भई प्रगट कुमारी भूमि विदारी (Bhai Pragat Kumari Bhumi Bidari)

जानकी स्तुति (Janki Stuti)

तुलसीदास जी द्वारा रचित जानकी स्तुति (Janki Stuti) – अर्थ, महत्व व लाभ सहित

माता जानकी का नाम पवित्रता का पर्यायवाची कह दिया जाए तो कोई अतिश्योक्ति नही होगी। सदियों पहले अयोध्या की प्रजा के द्वारा उनके चरित्र पर जो लांछन लगाया गया था, उसको धोने के लिए उन्होंने इतना बड़ा त्याग किया कि वे युगों-युगों तक पवित्रता शब्द की ही पर्याय बन गयी। ऐसे में आज हम जानकी माता की आराधना करने के लिए तुलसीदास जी द्वारा रचित जानकी स्तुति (Janki Stuti) का पाठ करेंगे।

माता जानकी की स्तुति की शुरुआत भई प्रगट कुमारी भूमि विदारी (Bhai Pragat Kumari Bhumi Bidari) पंक्तियों से होती है। इसके माध्यम से जानकी माता के जीवन, गुणों, शक्तियों, कर्मों, उद्देश्य व महत्व इत्यादि का वर्णन किया गया है। ऐसे में आज हम आपके साथ जानकी स्तुति इन हिंदी (Janki Stuti In Hindi) में भी सांझा करेंगे ताकि आप उसका भावार्थ भी समझ सकें। अंत में हम आपके साथ जानकी माता की स्तुति पढ़ने के लाभ व महत्व भी सांझा करेंगे। तो आइये सबसे पहले करते हैं श्री जानकी जी की स्तुति का पाठ।

जानकी स्तुति (Janki Stuti)

भई प्रगट कुमारी भूमि-विदारी जनहितकारि भयहारी।
अतुलित छबि भारी मुनि-मनहारी जनकदुलारी सुकुमारी॥

सुन्दर सिंघासन तेहिं पर आसन कोटि हुताशन द्युतिकारी।
सिर छत्र बिराजै सखि संग भ्राजै निज-निज कारज करधारी॥

सुर सिद्ध सुजाना हनै निशाना चढ़े बिमाना समुदाई।
बरषहिं बहुफूला मंगल मूला अनुकूला सिय गुन गाई॥

देखहिं सब ठाढ़े लोचन गाढ़े सुख बाढ़े उर अधिकाई।
अस्तुति मुनि करहीं आनंद भरहीं पायन्ह परहीं हरषाई॥

ऋषि नारद आये नाम सुनाये सुनि सुख पाये नृप ज्ञानी।
सीता अस नामा पूरन कामा सब सुखधामा गुण खानी॥

सिय सन मुनिराई विनय सुनाई सतय सुहाई मृदुबानी।
लालनि तन लीजै चरित सुकीजै यह सुख दीजै नृपरानी॥

सुनि मुनिबर बानी सिय मुस्कानी लीला ठानी सुखदाई।
सोवत जनु जागीं रोवन लागीं नृप बड़भागी उर लाई॥

दम्पति अनुरागेउ प्रेम सुपागेउ यह सुख लायउ मनलाई।
अस्तुति सिय केरी प्रेमलतेरी बरनि सुचेरी सिर नाई॥

॥ दोहा ॥

निज इच्छा मखभूमि ते प्रगट भई सिय आय।
चरित किये पावन परम बरधन मोद निकाय॥

जानकी स्तुति इन हिंदी (Janki Stuti In Hindi)

भई प्रगट कुमारी भूमि-विदारी जनहितकारि भयहारी।
अतुलित छबि भारी मुनि-मनहारी जनकदुलारी सुकुमारी॥

हे माता जानकी!! आप भूमि से प्रकट हुई थी और मिथिला नरेश जनक को खेत में हल जोतते हुए मिली थी। आप प्रजा के हित में कार्य करने वाली और सभी का भय दूर करने वाली हो। आपकी छवि अतुलनीय है और आप अपने रूप से हम सभी के मन को मोहित कर देती हो। आप जनक की दुलारी व सुकुमारी हो।

सुन्दर सिंघासन तेहिं पर आसन कोटि हुताशन द्युतिकारी।
सिर छत्र बिराजै सखि संग भ्राजै निज-निज कारज करधारी॥

आप सुंदर सिंहासन पर विराजती हैं और आपके अंदर अग्नि के जैसा तेज है। आपके सिर पर छत्र है और आप अपनी सखियों सहित रहती हैं तथा सभी के कार्य करती हैं।

