पर्सनल हाइजीन क्या है? जाने व्यक्तिगत स्वच्छता की परिभाषा व उद्देश्य

Personal Hygiene In Hindi

आज हम आपके साथ पर्सनल हाइजीन (Personal Hygiene In Hindi) जिसे हिंदी में व्यक्तिगत स्वच्छता के नाम से जाना जाता है, के बारे में बात करने वाले हैं। दरअसल हमारे ऋषि-मुनियों ने आज से हजारों-लाखों वर्ष पहले ही मनुष्य सभ्यता को अद्वितीय ज्ञान विभिन्न ग्रंथों के माध्यम से दे दिया था।

इन ग्रंथों को पढ़कर आपको अवश्य ही व्यक्तिगत स्वच्छता की परिभाषा (Importance Of Personal Hygiene In Hindi) व उसमें निहित उद्देश्यों के बारे में पता चल जाएगा। अब आज के समय में इतना समय कहाँ किसी के पास है। इसलिए हमने आपके लिए कुछ ऐसे चुनिंदा मंत्रों की सूची तैयार की है जिनका पालन आपको आज से ही शुरू कर देना चाहिए।

Personal Hygiene In Hindi | पर्सनल हाइजीन

पुराणों व शास्त्रों में मनुष्य को प्रकृति, जीव जंतु, पेड़ पौधों से प्रेम करने को बताया गया है तथा सबकी रक्षा करने को कहा गया है। पुराणों में हमें जीवन देने वाली प्राणवायु, जल, सूर्य, नदियाँ, समुंद्र, पहाड़ इत्यादि सबका महत्त्व बताया गया है। हम इन्हें सुरक्षित व स्वच्छ रखेंगे तभी मानव सभ्यता जीवित रहेगी अन्यथा नहीं।

इसी के साथ पुराणों में मानव की शुद्धि कैसे की जाए व शरीर को कैसे स्वस्थ रखा जाए, इसके बारे में भी उल्लेख है। यदि हम अपने शरीर को स्वस्थ नहीं रखेंगे तो हमें कई प्रकार के संक्रमण हो सकते हैं। इन्हीं संक्रमणों के कारण हमारे शरीर में विभिन्न प्रकार के जीवाणु या कीटाणु प्रवेश कर जाते हैं जिसके परिणामस्वरुप हम बीमार पड़ जाते हैं।

इसलिए यदि आप पुराणों में बताए गए मंत्रों का अर्थ समझकर उनका पालन करेंगे तो किसी भी तरह के संक्रमण से अपना बचाव कर सकते हैं। आइए जानते हैं व्यक्तिगत स्वच्छता के उद्देश्य व ग्रंथों में लिखे गए मंत्रों के बारे में।

#1. हस्तपादे मुखे चैव पञ्चार्द्रो भोजनं चरेत्। (पद्मपुराण 51/88)

नाप्रक्षालितपाणिपादो भुञ्जीत न मुत्रोच्चारपीडित। (सुश्रुत संहिता, चिकित्सा स्थान २४)

अनुवाद: हमें हमेशा अपने हाथ, पैर व मुख को धोने के पश्चात ही भोजन को ग्रहण करना चाहिए।

अर्थ: यह दो मंत्र हैं किंतु दोनों में एक ही बात कही गई है। जीवाणु व कीटाणु का हमारे अंदर प्रवेश करने का सबसे सरल माध्यम हमारा मुहं ही होता है। यदि हम खाना खाने से पहले अपने हाथ व पैर नहीं धोएंगे तो खाना खाते समय जीवाणु हमारे हाथों व भोजन के माध्यम से हमारे शरीर में प्रवेश कर सकते हैं। इसलिए हमेशा भोजन करने से पहले हमें अपने हाथों, पैरों व मुहं को अच्छे से धो लेना चाहिए।

#2. लवणं व्यञ्जनं चैव घृतं तैलं तथैव च।

लेह्यं पेयं च विविधं हस्तदत्तं न भक्षयेत्। (धर्मंसिंधु)

