
सनातन धर्म के सोलह संस्कारों में से कर्णभेद संस्कार (Karnavedha Sanskar) को नौवां संस्कार माना गया हैं। इसके तहत एक निश्चित आयु के बाद बच्चों के कान छिदवाने होते है। ऐसा धार्मिक तथा स्वास्थ्य पहलुओं को ध्यान में रखकर किया जाता है। साथ ही यह संस्कार बच्चे की शिक्षा शुरू करवाने से पहले किया जाता है।
Karnvedh Sanskar एक विधि के द्वारा संपन्न किया जाता है तथा इसे करवाने के पीछे कई मान्यताएं है। ऐसे में आपके मन में प्रश्न उठते होंगे कि कर्णवेध संस्कार क्या है या कर्णवेध संस्कार कब करना चाहिए, इत्यादि। इसलिए आज हम आपको कर्णवेध संस्कार के फायदे सहित इसके बारे में समुचित जानकारी देंगे।
Karnavedha Sanskar | कर्णवेध संस्कार क्या है?
हिंदू रीति रिवाजों में सभी धार्मिक तथा स्वाथ्य के पहलुओं को ध्यान में रखकर मनुष्य के जीवन में सोलह संस्कार निर्धारित किये थे जिनका उसके जीवन में अत्यधिक महत्व होता है। उसी में से कर्णभेद संस्कार नौवां संस्कार माना जाता है। इसका अर्थ होता हैं कानों का भेदन। यह संस्कार उसकी विद्या के आरम्भ होने से पहले किया जाता है ताकि वह उसमे सक्षम बन सके।
इस संस्कार को करने के लिए किसी विशेष तिथि को निर्धारित किया जाये यह आवश्यक नही। इसे आप अपनी आवश्यकतानुसार कभी भी करवा सकते है। इसके लिए आप अपने शिशु को किसी अनुभवी व्यक्ति के पास लेकर जाये तथा उसका कान छिदवाए। प्राचीन समय में इसे वर्ण व्यवस्था के अनुसार अलग-अलग रीति के अनुसार करवाया जाता था।
इसके लिए सूर्य की ओर मुख करके Karnvedh Sanskar किया जाता है। लड़को का पहले दाहिना कर्णभेद होता हैं फिर बाया कान जबकि लड़कियों में इसका विपरीत होता है। इसके साथ ही लड़कियों की बायी नाक का भी भेदन किया जाता है जिसमे नथनी पहनाई जाती है। कर्णभेदन के पश्चात लड़कों को कुंडल तथा लड़कियों को सोने की बालियाँ इत्यादि पहनाई जाती है।
वर्तमान में कर्णभेद संस्कार
वर्तमान में मुख्यतया लड़कियों के कान छिदवाने की प्रथा है तथा लड़कों के कान बहुत कम छिदवाते है। जबकि शास्त्रों के अनुसार दोनों के मानसिक तथा शारीरिक स्वास्थ्य को ध्यान में रखते हुए दोनों के ही कर्णभेद संस्कार की बात कही गयी है। जब हम ईश्वर के रूप को देखते हैं तो उसमे भी सभी पुरुषों के द्वारा कानों में कुंडल पहने हुए होते है। स्वयं भगवान श्रीराम तथा श्रीकृष्ण का भी कर्णभेद संस्कार हुआ था।
Karnavedha Sanskar विद्या ग्रहण करने से पूर्व अत्यंत लाभकारी माना गया हैं क्योंकि इससे मस्तिष्क की ओर जाने वाली नसे/ नाड़ियाँ खुल जाती हैं तथा वहां रक्त का प्रवाह अच्छे से हो पाता है।
कर्णवेध संस्कार कब करना चाहिए?
शास्त्रों में इसके लिए कोई निर्धारित सीमा तय नही की गयी है। पहले ज्यादातर लोग इसे बच्चे के जन्म के कुछ दिनों के पश्चात ही करवा लेते थे अर्थात 10 से 15 दिनों के बीच लेकिन आज के समय में यह सही नही है क्योंकि उस समय सभी प्रकार की चीज़ों का विशेष ध्यान रखा जाता था जिससे शिशु को कोई संक्रमण नही होता था। इसके साथ ही आसपास का वातावरण, वायु, जल इत्यादि शुद्ध होते थे किंतु आज के समय को देखते हुए इसे इतनी जल्दी करवाना भी ठीक नही है।
कुछ जगह इसे बच्चे के जन्म के छठे से आठवें माह के बीच में करवाने को कहा गया है लेकिन बच्चों की त्वचा बहुत कोमल व मुलायम होती है। इस समय उनके कान छिदवाने से समस्या उत्पन्न हो सकती है। वैसे तो इसके लिए कोई निर्धारित सीमा तय नही की गयी हैं इसलिये बच्चे के एक वर्ष के होने के पश्चात इसे विषम वर्ष के अनुसार करने को कहा गया है अर्थात पहला वर्ष, तीसरा वर्ष, पांचवा वर्ष इत्यादि।
-
कान छिदवाने की सही उम्र क्या है?
