सम्पाती व जटायु का जीवन परिचय व रामायण में इनकी भूमिका

Jatayu and Sampati roles in Ramayan in Hindi

सम्पाती व जटायु दोनों गिद्ध थे जो महर्षि कश्यप के वंशज थे (Sampati and Jatayu story)। महर्षि कश्यप के अपनी पत्नी विनता से दो पुत्र हुए जिनके नाम थे गरुढ़ व अरुण। इसमें से गरुढ़ देवता भगवान विष्णु की सेवा में चले गए थे व अरुण देवता सूर्य देव की सेवा में (Jatayu kaun tha)। अरुण सूर्य देव के सारथि बने व उनके दो पुत्र हुए जिनका नाम था सम्पाती व जटायु (Jatayu in Ramayan in Hindi)। दोनों में से सम्पाती बड़े थे जिन्हें पक्षीराज भी कहा जाता हैं (Sampati in Ramayan in Hindi)।

जब बिछड़ गये दोनों भाई (Story of Jatayu and Sampati in Hindi)

एक दिन दोनों भाइयों ने कैलाश पर्वत के कुछ ऋषियों से शर्त लगाई कि वे अपने पराक्रम से सूर्य के आभामंडल में जाकर सूर्य को छूकर वापस आ जायेंगे (Jatayu and Sampati are brothers)। यह सोचकर दोनों भाइयों ने सूर्य की ओर उड़ान भरी किंतु रास्ते में सूर्य के प्रकोप से दोनों व्याकुल हो उठे। अपने छोटे भाई को सम्पाती ने अपने पंखों से ढक लिया जिससे उनके पंख जल गए। जटायु मुर्छित होकर पंचवटी के वनों में गिरे तो वही सम्पाती दक्षिण में समुंद्र किनारे जहाँ चंद्रमा/ निशाकर नामक एक ऋषि ने उनका उपचार किया।

जटायु व दशरथ की मित्रता (Jatayu in Ramayan in Hindi)

जब राजा दशरथ इंद्र की सहायता के लिए देवासुर संग्राम में भाग लेने आये तब उनका सामना शंबरासुर नामक दैत्य से था (Jatayu prasang in Hindi)। उस युद्ध में जटायु ने भी राजा दशरथ की सहायता की थी। एक पक्षी के द्वारा अपने प्रति इतनी कर्तव्यनिष्ठा व उसकी महानता को देखकर राजा दशरथ अत्यंत प्रसन्न हुए थे व उन्हें अपना मित्र बनाया था। तब से राजा दशरथ व जटायु के बीच मित्रता हो गयी थी।

भगवान राम व जटायु का मिलन (Jatayu story in Hindi)

जब भगवान श्रीराम को 14 वर्षों का वनवास हुआ था तब अपने वनवास के अंतिम पड़ाव में वे पंचवटी के वनों में पहुंचे थे तब उनका मिलन जटायु से हुआ था। जटायु अपने मित्र राजा दशरथ की मृत्यु का समाचार सुनकर दुखी हुए व उन्हें अपना परिचय दिया। जटायु ने ही भगवान राम, लक्ष्मण व माता सीता को वहां कुटिया बनाने के लिए उचित स्थान बताया व साथ ही उनकी रक्षा करने का वचन भी दिया।

जटायु व रावण का युद्ध (Jatayu ko kisne mara)

जब रावण ने छल से अपने मामा मारीच की सहायता से भगवान राम व लक्ष्मण को कुटिया से दूर भेज दिया तब माता सीता को कुटिया में अकेले पाकर उसने उनका अपहरण कर लिया। वह माता सीता को अपने पुष्पक विमान से लंका लेकर जा रहा था लेकिन माता सीता की सुरक्षा में तैनात जटायु ने उसे देख लिया (Jatayu and Ravana fight)। यह देखकर जटायु व रावण के बीच आकाश में ही भीषण युद्ध हुआ। उस युद्ध में रावण ने जटायु के पंख काट डाले व जटायु मरणासन्न की अवस्था में भूमि पर गिर पड़े।

श्रीराम के द्वारा जटायु का अंतिम संस्कार (Jatayu death story in Hindi)

जब भगवान श्रीराम व लक्ष्मण माता सीता की खोज में इधर-उधर भटक रहे थे तब उन्हें कराहते हुए जटायु दिखाई पड़े। जटायु ने उन्हें रावण के द्वारा माता सीता के अपहरण की पूरी बात बताई व मृत्यु को प्राप्त हुए। भगवान राम ने एक पुत्र की भांति जटायु का पूरे विधि विधान से अंतिम संस्कार किया।

राम सेना का सम्पाती से मिलना (Sampati in Ramayan in Hindi)

किष्किन्धा नरेश सुग्रीव ने भगवान श्रीराम की आज्ञानुसार अपनी सेना की टुकड़ियों को माता सीता की खोज में चारों दिशाओं में भेजा था जिसमे से एक टुकड़ी दक्षिण दिशा में गयी थी। उस टुकड़ी में भगवान हनुमान, जामवंत, अंगद , नल व नीर थे। जब वे समुंद्र किनारे पहुंचे तो अपने सामने विशाल समुंद्र देखकर निराश हो गए। सम्पाती वही समुंद्र किनारे एक पहाड़ी पर रहता था व इतने सारे वानरों को देखकर प्रसन्न हो गया। वह उन्हें खाना चाहता था लेकिन जब जामवंत इत्यादि ने उन्हें अपने यहाँ आने का उद्देश्य बताया व जटायु की मृत्यु का समाचार सुनाया तो सम्पाती प्रलाप करने लगे।

सम्पाती ने बताया माता सीता का पता (Sampati saw Mata Sita)

अपने भाई की मौत का समाचार सुनकर सम्पाती अत्यंत व्याकुल हो उठे व रोने लगे। उन्होंने वानर सेना के दल को बताया कि उन्होंने भी रावण को माता सीता को समुंद्र के उस पार ले जाते हुए देखा था किंतु पंख ना होने के कारण वे उससे लड़ने में असहाय थे।

इसके बाद उन्होंने अपनी गिद्ध दृष्टि से माता सीता को देख लिया व उन्हें बताया कि इस समय माता सीता रावण की लंका में एक वृक्ष के नीचे उदास बैठी हैं। उन्होंने वानर सेना को लंका का पता भी दिया। इसके बाद उन्होंने वानर सेना की सहायता से समुंद्र में उतर कर अपने छोटे भाई जटायु को जलांजलि दी।

लेखक के बारें में: कृष्णा

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