गायत्री चालीसा इन हिंदी (Gayatri Chalisa In Hindi)

Gayatri Chalisa

हम सभी जब स्कूल में पढ़ते थे तब अवश्य ही हम सभी ने गायत्री मंत्र का जाप किया होगा। यहाँ तक कि हर पूजा पाठ से पहले भी गायत्री मंत्र का जाप किया जाता है और यह हम सभी को याद भी होता है। गायत्री माता को भगवान ब्रह्मा की पत्नी माना गया है जो हमें सभी प्रकार की सिद्धियाँ देने वाली होती हैं। उन्हें सरस्वती माता की तरह ही ज्ञान व बुद्धि की देवी भी माना गया है। इसी कारण गायत्री चालीसा (Gayatri Chalisa) का महत्व अत्यधिक बढ़ जाता है।

आज के इस लेख में हम आपको गायत्री चालीसा लिखित में देने जा रहे हैं। किन्तु क्या आप जानते हैं कि गायत्री माता की चालीसा (Gayatri Chalisa Lyrics In Hindi) एक नहीं बल्कि दो-दो हैं जिसमें से एक सर्वप्रसिद्ध है तो दूसरी कम विख्यात है। ऐसे में हम आपके साथ दोनों तरह की ही गायत्री माता चालीसा का पाठ करेंगे। इसी के साथ ही आपको इस लेख के माध्यम से गायत्री चालीसा इन हिंदी (Gayatri Chalisa In Hindi) में भी पढ़ने को मिलेगी।

यदि हम माँ गायत्री चालीसा को पढ़ने के साथ-साथ उसका अर्थ भी जान लेते हैं तो इसका ज्यादा प्रभाव देखने को मिलता है और हम उनका महत्व भी जान पाते हैं। इसी के साथ ही आपको गायत्री चालीसा के चमत्कार भी जानने को मिलेंगे। लेख के अंत में आपको गायत्री चालीसा के लाभ भी पढ़ने को मिलेंगे। तो आइये करते हैं चालीसा गायत्री माता की।

गायत्री चालीसा (Gayatri Chalisa)

