परशुराम चालीसा हिंदी में – अर्थ व लाभ सहित

परशुराम चालीसा (Parshuram Chalisa)

आज हम आपके साथ परशुराम चालीसा (Parshuram Chalisa) का पाठ करेंगे। भगवान विष्णु के इस युग में कुल 10 अवतार हैं जिनमे से 9 अवतार वे ले चुके हैं और दसवां अवतार कलयुग के अंत में होगा। भगवान परशुराम भगवान विष्णु के छठे अवतार हैं जिनके जीवन में कई उद्देश्य निहित हैं। भगवान विष्णु का यह अवतार सबसे भिन्न है क्योंकि इनका जीवनकाल कलयुग के अंत तक होगा अर्थात भगवान परशुराम अभी भी पृथ्वी पर जीवित हैं।

आज हम आपको परशुराम चालीसा हिंदी में (Parshuram Chalisa In Hindi) अर्थ सहित भी देंगे। साथ ही क्या आप जानते हैं कि भगवान परशुराम की एक नहीं बल्कि दो-दो चालीसा है जो उनके महत्व का बखान करती है। ऐसे में हम दोनों तरह की परशुराम चालीसा आपको देंगे। तो आइए पढ़ते हैं भगवान परशुराम चालीसा हिंदी में।

Parshuram Chalisa | परशुराम चालीसा

॥ दोहा ॥

श्री गुरु चरण सरोज छवि, निज मन मन्दिर धारि।
सुमरि गजानन शारदा, गहि आशिष त्रिपुरारि

