मातारानी के विभिन्न रूपों को प्रसन्न करने के लिए हम माता की आरती (Mata Ki Aarti) करते हैं। सनातन धर्म में मातारानी के कई रूप हैं जो उनके विभिन्न गुणों के परिचायक हैं। माता का कोई रूप शत्रुओं व दुष्टों का संहार करने के उद्देश्य से लिया गया है तो कोई रूप भक्तों व संतों को सुख देने के लिए। कोई रूप सौभाग्य का आशीर्वाद देता है तो कोई संतान प्राप्ति का सुख देता है।
यहीं कारण है कि आज के इस लेख में हम आपके साथ माता आरती (Mata Aarti) का पाठ करेंगे। इतना ही नहीं, हम आपको इसकी पीडीएफ फाइल भी उपलब्ध करवाएंगे। इसी के साथ ही लेख के अंत में आपको माता आरती करने का महत्व व लाभ भी जानने को मिलेंगे। तो आइए सबसे पहले करते हैं माता की आरती।
Mata Ki Aarti | माता की आरती
मातारानी के हरेक रूप की एक अलग आरती लिखी गयी है किन्तु तब क्या हो जब हमें संपूर्ण रूप से माता के हरेक रूप की आरती करनी हो। ऐसे में मातारानी के दो रूप सर्वप्रसिद्ध माने गए हैं जो इन सभी में सर्वोपरि हैं। उन्हें हम माँ दुर्गा व माँ काली के नाम से जानते हैं। तो जब कभी भी माता की आरती की बात होती है तो हमें दुर्गा माता व काली माता की ही आरती करनी होती है।
ऐसे में आज के इस लेख के माध्यम से हम आपके सामने दोनों तरह की माता आरती रखने जा रहे हैं। जिस भक्त के ऊपर मातारानी के इन दो रूपों की कृपा दृष्टि हो जाती है, फिर उसको कोई भी संकट, बाधा, समस्या, चुनौती, कष्ट, विघ्न इत्यादि छू भी नहीं पाते हैं। आइए करते है दुर्गा व काली माता आरती।
दुर्गा माता की आरती
जय अम्बे गौरी मैया जय मंगल मूर्ति मैया जय श्यामा गौरी।
तुमको निशिदिन ध्यावत हरि ब्रह्मा शिवरी॥ टेक॥
मांग सिन्दूर बिराजत टीको मृगमद को।
उज्ज्वल से दोऊ नैना चन्द्र बदन नीको॥ जय॥
कनक समान कलेवर रक्ताम्बर राजै।
रक्त पुष्प गल माला कंठन पर साजै॥ जय॥
केहरि वाहन राजत खड्ग खप्परधारी।
सुर-नर-मुनिजन सेवत तिनके दुःखहारी॥ जय॥
कानन कुण्डल शोभित नासाग्रे मोती।
कोटिक चन्द्र दिवाकर राजत सम ज्योति॥ जय॥
शुम्भ निशुम्भ विदारे महिषासुर घाती।
धूम्र विलोचन नैना निशदिन मदमाती॥ जय॥
चण्ड-मुण्ड संहारे शोणित बीज हरे।
मधु कैटभ दोऊ मारे, सुर भयहीन करे॥ जय॥
ब्रह्माणी, रुद्राणी, तुम कमला रानी।
आगम निगम बखानी तुम शिव पटरानी॥ जय॥
चौंसठ योगिनि मंगल गावत नृत्य करत भैरू।
बाजत ताल मृदंगा अरू बाजत डमरू॥ जय॥
तुम ही जगत की माता तुम ही हो भर्ता।
भक्तन की दुःख हरता सुख सम्पत्ति कर्ता॥ जय॥
भुजा चार अति शोभित, वर मुद्रा धारी।
मनवांछित फल पावत सेवत नर-नारी॥ जय॥
कंचन थाल विराजत अगर कपूर बाती।
श्रीमालकेतु में राजत कोटि रतन ज्योति॥ जय॥
अम्बे जी की आरती जो कोई नर गावै।
कहत शिवानंद स्वामी सुख सम्पत्ति पावै॥ जय॥
काली माता की आरती
अंबे तू है जगदंबे काली, जय दुर्गे खप्पर वाली, तेरे ही गुन गायें भारती।
ओ मैया हम सब उतारे तेरी आरती॥
माता तेरे भक्त जनों पर भीड़ पड़ी है भारी।
दानव दल पर टूट पड़ो माँ करके सिंह सवारी॥
सौ सौ सिंहों से बलशाली अष्ट भुजाओं वाली।
दुखियों के दुःख को निवारती।
ओ मैया हम सब उतारे तेरी आरती॥
माँ बेटे का इस जग में है बड़ा ही निर्मल नाता।
पूत कपूत सुने हैं पर ना माता सुनी कुमाता॥
सब पर करूणा दरसाने वाली अमृत बरसाने वाली।
दुखियों के दुख को निवारती।
ओ मैया हम सब उतारे तेरी आरती॥
नहीं मांगते धन और दौलत ना चांदी ना सोना।
हम तो मांगते तेरे मन का एक छोटा सा कोना॥
सबकी बिगड़ी बनाने वाली लाज बचाने वाली।
सतियों के सत को सवांरती।
ओ मैया हम सब उतारे तेरी आरती॥
अंबे तू है जगदंबे काली, जय दुर्गे खप्पर वाली, तेरे ही गुन गायें भारती।
ओ मैया हम सब उतारे तेरी आरती॥
Mata Aarti PDF | माता आरती PDF
अब हम माता आरती की PDF फाइल भी आपके साथ साझा कर देते हैं।
यह रहा उसका लिंक: Mata Aarti PDF