।। दोहा ।।

ह्रीं, श्रीं क्लीं मेधा, प्रभा, जीवन ज्योति प्रचण्ड।

शांति, क्रांति, जागृति, प्रगति, रचना शक्ति अखण्ड।।

जगत जननि, मंगल करनि, गायत्री सुखधाम।

प्रणवों सावित्री, स्वधा, स्वाहा पूरन काम।।

।। चौपाई ।।

भूर्भुवः स्वः ॐ युत जननी, गायत्री नित कलिमल दहनी।

अक्षर चौबीस परम पुनीता, इसमें बसे शास्त्र, श्रुति, गीता।

शाश्वत सतोगुणी सतरुपा, सत्य सनातन सुधा अनूपा।

हंसारुढ़ श्वेताम्बर धारी, स्वर्ण कांति शुचि गगन बिहारी।

पुस्तक, पुष्प, कमण्डलु, माला, शुभ्र वर्ण तनु नयन विशाला।

ध्यान धरत पुलकित हिय होई, सुख उपजत दुःख-दुरमति खोई।

कामधेनु तुम सुर तरु छाया, निराकार की अद्भुत माया।

तुम्हारी शरण गहै जो कोई, तरै सकल संकट सों सोई।

सरस्वती लक्ष्मी तुम काली, दिपै तुम्हारी ज्योति निराली।

तुम्हारी महिमा पार न पावैं, जो शारद शतमुख गुण गावैं।

चार वेद की मातु पुनीता, तुम ब्रह्माणी गौरी सीता।

महामंत्र जितने जग माहीं, कोऊ गायत्री सम नाहीं।

सुमिरत हिय में ज्ञान प्रकासै, आलस पाप अविघा नासै।

सृष्टि बीज जग जननि भवानी, कालरात्रि वरदा कल्यानी।

ब्रह्मा विष्णु रुद्र सुर जेते, तुम सों पावें सुरता तेते।

तुम भक्तन की भक्त तुम्हारे, जननिहिं पुत्र प्राण ते प्यारे।

महिमा अपरम्पार तुम्हारी, जय जय जय त्रिपदा भयहारी।

पूरित सकल ज्ञान विज्ञाना, तुम सम अधिक न जग में आना।

तुमहिं जानि कछु रहै न शेषा, तुमहिं पाय कछु रहै न क्लेशा।

जानत तुमहिं तुमहिं हैजाई, पारस परसि कुधातु सुहाई।

तुम्हारी शक्ति दिपै सब ठाई, माता तुम सब ठौर समाई।

ग्रह नक्षत्र ब्रह्माण्ड घनेरे, सब गतिवान तुम्हारे प्रेरे।

सकल सृष्टि की प्राण विधाता, पालक, पोषक, नाशक, त्राता।

मातेश्वरी दया व्रतधारी, मम सन तरैं पातकी भारी।

जापर कृपा तुम्हारी होई, तापर कृपा करे सब कोई।

मंद बुद्धि ते बुद्धि बल पावैं, रोगी रोग रहित हो जावैं।

दारिद मिटे, कटे सब पीरा, नाशै दुःख हरै भव भीरा।

गृह कलेश चित चिंता भारी, नासै गायत्री भय हारी।

संतति हीन सुसंतति पावें, सुख संपत्ति युत मोद मनावें।

भूत पिशाच सबै भय खावें, यम के दूत निकट नहिं आवें।

जो सधवा सुमिरे चित लाई, अछत सुहाग सदा सुखदाई।

घर वर सुखप्रद लहैं कुमारी, विधवा रहें सत्यव्रत धारी।

जयति जयति जगदंब भवानी, तुम सम और दयालु न दानी।

जो सद्गुरु सों दीक्षा पावें, सो साधन को सफल बनावें।

सुमिरन करें सुरुचि बड़ भागी, लहै मनोरथ गृही विरागी।

अष्ट सिद्धि नवनिधि की दाता, सब समर्थ गायत्री माता।

ऋषि, मुनि, यति, तपस्वी, योगी, आरत, अर्थी, चिंतन, भोगी।

जो जो शरण तुम्हारी आवैं, सो सो मन वांछित फल पावैं।

बल, बुद्धि, शील, विद्या, स्वभाऊ, धन, वैभव, यश, तेज, उछाऊ।

सकल बढ़े उपजे सुख नाना, जो यह पाठ करै धरि ध्याना।

।। दोहा ।।

यह चालीसा भक्ति युत, पाठ करें जो कोय।

तापर कृपा प्रसन्नता, गायत्री की होय।।

गायत्री चालीसा इन हिंदी (Gayatri Chalisa In Hindi)

।। दोहा ।।

ह्रीं, श्रीं क्लीं मेधा, प्रभा, जीवन ज्योति प्रचण्ड।

शांति, क्रांति, जागृति, प्रगति, रचना शक्ति अखण्ड।।

हे माँ गायत्री देवी!! आप ही हमारे दिमाग का विकास करती हैं, आप ही हमारे यश को फैलाने का काम करती हैं और हमारे जीवन को एक नयी दिशा देती हैं। आप ही सब जगह शांति फैलाने तथा अधर्म के विरुद्ध क्रांति करने का काम करती हैं। आप ही लोगों में जागरूकता लाती हैं और हम सभी की उन्नति करती हैं। आपकी शक्ति अपरंपार है और इसका कोई तोड़ नहीं है, आपने ही हम सभी की रचना की है।

जगत जननि, मंगल करनि, गायत्री सुखधाम।

प्रणवों सावित्री, स्वधा, स्वाहा पूरन काम।।

आप ही इस सृष्टि की माता हैं, आप ही हम सभी का मंगल करती हैं, आपका धाम अत्यधिक सुख प्रदान करने वाला है। आपका नाम लेने से या ध्यान करने से हमारे सभी काम बन जाते हैं।

।। चौपाई ।।

भूर्भुवः स्वः ॐ युत जननी, गायत्री नित कलिमल दहनी।

अक्षर चौबीस परम पुनीता, इसमें बसे शास्त्र, श्रुति, गीता।

शाश्वत सतोगुणी सतरुपा, सत्य सनातन सुधा अनूपा।

हंसारुढ़ श्वेताम्बर धारी, स्वर्ण कांति शुचि गगन बिहारी।

आप ही इस भूमि की जननी हैं और आपने यह कार्य के स्वरुप को रचने अर्थात भगवान शिव के साथ मिलकर किया है। आप ही कलियुग में पापों का दहन करने वाली हैं। आपके गायत्री मंत्र में कुल चौबीस अक्षर हैं और उन चौबीस अक्षरों में संपूर्ण शास्त्र, वेद व भगवत गीता बसती है। हमेशा से ही आपका रूप सद्गुणों को धारण किये हुए है और आप सनातन धर्म का सत्य हैं। आपने श्वेत रंग के वस्त्र पहने हुए हैं और आपकी सवारी हंस है। आपका तेज सोने के जैसा है और आप आकाश में भ्रमण करती हैं।

पुस्तक, पुष्प, कमण्डलु, माला, शुभ्र वर्ण तनु नयन विशाला।

ध्यान धरत पुलकित हिय होई, सुख उपजत दुःख-दुरमति खोई।

कामधेनु तुम सुर तरु छाया, निराकार की अद्भुत माया।

तुम्हारी शरण गहै जो कोई, तरै सकल संकट सों सोई।

आपने अपने हाथों में पुस्तक, पुष्प, कमंडल व माला ले रखी है। आपका रंग श्वेत है और आँखें बहुत बड़ी-बड़ी हैं। जो भी आपका ध्यान करता है, उसे परम आनंद मिलता है, उसके सभी दुःख समाप्त हो जाते हैं और वह सुख प्राप्त करता है। आप कामधेनु गाय के समान हैं और आपकी शरण में हर कोई सुख पाता है। आपकी माया अद्भुत व निराकार है। आपकी शरण में जो भी आता है, आप उसके सभी संकट दूर कर देती हो।