बुद्धिहीन जन जानिये, अवगुणों का भण्डार।
बरणों परशुराम सुयश, निज मति के अनुसार

॥ चौपाई ॥

जय प्रभु परशुराम सुख सागर, जय मुनीश गुण ज्ञान दिवाकर।

भृगुकुल मुकुट बिकट रणधीरा, क्षत्रिय तेज मुख संत शरीरा।

जमदग्नी सुत रेणुका जाया, तेज प्रताप सकल जग छाया।

मास बैसाख सित पच्छ उदारा, तृतीया पुनर्वसु मनुहारा।

प्रहर प्रथम निशा शीत न घामा, तिथि प्रदोष ब्यापि सुखधामा।

तब ऋषि कुटीर रुदन शिशु कीन्हा, रेणुका कोखि जनम हरि लीन्हा।

निज घर उच्च ग्रह छः ठाढ़े, मिथुन राशि राहु सुख गाढ़े।

तेज-ज्ञान मिल नर तनु धारा, जमदग्नी घर ब्रह्म अवतारा।

धरा रामशिशुपावन नामा, नाम जपत जग लह विश्रामा।

भाल त्रिपुण्ड जटा सिर सुन्दर, कांधे मुंज जनेउ मनहर।

मंजु मेखला कटि मृगछाला, रूद्र माला बर वक्ष बिशाला।

पीत बसन सुन्दर तनु सोहें, कंध तुणीर धनुष मन मोहें।

वेद-पुराण-श्रुति-स्मृति ज्ञाता, क्रोध रूप तुम जग विख्याता।

दायें हाथ श्रीपरशु उठावा, बेद-संहिता बायें सुहावा।

विद्यावान गुणज्ञान अपारा, शास्त्र-शस्त्र दोउ पर अधिकारा।

भुवन चारिदस नवखंडा, चहुं दिशि सुयश प्रताप प्रचंडा।

एक बार गणपति के संगा, जूझे भृगुकुल कमल पतंगा।

दांत तोड़ रण कीन्ह विरामा, एक दंत गणपति भयो नामा।

कार्तवीर्य अर्जुन भूपाला, सहस्रबाहु दुर्जन विकराला।

सुरगऊ लखि जमदग्नी पांहीं, रखिहहुं निज घर ठानि मन माहीं।

मिली न मांगि तब कीन्ह लड़ाई, भयो पराजित जगत हंसाई।

तन खल हृदय भई रिस गाढ़ी, रिपुता मुनि सौं अतिसय बाढ़ी।

ऋषिवर रहे ध्यान लवलीना, तिन्ह पर शक्तिघात नृप कीन्हा।

लगत शक्ति जमदग्नी निपाता, मनहुँ क्षत्रिकुल बाम विधाता।

पितु-बध मातु-रूदन सुनि भारा, भा अति क्रोध मन शोक अपारा।

कर गहि तीक्षण परशु कराला, दुष्ट हनन कीन्हेउ तत्काला।

क्षत्रिय रुधिर पितु तर्पण कीन्हा, पितु-बध प्रतिशोध सुत लीन्हा।

इक्कीस बार भू क्षत्रिय बिहीनी, छीन धरा बिप्रन्ह कहँ दीनी।

जुग त्रेता कर चरित सुहाई, शिव-धनु भंग कीन्ह रघुराई।

गुरु धनु भंजक रिपु करि जाना, तब समूल नाश ताहि ठाना।

कर जोरि तब राम रघुराई, बिनय कीन्ही पुनि शक्ति दिखाई।

भीष्म द्रोण कर्ण बलवन्ता, भये शिष्या द्वापर महँ अनन्ता।

शस्त्र विद्या देह सुयश कमावा, गुरु प्रताप दिगन्त फिरावा।

चारों युग तव महिमा गाई, सुर मुनि मनुज मनुज समुदाई।

दे कश्यप सों संपदा भाई, तप कीन्हा महेन्द्र गिरि जाई।

अब लौं लीन समाधि नाथा, सकल लोक नावइ नित माथा।

चारों वर्ण एक सम जाना, समदर्शी प्रभु तुम भगवाना।

ललहिं चारि फल शरण तुम्हारी, देव दनुज नर भूप भिखारी।

जो यह पढ़ श्री परशु चालीसा, तिन्ह अनुकूल सदा गौरीसा।

पूर्णेन्द्रु निसि बासर स्वामी, बसहु हृदय प्रभु अन्तरयामी।

॥ दोहा ॥

परशुराम को चारू चरित, मेटत सकल अज्ञान।
शरण पड़े को देत प्रभु, सदा सुयश सम्मान

॥ श्लोक ॥

भृगुदेव कुलं भानु, सहसबाहुर्मर्दनम्।
रेणुका नयना नंदं, परशुंवन्दे विप्रधनम्

Parshuram Chalisa In Hindi | परशुराम चालीसा हिंदी में – अर्थ सहित

॥ दोहा ॥

श्री गुरु चरण सरोज छवि, निज मन मन्दिर धारि।
सुमरि गजानन शारदा, गहि आशिष त्रिपुरारि॥

बुद्धिहीन जन जानिये, अवगुणों का भण्डार।
बरणों परशुराम सुयश, निज मति के अनुसार॥

मैं गुरुओं के चरणों में प्रणाम कर, अपने मन को शुद्ध कर, गणेश भगवान व माँ शारदा का ध्यान कर, त्रिदेव का आशीर्वाद लेकर परशुराम चालीसा का पाठ करता हूँ। हे भगवान परशुराम! मुझे अज्ञानी समझ कर, मुझ पर अपनी कृपा बरसाएं।

॥ चौपाई ॥

जय प्रभु परशुराम सुख सागर, जय मुनीश गुण ज्ञान दिवाकर।

भृगुकुल मुकुट बिकट रणधीरा, क्षत्रिय तेज मुख संत शरीरा।

जमदग्नी सुत रेणुका जाया, तेज प्रताप सकल जग छाया।

मास बैसाख सित पच्छ उदारा, तृतीया पुनर्वसु मनुहारा।

हे भगवान परशुराम!! आप सुखों के सागर हैं। आप ऋषियों के भगवान हैं और सभी को दिव्य ज्ञान देने वाले हैं। आप भृगुकुल में जन्मे ऐसे महापुरुष हैं जिनका तेज तो क्षत्रिय जैसा है लेकिन शरीर ब्राह्मण का है। आपके माता-पिता का नाम रेणुका व जमदग्नि है। वैसाख माह की तृतीय को आपका जन्म हुआ था।

