जूना अखाड़ा के महामंडलेश्वर कौन है? जाने जूना अखाड़ा का इतिहास

जूना अखाड़ा (Juna Akhada)

जूना अखाड़ा क्या है (Juna Akhada) व यह क्यों बनाया गया था? हिंदू धर्म से इसका क्या संबंध है व जूना अखाड़ा का इतिहास क्या है? क्या आप जानते हैं कि एक समय पहले जूना अखाड़े समेत कई अखाड़ों की स्थापना की गई थी जिसका उद्देश्य हिंदू धर्म की रक्षा करना था!! इन सभी अखाड़ों में जूना अखाड़ा सबसे बड़ा और महत्वपूर्ण था जिसमें नागा साधु देखने को मिलते हैं।

ऐसे में आपके मन में जूना अखाड़े को लेकर कई तरह के प्रश्न होंगे। जैसे कि जूना अखाड़े के महामंडलेश्वर कौन हैं, जूना अखाड़ा कहाँ पर है या जूना अखाड़ा का महत्व क्या है, इत्यादि। ऐसे में आइए जूना अखाड़े के बारे में संपूर्ण जानकारी ले लेते हैं।

Juna Akhada | जूना अखाड़ा क्या है?

6वीं शताब्दी में जब भारत की भूमि पर अफगानों व मुगलों के आक्रमण बहुत बढ़ गए व देश के विभिन्न राजा प्रलोभन में आकर उनसे लड़ने की बजाए आपस में लड़कर परास्त होने लगे तो भारत की धर्म संसद में इस पर चिंता प्रकट की गई। उस समय आदि गुरु शंकराचार्य ने हिंदू धर्म व भारत भूमि को बचाने के उद्देश्य से अखाड़ों की स्थापना की जिसमें साधुओं को धर्म की शिक्षा के साथ-साथ शस्त्र विद्या सीखना भी अनिवार्य था।

उस समय कुल 7 अखाड़ों की स्थापना की गई जो शैव, वैष्णव व उदासीन संप्रदाय से संबंधित थे। इन अखाड़ों का मुख्य उद्देश्य धर्म का प्रचार-प्रसार, लोगों को धर्म शिक्षा देने के साथ-साथ धर्म की रक्षा के लिए लड़ना भी था। वर्तमान में 13 अखाड़े हैं जिनमें जूना अखाड़ा सबसे प्रमुख व बड़ा है। आइए इसके इतिहास के बारे में जानते हैं।

जूना अखाड़ा का इतिहास (Juna Akhada History In Hindi)

जूना अखाड़े की स्थापना सन 1145 ईस्वी में उत्तराखंड के कर्णप्रयाग में की गई थी। इस अखाड़े का संबंध शैव संप्रदाय से है जिसके ईष्ट देव भगवान शिव के रुद्रावतार दत्तात्रेय हैं। जूना अखाड़े को भैरव अखाड़े के नाम से भी जाना जाता है। इस अखाड़े का केंद्र वाराणसी शहर में गंगा नदी के किनारे हनुमान घाट पर स्थित है। अखाड़े के प्रमुख आचार्य महामंडलेश्वर अवधेशानंद गिरि महाराज जी हैं। वे हरिद्वार के कनखल आश्रम में रहते हैं।

Juna Akhada से जुड़ने वाले साधु-संतों को अपने आम जन-जीवन से दूरी बनाकर मोह का त्याग कर देना होता है। इन्हें आजीवन भगवान महादेव की भक्ति करनी होती है। इस अखाड़े के नियम बहुत कड़े हैं जिनका हर हाल में पालन किया जाना होता है। नागा साधु सबसे ज्यादा जूना अखाड़ा में ही पाए जाते हैं।

जूना अखाड़ा कहां पर है?

वैसे तो जूना अखाड़े की स्थापना उत्तराखंड के कर्णप्रयाग में हुई थी लेकिन इसका मुख्यालय हरिद्वार नगरी के हनुमान घाट पर स्थित है। वहीं पर जूना अखाड़े के महामंडलेश्वर व अन्य उच्च पदाधिकारी बैठते हैं। एक तरह से जूना अखाड़े का सारा कामकाज और महत्वपूर्ण निर्णय यहीं से लिए जाते हैं।

जूना अखाड़ा का महत्व

Juna Akhada में लगभग 4 लाख से ज्यादा साधु संत हैं जिनमें से ज्यादातर नागा साधु हैं। नागा साधुओं का जीवन अत्यंत कठोर होता है जिन्हें जीवनभर सर्दी गर्मी में नग्न अवस्था में रहकर भगवान रूद्र की पूजा करनी होती है। इनसे जुड़े साधु विभिन्न प्रकार के योग व साधना करके स्वयं को मौसम की मार, संक्रमण व बीमारियों से बचाकर रखते हैं।

देश व विदेश में इनसे जुड़े लोगों की संख्या करोड़ों में है जो इस अखाड़े में मान्यता रखते हैं। इसी के साथ इस अखाड़े के प्रमुख अभी तक एक लाख से भी ज्यादा साधुओं व लोगों को दीक्षा दे चुके हैं। इस अखाड़े के हर पद के लिए एक प्रणाली व नियम है व हमेशा उसी का पालन किया जाता है।

जूना अखाड़ा के महामंडलेश्वर कौन हैं?