अनुवाद: नमक, घी, तेल या कोई अन्य व्यंजन, पेय पदार्थ या खाने का कोई भी अन्य सामान यदि बिना चम्मच के सीधे हाथ से परोसा जाए तो वह मनुष्य के खाने योग्य नहीं रह जाता है।

अर्थ: चाहे सामने वाले व्यक्ति ने अपने हाथ धोएं हो अथवा नहीं किंतु भोजन को हमेशा चम्मच या किसी अन्य चीज़ से ही परोसा जाना चाहिए। बना हुआ भोजन कभी भी सीधे हाथ से ना परोसा जाए क्योंकि उसमें नामक, घी या तेल मानव त्वचा से संपर्क में आकर खाने को दूषित कर देता है। यदि यह भोजन आप करेंगे तो इससे संक्रमण आपके शरीर में फैलने की संभावना बढ़ जाती है।

#3. न अप्रक्षालितं पूर्वधृतं वसनं बिभृयात्। (विष्‍णुस्‍मृति)

अनुवाद: मनुष्य को एक बार पहने गए वस्त्रों को बिना धोए वापस धारण नहीं करना चाहिए।

अर्थ: आजकल की दिनचर्या में हमारी यह आदत बन गई है कि हम एक कपड़े को बिना धोए 2 से 3 बार पहनते हैं व फिर उसे धोते हैं किंतु पुराणों में इसे बिल्कुल गलत बताया गया है। हम उन कपड़ों को पहनकर बाहर जाते हैं व कितने ही जीवाणु व विषाणु के संपर्क में आते हैं। रास्ते में धुल, मिट्टी व प्रदुषण के कण भी हमारे कपड़ों से चिपक जाते हैं। इसलिए उचित यह रहता है कि हम उन्हें फिर से धोकर ही पहनें चाहे वह साफ ही क्यों ना हो।

#4. तथा न अन्यधृतं धार्यम् (महाभारत अनु.104/86)

अनुवाद: हमें दूसरों के पहने कपड़े नहीं पहनने चाहिए।

अर्थ: यदि दूसरे व्यक्ति को कोई संक्रमण है या कोई बीमारी है जिसके लक्षण अभी नहीं दिखाई दे रहे हैं व हम उसके कपड़े पहन लेते हैं चाहे वह धोए हुए हो या नहीं तब भी हमें वह बीमारी लगने का खतरा बना रहता है। इसलिए उचित यही है कि आप अपने कपड़े ही पहने, दूसरों के नहीं।

#5. स्नानाचारविहीनस्य सर्वा:स्यु: निष्फला: क्रिया (वाधूलस्मृति 69)

अनुवाद: बिना स्नान किए व बिना शुद्ध आचरण के सभी कार्य निष्फल हो जाते हैं। अतः हमें सभी कार्य स्नान करके व शुद्ध होकर ही करने चाहिए।

अर्थ: हम देखते हैं कि सर्दियों के मौसम में कई लोग एक या एक से अधिक दिनों तक स्नान नहीं करते हैं या अन्य दिनों में भी पहले काम करने लग जाते हैं व दोपहर या शाम में स्नान करते हैं। कुछ विद्यार्थी या जॉब करने वाले देर से उठने के कारण बिना स्नान किए काम पर निकल जाते हैं। पुराणों में इसे वर्जित माना गया है। इसमें हमें शिक्षा दी गई है कि मनुष्य को प्रातः स्नान करने के बाद ही दिन के बाकी सब काम करने चाहिए।

हिंदू धर्म में तो यहाँ तक बताया गया है कि स्नान किया हुआ व्यक्ति बिना स्नान किए हुए व्यक्ति के चरण स्पर्श भी नहीं कर सकता है क्योंकि इससे वह अशुद्ध हो जाता है। इसलिए हमेशा दिन में स्नान करने की आदत अवश्य डालें।

#6. घ्राणास्ये वाससाच्छाद्य मलमूत्रं त्यजेत् बुध:। (वाधूलस्मृति 9)

