रामायण में केवट राम संवाद का सुंदर प्रसंग

Ram Kevat Samvad

रामायण में राम केवट संवाद (Ram Kevat Samvad) बहुत ही मधुर हैकेवट उन लोगों को कहा जाता था जो अपनी नाव में बिठाकर लोगों को नदी पार करवाते थे। जब भगवान राम अपनी पत्नी सीता व भाई लक्ष्मण के साथ 14 वर्षों के वनवास पर निकले तो रास्ते में उनकी भेंट अपने मित्र निषादराज से हुई। तब भगवान राम को गंगा पार करवाने के लिए निषादराज अपने राज्य से एक केवट को बुलाते हैं।

वह केवट भगवान राम को भलीभाँति जानता था व नित्य अपनी पत्नी समेत उनकी पूजा करता था। मनुष्य को भवसागर पार करवाने वाले श्रीहरि जब स्वयं केवट के सामने नदी पार करवाने के लिए आए तो केवट को भी पता चल गया कि आज उसका उद्धार होने वाला है। इसका सार केवट राम संवाद (Kevat Ram Samvad) के माध्यम से देखने को मिलता है। आज हम आपको राम केवट की कहानी से जुड़े इसी सुंदर प्रसंग के बारे में बताने वाले हैं।

Ram Kevat Samvad | राम केवट संवाद

जब निषाद राज ने केवट को कहा कि वह अपनी नाव में भगवान श्रीराम को माता सीतालक्ष्मण सहित गंगा के उस पार लगा दे तो केवट ने मना कर दिया। केवट ने कहा कि उसने सुना है कि श्री राम के चरण अद्भुत हैं व उनके चरणों की धुल किसी चमत्कारी जड़ी बूटी से कम नहीं है। लोग इनके चरणों की धूल पाने को लालायित रहते हैं। इसलिए मैं पहले इनके चरण धोऊंगा व फिर ही इन्हें गंगा पार करवाऊंगा।

केवट के द्वारा यह हठ किए जाने पर निषादराज व लक्ष्मण क्रोधित हो गए किंतु भगवान श्रीराम केवट का आशय समझ गए थे। दोनों का क्रोध देखकर केवट ने स्वयं ही भगवान श्रीराम से कहा कि वह उनके द्वारा माता अहिल्या को पत्थर से महिला बना देने की कथा को जानता है। जब वे एक कठोर पत्थर को एक नारी में परिवर्तित कर सकते हैं तो मेरी नाव तो एक लकड़ी की बनी है।

केवट ने कहा कि यदि मेरी नाव भी आपके पैर पड़ते ही किसी और रूप में परिवर्तित हो गई तो मेरी आजीविका का साधन चला जाएगा। उसने कहा कि वह अपना व अपने परिवार का भरण पोषण इसी नाव के सहारे करता है। यदि यही नाव नहीं रहेगी तो उसके जीवन का सहारा छीन जाएगा। इस तरह केवट ने प्रभु के बिना चरण धुलाए उन्हें गंगा पार करवाने से मना कर दिया।

भगवान राम को केवट के हठ के आगे झुकना पड़ा व उन्होंने हाँ कह दिया। इतना कहते ही केवट ने अपनी पत्नी से एक जल का पात्र मंगवाया व गंगा के पानी से प्रभु श्रीराम के चरण धोए व उस जल को ग्रहण किया। इस तरह केवट ने ना केवल भगवान के प्रति अपनी भक्ति सिद्ध की अपितु भगवान के चरण कमलों का जल ग्रहण कर स्वयं का उद्धार किया। इसके बाद केवट ने तीनों को अपनी नाव में बिठाया व खुशी-खुशी गंगा के उस पार लगा दिया।

केवट राम संवाद (Kevat Ram Samvad)

अभी तक तो केवट का निषाद राज व लक्ष्मण से ही मुख्य रूप से संवाद हुआ था। केवट का श्रीराम से संवाद तो उन्हें गंगा पार करवाने के बाद हुआ था जब केवट ने अपना उद्धार करवा लिया था। आइए उस प्रसंग के बारे में भी जान लेते हैं।