सरस्वती लक्ष्मी तुम काली, दिपै तुम्हारी ज्योति निराली।

तुम्हारी महिमा पार न पावैं, जो शारद शतमुख गुण गावैं।

चार वेद की मातु पुनीता, तुम ब्रह्माणी गौरी सीता।

महामंत्र जितने जग माहीं, कोऊ गायत्री सम नाहीं।

आप ही माँ सरस्वती, लक्ष्मी व काली हो। आपकी ज्योति सबसे निराली है। आपकी महिमा का वर्णन तो सौ मुहं से भी नहीं किया जा सकता है। आपने ही चारों वेदों की रचना की है और आप ही ब्रह्माणी (सरस्वती), माँ गौरी (पार्वती) व माता सीता हो। इस धरती में जितने भी मंत्र हैं, उनमे से कोई भी गायत्री मंत्र की बराबरी नहीं कर सकता है।

सुमिरत हिय में ज्ञान प्रकासै, आलस पाप अविघा नासै।

सृष्टि बीज जग जननि भवानी, कालरात्रि वरदा कल्यानी।

ब्रह्मा विष्णु रुद्र सुर जेते, तुम सों पावें सुरता तेते।

तुम भक्तन की भक्त तुम्हारे, जननिहिं पुत्र प्राण ते प्यारे।

जो भी आपका ध्यान करता है, उसके हृदय में प्रकाश फैल जाता है तथा आलस्य, पाप व अज्ञानता उससे दूर चली जाती है। आप ही ने इस सृष्टि का निर्माण किया है और आप ही माँ कालरात्रि के रूप में हम सभी का कल्याण करती हो। भगवान ब्रह्मा, विष्णु व महेश समेत जितने भी देवी-देवता हैं, वे अपनी शक्तियां आपसे ही प्राप्त करते हैं। आप अपने भक्तों का बहुत ध्यान रखती हैं और उन्हें अपने पुत्र की भांति प्रेम करती हैं।

महिमा अपरम्पार तुम्हारी, जय जय जय त्रिपदा भयहारी।

पूरित सकल ज्ञान विज्ञाना, तुम सम अधिक न जग में आना।

तुमहिं जानि कछु रहै न शेषा, तुमहिं पाय कछु रहै न क्लेशा।

जानत तुमहिं तुमहिं हैजाई, पारस परसि कुधातु सुहाई।

आपकी महिमा अपरंपार है और हमारे डर को दूर करने के लिए आपकी जय हो। आपने ही इस जगत में ज्ञान, बुद्धि व विज्ञान को फैलाया है और आपके बिना यह संभव नहीं था। यदि कोई आपको जान ले तो कुछ अन्य जानना शेष नहीं रह जाता है। ठीक उसी तरह जो आपको पा लेता है, उसके सभी दुःख-दर्द समाप्त हो जाते हैं। जिस तरह से पारस मणि के संपर्क में आने से कोई भी धातु उसी के समान हो जाती है, ठीक उसी तरह जो भी आपको जान लेता है, वह आपके जैसा ही हो जाता है।

तुम्हारी शक्ति दिपै सब ठाई, माता तुम सब ठौर समाई।

ग्रह नक्षत्र ब्रह्माण्ड घनेरे, सब गतिवान तुम्हारे प्रेरे।

सकल सृष्टि की प्राण विधाता, पालक, पोषक, नाशक, त्राता।

मातेश्वरी दया व्रतधारी, मम सन तरैं पातकी भारी।

आपकी शक्ति हर जगह फैली हुई है। ब्रह्माण्ड में सब ग्रह, नक्षत्र इत्यादि सब आपकी शक्ति के कारण ही गतिमान हैं। आप ही इस संपूर्ण सृष्टि की निर्माणकर्ता हैं। आप ही इसका पालन-पोषण करने वाली और साथ ही अंत समय में इसका नाश करने वाली हैं। जो भी व्यक्ति आपके नाम का व्रत करता है, आप उसका कल्याण करती हैं और पापियों के पापों को भी नष्ट कर देती हैं।

जापर कृपा तुम्हारी होई, तापर कृपा करे सब कोई।

मंद बुद्धि ते बुद्धि बल पावैं, रोगी रोग रहित हो जावैं।

दारिद मिटे, कटे सब पीरा, नाशै दुःख हरै भव भीरा।

गृह कलेश चित चिंता भारी, नासै गायत्री भय हारी।

जिस किसी पर भी आपकी कृपा दृष्टि होती है, मान लीजिये उस पर सभी देवी-देवताओं की भी कृपा हो जाती है। आपके प्रभाव से अज्ञानी पुरुष में भी ज्ञान का संचार हो जाता है और यदि कोई रोगी है तो उसका रोग समाप्त हो जाता है। इसी तरह गरीबी मिट जाती है, संकट समाप्त हो जाते हैं और दुःख भी दूर हो जाते हैं। घर में अशांति हो या किसी चीज़ की चिंता सता रही हो, तो वह भी आपके प्रभाव से समाप्त हो जाती है।