प्रहर प्रथम निशा शीत न घामा, तिथि प्रदोष ब्यापि सुखधामा।

तब ऋषि कुटीर रुदन शिशु कीन्हा, रेणुका कोखि जनम हरि लीन्हा।

निज घर उच्च ग्रह छः ठाढ़े, मिथुन राशि राहु सुख गाढ़े।

तेज-ज्ञान मिल नर तनु धारा, जमदग्नी घर ब्रह्म अवतारा।

वह प्रथम प्रहर का समय था और तिथि प्रदोष थी। उस समय जमदग्नि ऋषि के यहाँ माँ रेणुका के गर्भ से आपने जन्म लिया था। आपके जन्म के समय छह ग्रह सही दिशा में थे, आपकी मिथुन राशि थी और राहु ग्रह सुख देने वाला था। आपने जमदग्नि ऋषि के घर में स्वयं ब्रह्म रूप में जन्म लिया था जिसके अंदर अत्यधिक तेज व ज्ञान था।

धरा रामशिशुपावन नामा, नाम जपत जग लह विश्रामा।

भाल त्रिपुण्ड जटा सिर सुन्दर, कांधे मुंज जनेउ मनहर।

मंजु मेखला कटि मृगछाला, रूद्र माला बर वक्ष बिशाला।

पीत बसन सुन्दर तनु सोहें, कंध तुणीर धनुष मन मोहें।

आपका नाम राम रखा गया और यह नाम संपूर्ण जगत लेता है। आपने भाला लिया हुआ है और आपके माथे पर त्रिपुंड और सिर पर जटाएं अत्यधिक सुशोभित है। आपने कंधे पर जनेऊ ले रखा है जो सभी का मन मोह लेता है। आपने हिरन की खाल का वस्त्र पहना हुआ है और गले में रूद्र माला धारण की हुई है। आपके वस्त्र पीले रंग के हैं जो आपके ऊपर बहुत अच्छे लग रहे हैं। कंधों पर आपने धनुष-बाण ले रखा है।

वेद-पुराण-श्रुति-स्मृति ज्ञाता, क्रोध रूप तुम जग विख्याता।

दायें हाथ श्रीपरशु उठावा, बेद-संहिता बायें सुहावा।

विद्यावान गुणज्ञान अपारा, शास्त्र-शस्त्र दोउ पर अधिकारा।

भुवन चारिदस नवखंडा, चहुं दिशि सुयश प्रताप प्रचंडा।

वेद, पुराण इत्यादि शास्त्र सभी यह कहते हैं कि आपका स्वाभाव अत्यधिक क्रोध वाला है जिसे संपूर्ण विश्व जानता है। आपने अपने दाएं हाथ में परशु शस्त्र लिया हुआ है और बाए हाथ में वेद व संहिता ली हुई है। आप सभी गुणों को लिए हुए विद्वान हैं। आपको शास्त्र व शस्त्र दोनों की ही जानकारी है। सभी दिशाओं, ग्रहों, खण्डों इत्यादि में आपका प्रताप फैला हुआ है।

एक बार गणपति के संगा, जूझे भृगुकुल कमल पतंगा।

दांत तोड़ रण कीन्ह विरामा, एक दंत गणपति भयो नामा।

कार्तवीर्य अर्जुन भूपाला, सहस्रबाहु दुर्जन विकराला।

सुरगऊ लखि जमदग्नी पांहीं, रखिहहुं निज घर ठानि मन माहीं।

एक बार आप किसी कारणवश शिव पुत्र गणेश से भी लड़ गए थे और उस समय आपने युद्ध में गणेश जी का एक दांत तोड़ डाला था। उसके बाद ही गणेश जी का नाम एकदंत पड़ गया था। आपने कार्तवीर्य अर्थात सहस्त्रबाहु को भी युद्ध में परास्त कर दिया था। जब वे जमदग्नि आश्रम से गाय को लेकर जाने वाले थे, तब आपने ही उन्हें ऐसा करने से रोक दिया था।

मिली न मांगि तब कीन्ह लड़ाई, भयो पराजित जगत हंसाई।

तन खल हृदय भई रिस गाढ़ी, रिपुता मुनि सौं अतिसय बाढ़ी।

ऋषिवर रहे ध्यान लवलीना, तिन्ह पर शक्तिघात नृप कीन्हा।

लगत शक्ति जमदग्नी निपाता, मनहुँ क्षत्रिकुल बाम विधाता।

जब उन्होंने आपसे इस देव गाय को माँगा तब आपने उन्हें यह नहीं दी। तब उसने आपसे युद्ध किया लेकिन उनकी पराजय हुई और आप विजयी हुए। यह देख कर सभी ओर उसकी हंसी उड़ी। तब राजा कार्तवीर्य ने इसका बदला लेने की ठान ली और जब ऋषि जमदग्नि ध्यानमग्न थे, तब उसने उनका वध कर दिया था। बस इसी के बाद ही कार्तवीर्य के हैहय वंश की दुर्गति शुरू हो गयी थी।