भगवान राम ने केवट की भक्ति से प्रसन्न होकर सीता को अपनी अंगूठी उसे उपहार स्वरूप देने को कहा। माता सीता ने अपनी अंगूठी निकाल कर केवट को देनी चाही लेकिन केवट ने इसे लेने से मना कर दिया। जब भगवान श्रीराम ने इसका कारण पूछा तो केवट ने उत्तर दिया कि जो व्यक्ति समान कार्य करते हैं, वे एक दूसरे से पैसे नहीं लिया करते। जैसे कि एक नाई दूसरे नाई के बाल काटने के पैसे नहीं लेता, उसी प्रकार एक केवट दूसरे केवट से पैसे कैसे ले सकता है।

यह सुनकर भगवान राम ने प्रश्न किया कि उन दोनों का व्यापार समान कैसे हुआ क्योंकि वे केवट तो थे नहीं। तब केवट ने कहा कि वह उनको अच्छे से जानता है। वह इस मृत्यु लोक में केवट की भूमिका निभाता है तो वहीं भगवान श्रीराम मनुष्य को जीवन मृत्यु से मुक्ति दिलाकर भव सागर की नाव पार करा देते हैं। केवट की इस बुद्धिमता से प्रसन्न होकर भगवान राम ने उसे मोक्ष प्रदान किया। भगवान राम ने उसे मृत्यु के बाद मोक्ष प्राप्ति का वरदान दिया।

केवट प्रसंग का सार

रामायण में हुआ राम केवट संवाद (Ram Kevat Samvad) हम सभी को सोचने पर विवश कर देता है। जहाँ एक ओर राजभवन में सांसारिक सुख-सुविधाओं को पाने के लिए षड्यंत्र रचे गए, वहीं एक केवट ने इन्हें त्याग कर खुद का मोक्ष चुना। यह उस केवट की चतुराई व जीवन की असली समझ ही कही जाएगी जो उसने ईश्वर से इतना बड़ा उपहार माँग लिया था।

इस प्रसंग से हम सभी को यह शिक्षा मिलती है कि हमें सब पता होने के बाद भी हम भगवान से भौतिक वस्तुओं की माँग करते हैं व उसी के सुख दुःख में खोए रहते हैं। यदि वह केवट भी उस समय सोने की अंगूठी ले लेता तो वह उसे मोक्ष के रूप में मिले उपहार के सामने तुच्छ होता। इसलिए अपने जीवन में भगवान से सुख शांति व जीवन को सफल बनाने की कामना करें, ना कि भोग विलासिताओं की।

राम केवट संवाद से जुड़े प्रश्नोत्तर

प्रश्न: केवट की नाव पूर्व जन्म में कौन थी?

उत्तर: केवट की नाव पूर्व जन्म में कुछ नहीं थी क्योंकि वह एक निर्जीव वस्तु थी निर्जीव वस्तु का कोई जन्म या पुनर्जन्म नहीं होता है हालाँकि केवट पिछले जन्म में एक कछुआ था

प्रश्न: केवट की नाव किस लकड़ी की बनी थी?

उत्तर: केवट की नाव काठ की बनी थी रामायण में केवल इतना ही उल्लेख है कि केवट श्रीराम को कहता है कि उसकी नाव काठ की बनी है

प्रश्न: केवट ने राम को कौन सी नदी पार कराई?

उत्तर: केवट ने राम को गंगा नदी पार कराई थी और उन्हें एक छोर से दूसरे छोर पर उतारा था ऐसा उन्होंने अपने राजा निषाद राज के कहने पर किया था

प्रश्न: केवट का असली नाम क्या था?

उत्तर: रामायण के केवट के नाम का कोई उल्लेख नहीं है निषाद राज उसे केवट कहकर ही बुलाते हैं और बाकी सभी भी उसे केवट ही कहते हैं

प्रश्न: केवट ने राम से क्या मांगा?

उत्तर: केवट ने श्रीराम को गंगा नदी पार करवाने के बाद उनसे भी भवसागर पार करवाने का आशीर्वाद माँगा था इसे श्रीराम ने सहर्ष स्वीकार कर लिया था

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लेखक के बारें में: कृष्णा

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