कुंभ मेले के समय अखाड़ों का वर्चस्व होता है खासकर जूना अखाड़े का। उस समय शाही स्नान के लिए जब Juna Akhada निकलता है तो हर कोई इन्हें देखता ही रह जाता है। लाखों की संख्या में नागा साधु गंगा में डुबकी लगाने निकलते हैं। जूना अखाड़े के लिए कुंभ इसलिए भी महत्वपूर्ण है क्योंकि उसी समय इस अखाड़े के सभापति, मंडलेश्वर व महामंडलेश्वर का चुनाव किया जाता है।

चुनाव के लिए एक सभा आयोजित की जाती है जिसमें साधुओं के 52 मुख्य परिवारों के सभी बड़े सदस्य भाग लेते हैं व अखाड़े के लिए सभापति का चुनाव करते हैं। साथ ही अखाड़े में अन्य पदों जैसे कि कोतवाल, महंत, मंडलेश्वर इत्यादि के लिए साधुओं को चुना जाता है। अंत में सभी मिलकर अखाड़े के लिए महामंडलेश्वर का चुनाव करते हैं जो अखाड़े का प्रमुख अध्यक्ष व पीठाधिश्वर होता है।

एक बार चुना हुआ व्यक्ति जीवनपर्यंत के लिए उस पद पर बना रहता है। फिर से उस पद के लिए चुनाव उसकी मृत्यु के पश्चात किया जाता है। वर्तमान महामंडलेश्वर आचार्य अवधेशानंद जी का चुनाव सन 1998 के कुंभ के समय किया गया था। इस तरह से जूना अखाड़ा के महामंडलेश्वर स्वामी अवधेशानंद जी हैं।

जूना अखाड़ा नागा साधु

Juna Akhada में रामता पञ्च के सदस्यों का चुनाव भी किया जाता है जिन्हें चल सदस्य भी कहते हैं। इनका कार्य अखाड़े की रक्षा करना व अपने ईष्ट देवता की पूजा अर्चना करना होता है।

अखाड़ों की स्थापना मुख्य तौर पर साधुओं को धर्म के साथ-साथ सैन्य विद्या सिखाने के उद्देश्य से की गई थी ताकि वे विदेशी आक्रांताओं से लड़ सकें किंतु भारत देश की स्वतंत्रता के बाद अखाड़ों का स्वरुप भी बदल गया। चूँकि अब देश स्वतंत्र हो चुका था व एक शासन व्यवस्था बन चुकी थी तो अखाड़ों ने भी शस्त्र विद्या त्याग दी थी।

वर्तमान में इन अखाड़ों में देश व समाज को धर्म के प्रति शिक्षित करना, शास्त्रार्थ करना, विभिन्न मंचों पर विचार-विमर्श करना व लोगों को जागरूक करने से है। अखाड़े में मुख्य रूप से दो स्वरुप हैं जिन्हें दो श्रेणियों में वर्गीकृत किया गया है। एक है घर जिसमें अखाड़े से जुड़े साधुओं के परिवारों के लिए निर्णय लिए जाते हैं व दूसरा है समाज जिसमें समाज से जुड़े निर्णय लिए जाते हैं।

जूना अखाड़े से संबंधित प्रश्नोत्तर

प्रश्न: जूना अखाड़ा के महंत कौन है?

उत्तर: जूना अखाड़ा के महंत महाकाल गिरी हैं जिन्हें कोठारी महंत भी कहा जाता है

प्रश्न: जूना अखाड़ा का अध्यक्ष कौन है?

उत्तर: जूना अखाड़ा का अध्यक्ष आचार्य महामंडलेश्वर अवधेशानंद गिरि महाराज जी हैं।

प्रश्न: जूना अखाड़ा कहाँ स्थित है?

उत्तर: जूना अखाड़ा उत्तराखंड राज्य के हरिद्वार नगरी के हनुमान घाट के पास स्थित है

प्रश्न: जूना अखाड़े का मुखिया कौन है?

उत्तर: जूना अखाड़े का मुखिया आचार्य महामंडलेश्वर अवधेशानंद गिरि महाराज जी हैं।

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लेखक के बारें में: कृष्णा

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