है। दरअसल गणेश चतुर्थी कथा हम सभी को इस दिन व्रत रखने का महत्व बताती है। इसलिए आज हम आपको गणेश चतुर्थी की व्रत कथा के बारे में बताएँगे।

Ganesh Chaturthi Vrat Katha | गणेश चतुर्थी व्रत कथा

एक दिन माता पार्वती महादेव के साथ धरती पर विचरण कर रही थी। विचरण करते-करते वे दोनों नर्मदा नदी के किनारे गए और विश्राम करने लगे। समय बिताने के लिए माता पार्वती ने महादेव के साथ चौपड़ का खेल खेलने की इच्छा प्रकट की।

इस पर महादेव ने प्रश्न किया कि इस खेल में हार-जीत का निश्चय कौन करेगा? यह देखकर दोनों शंका में पड़ गए तब माता पार्वती ने एक उपाय निकाला। उन्होंने वहाँ पड़ी घास-फूंस से एक पुतले का निर्माण किया तथा उसकी प्राण-प्रतिष्ठा की। इसके फलस्वरूप उसमें प्राण आ गए तथा वह उनका पुत्र बन गया।

माता पार्वती ने उस बालक से कहा कि वे दोनों चौपड़ खेल रहे हैं तथा इस खेल में जो भी विजयी हो वह बिना किसी डर के यह बता दे। बालक माता पार्वती की बात मन गया तथा उनका खेल देखने लगा। भगवान शिव व माता पार्वती ने चौपड़ का खेल कुल तीन बार खेला व संयोगवश तीनों बार ही माता पार्वती की जीत हुई।

  • बालक की अज्ञानता

अंत में जब माता पार्वती ने उस बालक से हार-जीत का निश्चय करने को कहा तो उसने अज्ञानतावश महादेव को विजयी घोषित कर दिया। माता पार्वती उस बालक के इस उद्दंड स्वभाव से क्रोधित हो गई और उन्होंने उसे श्राप दिया कि वह एक टांग से लंगड़ा हो जाएगा तथा इसी कीचड़ में हमेशा के लिए पड़ा रहेगा।

यह सुनकर वह बालक भयभीत हो गया तथा माता पार्वती से क्षमा मांगने लगा। उसने माता पार्वती से कहा कि उसने यह जान-बूझकर नहीं बल्कि अज्ञानतावश किया है। इसलिए वे उसे अपना पुत्र समझकर क्षमा कर दें। उस बालक के द्वारा क्षमा मांगे जाने पर माता पार्वती को दया आ गई। उन्होंने उससे कहा कि एक वर्ष के भीतर यहाँ कुछ नाग कन्याएं गणेश जी की पूजा करने आएँगी। वह तुम्हें इस श्राप से मुक्त होने का मार्ग बताएंगी। यह कहकर माता पार्वती वहाँ से चली गई।

  • गणेश चतुर्थी व्रत का महत्व

एक वर्ष तक वह बालक उस कीचड़ में लंगड़ा बनकर पड़ा रहा। तत्पश्चात वहाँ नाग कन्याएं गणेश पूजन करने आई तो उस बालक ने उनसे अपनी मुक्ति का मार्ग पूछा। नाग कन्याओं ने उसे गणेश चतुर्थी के दिन व्रत रखने का महत्व बताते हुए उसे वह व्रत रखने को कहा। यह सुनकर उस बालक ने बारह दिनों तक गणेश जी का व्रत किया।

उसके व्रत से प्रसन्न होकर भगवान गणेश ने उस बालक को दर्शन दिए तथा अपनी मनोकामना बताने को कहा। बालक ने गणेश जी से अपनी टांग को ठीक करने तथा अपने माता-पिता से मिलने की इच्छा प्रकट की। भगवान गणेश ने उसकी मनोकामना पूर्ण की तथा इसके पश्चात वह सीधे कैलाश पर्वत पर भगवान शिव के पास पहुँच गया। इसी कारण गणेश चतुर्थी की कथा (Ganesh Chaturthi Ki Katha) को व्रत करते समय सुना जाता है।

  • शिवजी ने भी किया गणेश चतुर्थी का व्रत

जब भगवान शिव ने उस बालक से पूछा कि वह यहाँ तक कैसे पहुँचा। तब उसने गणेश व्रत की महिमा का सारा वृतांत सुना दिया। यह सुनकर भगवान शिव ने भी गणेश जी का व्रत किया क्योंकि उस दिन के बाद से माता पार्वती उनसे रूठी हुई थी। उनके व्रत करने के पश्चात माता पार्वती का क्रोध शांत हो गया तथा वे पुनः भगवान शिव के पास आ गई।

तब से गणेश चतुर्थी के दिन व्रत रखने की परंपरा शुरू हुई। इस दिन भगवान विघ्नहर्ता गणेश को प्रसन्न करने तथा अपने संकटों को दूर करने के उद्देश्य से उनका व्रत रखते हैं तथा मनोकामना मांगते हैं। इस तरह से गणेश चतुर्थी व्रत कथा (Ganesh Chaturthi Vrat Katha) का यहीं समापन होता है।

गणेश चतुर्थी व्रत कथा से संबंधित प्रश्नोत्तर

प्रश्न: गणेश चतुर्थी की कहानी क्या है?

उत्तर: गणेश चतुर्थी की कहानी हमने इस लेख में विस्तार से दी है जिसे आपको पढ़ना चाहिए यह कहानी महादेव व माता पार्वती के चौपड़ खेलने से जुड़ी हुई है

प्रश्न: गणेश चतुर्थी का व्रत करते हैं क्या?

उत्तर: गणेश चतुर्थी का व्रत करने का अपना विशेष महत्व है इस दिन व्रत करने से हमारे सभी संकट दूर हो जाते हैं और जीवन सुखमय बनता है

प्रश्न: गणेश चतुर्थी की असली कहानी क्या है?

उत्तर: गणेश चतुर्थी की असली कहानी भगवान शिव व माता पार्वती के चौपड़ का खेल खेलने से जुड़ी हुई है इस कहानी को हमने विस्तार से इस लेख में बताया है जिसे आपको पढ़ना चाहिए

प्रश्न: संकष्टी की कथा क्या है?

उत्तर: संकष्टी की कथा को ही गणेश चतुर्थी की व्रत कथा के नाम से जाना जाता है यह भगवान शिव और माता पार्वती के द्वारा चौपड़ खेलने से जुड़ी हुई है इसे हमने इस लेख में विस्तार से बताया है

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लेखक के बारें में: कृष्णा

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