गर्भाधान संस्कार (Garbhadhan Sanskar): सनातन धर्म में कुल सोलह संस्कार माने गए हैं जिनमें से तीन संस्कार शिशु के जन्म से पहले ही कर लिए जाते हैं। यह संस्कार शिशु के जन्म से लेकर एक व्यक्ति की मृत्यु तक चलते हैं। इन्हीं संस्कारों में सबसे प्रथम तथा महत्वपूर्ण संस्कार है गर्भाधान संस्कार जिसमें एक आत्मा का माँ के शरीर मे प्रवेश होता है तथा एक नया जीव उसके गर्भ में पलता है।
गर्भ धारण संस्कार (Garbhadhan Sanskar In Hindi) को इसलिए भी महत्वपूर्ण माना गया है क्योंकि इसके पश्चात ही एक शिशु का निर्माण होता है जो इस विश्व को चलाने तथा धर्म का पालन करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। अन्य सभी संस्कारों के लिए गर्भाधान संस्कार का होना अनिवार्य है। आखिर इस संस्कार का इतना महत्त्व क्यों है तथा इस समय किन बातों का ध्यान रखना आवश्यक होता है, आइए जानते हैं।
Garbhadhan Sanskar | गर्भाधान संस्कार क्या है?
सनातन धर्म में स्त्री तथा पुरुष के विवाह को अत्यधिक महत्वपूर्ण माना गया है। विवाह के पश्चात संभोग की क्रिया के द्वारा महिला का गर्भधारण करने की प्रक्रिया को गर्भाधान संस्कार का नाम दिया गया है। इसमें महिला के रज तथा पुरुष के वीर्य का मिलन करवाकर एक नए जीव को महिला के गर्भ में छोड़ा जाता है। इसे वह नौ माह तक अपने गर्भ में धारण करती है। अंत में उससे एक नए जीव की उत्पत्ति होती है और यह विश्व इसी तरह आगे बढ़ता है।
नए जीव को जन्म देने के कारण स्त्री को जननी कहा गया है जबकि पुरुष को उसका जनक। सनातन धर्म में एक महिला के द्वारा अपने पति से गर्भ धारण करने की प्रक्रिया को बहुत ही पवित्र माना गया है। इसी कारण गर्भ धारण संस्कार (Garbh Dharan Sanskar) को सोलह संस्कारों में प्रथम संस्कार माना गया है क्योंकि यह नए जीव की उत्पत्ति में उठाया गया प्रथम कदम होता है।
जब भी कोई संस्कार बनाया जाता है, तो उसे केवल नाम ही नहीं दिया जाता है। उसके लिए एक विधि या नियम होते हैं। यदि उन नियमों को ध्यान में रखकर गर्भधारण संस्कार किया जाता है तो जन्म लेने वाले शिशु में कोई कमी नहीं होती है। साथ ही वह शारीरिक व मानसिक रूप से एकदम स्वस्थ रहता है और यह उसके पूरे जीवनभर काम आता है। इसलिए आज हम आपके साथ गर्भाधान संस्कार की विधि या यूँ कहें की नियम सांझा करने जा रहे हैं।
गर्भाधान संस्कार विधि
गर्भाधान संस्कार के लिए कुछ नियम निर्धारित किए गए हैं जिनका ध्यान रखना अति-आवश्यक होता है। आप यह तो जानते ही होंगे कि हम सभी की अपने जन्म की तिथि और समय के अनुसार कुंडली बनाई जाती है। वह इसलिए क्योंकि पंडितों के द्वारा यह देखा जाता है कि जिस तिथि और समय में हमारा जन्म हुआ था, उस समय ग्रह और नक्षत्रों की क्या स्थिति थी। यह सभी हमारे जीवन पर प्रत्यक्ष व अप्रत्यक्ष रूप से प्रभाव डालते हैं।
ठीक उसी तरह जब पुरुष और महिला के द्वारा गर्भाधान संस्कार (Garbhadhan Sanskar In Hindi) किया जाता है तो उस समय किस तरह की स्थिति है, यह बहुत महत्वपूर्ण होती है। ऐसे में आइए गर्भधारण संस्कार के नियम जान लेते हैं।
- सर्वप्रथम नियम तो यही है कि गर्भाधान संस्कार के लिए स्त्री व पुरुष दोनों को ब्रह्मचर्य आयु से निकल कर गृहस्थ आयु में प्रवेश कर जाना चाहिए अर्थात दोनों की आयु 25 वर्ष से अधिक होनी चाहिए।
- इस समय के बाद स्त्री गर्भधारण करने के लिए शारीरिक रूप से सक्षम होनी चाहिए तथा उसमें किसी प्रकार के दोष नहीं होने चाहिए।
