विवाह के 8 प्रकार कौन कौन से हैं? जाने प्राचीन हिन्दू विवाह के प्रकार

विवाह के प्रकार (Vivah Ke Prakar)

आज हम आपको विवाह के प्रकार (Vivah Ke Prakar) बताने वाले हैं। हिंदू धर्म में विवाह को सात जन्मों का बंधन माना गया है जिसमें दो आत्माओं का मिलन होता है। विवाह संस्कार को सोलह संस्कारों में से पंद्रहवां संस्कार बताया गया हैं जिसमें एक व्यक्ति अपने ब्रह्मचर्य जीवन से गृहस्थ जीवन में प्रवेश करता है।

मनुस्मृति में विवाह को उनके प्रकार के अनुसार आठ भागों में विभाजित किया गया है। इन्हीं के आधार पर विवाह करने की परंपरा रही है। आज हम आपके सामने विवाह के 8 प्रकार (Vivah Ke 8 Prakar) रखने जा रहे हैं। इन्हें पढ़कर आपको प्राचीन हिन्दू विवाह के प्रकार की संपूर्ण जानकारी मिल जाएगी।

Vivah Ke Prakar | विवाह के प्रकार

विवाह एक पवित्र बंधन होता है लेकिन स्त्री व पुरुष के बीच में वह बंधन किन परिस्थितियों में होने जा रहा है, उसके अनुसार ही विवाह के 8 प्रकार (Vivah Ke 8 Prakar) बनाए गए हैं। अब कई बार यह देखने में आता है कि उस विवाह से पुरुष के घरवाले सहमत नहीं होते हैं तो लाभी स्त्री के घरवाले या फिर कभी-कभी दोनों के ही घरवाले उससे सहमत नहीं होते हैं।

वही कुछ अन्य परिस्थितियां भी उभर कर सामने आती है। उदाहरण के तौर पर स्त्री के घरवाले जबरदस्ती उसका विवाह किसी पुरुष से करवा देते हैं तो कभी-कभी विवाह विकट परिस्थितियों में भी करना पड़ता है। ऐसे में आइए जाने प्राचीन हिन्दू विवाह के प्रकार और उनका अर्थ।

#1. ब्रह्म विवाह

ब्रह्म विवाह को सर्वश्रेष्ठ विवाह माना गया हैं जिसमें दो परिवारों का मिलन होता है। ब्रह्म विवाह की सबसे बड़ी विशेषता कन्यादान मानी जाती है। ब्रह्म विवाह के लिए वर व वधु दोनों का ब्रह्मचर्य आश्रम से गृहस्थ आश्रम में आना आवश्यक होता है अर्थात उनकी आयु पच्चीस वर्ष से अधिक होनी चाहिए। ब्रह्म विवाह होने के लिए दोनों का एक वर्ण का होना आवश्यक है।

इसमें सर्वप्रथम वर के परिवार वाले रिश्ता लेकर वधु के घर जाते है तथा विवाह का प्रस्ताव रखते है। जब वधु के परिवार से सहमति मिल जाती है तो रिश्ता पक्का माना जाता है। इसके पश्चात पूरे विधि-विधान से तथा वैदिक मंत्रों के साथ विवाह करवाया जाता है जिसमें वधु के पिता के द्वारा कन्यादान कर दिया जाता है। कन्यादान के पश्चात वह स्त्री अब वर पक्ष की मान ली जाती है तथा उसे अब वही रहकर अपने जीवन के कर्तव्य पूर्ण करने होते है।

#2. प्रजापत्य विवाह

प्रजापत्य विवाह में वधु के माता-पिता विवाह के लिए उसकी सहमति नही लेते हैं तथा छोटी आयु में ही उसका विवाह संपन्न करवा देते हैं। इसमें कन्या का पिता अपनी पुत्री को वर को सौंपने की बजाये उसके पिता को सौंपता है। इसलिये विवाह के पश्चात वह अपने ससुराल चली जाती है।

चूँकि वह अभी छोटे ही होते है तो वधु को घर में कन्या के तौर पर ही रखा जाता है तथा गृहस्थ जीवन शुरू होने पर उन्हें एक साथ रहने की अनुमति मिल जाती है। यह ब्रह्म विवाह का ही एक स्वरुप होता है बस इसमें विवाह पहले करवा दिया जाता है।

#3. दैव विवाह

विवाह के प्रकार (Vivah Ke Prakar) में दैव विवाह एक ऐसा विवाह है जो ब्रह्म विवाह का ही रूप माना जाता है लेकिन इसमें कोई धार्मिक अनुष्ठान नही होता है। यह तब किया जाता था जब कोई व्यक्ति अपनी कन्या का विवाह करवाने में अक्षम होता था तथा उसके पास इतना धन नही होता था या कन्या का विवाह एक निश्चित आयु सीमा के भीतर नही हो पा रहा हो या उसके लिए कोई उचित वर न मिल पा रहा हो।

उस स्थिति में वह अपनी कन्या का विवाह किसी सिद्ध पुरुष या ज्ञानी व्यक्ति से करवा देते थे अर्थात वह धार्मिक अनुष्ठान इत्यादि में अपनी कन्या का दान कर देता था। इसे ही दैव विवाह की संज्ञा दी गयी है। यद्यपि धर्मशास्त्रों में दैव विवाह को जहाँ तक हो सके ना करने को कहा गया है लेकिन स्थिति के अनुसार इसका करना उचित समझा जाता था।

#4. आर्श विवाह

आर्श विवाह सामान्यतया वह विवाह होता था जिसमें वर पक्ष के लोग कन्या पक्ष से विवाह के बदले में उन्हें गाय तथा बैल देते थे। इसमें किसी प्रकार के धन का आदान-प्रदान नही होता था। इसलिये इसे गोदान विवाह भी कहा जाता था। यह मुख्यतया आदिवासी या निर्धन परिवारों की सहायता करने के उद्देश्य से भी किया जाता था। इस विवाह के द्वारा वर पक्ष कन्या शुल्क के रूप में गाय का दान करते थे।

