केशान्त संस्कार क्या होता है? जाने इसकी विधि व महत्व

केशांत संस्कार (Keshant Sanskar)

सनातन धर्म के कुल सोलह संस्कारों में से केशांत संस्कार (Keshant Sanskar) तेरहवां संस्कार माना जाता है जिसे गोदान संस्कार/ श्मश्रु संस्कार भी कहा जाता है। इसे मुख्यतया वेदारंभ संस्कार (बारहवां संस्कार) की समाप्ति के पश्चात तथा समावर्तन संस्कार (चौदहवां संस्कार) की शुरुआत से पहले संपन्न किया जाता है।

केशान्त संस्कार (Keshant Sanskar In Hindi) के माध्यम से व्यक्ति के सिर और दाढ़ी के बाल काट दिए जाते हैं तथा उसे गुरुकुल से घर भेज दिया जाता है। आइए केशांत संस्कार के बारे में संपूर्ण जानकारी जान लेते है।

Keshant Sanskar | केशांत संस्कार

केशांत शब्द दो शब्दों के मेल से बना है जिसमें केश का अर्थ बालों से तथा अंत का अर्थ समाप्त करने से है अर्थात किसी व्यक्ति के बालों को समाप्त करना। अब आप सोच रहे होंगे कि हिंदू धर्म के आठवें संस्कार जिसे चूड़ाकर्म या मुंडन संस्कार भी कहते हैं उसमे भी शिशु के बाल काटने होते थे तो यह उससे किस प्रकार अलग हुआ? आइये इसका उत्तर जानते हैं।

मुंडन संस्कार एक शिशु का किया जाता है जो कि उसकी एक से तीन वर्ष की आयु में होता है। उस समय उसके केवल सिर के बालों को काटा जाता है और वह भी वे बाल होते हैं जो उसे जन्म के समय से ही अपना माँ के गर्भ से मिले होते है। उस समय यह संस्कार उसके जन्म से मिली अशुद्धियों को दूर करने के उद्देश्य से किया जाता है।

जबकि केशांत संस्कार में एक किशोर हो चुके युवा के बाल काटे जाते हैं जिसमे उसकी प्रथम बार दाढ़ी भी बनायी जाती है अर्थात दाढ़ी के बाल काटे जाते है। इसमें दाढ़ी के बाल काटने के साथ ही सिर के बाल भी काट दिए जाते है।

केशान्त संस्कार (Keshant Sanskar In Hindi) एक युवा के वेदारंभ संस्कार की समाप्ति के पश्चात किया जाता है क्योंकि उसके पश्चात उसे गुरुकुल से अपने घर तथा समाज में पुनः लौटना होता है। इसलिये इस संस्कार को करने के पश्चात उसे स्नान करवा कर गुरु के द्वारा स्नातक की उपाधि प्रदान कर दी जाती है जिसके पश्चात वह अपने घर चला जाता है।

केशांत संस्कार कब होता है?

यह संस्कार तब किया जाता है जब एक व्यक्ति की दाढ़ी बढ़ जाती है तब उसकी प्रथम बार दाढ़ी काटी जाती है। चूँकि इससे पहले वह वेदारंभ संस्कार के नियमों का पालन कर रहा होता है जिसमें उसे गुरुकुल में रहकर सिर तथा दाढ़ी के बाल कटवाने की मनाही होती है। उस समय वह ब्रह्मचर्य का पालन करता है किंतु जब उसकी शिक्षा पूरी हो जाती है तथा जब उसे गुरुकुल से घर जाने की आज्ञा मिल जाती है तब उसका Keshant Sanskar करके घर भेज दिया जाता है।

इस संस्कार को बालक की सोलह वर्ष की आयु से पहले करना उचित नही समझा जाता है। इसलिये इसे सोलह वर्ष की आयु के पश्चात ही करना चाहिए। इसे करने के लिए शास्त्रों में उत्तरायण का समय उचित बताया गया है।

केशांत संस्कार का महत्व

एक मनुष्य अपनी आयु के आठवें से बारहवें वर्ष के बीच यज्ञोपवित संस्कार करके गुरुकुल में प्रवेश करता है जिसके बाद उसे एक निश्चित आयु तक (अधिकतम पच्चीस वर्ष) शिक्षा प्राप्त करनी होती है। इस समय तक उसे गुरुकुल के नियमों का पालन करते हुए अपने बालों तथा दाढ़ी कटवाने की मनाही होती है किंतु जब उसकी शिक्षा पूर्ण हो जाती है तब उसे वापस अपने घर भेज दिया जाता है।

इससे पहले उसका Keshant Sanskar इसलिये किया जाता है ताकि अब उसे यह अहसास दिलवाया जा सके कि अब उसे गुरुकुल के नियमों को त्यागकर समाज के नियमों में जाना है तथा उनका पालन करना है। साथ ही गुरुकुल में मिली शिक्षा के द्वारा बाहर कार्य करना है। एक तरह से यह संस्कार उसकी शुद्धिकरण करके उसे पुनः घर लौटाने के उद्देश्य से किया जाता है।

केशांत संस्कार से संबंधित प्रश्नोत्तर

प्रश्न: केशांत संस्कार का दूसरा नाम क्या है?

उत्तर: केशांत संस्कार का दूसरा नाम गोदान संस्कार भी है इस समय व्यक्ति विशेष के द्वारा गौ माता का दान ब्राह्मणों को किया जाता था इस कारण इसे गोदान संस्कार के नाम से भी जाना जाता है

प्रश्न: चूड़ाकरण संस्कार कब किया जाता है?

उत्तर: चूड़ाकरण संस्कार बालक की एक वर्ष की आयु होने के बाद किया जा सकता है इसका शुद्ध नाम चूड़ाकर्म संस्कार है वही इसे मुंडन संस्कार के नाम से भी जाना जाता है

प्रश्न: केशान्त संस्कार को गोदान संस्कार क्यों कहते हैं?

उत्तर: केशान्त संस्कार को गोदान संस्कार इसलिए भी कहते हैं क्योंकि इसमें छात्र के गुरुकुल से निकलने पर उसके पिता के द्वारा ब्राह्मणों को गौ माता का दान किया जाता है

प्रश्न: मुंडन कौन सा संस्कार है?

उत्तर: मुंडन आठवां संस्कार है जिसे बालक की एक वर्ष की आयु होने पर किया जाता है इसमें उसे अपनी माँ के गर्भ से मिले बालों को काट दिया जाता है

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लेखक के बारें में: कृष्णा

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