नियम्य प्रयतो वाचं संवीताङ्गोऽवगुण्ठित:। (मनुस्मृति 4/49)

अनुवाद: मल व मूत्र का त्याग करते समय हमेशा अपने नाक, मुहं व सिर को ढककर रखें व मौन रहें।

अर्थ: यह दो मंत्र दो अलग-अलग पुस्तकों में लिखे गए हैं लेकिन दोनों का तात्पर्य एक ही है जिसमें हमें समझाया गया है कि शरीर से अपशिष्ट पदार्थों का त्याग करते समय संक्रमण का खतरा बहुत अधिक होता है। इसलिए उस समय हमें अपने मुहं के ज्यादातर अंगों को ढककर रखना चाहिए। इसके पश्चात हमें अपने हाथों को अच्छे से धोना चाहिए।

#7. अपमृज्यान्न च स्नातो गात्राण्यम्बरपाणिभि:। (मार्कण्डेय पुराण)

अनुवाद: स्नान करने के पश्चात अपने शरीर को गीले कपड़े से नहीं पोंछना चाहिए क्योंकि इससे त्वचा का संक्रमण हो सकता है।

अर्थ: यदि आप किसी और का तौलिया इस्तेमाल में लाते हैं या स्वयं के ही गिले कपड़े या तौलिए से नहाने के बाद शरीर को पोछतें हैं तो यह गलत है। इससे आपको त्वचा का संक्रमण होने का खतरा बढ़ जाता है। इसलिए नहाने के बाद किसी सूखे कपड़े (तौलिए) से ही अपने शरीर को पोछें।

#8. चिताधूमसेवने सर्वे वर्णा: स्नानम् आचरेयु:।

वमने श्मश्रुकर्मणि कृते च। (विष्णुस्मृति)

अनुवाद: यदि आप श्मशान से वापस आ रहे हैं या आपने उल्टी की है या फिर आप बाल कटवा कर या दाढ़ी बनवा कर आ रहे हैं तो घर में आने के पश्चात सबसे पहले आपको स्नान करना चाहिए अन्यथा आपको संक्रमण का खतरा बना रहता है।

अर्थ: यह तीनों चीज़े ऐसी हैं जिसमें आपके शरीर को संक्रमण घेरे रखता है क्योंकि श्मशान घाट में मृत व्यक्ति, उल्टी व बाल काटने वाले औजार सभी संक्रमण के घटक हैं। इसलिए आपको घर आने के पश्चात स्नान अनिवार्य रूप से करना चाहिए क्योंकि इससे ना केवल आपको बल्कि घरवालों को भी संक्रमण का खतरा बना रहता है।

#9. न चैव आर्द्राणि वासांसि नित्यं सेवेत मानव:। (महाभारत अनु.104/52)

न आर्द्रं परिदधीत (गोभिलगृह्यसूत्र 3/5/24)

अनुवाद: हमें गीले कपड़े नहीं पहनने चाहिए।

अर्थ: गीले कपड़ों को पहनने से उस पर जीवाणु विषाणु के चिपकने का खतरा ज्यादा रहता है व कोई गंदगी भी लग जाए तो उसे जल्दी से साफ नहीं किया जा सकता है। साथ ही हमें सर्दी होने का भी खतरा रहता है। इसलिए हमेशा सूखे वस्त्रों को ही पहने।

#10. न वार्यञ्जलिना पिबेत्। (मनुस्मृति 4/63)

नाञ्जलिपुटेनाप: पिबेत्। (सु.चि.24/98)

अनुवाद: हमें अंजलि अर्थात हाथों से सीधे जल को नहीं पीना चाहिए। जल को हमेशा किसी पात्र या गिलास से पीना चाहिए।

अर्थ: कई बार हम अपने दोनों हाथों को जोड़कर पानी को पी लेते हैं जो कि गलत है। पानी को पीने के लिए हमेशा किसी बर्तन का इस्तेमाल करें व उसमें डालकर ही जल को पिएं।