संतति हीन सुसंतति पावें, सुख संपत्ति युत मोद मनावें।

भूत पिशाच सबै भय खावें, यम के दूत निकट नहिं आवें।

जो सधवा सुमिरे चित लाई, अछत सुहाग सदा सुखदाई।

घर वर सुखप्रद लहैं कुमारी, विधवा रहें सत्यव्रत धारी।

जिन्हें संतान प्राप्ति का सुख नहीं मिल रहा है, वे भी आपके प्रभाव से संतान को प्राप्त करते हैं। आपके भक्तगण सुख-संपत्ति के साथ आनंद मनाते हैं। आपकी शक्ति से तो भूत, प्रेत, पिशाच इत्यादि भी भय खाते हैं और यमराज के दूत भी आपके प्राण नहीं ले सकते हैं। यदि विवाहित स्त्री आपका ध्यान करती है तो उसके सुहाग अर्थात पति की रक्षा आप स्वयं करती हैं। आपके ध्यान से तो कुंवारी कन्याओं को भी सुयोग्य वर की प्राप्ति होती है और विधवा भी सत्यव्रत कर पाती है।

जयति जयति जगदंब भवानी, तुम सम और दयालु न दानी।

जो सद्गुरु सों दीक्षा पावें, सो साधन को सफल बनावें।

सुमिरन करें सुरुचि बड़ भागी, लहै मनोरथ गृही विरागी।

अष्ट सिद्धि नवनिधि की दाता, सब समर्थ गायत्री माता।

हे माँ जगदंबा भवानी!! आपकी जय हो, जय हो। आपके जैसा दयावान कोई और नहीं है। जो सच्चे गुरु से शिक्षा को ग्रहण करता है, वह अपने जीवन को सफल बना लेता है। जो भी आपका ध्यान करता है, उसके भाग खुल जाते हैं। मनुष्य अपने जीवन की किसी भी अवस्था में आपका ध्यान कर अपनी इच्छाओं की पूर्ति कर सकता है। आप हमें आठों सिद्धियाँ व नौ निधियां प्रदान करने में समर्थ हैं।

ऋषि, मुनि, यति, तपस्वी, योगी, आरत, अर्थी, चिंतन, भोगी।

जो जो शरण तुम्हारी आवैं, सो सो मन वांछित फल पावैं।

बल, बुद्धि, शील, विद्या, स्वभाऊ, धन, वैभव, यश, तेज, उछाऊ।

सकल बढ़े उपजे सुख नाना, जो यह पाठ करै धरि ध्याना।

ऋषि, मुनि, यति, तपस्वी, योगी, राजा, रंक, चिंतित व्यक्ति तथा मोहमाया का व्यक्ति इत्यादि जो भी आपकी शरण में आ जाता है, उसकी सभी इच्छाओं की पूर्ति आप कर देती हैं। जो भी इस गायत्री चालीसा का पाठ करता है, उसकी बुद्धि, शक्ति, शील, विद्या, धन, संपदा, यश, सम्मान, तेज, सुख इत्यादि सभी चीज़ों में वृद्धि देखने को मिलती है।

।। दोहा ।।

यह चालीसा भक्ति युत, पाठ करें जो कोय।

तापर कृपा प्रसन्नता, गायत्री की होय।।

जो भी भक्तगण इस गायत्री चालीसा का सच्चे मन से और भक्तिभाव से पाठ करता है, उससे गायत्री माता बहुत प्रसन्न होती हैं और उसका उद्धार कर देती हैं।

गायत्री माता की चालीसा – द्वितीय (Gayatri Mata Ki Chalisa)