ऊपर आपको लाल रंग में Mata Aarti PDF फाइल का लिंक दिख रहा होगा। आपको बस उस पर क्लिक करना है और उसके बाद आपके मोबाइल या लैपटॉप में पीडीएफ फाइल खुल जाएगी। फिर आपके सिस्टम में इनस्टॉल एप्लीकेशन या सॉफ्टवेयर के हिसाब से डाउनलोड करने का विकल्प भी ऊपर ही मिल जाएगा।
माता आरती का महत्व
जब भी मातारानी के किसी रूप की आरती की जाती है तो उस आरती के माध्यम से मातारानी के उस रूप का महत्व, विशेषता, गुण व शक्तियों के बारे में बताया जाता है। इसी के साथ ही माता रानी के उस रूप की आरती करने से हमें क्या फल प्राप्त हो सकता है, इसके बारे में भी जानकारी दी गयी होती है। ऐसे में माता की आरती उनके समस्त गुणों को समेटे हुए उनकी आराधना करने का एक माध्यम है।
हम जब भी माता की पूजा करते हैं और पूजा संपन्न होने के बाद उनकी आरती करते हैं तो उसके माध्यम से हम पूजा में हुई सभी तरह की त्रुटियों या गलतियों का सुधार कर लेते हैं। कहने का अर्थ यह हुआ कि माता की आरती के माध्यम से हम पूजा में हुई सभी तरह की भूल और चूक के लिए मातारानी से क्षमा माँग लेते हैं और साथ के साथ उनकी आराधना भी कर लेते हैं। यही माता आरती (Mata Aarti) का महत्व होता है।
माता आरती के लाभ
जैसा कि हमने आपको ऊपर ही बताया कि माता रानी का हरेक स्वरुप भिन्न-भिन्न गुणों का प्रतिनिधित्व करता है और मनुष्य को उन गुणों के तहत आशीर्वाद या वरदान देने के लिए ही उस रूप की उत्पत्ति हुई होती है। ऐसे में यदि आप माता रानी के दो प्रमुख स्वरूपों माँ दुर्गा और माँ काली की आरती करते हैं तो इससे आपको अभूतपूर्व लाभ देखने को मिलते हैं।
माता दुर्गा सभी माताओं में सर्वोच्च हैं और उन्हें माँ आदिशक्ति भी कहा जाता है। ऐसे में यदि आप दुर्गा माता की आरती करते हैं तो एक तरह से आपको सभी तरह की मातारानी का आशीर्वाद मिल जाता है और जीवन सफल हो जाता है। वहीं यदि आप माँ दुर्गा के ही दूसरे रूप काली माता की आरती करते हैं तो यह आपके सभी तरह के दुखों, संकटों, विपदाओं और चुनौतियों का हल करने में सक्षम होती है।
दुर्गा माता और काली माता दोनों ही एक दूसरे की पूरक हैं और यदि दोनों माता की आरती कर ली जाए तो इससे आप भवसागर को पार कर मोक्ष प्राप्त कर सकते हैं। माता रानी के आशीर्वाद से आप मृत्यु के पश्चात जीवन-मरण के चक्र से मुक्त हो जाते हैं और विष्णु लोक में स्थान प्राप्त करते हैं। यही माता की आरती करने के मुख्य लाभ होते हैं।
निष्कर्ष
आज के इस लेख के माध्यम से आपने दुर्गा व काली माता की आरती (Mata Ki Aarti) पढ़ ली हैं। जो भक्तगण नित्य रूप से मातारानी की आरती का पाठ करते हैं, उन्हें अभूतपूर्व लाभ देखने को मिलते हैं जिनके बारे में हमने आपको ऊपर ही बता दिया है। यदि आपको माता आरती की पीडीएफ फाइल डाउनलोड करने में किसी तरह की समस्या आती है या आप हमसे कुछ पूछना चाहते हैं तो नीचे कमेंट कर सकते हैं। हम जल्द से जल्द आपके प्रश्न का उत्तर देने का प्रयास करेंगे।
माता की आरती से संबंधित प्रश्नोत्तर
प्रश्न: माता की आरती कैसे की जाती है?
उत्तर: माता की आरती करने से पहले आपको सुबह जल्दी उठकर स्नान इत्यादि करके मातारानी की मूर्ति के सामने बैठ जाना चाहिए। फिर माता के स्वरुप का ध्यान कर उनकी आरती करनी चाहिए।
प्रश्न: घर पर आरती कैसे करें?
उत्तर: घर पर आरती करने के लिए आपको एक पूजा की थाल में घी से ज्योत जला लेनी चाहिए। उसके बाद घंटी की ध्वनि के साथ ईश्वर या देवी के स्वरुप के समक्ष उनकी आरती का पाठ करना चाहिए।
प्रश्न: घर में रोज कौन सी आरती करनी चाहिए?
उत्तर: इसके लिए कोई नियम नहीं है। आप अपने आराध्य, देवता या दिन के अनुसार ईश्वर या देवी के स्वरुप की आरती कर सकते हैं, जैसे कि सोमवार को शिवजी की तो मंगलवार को हनुमान जी की आरती।
प्रश्न: आरती के बाद क्या करना चाहिए?
उत्तर: आरती पूरी होने के बाद उस थाल में जल के थोड़े छींटे मारकर उसे ठंडा करना चाहिए। फिर आरती की ज्योत भगवान को समर्पित करनी चाहिए और उसके बाद उस ज्योत से सभी को आरती लेनी चाहिए।
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