व्यक्तिगत स्वच्छता की परिभाषा

व्यक्तिगत स्वच्छता या पर्सनल हाइजीन का अर्थ (Personal Hygiene In Hindi) होता है, व्यक्ति का अपने शरीर, कपड़ों व साथ ही आसपास के वातावरण को स्वच्छ रखना। इसमें सबसे पहले स्वयं का शरीर आता है, उसके बाद शरीर पर धारण किए जाने वाले वस्त्र व अंत में उसके आसपास का वातावरण जहाँ वह रहता है।

यदि इनमें से कोई भी एक चीज़ स्वच्छ नहीं है तो इसका अर्थ हुआ कि वह व्यक्ति व्यक्तिगत स्वच्छता से चूक रहा है। ऐसे में उसे इसे सुधारने के प्रयास करने चाहिए अन्यथा वह जीवाणुओं या विषाणुओं के संपर्क में आ सकता है।

व्यक्तिगत स्वच्छता के उद्देश्य (Importance Of Personal Hygiene In Hindi)

ऊपर हमने आपको पुराणों के जिन 10 मंत्रों की सहायता से पर्सनल हाइजीन के उद्देश्य समझाए हैं, उनसे आपको बहुत कुछ समझ में आ चुका होगा। फिर भी हम इसे विस्तृत रूप देते हुए आपको समझा दें कि व्यक्तिगत स्वच्छता के मुख्य उद्देश्य केवल और केवल मनुष्य को शारीरिक रूप से स्वस्थ रखना होता है।

यदि मनुष्य का शरीर ही अस्वस्थ हो गया या रोगग्रस्त हो जाता है तो वह कुछ भी नहीं कर पाता है। इससे उसके जीवन का लक्ष्य सहित, परिवार भी प्रभावित होता है। ऐसे में मनुष्य को हमेशा अपनी व्यक्तिगत स्वच्छता को लेकर जागरूक रहना चाहिए और इसमें किसी भी तरह की कोताही नहीं बरतनी चाहिए।

इस तरह से आज के इस लेख में आपने पर्सनल हाइजीन (Personal Hygiene In Hindi) के बारे में संपूर्ण जानकारी ले ली है। आशा है कि आगे से आप भी अपनी व्यक्ति स्वच्छता को बनाए रखने के लिए ऊपर बताई गई सभी बातों का पालन करेंगे।

पर्सनल हाइजीन से संबंधित प्रश्नोत्तर

प्रश्न: व्यक्तिगत स्वच्छता बनाए रखने के लिए 10 बातें क्या हैं?

उत्तर: व्यक्तिगत स्वच्छता बनाए रखने के लिए 10 बातें हमने इस लेख में विस्तार से बताई है जिन्हें आपको पढ़ना चाहिए

प्रश्न: पर्सनल हाइजीन में क्या क्या आता है?

उत्तर: पर्सनल हाइजीन में मनुष्य का शरीर सहित, उस पर धारण किए जाने वाले वस्त्र व आसपास का वातावरण आता है

प्रश्न: व्यक्तिगत की स्वच्छता क्या है?

उत्तर: व्यक्तिगत स्वच्छता का अर्थ होता है ऐसा व्यक्ति जो अपने शरीर के हरेक अंग को स्वच्छ रखता है और साथ ही स्वच्छ वस्त्रों को धारण करता है

प्रश्न: पर्सनल हाइजीन से आप क्या समझते हैं?

उत्तर: पर्सनल हाइजीन में व्यक्ति को अपने शरीर को स्वच्छ रखने की हरसंभव कोशिश करनी होती है इसी के साथ ही उसे साफ-सुथरे कपड़े भी पहनने होते हैं

प्रश्न: व्यक्तिगत स्वच्छता के लिए 3 कदम क्या है नाम लिखिए?

उत्तर: व्यक्तिगत स्वच्छता के लिए 3 कदम होते हैं, अपने शरीर की नियमित सफाई, प्रतिदिन स्वच्छ वस्त्रों का पहना जाना और जहाँ आप रह रहे हैं, उस जगह का साफ होना

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लेखक के बारें में: कृष्णा

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