।। दोहा ।।

जयति जयति अम्बे जयति, यज्ञ गायत्री देवी।

ब्रह्मज्ञान धारणिहृदय, आदिशक्ति सुरसेवी।।

।। चौपाई ।।

जयति जयति गायत्री अम्बा, काटहु कष्ट न करहु विलम्बा।

तब ध्यावत विधि विष्णु महेशा, लहत अगम सुख-शांति हमेशा।

तुहि जन ब्रह्मज्ञान उर धारणी, जग तारणि मग मुक्ति प्रसारणी।

जन तन संकट नासन हारी, हरणि पिशाच प्रेत दै तारी।

मंगल मोद भरणी भय नासनि, घट-घट वासिनि बुद्धि प्रकासिनि।

पूरण ज्ञान रत्न की खानि, सकल सिद्धि दानी कल्याणी।

शम्भु नेत्र नित निरत करैया, भव भय दारुण दर पहरइया।

सर्व काम क्रोधादि माया, ममता मत्सर मोह अदाया।

अगम अनिष्ट हरण महाशक्ति, सहज भरण भक्तन उर भक्ति।

‘ॐ, रूपकलि कलषु विभंजनि, ‘भूर्भवः’ ‘स्वः’ स्वतः निरंजनि।

शब्द ‘तत्सवितु’ हंस सवारी, अरु ‘वरेण्यं’ ब्रह्म ‘दुलारी’।

‘भर्गो’ -जनतनु क्लेश भगावत, प्रेम सहित ‘देवस्य’ जु ध्यावत।

‘धीमहि’ – धीर धरत उर माहीं, ‘धियो’ बुद्धि बल विमल सुहाही।

‘यो नः’ नित नवभक्ति प्रकाशन, ‘प्रचोदयात्’ पुंज अघनाशन।

अक्षर-अक्षर महं गुण रूपा, अगम अपार सुचरित अनूपा।

जो गणमंत्र न तुम्हरो जाना, शब्द अर्थ जो सुना न काना।

सो नर दुर्लभ असतन पावत, पारस गहतन कनक बनावत।

जब लगि ब्रह्म कृपा नहिं तेरी, रहहि तबहि लगि ज्ञान की देरी।

प्राकृति ब्रह्म शक्ति बहु तेरी, महा ‘व्यहृती’ नाम घनेरी।

ॐ-तत्व निर्गुण जग जाना, भूः-मम रूप चतुर्दल माना।

र्भुवः- भुवन पालन शुचिकारी, स्वः- रक्षा सोलह दलधारी।

त- विधि रूप जन पालन हारी, त्स- रस रूप ब्रह्म सुखकारी।

वि- कचित गंध शिशिर संयुक्ता, तु- रमित घट घट जीवन मुक्ता।

व- नत शब्द सुविग्रह कारण, रे- स्व शरीर तत्वनत धारण।

ण्य- सर्वत्र सुपालन कर्त्ता, भ- भवन बीच मुद मंगल भर्ता।

र्गो- संयुक्त गंध अविनाशी, दे- तन बुद्धि वचन सुखरासी।

व- सत् ब्रह्म युग बाहु स्वरुपा, स्य- तनु लसत षत दल अनुरूपा।

धी- जनु प्रकृति शब्द नित कारण, म- नितब्रह्म रूपिणी नित धारण।

हि- यहिसर्व परब्रह्म प्रकाशन, धियो- बुद्धि बल विद्या वासन।

यो- सर्वत्रलसत थल जल निधि, नः- नित तेज पुंज जग बहु विधि।

प्र- बलअनि अकाया नित कारण, चो- परिपूरण श्री शिव धारण।

द- मन करति अघ प्रगटनि शक्ति, यात- ज्ञान प्रविशन हरि भक्ति।

जयति जयति जय जय जगधात्री, जय जय महामंत्र गायत्री।

तुहि श्रीराम राधिका सीता, तुहि कृष्ण मुखर्सित गीता।

आदिशक्ति तुहि भक्ति भवानी, जगत जननि फल वांछित दानी।

तुहि श्रीदुर्गा दुर्ग नाशिनी, उमा रमा बैकुण्ठ वासिनी।

तुहि श्री भक्ति भैरव बानी, तुम्हीं मातु मंगला मृडानी।

जेते मंत्र जगत के माहीं, पर गायत्री सम कोई नाहीं।

जाहि ब्रह्म हत्यादिक लागै, गायत्रिहिं जप सो अघ भागै।

धनिहो धनि त्रैलोक्य वंदिनी, जय हो श्री ब्रह्म नंदिनी।

।। दोहा ।।

श्री गायत्री चालीसा, पाठ करै सानंद सहज

तरै पातक हरै, हरै न पुनि भव फंद।।

बास होई गृह लक्ष्मी, गहि मन वांछित आस,

आस पूर्णलहि सकल विधि, विरच्यो सुन्दर दास।।

गायत्री चालीसा लिरिक्स इन हिंदी – द्वितीय (Gayatri Chalisa Lyrics In Hindi)

।। दोहा ।।

जयति जयति अम्बे जयति, यज्ञ गायत्री देवी।

ब्रह्मज्ञान धारणिहृदय, आदिशक्ति सुरसेवी।।

हे माँ अम्बे!! आपकी जय हो, जय हो। हे माँ यज्ञ देवी व गायत्री माता!! आपकी जय हो। आपने ब्रह्म ज्ञान को अपने हृदय में धारण किया हुआ है और सभी देवता आपके सेवक हैं। आप ही माँ आदिशक्ति हो।

।। चौपाई ।।

जयति जयति गायत्री अम्बा, काटहु कष्ट न करहु विलम्बा।

तब ध्यावत विधि विष्णु महेशा, लहत अगम सुख-शांति हमेशा।

तुहि जन ब्रह्मज्ञान उर धारणी, जग तारणि मग मुक्ति प्रसारणी।

जन तन संकट नासन हारी, हरणि पिशाच प्रेत दै तारी।

हे माँ गायत्री व अम्बा!! आपकी जय हो, जय हो। आप हमारे कष्ट दूर करने में देरी ना करें। भगवान विष्णु व शिव भी आपका ध्यान कर सुख व शांति को पाते हैं। आपने ही ब्रह्मज्ञान को धारण किया हुआ है और आप ही हम सभी को मुक्ति प्रदान करने वाली हो। आप हम सभी के संकटों को दूर करने वाली और भूत, प्रेत व पिशाच का संहार करने वाली हो।