पितु-बध मातु-रूदन सुनि भारा, भा अति क्रोध मन शोक अपारा।

कर गहि तीक्षण परशु कराला, दुष्ट हनन कीन्हेउ तत्काला।

क्षत्रिय रुधिर पितु तर्पण कीन्हा, पितु-बध प्रतिशोध सुत लीन्हा।

इक्कीस बार भू क्षत्रिय बिहीनी, छीन धरा बिप्रन्ह कहँ दीनी।

जब भगवान परशुराम पुनः अपने पिता के आश्रम लोटे तब पिता का वध और अपनी माँ का रोना देखा। यह देखकर भगवान परशुराम क्रोध से भर गए। तब उन्होंने हैहय नाम के क्षत्रिय वंश का नाश कर अपने पिता की मृत्यु का बदला लेने का संकल्प लिया। इसके बाद परशुराम ने कुल 21 बार हैहय क्षत्रिय वंश का इस पृथ्वी से नाश कर दिया था।

जुग त्रेता कर चरित सुहाई, शिव-धनु भंग कीन्ह रघुराई।

गुरु धनु भंजक रिपु करि जाना, तब समूल नाश ताहि ठाना।

कर जोरि तब राम रघुराई, बिनय कीन्ही पुनि शक्ति दिखाई।

माता सीता के स्वयंवर में राजा जनक की शर्त के अनुसार जब भगवान श्रीराम ने शिव धनुष पर प्रत्यंचा चढ़ानी चाही तब वह टूट गया। शिव धनुष के टूटने की आवाज सुन कर आप पूरे क्रोध में जनक राजमहल में पहुंचे और सभी का नाश करने की ठान ली। तब प्रभु श्रीराम ने आपको अपना असली रूप दिखाया और आप उसे देख कर शांत हो गए।

भीष्म द्रोण कर्ण बलवन्ता, भये शिष्या द्वापर महँ अनन्ता।

शस्त्र विद्या देह सुयश कमावा, गुरु प्रताप दिगन्त फिरावा।

आपने द्वापर युग में भीष्म पितामह, गुरु द्रोणाचार्य व दानवीर कर्ण को शस्त्र विद्या देकर महान योद्धा बना दिया जिनका महाभारत के युद्ध में अहम योगदान था। आप ही उन तीनो के गुरु थे जिनका प्रताप पूरे विश्व में फैल गया था।

चारों युग तव महिमा गाई, सुर मुनि मनुज मनुज समुदाई।

दे कश्यप सों संपदा भाई, तप कीन्हा महेन्द्र गिरि जाई।

अब लौं लीन समाधि नाथा, सकल लोक नावइ नित माथा।

चारों युगों में आपकी महिमा का बखान किया गया है और सभी देवता, ऋषि-मुनि, मनुष्य इत्यादि आपकी पूजा करते हैं। ऋषि कश्यप के कहने पर आप महेंद्र पर्वत पर तपस्या करने के लिए चले गए थे। वहां जाकर आपने समाधि ले ली थी और सारा जगत आपके सामने अपना सिर झुकाता है।

चारों वर्ण एक सम जाना, समदर्शी प्रभु तुम भगवाना।

ललहिं चारि फल शरण तुम्हारी, देव दनुज नर भूप भिखारी।

जो यह पढ़ श्री परशु चालीसा, तिन्ह अनुकूल सदा गौरीसा।

पूर्णेन्द्रु निसि बासर स्वामी, बसहु हृदय प्रभु अन्तरयामी।

आपके लिए हिन्दू धर्म के चारो वर्ण एक जैसे ही हैं और आप सभी को एक समान ही देखते हैं। सभी तरह के भक्तों को आपके यहाँ शरण मिलती है फिर चाहे वह देवता, मनुष्य, भिखारी इत्यादि कोई भी हो। जो भी व्यक्ति इस परशुराम चालीसा का पाठ करता है, उसके साथ सब मंगल होता है। उसके हृदय में साक्षात श्री हरि का वास होता है।

