महर्षि वाल्मीकि का श्राप वाक्य जो बना रामायण का पहला श्लोक/ छंद

Ramayan Ka Pratham Shloka

जब महर्षि वाल्मीकि (Ramayan Ka Pratham Shloka) नारद मुनि से रामायण कथा को सुनने के बाद नदी में स्नान करने गए तब उनका मन अत्यंत प्रसन्न था। स्वयं को राम कथा लिखने के लिए चुने जाने के कारण उनका हृदय अत्यंत गदगद था। इसी भावना के साथ वे नदी में स्नान कर रहे थे लेकिन उसी समय उनके सामने एक ऐसी घटना घटी (How Did Valmiki Write The First Verse Of Ramayana) जिससे उनका मन विचलित हो उठा। आइये जानते है उस कथा के बारे में जो बनी रामायण का पहला छंद

महर्षि वाल्मीकि द्वारा रामायण का पहला श्लोक (Valmiki Ramayana First Sloka In Hindi)

महर्षि वाल्मीकि ने देखा कामातुर बगुला का जोड़ा (Ma Nishad Shlok Meaning In Hindi)

जब महर्षि वाल्मीकि नदी में स्नान कर रहे थे तो उस समय उन्होंने बगुलाों का एक जोड़ा देखा जो कामातुर था तथा प्रेम में मग्न था। यह दृश्य देखकर महर्षि अत्यधिक प्रसंन्न हुए। पशु-पक्षियों के बीच ऐसा प्रेम देखकर महर्षि आनंदित हो रहे थे।

शिकारी ने कर दी नर बगुले/ हंस की हत्या (Valmiki First Sloka In Hindi)

इतने में एक शिकारी वहां आया तथा उसने अपने धनुष पर तीर चढ़ाकर नर बगुले की हत्या कर दी। वह नर बगुला तड़प-तड़प कर वही मर गया तथा यह देखकर मादा बगुला विलाप करने लगी। विलाप करते-करते मादा बगुला ने भी अपने प्राण त्याग दिए।

इस करुणामय दृश्य को देखकर महर्षि वाल्मीकि अत्यधिक क्रोधित हो गए तथा उन्होंने उसी समय नदी के जल को हाथ में लेकर उस शिकारी को श्राप दे दिया। उस श्राप की पंक्तियाँ थी (First Sloka Of Ramayana In Sanskrit):

मा निषाद प्रतिष्ठां त्वमगमः शाश्वतीः समाः ।

यत्क्रौंचमिथुनादेकम् अवधीः काममोहितम् ॥

अर्थात: हे निषाद! तुम्हें अपने जीवन पर्यंत तक शांति नही मिलेगी क्योंकि तुमने एक असावधान प्रेम में आतुर पंछी के जोड़े में से एक की निर्मम हत्या कर दी है (First Sloka Of Ramayana Meaning)।

महर्षि वाल्मीकि को हुआ पछतावा

विचलित मन से महर्षि वाल्मीकि अपने आश्रम तो आ गए लेकिन उनका मन अशांत था (First Sloka Of Valmiki Ramayana In Sanskrit)। उन्होंने क्रोध में उस शिकारी को श्राप तो दे दिया लेकिन वह तपस्या के नियम के विरुद्ध था। उन्होंने सोचा कि वह शिकारी तो अपना धर्म निभा रहा था तथा सभी प्राणी अपने कर्मो के अनुसार ही फल भोगते है। उनका उस शिकारी को भावना में बहकर श्राप देना अनुचित था।

बनाया रामायण का प्रथम श्लोक (Valmiki Ramayan Ka Pahla Shloka)

वाल्मीकि इसी सोच में ही डूबे हुए थे कि उन्होंने अपने श्राप की पंक्तियों पर ध्यान दिया तो सोचा कि उनकी जिह्वा से श्राप रूप में जो वाक्य निकला हैं वो चार चरणों में बंधा हुआ हैं, इसके प्रत्येक चरण में आठ-आठ अक्षर बराबर चरण में हैं, इसे लय पर गाया भी जा सकता हैं, इसलिये यह वचन श्लोक बनकर छंदबद्ध काव्य रूप हो गया है (Ramayan Ka Pratham Shlok)।

इसका अनुमान उन्होंने यह लगाया कि यह सृष्टि का पहला काव्य होगा। उनके अनुसार यह रामायण का पहला छंद होना चाहिए। वे यह सोच ही रहे थे कि भगवान ब्रह्मा ने प्रकट होकर उन्हें इसकी अनुमति दे दी तथा इस प्रकार महर्षि वाल्मीकि का श्राप रामायण का पहला छंद/ श्लोक बन गया।

लेखक के बारें में: कृष्णा

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