मंगल मोद भरणी भय नासनि, घट-घट वासिनि बुद्धि प्रकासिनि।

पूरण ज्ञान रत्न की खानि, सकल सिद्धि दानी कल्याणी।

शम्भु नेत्र नित निरत करैया, भव भय दारुण दर पहरइया।

सर्व काम क्रोधादि माया, ममता मत्सर मोह अदाया।

आप हम सभी का मंगल करने वाली और भय का नाश करने वाली हैं। आप हर जगह निवास करती हैं और बुद्धि का प्रकाश फैलाती हैं। आप ज्ञान का अथाह भंडार हैं और आप ही हम सभी को सिद्धियाँ प्रदान कर हमारा कल्याण करती हैं। आप ही शिवजी भगवान की तीसरी आँख में बस कर हम सभी का भय दूर करती हो। आप ही क्रोध, माया, ममता, मोह इत्यादि सभी काम की जननी हो।

अगम अनिष्ट हरण महाशक्ति, सहज भरण भक्तन उर भक्ति।

‘ॐ, रूपकलि कलषु विभंजनि, ‘भूर्भवः’ ‘स्वः’ स्वतः निरंजनि।

शब्द ‘तत्सवितु’ हंस सवारी, अरु ‘वरेण्यं’ ब्रह्म ‘दुलारी’।

‘भर्गो’ -जनतनु क्लेश भगावत, प्रेम सहित ‘देवस्य’ जु ध्यावत।

आप हर जगह हैं और आप ही अनहोनी को दूर करती हो। आप ही अपने भक्तों के हृदय को भक्तिभाव से भर देती हो। ॐ जैसे शक्तिशाली मंत्र के रूप में आप ही कलियुग के पापों का नाश करने वाली हैं। आप ही इस सृष्टि की देवी हैं और हर जगह व्याप्त हैं। तत्सवितु शब्द से हम यह जानते हैं कि आपकी सवारी हंस है और वरेण्यं शब्द का अर्थ आप भगवान ब्रह्मा को प्रिय हैं। भर्गो शब्द से आप अपने भक्तों के शरीर के रोग दूर कर देती हैं और देवस्य शब्द के द्वारा प्रेम का संचार होता है।

‘धीमहि’ – धीर धरत उर माहीं, ‘धियो’ बुद्धि बल विमल सुहाही।

‘यो नः’ नित नवभक्ति प्रकाशन, ‘प्रचोदयात्’ पुंज अघनाशन।

अक्षर-अक्षर महं गुण रूपा, अगम अपार सुचरित अनूपा।

धीमहि शब्द के द्वारा आप मनुष्य के मन को शांत करती हैं, धियो शब्द के द्वारा मनुष्य के दिमाग का विकास होता है और उसमे बुद्धि आती है। यो नः शब्द के द्वारा मनुष्य को नवधा भक्ति प्राप्त होती है। प्रचोदयात शब्द के द्वारा आप सभी तरह के संकटों का नाश कर देती हैं। गायत्री मंत्र के प्रत्येक अक्षर में अलग गुण हैं जो अगम, अपार व अनूप है।

जो गणमंत्र न तुम्हरो जाना, शब्द अर्थ जो सुना न काना।

सो नर दुर्लभ असतन पावत, पारस गहतन कनक बनावत।

जब लगि ब्रह्म कृपा नहिं तेरी, रहहि तबहि लगि ज्ञान की देरी।

प्राकृति ब्रह्म शक्ति बहु तेरी, महा ‘व्यहृती’ नाम घनेरी।

जिस भी व्यक्ति ने आपके मंत्र को नहीं जाना या उसके अर्थ को नहीं समझा, उस व्यक्ति को भगवान ने शरीर तो दे दिया लेकिन वह अपने पारस रुपी घड़े को पाप के घड़े में बदल रहा है। जब तक उस पर आपकी कृपा नहीं होती है, तब तक वह ज्ञान को नहीं पा सकता है। आपकी ब्रह्म शक्ति के कारण ही यह प्रकृति है और आपके कारण ही हम सभी का जीवन है।