#5. गंधर्व विवाह

गंधर्व विवाह को आज के समय के अनुसार प्रेम विवाह भी कहा जा सकता है। यह वह विवाह होता था जिसमें एक पुरुष तथा स्त्री एक दूसरे को पसंद करते थे लेकिन इसमें उनके परिवारों की सहमति नही होती थी। इसलिये उनकी आज्ञा के बिना यह विवाह किया जाता था तब इसे गंधर्व विवाह की संज्ञा दी गयी है। इसमें वे किसी बड़े धार्मिक अनुष्ठान के बिना विवाह कर लेते थे। इतिहास में देखा जाये तो महाराज दुष्यंत का शकुंतला से हुआ विवाह गंधर्व विवाह की श्रेणी में ही आता है।

#6. असुर विवाह

विवाह के 8 प्रकार (Vivah Ke 8 Prakar) में असुर विवाह को उचित विवाह की श्रेणी में नही रखा जाता था। यह सामान्यता निर्धन परिवारों की कन्याओं के साथ ज्यादा होता था जिसमें एक कन्या से विवाह के लिए उसका मूल्य चुकाया जाता था। इसमें वर पक्ष के द्वारा वधु पक्ष के लोगों को उनकी आवश्यकता से अधिक धन देकर कन्या का सौदा कर लेते थे तथा विवाह संपन्न हो जाता था।

यह सामान्यता उस स्थिति में होता था जब पुरुष में या तो कोई दोष हो, नीची जाति का हो या उस कन्या के लायक न हो जैसे कि उससे आयु में बड़ा होना या कोई अन्य कारण। शास्त्रों में इस विवाह को अच्छा नही माना गया है।

#7. राक्षस विवाह

जब कोई पुरुष तथा महिला एक दूसरे को पसंद करते हो तथा वर पक्ष के परिवार वाले इससे सहमत हो लेकिन वधु पक्ष के असहमत तब कन्या की पसंद को देखते हुए उससे विवाह कर लेना राक्षस विवाह की श्रेणी में आता था।

भगवान श्रीकृष्ण का भी राक्षस विवाह हुआ था जिसमें रुकमनी को वे पसंद थे लेकिन उनके घरवाले इसके लिए तैयार नही थे। तब श्रीकृष्ण ने रुकमनी को भगाकर उनसे विवाह किया था। इसके अलावा अन्य प्रसिद्ध उदाहरणों में भगवान श्रीकृष्ण की बहन सुभद्रा का अर्जुन से विवाह तथा महाराज पृथ्वीराज चौहान का सयोंगिता से विवाह भी राक्षस विवाह ही था।

#8. पैशाच विवाह

पैशाच विवाह को सबसे अधिक अनुचित विवाह की श्रेणी में रखा गया है। यह तब किया जाता था जब कोई कन्या या तो अपने होश में नही है या गहरी निद्रा में है या जबरदस्ती उसका विवाह किसी और से करवा दिया गया हो, उस विवाह को पैशाच विवाह की श्रेणी में रखा गया है।

यह विवाह अनुचित विवाह ही होता था जिसमे एक कन्या की सहमति के बिना किसी पराये पुरुष से उसका विवाह जबरदस्ती करवा दिया जाता था तथा जब उसे होश आता था तब उसे अपने विवाहित होने का पता चलता था।

इस तरह से आज आपने विवाह के प्रकार (Vivah Ke Prakar) जान लिए है। इसमें से हर विवाह का अपना अलग महत्व है। पहले के चार विवाह को वैदिक काल के अनुसार उच्च कोटि का विवाह माना जाता था लेकिन आज के समय में गंधर्व, असुर और राक्षस विवाह को भी सही माना जाता है जबकि पैशाच विवाह समाज व कानून दोनों की नज़र में अपराध होता है।

विवाह के 8 प्रकार से संबंधित प्रश्नोत्तर

प्रश्न: विवाह क्या है विवाह के प्रकार बताए?

उत्तर: विवाह को स्त्री व पुरुष के बीच जीवनभर का पति-पत्नी का संबंध बनाने वाला संस्कार माना जाता है हिन्दू धर्म के अनुसार विवाह के कुल आठ प्रकार है जिनके बारे में हमने इस लेख में बताया है

प्रश्न: विवाह के प्रकार बताइए?

उत्तर: विवाह के कुल 8 प्रकार होते हैं इनके नाम ब्रह्म, प्रजापत्य, दैव, आर्श, गंधर्व, असुर, राक्षस व पैशाच विवाह होते हैं इसमें से असुर, राक्षस व पैशाच विवाह को निम्न श्रेणी का माना जाता है

प्रश्न: हिंदू विवाह कितने प्रकार के होते हैं?

उत्तर: हिंदू विवाह आठ प्रकार के होते हैं उनके नाम ब्रह्म, प्रजापत्य, दैव, आर्श, गंधर्व, असुर, राक्षस व पैशाच विवाह है इसमें से ब्रह्म विवाह को उच्चतम कोटि का और पैशाच विवाह को निम्न स्तर का विवाह माना जाता है

प्रश्न: हिंदू विवाह क्या है?

उत्तर: हिंदू विवाह में स्त्री व पुरुष को अग्नि देव के समक्ष पंडित की उपस्थिति में जीवनभर एक-दूसरे का साथ निभाने की प्रतिज्ञा लेनी होती है इसके बाद उन दोनों के बीच पति-पत्नी का संबंध बन जाता है

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लेखक के बारें में: कृष्णा

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