सुर सिद्ध सुजाना हनै निशाना चढ़े बिमाना समुदाई।
बरषहिं बहुफूला मंगल मूला अनुकूला सिय गुन गाई॥

आपने जब इस धरती पर अवतार लिया तो स्वर्ग लोक से सभी देवता अपने-अपने विमानों में बैठकर आपके दर्शन करने हेतु पृथ्वी लोक पर आये। उन्होंने आकाश से आपके ऊपर पुष्पों की वर्षा की और आपकी महिमा के गुण गाये।

देखहिं सब ठाढ़े लोचन गाढ़े सुख बाढ़े उर अधिकाई।
अस्तुति मुनि करहीं आनंद भरहीं पायन्ह परहीं हरषाई॥

जिस किसी ने भी आपके बाल स्वरुप के दर्शन किये, उन्हें बहुत ज्यादा सुख की अनुभूति हुई। आपकी स्तुति तो सभी मुनिवर करते हैं और आनंद पाते हैं। आपके चरणों को छूकर हमें हर्ष की अनुभूति होती है।

ऋषि नारद आये नाम सुनाये सुनि सुख पाये नृप ज्ञानी।
सीता अस नामा पूरन कामा सब सुखधामा गुण खानी॥

राजा जनक के भवन में देवर्षि नारद मुनि पधारे और उन्होंने आपका नामकरण संस्कार किया। आपका नाम सुनकर राजा जनक बहुत ही प्रसन्न हुए। नारद मुनि ने कहा कि सीता का यह नाम सब कामो को पूरा करने वाला, सुख प्रदान करने वाला तथा गुणों की खान है।

सिय सन मुनिराई विनय सुनाई सतय सुहाई मृदुबानी।
लालनि तन लीजै चरित सुकीजै यह सुख दीजै नृपरानी॥

माता सीता के लिए इतने मधुर शब्द सुनकर सभी को बहुत ही संतोष हुआ और सभी ने उन्हें बहुत प्यार किया। माता सुनयना ने सीता को अपने सीने से लगा लिया और इससे उन्हें सुख की प्राप्ति हुई।

सुनि मुनिबर बानी सिय मुस्कानी लीला ठानी सुखदाई।
सोवत जनु जागीं रोवन लागीं नृप बड़भागी उर लाई॥

नारद मुनि के यह वचन सुनकर सीता माता मन ही मन मुस्कुराने लगी और अपनी लीला से सभी को सुख प्रदान किया। जब राजा जनक सोने लगे तो सीता माता रोने लगी। यह देखकर राजा जनक बहुत ही प्रसन्न हुए।

दम्पति अनुरागेउ प्रेम सुपागेउ यह सुख लायउ मनलाई।
अस्तुति सिय केरी प्रेमलतेरी बरनि सुचेरी सिर नाई॥

राजा जनक व राणी सुनयना ने माता सीता को बहुत प्रेम दिया और मन ही मन उनसे सुख प्राप्त किया। वे दोनों ही माता सीता को बहुत प्रेम से रखते थे और उन्हें किसी भी चीज़ की कमी नहीं होने देते थे।

॥ दोहा ॥

निज इच्छा मखभूमि ते प्रगट भई सिय आय।
चरित किये पावन परम बरधन मोद निकाय॥

इस पृथ्वी की आकांक्षाओं को पूरा करने हेतु माता सीता ने इस धरती पर अवतार लिया था। उन्होंने अपने कर्मों से इस धरती को पावन कर दिया और सभी के लिए आदर्श बन गयी।

भई प्रगट कुमारी भूमि विदारी (Bhai Pragat Kumari Bhumi Bidari) – महत्व

ऊपर के लेख में आपने जानकी स्तुति सहित उसका अर्थ भी पढ़ा और जानकी जी की स्तुति के भावार्थ को जाना। ऐसे में जानकी माता की स्तुति को लिखने का आशय यही था कि इससे जानकी माता के गुणों और कर्मों के बारे में संक्षिप्त परिचय दिया जा सके और हम उसके पाठ से अधिक से अधिक लाभ अर्जित कर सकें। जानकी मैया की स्तुति के पाठ से व्यक्ति को जानकी माता के अद्भुत गुणों के बारे में ज्ञान होता है।

माता जानकी त्याग, प्रेम, दया की प्रतीक हैं और उनका पूरा जीवन इसी को ही समर्पित रहा। उनके कर्मों के कारण वे युगों-युगों तक मनुष्य जाति के लिए एक प्रेरणास्रोत बन गयी और आज भी हम सभी उन्हें आदर्श मानकर उदाहरण देते हैं। ऐसे में जानकी माता स्तुति के माध्यम से जानकी माता के जीवन के बारे में अद्भुत वर्णन किया गया है। यही जानकी माता की स्तुति का महत्व होता है।