॥ दोहा ॥

परशुराम को चारू चरित, मेटत सकल अज्ञान।
शरण पड़े को देत प्रभु, सदा सुयश सम्मान॥

जो भी व्यक्ति भगवान परशुराम का ध्यान करता है, उसके जीवन से अज्ञान रुपी अंधकार समाप्त हो जाता है और ज्ञान का उसमे समावेश होता है। जो भी उनकी शरण में जाता है, प्रभु परशुराम उसके मान-सम्मान में वृद्धि करते हैं।

॥ श्लोक ॥

भृगुदेव कुलं भानु, सहसबाहुर्मर्दनम्।
रेणुका नयना नंदं, परशुंवन्दे विप्रधनम्॥

हे भगवान परशुराम! आप भृगुकुल में जन्मे हो जिसने सहस्त्रबाहु का वध कर दिया था और उसकी हज़ार भुजाएं काट दी थी। आप माता रेणुका के पुत्र हो जो हर तरह के संकट का नाश करने में सक्षम हो।

Parshuram Chalisa | परशुराम चालीसा – द्वितीय

॥ दोहा ॥

श्रीशिव गुरु स्वामी माहेश्वर मज तु उद्धारी।
उमा सहीत दायकु आर्शिवाद मज तु तारी॥

बुद्धिदेवता तव जानिके दिये परशु तुमार।
तव बल जानिये दुनिया सारी दुष्टि करे हहाकार॥