बच्चों के कान छिदवाने की सबसे सही उम्र तीन वर्ष मानी गयी है तथा आज के समय में ज्यादातर सभी लोग इसी आयु में अपने बच्चे के कान छिदवाते है। इस समय तक उनकी त्वचा थोड़ी सख्त हो जाती है इसलिये आप इस समय अपने बच्चे का कर्णभेद संस्कार करवा सकते है। ध्यान रखिये तीन वर्ष के पश्चात कान ना छिदवाए क्योंकि फिर बच्चे की त्वचा ज्यादा कठोर होने लगती है जिससे उन्हें अत्यधिक दर्द होगा।
कर्णभेद संस्कार से पहले इन बातों का ध्यान रखे
Karnavedha Sanskar के समय कई चीज़े ऐसी होती है जिनका जानना आपके लिए आवश्यक है। इससे आपके बच्चे को किसी भी तरह की असुविधा से बचाया जा सकता है। आइए जाने उनके बारे में।
- जिस व्यक्ति से भी कान छिदवायें वह अनुभवी होना चाहिए अन्यथा बाद में समस्या हो सकती है।
- जिस उपकरण से भी कान छिदवाना हो उसकी अच्छे से जाँच कर ले। बच्चे बहुत नाजुक होते है तथा उनमे जल्दी संक्रमण होता है इसलिये वह उपकरण अच्छे से साफ व धुला हुआ होना चाहिए।
- कान छिदवाने से पहले अपने बच्चे के कान की अच्छे से सफाई कर ले ताकि बाद में कोई समस्या न हो।
- यदि आपका बच्चा बीमार है या अभी कमजोर हैं तो उसके कान अभी मत छिदवायें। जब वह पूर्णतया ठीक हो जाये तभी उसका कर्णभेद संस्कार करवाए।
- कान छिदवाते समय बच्चे को कसके पकड़े ताकि वह हिले नहीं अन्यथा कोई अनहोनी भी हो सकती है।
Karnvedh Sanskar के बाद इन बातों का रखे ध्यान
कान छिदवाने के बाद भी कुछ बातों का ध्यान रखने की आवश्यकता है ताकि आपके बच्चे को ज्यादा दर्द न हो तथा संक्रमण न फैले। आइये जानते है:
- कान छिदवाने के बाद आप जो भी बाली या कुंडल अपने बच्चे को पहनाएं उसे अच्छे से साफ कर ले।
- कुंडल या बाली खरीदते समय इस बात का ध्यान रखे कि वह ज्यादा भारी न हो अन्यथा कान खींचकर लंबे हो सकते है तथा फट भी सकते है।
- बच्ची की बालियाँ खरीदते समय इस बात का ध्यान रखे कि वह नुकीली या मोतियों वाली न हो अन्यथा वह कपड़ों में अड़ सकती है।
- साथ ही आप अपने बच्चे को भी ऐसे कपड़े न पहनाएं जो उसकी कान की बालियों इत्यादि में फंसने वाले हो।
- सप्ताह में एक बार उनके कान से बालियों इत्यादि को निकालकर कान को अच्छे से साफ कर ले ताकि किसी प्रकार का संक्रमण न हो।
नीम की सीख कानों में लगाए
आप में से कई लोग इस नुस्खें को अपनाते भी होंगे जो प्राचीन समय से ही प्रसिद्ध है। दरअसल छोटे बच्चो के कान छिदवाने के बाद उनमें पस पड़ने या संक्रमण रहने का खतरा बना रहता है। कई लोग इसके लिए डॉक्टर इत्यादि के पास जाते है लेकिन हम आपको एक ऐसा तरीका बताएँगे जिससे न तो पस पड़ेगी तथा न ही बच्चे को इससे कोई संक्रमण फैलेगा।
इसके लिए आप अपने बच्चे का कान छिदवाने के पश्चात सीधे उसको बाली या कुंडल ना पहना दे बल्कि नीम के पेड़ की एक सीख डाल दे। नीम आयुर्वेदिक गुणों से युक्त वृक्ष होता है जिसमे जीवाणुओं से लड़ने की शक्ति होती है। इसके प्रयोग से संक्रमण को फैलने से रोकने में भी सहायता मिलती है। इसलिये आप कान छिदवाने के पश्चात अपने बच्चे के कान में कम से कम एक सप्ताह के लिए नीम की सीख डाले रखे। उसके पश्चात आप उसे बाली या कुंडल पहना सकते है।