- संभोग करते समय स्त्री की ऋतु को ध्यान में रखना चाहिए तथा ऋतुस्नान की चौथी रात्रि से लेकर सोलहवीं रात्रि का समय सबसे उपयुक्त माना गया है।
- गर्भाधान के लिए रात्रि का समय उपयुक्त माना गया है क्योंकि दिन के समय पुरुष की प्राणवायु तेज होने के कारण संतान की आयु छोटी हो सकती है।
- गर्भाधान के समय पुरुष तथा महिला दोनों का प्रसन्नचित्त होना आवश्यक है तथा इस समय मन में किसी प्रकार की दुर्भावना को ना आने दें।
ऐसे में यदि आप Garbhadhan Sanskar करने जा रहे हैं तो आपको ऊपर बताए गए इन पाँच नियमों का मुख्य तौर पर ध्यान रखना चाहिए। इसके अलावा, कुछ लोगों के द्वारा इसके लिए शुभ मुहूर्त या तिथि की भी प्रतीक्षा की जाती है। हालाँकि यह गर्भ धारण करने में इतनी महत्वपूर्ण नहीं होती है। शुभ तिथि या मुहूर्त एक शिशु के जन्म की तिथि और समय पर महत्वपूर्ण होती है। ऐसे में आप उससे नौ माह पहले गर्भ धारण संस्कार कर सकते हैं।
Garbh Dharan Sanskar का महत्व
जब एक स्त्री पुरुष का विवाह होता है तब से उनके ऊपर एक सर्वश्रेष्ठ संतान की उत्पत्ति का उत्तरदायित्व आ जाता है। इसलिए विवाह के समय उनकी कुंडली का मिलान किया जाता है तथा उनके मिलन पर ही उनका विवाह किया जाता है। इसके अलावा ग्रह दोषों इत्यादि को भी ध्यान में रखा जाता है जिससे आने वाली संतान में किसी प्रकार की कोई विकृति या दोष न हो।
गर्भाधान के समय कई प्रकार के प्राकृतिक दोषों के आक्रमण शिशु पर हो सकते हैं इसलिए इन सबको ध्यान में रखकर इस संस्कार को किया जाता है। यह होने वाली संतान में सभी प्रकार के दोषों को दूर करने के उद्देश्य से किया जाता है जिससे उसमें माता-पिता संबंधी कोई दोष न हो तथा केवल उनके गुण ही आए।
इसके साथ ही Garbhadhan Sanskar के समय ग्रहों व नक्षत्रों का पूर्ण रूप से ध्यान रखा जाना चाहिए तथा ग्रहण, अमावस्या, श्राद्ध इत्यादि के समय गर्भाधान नहीं करना चाहिए। शुभ तिथि पर किया गया गर्भाधान संस्कार एक सुयोग्य संतान को जन्म देता है।
गर्भाधान संस्कार से संबंधित प्रश्नोत्तर
प्रश्न: गर्भाधान संस्कार का वर्णन कीजिए?
उत्तर: गर्भाधान संस्कार में एक विवाहित पुरुष के द्वारा अपनी धर्म पत्नी के साथ सभी नियमों का पालन करते हुए सम्भोग किया जाता है। इसके माध्यम से महिला के गर्भ में एक जीव की उत्पत्ति होती है।
प्रश्न: गर्भाधान संस्कार का प्रयोजन क्या है?
उत्तर: गर्भाधान संस्कार का प्रयोजन नए जीव की उत्पत्ति करना होता है। एक पुरुष और महिला के सम्भोग के द्वारा एक नए जीव की उत्पत्ति होती है। इसी तरह से यह विश्व चलता है और आगे बढ़ता है।
प्रश्न: गर्भाधान संस्कार किसे कहते हैं?
उत्तर: गर्भाधान संस्कार का अर्थ होता है पुरुष और महिला के संभोग के द्वारा महिला के गर्भ में एक नए जीव की उत्पत्ति होना। इसके माध्यम से नौ माह के पश्चात महिला एक नए शिशु को जन्म देती है।
प्रश्न: गर्भाधान संस्कार कब होता है?
उत्तर: गर्भाधान संस्कार एक विवाहित पुरुष के द्वारा अपनी धर्म पत्नी के साथ किया जाता है। इसके लिए कोई निश्चित दिन या तिथि नहीं होती है। हालाँकि इससे जुड़े कुछ नियम अवश्य होते हैं जिनके बारे में हमने इस लेख में बताया है।
प्रश्न: गर्भाधान संस्कार का समय क्या है?
उत्तर: गर्भाधान संस्कार का कोई निश्चित समय नहीं होता है। हालाँकि इसके नियमों के अनुसार यह दिन के समय नहीं किया जाना चाहिए। रात्रिकाल का समय गर्भाधान संस्कार के लिए उपयुक्त होता है।
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