जानकी माता की स्तुति (Janki Mata Ki Stuti) – लाभ

अब यदि आप जानकी स्तुति पढ़ने के फायदे जानने को यहाँ आये हैं तो वह भी हम आपको बता देते हैं। आपने टीवी पर रामायण अवश्य ही देखी होगी और जब आप उसे देखते होंगे तो आपका हृदय अंदर से निर्मल हो जाता होगा। वहीं जब आप उस पर माता जानकी की भूमिका को देखते हैं तो आपके अंदर प्रेम सहित त्याग की भावना विकसित होती है जो आपको दूसरों का भला करने को प्रेरित करती है।

यही भावनाएं जानकी माता की स्तुति के पाठ से भी विकसित होती है। इससे आपका मन शांत होता है और उसमें सकारात्मक विचार आते हैं। मन में जो द्वेष, घृणा, तनाव, ईर्ष्या, लोभ, क्रोध इत्यादि की भावनाएं पनप रही थी, वह सभी समाप्त होने लगती है तथा मन प्रेम, स्नेह, दया, करुणा, त्याग, आध्यात्म की भावनाओं से भर जाता है। इससे ना केवल आप शांत मन से अपना कार्य कर पाते हैं बल्कि उसे उत्तम तरीके से भी करते हैं। यही श्री जानकी स्तुति को पढ़ने के मुख्य लाभ होते हैं।

जानकी स्तुति से संबंधित प्रश्नोत्तर

प्रश्न: जानकी के पिता कौन है?

उत्तर: आपके प्रश्न का उत्तर पूछे गए प्रश्न में ही निहित है। दरअसल माता सीता को जानकी इसलिए कहा जाता है क्योंकि उनके पिता का नाम जनक है। ऐसे में जानकी के पिता राजा जनक है।

प्रश्न: भगवान राम कौन सी जाति के हैं?

उत्तर: भगवान श्रीराम का जन्म राजा दशरथ के घर कौशल्या माता के गर्भ से क्षत्रिय जाति में हुआ था। उन्हें सूर्यवंशी, रघुवीर इत्यादि के नाम से भी जाना जाता है।

प्रश्न: जानकी किसकी मां थी?

उत्तर: जानकी माता के श्रीराम से दो पुत्रों का जन्म हुआ था जिनका नाम लव व कुश था। आगे चलकर यही दोनों ही श्रीराम के उत्तराधिकारी बने थे।

प्रश्न: सीता जी की माता का नाम क्या है?

उत्तर: सीता जी की असली माता धरती माँ थी किन्तु उन्हें मिथिला नरेश जनक ने गोद ले लिया था जिस कारण जनक की पत्नी रानी सुनयना माता सीता की माता मानी जाती हैं।

नोट: यदि आप वैदिक ज्ञान 🔱, धार्मिक कथाएं 🕉️, मंदिर व ऐतिहासिक स्थल 🛕, भारतीय इतिहास, शारीरिक व मानसिक स्वास्थ्य 🧠, योग व प्राणायाम 🧘‍♂️, घरेलू नुस्खे 🥥, धर्म समाचार 📰, शिक्षा व सुविचार 👣, पर्व व उत्सव 🪔, राशिफल 🌌 तथा सनातन धर्म की अन्य धर्म शाखाएं ☸️ (जैन, बौद्ध व सिख) इत्यादि विषयों के बारे में प्रतिदिन कुछ ना कुछ जानना चाहते हैं तो आपको धर्मयात्रा संस्था के विभिन्न सोशल मीडिया खातों से जुड़ना चाहिए। उनके लिंक हैं:

अन्य संबंधित लेख:

लेखक के बारें में: कृष्णा

सनातन धर्म व भारतवर्ष के हर पहलू के बारे में हर माध्यम से जानकारी जुटाकर उसको संपूर्ण व सत्य रूप से आप लोगों तक पहुँचाना मेरा उद्देश्य है। यदि किसी भी विषय में मुझसे किसी भी प्रकार की कोई त्रुटी हो तो कृपया इस लेख के नीचे टिप्पणी कर मुझे अवगत करें।

प्रातिक्रिया दे

आपका ईमेल पता प्रकाशित नहीं किया जाएगा. आवश्यक फ़ील्ड चिह्नित हैं *

This site uses Akismet to reduce spam. Learn how your comment data is processed.