॥ चौपाई ॥

जय परशुराम बलवान दुनिया सार।
जय रामभद्र कहे लोक करे जागर॥

शिव शिष्य भार्गव तव नामा।
रेणुका पुत्र जमदग्निसुत लामा॥

शुरविर नारायण तव अंगी।
छटा अवतार सुहीत के संगी॥

परशु तवहस्ता दिसे सुवेसा।
ऋषि मुद्रिका तव मन श्रेसा॥

हाथ शिवधनुष्य भार्गवा साजै
विप्र कुल कांधे जनेउ साजै॥

विष्णु अंश ब्रह्मकुलनंदन।
तव गाथा पढ़े करे जगवंदन॥

वेद ही जानत असे चतुर।
शिवजी के शिष्य बलशाली भगुर॥

पृथ्वी करे निक्षेत्र एक्कीस समया।
विप्र रक्षोनी दुष्टास मारीया॥

भार्गव अवतारी तव गुन गावा।
कर्म स्वरुपे तव चिरंजीवी पावा॥

सहस्राजुना तव तु संहारे।
पिता वचन दिये तव तु पारे॥

पीता होत तव अज्ञाये।
माता शिरछेद कर तु जाये॥

जमदग्नी कहे मम पुत्र प्रियई।
तुम जो चाहे आर्शिवाद मांगई॥

भद्र कहते मम माता ही जगावैं।
भ्राता सहीत मम सामोरी लावैं॥

तव मुखमंडल दिसे ऋषिसा।
घोर तपस्वि पठन संहीता॥

मुद्रा गिने कुबेर ही थक जाते।
तव धन कबि गिन ना पाते॥

तुम उपकार ब्रह्मकुले कीह्ना।
ब्रह्म मिलाय राज पद दीह्ना॥

तुह्मरो शक्ति सब जग जाना।
राक्षस कांपे तुमये भय माना॥

तुम चिरंजीव असे जग जानु।
जो करे तव भक्ती मधुर फल भानु॥

बुद्धिदाता परशु हथ तुजदेई।
शिव धनुष्य माहेश्वर मिलमेेई॥

दुष्ट संहार कर त्रिलोक जिते।
ब्रह्मकुल के तुम भाग्यविधाते॥

ऋषि मुनि के तुम रखवारे।
शिवआज्ञा होत दुहीत को संहवारे॥

सब जग आये तुम्हारी शरना।
तुम रक्षक काहू को डरना॥

परशु चमक रवि ही छुंपै।
भार्गव नाम सुनत दुष्ट थर कांपै॥

रेणुकापुत्र नाम जब आंवै।
तब तव गान सहस्र जुग गांवै॥

परशुराम नाम सुरा।
जपत रहो ब्रह्मविरा॥

संकट पडे तो भद्र बचावै।
मन से ध्यान भार्गव जो लावै॥

जगत के तुम तपस्वी राजा।
ब्रह्मकुल जन्मे उपकार मज वर कीजा॥

इच्छा धरीत तुज भक्ती जो कीवै।
इच्छित जो तिज फल पावै॥

भार्गव नाम सुनित होय उजियारा।
आज्ञा पालत तव जग दिवाकरा॥

राम सह धनुर युद्ध पुकारे।
अवतार सप्तम समज दुवारे॥

युद्ध कौशल्य वेदो जानता।
कौतुक देखे रेणुका माता॥

चारो जुग तुज कीर्तीमासा।
सदा रहो ब्रह्मकुल के रासा॥

तेहतीस कोट देव तुज गुन गावै।
भार्गव नाम लेत सब दुख बिसरावै॥

तुज नाम महीमा लागे माई।
जनम जनम करे पुण्य कमाई॥

म्हारे चित्त तुज दुज ना जाई।
सारे सेई सब सुख मज पाई॥

परशुराम नाम सुने भागे पीरा।
भद्र नाम सुनत उठे ब्रह्मविरा॥

जय परशुराम कहें मज विप्राईं।
तुज कृपा करहु भार्गव नाईं॥

पठे जो यह शत बार कोई।
भार्गव कृपा उस सदैव होई॥

पढित यह परशुराम चालीसा।
सुख शांती नांदे रहे विष्णुदासा॥

वसंतसुत पुरुषोत्तम रज असै तैरा।
तुज भक्ती मोही जुग जग सारा॥

॥ दोहा ॥

रेणुका नंदन नारायण अंश ब्रह्मकुल रुप।
परशुराम भार्गव रामभद्र ह्रदयी बसये भुप॥

भगवान परशुराम चालीसा के लाभ

भगवान परशुराम भगवान विष्णु के ऐसे अवतार हैं जिनका कार्य अपने समयकाल में तो था ही लेकिन इसके बाद के विष्णु अवतारों की सहायता करना भी उनके जीवन का उद्देश्य है। इसी कारण भगवान विष्णु के अगले तीन अवतारों के समय में भी उन्होंने मुख्य भूमिका निभाई जिसके प्रमाण शास्त्रों में मिलते हैं। इतना ही नहीं भगवान परशुराम अभी भी इस धरती पर जीवित हैं और उनका उद्देश्य भगवान विष्णु के अंतिम अवतार भगवान कल्कि के गुरु की भूमिका निभा कर समाप्त होगा।

ऐसे में यदि आप नित्य रूप से भगवान परशुराम की चालीसा पढ़ते हैं और उनकी पूजा करते हैं तो अवश्य ही उनकी कृपा दृष्टि आप पर रहती है। अब यदि आपके ऊपर भगवान परशुराम की कृपा रहेगी तो अवश्य ही आपका जीवन सफल हो जायेगा और सभी तरह के कष्ट, दुःख, रोग, तनाव समाप्त हो जाएंगे। यही परशुराम चालीसा को पढ़ने का मुख्य लाभ होता है।

निष्कर्ष

आज के इस लेख के माध्यम से आपने दोनों तरह की परशुराम चालीसा (Parshuram Chalisa) पढ़ ली है। साथ ही आपने इसके पाठ से मिलने वाले लाभ के बारे में भी जान लिया है। यदि आप इस लेख पर अपनी प्रतिक्रिया देना चाहते हैं या इस विषय पर हमसे कुछ पूछना चाहते हैं तो नीचे कमेंट कर सकते हैं। हम जल्द से जल्द आपको प्रत्युत्तर देंगे।

परशुराम चालीसा से संबंधित प्रश्नोत्तर

प्रश्न: 4 परशुराम के गुरु कौन थे?

उत्तर: परशुराम भगवान के दो गुरु थे जिनके नाम महर्षि विश्वामित्र व महर्षि ऋचीक था।

प्रश्न: परशुराम किसकी पूजा करते थे?

उत्तर: परशुराम भगवान शिव की पूजा करते थे और उन्हीं के भक्त थे।

प्रश्न: परशुराम की जाति क्या है?

उत्तर: भगवान परशुराम ब्राह्मण जाति से थे।

प्रश्न: परशुराम ने क्षत्रियों को कितनी बार मारा?

उत्तर: परशुराम ने क्षत्रियों का 21 बार इस पृथ्वी से संहार किया था।

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लेखक के बारें में: कृष्णा

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