ॐ-तत्व निर्गुण जग जाना, भूः-मम रूप चतुर्दल माना।

र्भुवः- भुवन पालन शुचिकारी, स्वः- रक्षा सोलह दलधारी।

त- विधि रूप जन पालन हारी, त्स- रस रूप ब्रह्म सुखकारी।

वि- कचित गंध शिशिर संयुक्ता, तु- रमित घट घट जीवन मुक्ता।

यह तो सभी को पता है कि गायत्री मंत्र का प्रथम अक्षर ॐ इस सृष्टि का निर्गुण व प्रथम शब्द है। भू का अर्थ पृथ्वी से है जिस पर हम टिके हुए हैं। र्भुवः शब्द का अर्थ इस पृथ्वी का पालन करने वाले अर्थात भगवान विष्णु से है। स्वः शब्द के द्वारा विष्णु इसकी रक्षा सोलह सेनाओं के साथ करते हैं। त शब्द के द्वारा इस जगत का पालन किया जाता है तथा त्स शब्द आनंद व सुख देने वाला है। वि शब्द अपने में सुगंध लिए हुए है जो चन्द्रमा के समान है। तु शब्द हर मनुष्य में जीवन को प्रदान करने वाला है।

व- नत शब्द सुविग्रह कारण, रे- स्व शरीर तत्वनत धारण।

ण्य- सर्वत्र सुपालन कर्त्ता, भ- भवन बीच मुद मंगल भर्ता।

र्गो- संयुक्त गंध अविनाशी, दे- तन बुद्धि वचन सुखरासी।

व- सत् ब्रह्म युग बाहु स्वरुपा, स्य- तनु लसत षत दल अनुरूपा।

व शब्द हमारे शरीर के रूप का परिचायक है जबकि रे शब्द शरीर जिन पंच तत्वों से बना है, उसे दिखाता है। ण्य शब्द से हर जगह हमारा पालन-पोषण होता है तो वहीं भ हमारा मंगल करता है। र्गो से हमे सभी तरह की सुगंध का आभास होता है और दे शब्द से हमारे शरीर को सुख मिलता है। व शब्द ब्रह्मा के स्वरुप को प्रदर्शित करता है जबकि स्य हमारे शरीर के अनुरूप होने को दिखाता है।

धी- जनु प्रकृति शब्द नित कारण, म- नितब्रह्म रूपिणी नित धारण।

हि- यहिसर्व परब्रह्म प्रकाशन, धियो- बुद्धि बल विद्या वासन।

यो- सर्वत्रलसत थल जल निधि, नः- नित तेज पुंज जग बहु विधि।

प्र- बलअनि अकाया नित कारण, चो- परिपूरण श्री शिव धारण।

द- मन करति अघ प्रगटनि शक्ति, यात- ज्ञान प्रविशन हरि भक्ति।

धी शब्द प्रकृति की उत्पत्ति के कारण का बोध कराता है तो वहीं म शब्द ब्रह्म रूप का बोध कराता है। हि शब्द ज्ञान के प्रकाश का सूचक है तो वहीं धियो शब्द हमें बुद्धि, विद्या व बल प्रदान करता है। यो शब्द भूमि, समुंद्र व निधि का बोध कराता है तो वहीं नः शब्द गायत्री माता के संपूर्ण जगत में फैले हुए तेज को बताता है।

प्र शब्द हमारी प्राणवायु का सूचक है जिससे हम सांस ले पाते हैं तो वहीं चो शब्द शिव भगवान का सूचक है जो हमारा अंत करेंगे। द शब्द हमारे मन के अंदर पैदा हो रहे नकारात्मक विचारों का अंत करने वाली शक्ति तो वहीं यात शब्द श्री विष्णु की भक्ति का सूचक है।

जयति जयति जय जय जगधात्री, जय जय महामंत्र गायत्री।

तुहि श्रीराम राधिका सीता, तुहि कृष्ण मुखर्सित गीता।

आदिशक्ति तुहि भक्ति भवानी, जगत जननि फल वांछित दानी।

तुहि श्रीदुर्गा दुर्ग नाशिनी, उमा रमा बैकुण्ठ वासिनी।

हे इस जगत की माता गायत्री देवी!! आपकी जय हो, जय हो। आपका गायत्री महामंत्र बहुत ही शक्तिशाली है। आप ही भगवान श्रीराम की पत्नी माता सीता हो। आप ही श्रीकृष्ण की राधा व उनके मुख से निकली भगवत गीता हो। आप ही माँ आदिशक्ति व भवानी हो। आप ही हम सभी की इच्छाओं की पूर्ति करती हो। आप ही माँ दुर्गा की भांति राक्षसों का अंत करती हो और आप ही माँ पार्वती, लक्ष्मी व सरस्वती हो।

तुहि श्री भक्ति भैरव बानी, तुम्हीं मातु मंगला मृडानी।

जेते मंत्र जगत के माहीं, पर गायत्री सम कोई नाहीं।

जाहि ब्रह्म हत्यादिक लागै, गायत्रिहिं जप सो अघ भागै।

धनिहो धनि त्रैलोक्य वंदिनी, जय हो श्री ब्रह्म नंदिनी।

आप ही माँ भैरवी व श्री अर्थात लक्ष्मी हो। आप ही हम सभी की माता हो और हमारा मंगल करती हो। इस जगत में जितने भी मंत्र हैं, वह गायत्री मंत्र से महान नहीं है। जिस भी व्यक्ति पर ब्रह्म हत्या अर्थात ब्राह्मण हत्या का दोष लगा हुआ है, वह भी गायत्री मंत्र के जाप से दूर हो जाता है। आप तीनों लोकों में पूजी जाती हो और आप धन्य हो। ब्रह्मा भगवान की नंदिनी!! आपकी जय हो।