कर्णवेध संस्कार के फायदे
अब बात करते हैं Karnavedha Sanskar को करवाने के क्या-क्या लाभ मिलते है। आइये जानते हैं:
- इससे मस्तिष्क की ओर जाने वाली नसे ठीक होती है जिससे रक्त का प्रवाह सुचारू रूप से होता है।
- आँखों की रोशनी तेज होती है।
- इससे ऐसी नसों पर दबाव पड़ता है जिससे मनुष्य की आयु लंबी होती है।
- लकवा जैसी बिमारियों से छुटकारा मिलता है। दिमाग का तेज गति से विकास होता है जो विद्या आरंभ करने में सहायक होता है।
- मानसिक दबाव/ तनाव से भी छुटकारा मिलता है।
- याद रखने की शक्ति भी बढ़ती है जिसके फलस्वरुप बच्चे की याददाश्त में बढ़ोत्तरी होती है।
- बच्चे के चेहरे में भी तेज आता है तथा त्वचा संबंधी कई रोगों से छुटकारा मिलता है।
- बच्चे का पाचन तंत्र भी ठीक रहता है तथा दस्त-कब्ज जैसी समस्याएं नही होती है।
इस तरह से आज आपने कर्णभेद संस्कार (Karnavedha Sanskar) के बारे में समूची जानकारी प्राप्त कर ली है। वर्तमान समय में मुख्यतया लड़कियों के द्वारा ही यह संस्कार किया जाता है जबकि लड़कों में से बहुत कम ही यह संस्कार करवाते हैं।
कर्णभेद संस्कार से संबंधित प्रश्नोत्तर
प्रश्न: कर्णवेध संस्कार कैसे करें?
उत्तर: कर्णवेध संस्कार करने के लिए किसी भी दिन अपने बच्चे को अनुभवी व्यक्ति के पास लेकर जाए और उसका कान छिदवाए। इसके बाद उसमे कुछ दिनों तक नेम की सीख डालकर रखे।
प्रश्न: लड़कियों ka कान कब छिदवाना चाहिए?
उत्तर: लड़कियों का कान तीन वर्ष की होने के बाद ही छिदवाना चाहिए। तीन वर्ष से पहले बच्चे में इतनी समझ नहीं होती है। वही यदि आप ज्यादा देर से छिदवाते हैं तो त्वचा कठोर होने लगती है।
प्रश्न: कान छिदवाने के लिए कौन सा दिन शुभ होता है?
उत्तर: कान छिदवाने के लिए किसी भी दिन को शुभ या अशुभ नही माना गया है। यह आप अपनी सुविधानुसार करवा सकते हैं। फिर भी यदि आपको शुभ दिन देखना है तो अपने पास के किसी पंडित से पूछा जा सकता है।
प्रश्न: लड़के कान क्यों छिदवाते है?
उत्तर: सनातन धर्म में लड़का हो या लड़की, हर किसी का कर्णवेध संस्कार करने की परंपरा है। यह उन्हें कई तरह के स्वास्थ्य लाभ प्रदान करता है जिसके बारे में हमने इस लेख में बताया है।
नोट: यदि आप वैदिक ज्ञान 🔱, धार्मिक कथाएं 🕉️, मंदिर व ऐतिहासिक स्थल 🛕, भारतीय इतिहास, शारीरिक व मानसिक स्वास्थ्य 🧠, योग व प्राणायाम 🧘♂️, घरेलू नुस्खे 🥥, धर्म समाचार 📰, शिक्षा व सुविचार 👣, पर्व व उत्सव 🪔, राशिफल 🌌 तथा सनातन धर्म की अन्य धर्म शाखाएं ☸️ (जैन, बौद्ध व सिख) इत्यादि विषयों के बारे में प्रतिदिन कुछ ना कुछ जानना चाहते हैं तो आपको धर्मयात्रा संस्था के विभिन्न सोशल मीडिया खातों से जुड़ना चाहिए। उनके लिंक हैं:
अन्य संबंधित लेख:
Agar ladkon mein sirf left kaan ko chidwaya jaaye to koi pareshani ki baat to nahi hai.
Kripya is baare mein batayiye
नही शालिनी जी, इसमें कोई भी समस्या नही हैं।