मकराक्ष कौन था तथा उसका वध कैसे हुआ

Makraksh Vadh

मकराक्ष रामायण का एक राक्षस था जो रावण का भतीजा और खर का पुत्र (Makraksh Father Name) था। अपने पिता की मृत्यु के पश्चात उसके हृदय में प्रतिशोध की ज्वाला धधक रही थी (Makraksh Vadh)। जब से दंडकारण्य के जंगल में श्रीराम के द्वारा उसके पिता खर, काका दूषण की सभी सैनिकों के साथ हत्या कर दी गयी थी तब से वह श्रीराम से बदला लेने की चाह रखता था।

जब श्रीराम रावण से युद्ध करने लंका पहुँच चुके थे (Makraksh Kaun Tha) तथा उनकी सेना के द्वारा महान योद्धाओं अकम्पन, दुर्मुख तथा प्रहस्त को मार गिराया गया था तब रावण को समझ नही आ रहा था कि वह अब युद्धभूमि में किसे भेजे। ऐसे समय में मकराक्ष ने रावण के सामने युद्धभूमि में जाने की इच्छा व्यक्त की (Makraksh Kiska Putra Tha)।

मकराक्ष ने रावण को बताया कि जब से उसके पिता का वध हुआ है तब से उसकी माता ने अपने सुहाग व अन्य आभूषण वस्त्रों को नही उतारा हैं व उसने भी अपने पिता को अंतिम दर्पण नही दिया है। उसकी माता की इच्छा है कि उसका पुत्र मकराक्ष श्रीराम का मस्तक काटकर लेकर आए जिससे वह उसकी खोपड़ी में जल भरकर श्राद्ध अर्पण कर सके।

मकराक्ष की अपने पिता के प्रति ऐसी भक्ति देखकर तथा उसकी माता का संकल्प सुनकर रावण प्रसन्न हुआ तथा उसे युद्धभूमि में जाने की आज्ञा दे दी। रावण से आज्ञा पाकर मकराक्ष युद्धभूमि (Makraksh Yudh) में चला गया। वह तेज गति से युद्धभूमि में गया तथा पागलों की भांति राम को पुकारने लगा। उसकी पुकार सुनकर अंगद व लक्ष्मण आये तथा उसे युद्ध की चुनौती दी लेकिन वह केवल श्रीराम से युद्ध करना चाहता था।

उसने इसके लिए अपने माता के संकल्प की दुहाई दी तथा श्रीराम से युद्ध करने की इच्छा प्रकट की। इस पर लक्ष्मण तथा अंगद वानर सेना के साथ उसका उपहास करने लगे। यह देखकर स्वयं भगवन श्रीराम वहां आये तथा उन्हें मकराक्ष का उपहास करने से रोका। उन्होंने मकराक्ष के संकल्प का सम्मान करते हुए उसकी युद्ध की चुनौती स्वीकार की।

श्रीराम ने मकराक्ष को वचन दिया कि उन दोनों के युद्ध के बीच कोई नही आएगा तथा यदि इस युद्ध में उनकी मकराक्ष के द्वारा हार होती हैं तो उनके मस्तक पर केवल उसी का अधिकार होगा। इसका उत्तरदायित्व उन्होंने लक्ष्मण को सौंपा। इसके बाद दोनों के बीच भीषण युद्ध शुरू हुआ।

मकराक्ष अति-शक्तिशाली तथा मायावी राक्षस था लेकिन भगवान श्रीराम ने उसकी हर माया को विफल कर दिया। अंत में उसने आकाश में उड़कर माया से अपने कई रूप धारण कर लिए तथा भगवान राम पर प्रहार करने लगा। इस पर विभीषण ने श्रीराम को बताया कि केवल असली मकराक्ष के शरीर से ही रक्त निकलता हुआ दिखाई देगा। इसके पश्चात श्रीराम ने दिव्य अस्त्र चलाकर मकराक्ष का वध (Makraksh Vadh) कर दिया तथा वानर सेना को आदेश दिया कि उसके शव को सम्मान के साथ राक्षस सेना को लौटा दिया जाये।

लेखक के बारें में: कृष्णा

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