।। दोहा ।।

श्री गायत्री चालीसा, पाठ करै सानंद सहज

तरै पातक हरै, हरै न पुनि भव फंद।।

बास होई गृह लक्ष्मी, गहि मन वांछित आस,

आस पूर्णलहि सकल विधि, विरच्यो सुन्दर दास।।

जो भी व्यक्ति सच्चे मन से गायत्री चालीसा का पाठ कर लेता है, उसके सभी दुःख दूर हो जाते हैं, वह भवसागर को पार कर लेता है और हरि को प्राप्त कर लेता है। उसके घर में माँ लक्ष्मी का वास होता है और उसकी सभी इच्छाएं पूरी हो जाती है। सुन्दरदास कहते हैं कि इस गायत्री चालीसा के पाठ से उसके सभी काम बन जाते हैं।

गायत्री चालीसा के चमत्कार (Gayatri Chalisa Ke Chamatkar)

गायत्री माता माँ आदिशक्ति का ही एक रूप हैं या फिर यूँ कहें कि माँ आदिशक्ति ही गायत्री माता हैं। सनातन धर्म में देवी माता के हर रूप का एक गुण होता है और इसी कारण उनकी पूजा की जाती है किन्तु गायत्री माता इन सभी से बिल्कुल भिन्न हैं। वह इसलिए क्योंकि इन्हें धर्म की स्थापना करने वाली प्रमुख देवी माना जाता है। हिन्दू धर्म का मुख्य आधार वेद ही हैं और यही सबसे पुराने ग्रंथ हैं जो सृष्टि की रचना से पहले और बाद में भी रहेंगे।

तो इन्हीं चारों वेदों की जननी गायत्री माता को माना जाता है। चारों वेदों की शक्तियां भी गायत्री मंत्र में ही निहित होती है और इसकी छाप गायत्री चालीसा में भी देखने को मिलती है। गायत्री चालीसा के माध्यम से हम गायत्री माता के द्वारा प्रदान की जाने वाली शक्तियां ग्रहण कर सकते हैं और आत्म-ज्ञान को प्राप्त कर सकते हैं। गायत्री चालीसा का मुख्य चमत्कार यही है कि इसके जाप से आप स्वयं ब्रह्म को अपने अंदर अनुभव कर सकते हैं और परम ज्ञान प्राप्त कर सकते हैं।

गायत्री चालीसा के लाभ (Gayatri Chalisa Benefits In Hindi)

ऊपर आपने गायत्री चालीसा के चमत्कारों को पढ़ा तो उससे आपको गायत्री चालीसा के लाभ भी कुछ सीमा तक समझ में आ गए होंगे। फिर भी हम इसे विस्तार देते हुए बता दें कि गायत्री माता को केवल चारों वेदों की ही नहीं अपितु सभी तरह के शास्त्रों व पुराणों की भी जननी माना जाता है। उनके द्वारा ही धर्म व संस्कृति की स्थापना की गयी थी तथा मनुष्य जाति को जीवन पद्धति व मानव कल्याण का संदेश दिया गया था।

यदि हम गायत्री चालीसा का नियमित रूप से पाठ करते हैं तो हम अपने अंदर एक नयी चेतना का अनुभव करते हैं। इस चेतना के माध्यम से हम में कार्य करने की शक्ति आती है और साथ के साथ हम मेधावी भी बनते हैं। इससे हमारे दिमाग का विकास होता है और हमारी सोचने-समझने की शक्ति भी बढ़ती है। कुल मिलाकर नियमित रूप से गायत्री चालीसा को पढ़ने से हमारे दिमाग व शरीर का संपूर्ण रूप में विकास होता है।

गायत्री चालीसा से संबंधित प्रश्नोत्तर

प्रश्न: गायत्री माता किसका अवतार है?

उत्तर: गायत्री माता को देव माता, ज्ञान गंगा व वेदों की जननी माना जाता है जो माँ आदिशक्ति का ही एक रूप हैं।

प्रश्न: गायत्री माता के कितने नाम हैं?

उत्तर: गायत्री माता के कुल 108 नाम हैं जिनमे से कुछ प्रसिद्ध नाम देव माता, वेद माता, ज्ञान गंगा इत्यादि है।

प्रश्न: गायत्री माता कौन सी देवी है?

उत्तर: चारों वेदों, शास्त्रों, पुराणों इत्यादि की जननी गायत्री माता ही हैं तथा इन्हें ही संस्कृति व धर्म की रचना करने वाली माना जाता है।

प्रश्न: गायत्री मंत्र में कितने देवता हैं?

उत्तर: गायत्री मंत्र में कुल 24 अक्षर होते हैं और यह 24 आदि देवताओं का सूचक माना जाता है।

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लेखक के बारें में: कृष्णा

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