मधु व कैटभ का भगवान विष्णु से युद्ध तथा कुंभकरण व अतिकाय से संबंध

Madhu Kaitabha Ka Vadh

सतयुग में दो भयानक राक्षस हुए जिनके नाम थे मधु व कैटभ (Madhu Kaitabha Ramayan)। वे अत्यंत शक्तिशाली थे तथा स्वयं को मिले वरदान स्वरुप उन्होंने तीनों लोकों पर विजय प्राप्त कर ली थी। दोनों ने अपने पराक्रम से देवराज इंद्र को भी परास्त कर दिया था (Madhu And Kaitabha In Hindi) तथा स्वर्ग पर आधिपत्य स्थापित कर लिया था। उनकी तृष्णा यही नही शांत हुई, इसके पश्चात उन्होंने भगवान विष्णु के धाम वैकुण्ठ पर चढ़ाई कर दी (Madhu Kaitabha Ka Vadh)। आइए उस घटना के बारे में जानते हैं।

मधु कैटभ का भगवान विष्णु से युद्ध (Madhu Kaitabha Vishnu Yudh)

अपने अहंकार में मधु व कैटभ वैकुण्ठ धाम पहुँच गए तथा भगवान विष्णु को युद्ध के लिए ललकारा। वैकुण्ठ धाम में राक्षसों के आ जाने के कारण माता लक्ष्मी भयभीत व क्रोधित हो गयी किंतु भगवान विष्णु शांत रहे। भगवान विष्णु अपने शेषनाग से उतरे तथा उनके साथ भीषण युद्ध किया।

अंत में भगवान विष्णु ने उन दोनों का वध करने के उद्देश्य से अपना सुदर्शन चक्र चलाया लेकिन वह भी उन दोनों का वध कर पाने में अक्षम था। यह देखकर तीनों लोकों में भय व्याप्त हो गया लेकिन भगवान विष्णु ने अपना धैर्य नही खोया।

मधु तथा कैटभ लगातार भगवान विष्णु का उपहास कर रहे थे। अपने इसी अहंकार व मुर्खता में उन्होंने भगवान विष्णु से वर मांगने को कहा। वे ये नही जानते थे कि वे स्वयं नारायण व मायापति को वर मांगने को कह रहे हैं जो कि स्वयं सभी को वर देते हैं।

मधु व कैटभ का वध (Madhu Kaitabha Vadh)

जब मधु व कैटभ ने अपने अहंकार में भगवान विष्णु से वर मांगने को कहा तो उन्होंने बहुत ही चालाकी से काम लिया। भगवान विष्णु ने चालाकी से उनकी मृत्यु का मार्ग वर में मांग लिया। चूँकि मधु तथा कैटभ दोनों अपने अहंकार में चूर थे इसलिये उन्होंने भगवान विष्णु को अपने मृत्यु का मार्ग बता दिया।

उन्हें लगता था कि अब तो विष्णु भी उनसे हार चुके हैं इसलिये उन्हें कोई नही मार सकता (Madhu Aur Ketav Ka Janm)। उन्होंने भगवान विष्णु को अपनी मृत्यु का मार्ग बताते हुए कहा कि उनकी मृत्यु केवल उनकी जाँघों पर ही हो सकती है।

इतना सुनते ही भगवान विष्णु ने माया से अपने शरीर को इतना विशाल कर लिया कि वह तीनों लोकों में फैल गए। उन्होंने अपनी दोनों जांघों के बीच मधु तथा कैटभ को फंसा लिया तथा अपनी गदा से उनका वध कर डाला। इस प्रकार तीनों लोको में पुनः धर्म की स्थापना हो सकी व राक्षस राजा का अंत हो गया।

मधु कैटभ का कुंभकरण व अतिकाय से संबंध (Madhu Kaitabha Rebirth)

त्रेता युग में यही दोनों राक्षसों ने लंका में जन्म लिया (Madhu Kaitabha Reincarnation) जिसमे से मधु रावण का छोटा भाई कुंभकरण बना तथा कैटभ रावण का पुत्र अतिकाय। इसमें से एक का वध स्वयं भगवान विष्णु के अवतार श्रीराम ने तथा दुसरे का वध उनके शेषनाग लक्ष्मण ने किया था।

लेखक के बारें में: कृष्णा

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