विद्या आरंभ संस्कार / अक्षरारम्भ संस्कार क्या है? जाने इसके बारे में

Vidyarambh Sanskar

आज हम विद्यारंभ संस्कार (Vidyarambh Sanskar) के बारे में जानेंगे। सनातन धर्म में मनुष्य के जीवन को सोलह भागों में विभाजित करके उसके लिए सोलह संस्कार निर्धारित किये गए है। इन्हीं के द्वारा एक मनुष्य को अपना जीवन यापन करना होता है। इसमें सबसे महत्वपूर्ण संस्कार विद्यारंभ संस्कार को माना जाता है क्योंकि इसी संस्कार के द्वारा उसमे ज्ञान व बुद्धि का विकास होता है।

यह दसवां संस्कार होता है तथा इससे पहले उसे विद्या ग्रहण करवाने में सक्षम बनाने के लिए मुंडन तथा कर्णभेद संस्कार किये जाते है ताकि उसको ज्ञान प्राप्त करने में कोई दुविधा न आये। आइये जानते है विद्या आरंभ संस्कार (Vidyarambh Sanskar In Hindi) के बारे में विस्तार से।

Vidyarambh Sanskar | विद्यारंभ संस्कार

इस संस्कार में बच्चे को अक्षर का ज्ञान दिया जाता है तथा आगे के अध्ययन के लिए तैयार किया जाता है। यह संस्कार उसे समाज में उसके अधिकार तथा कर्तव्यों को बताने तथा भाषा का लिखित ज्ञान करवाने के लिए किया जाता है। इसलिये बच्चे को कलम, दावत तथा पट्टी दी जाती है।

सबसे पहले बच्चे के द्वारा विद्या के देवता भगवान गणेश का विधिवत पूजन करवाया जाता है। इसके पश्चात विद्या की देवी माँ सरस्वती की आराधना की जाती है। तत्पश्चात कलम जिससे वह लिखता है, दावत जिससे वह स्याही का इस्तेमाल करता है तथा पट्टी अर्थात कागज पत्र जिस पर वह लिखता है, उसका पूजन करवाया जाता है।

अंत में वह अपने गुरु/ अध्यापक को प्रणाम करता है तथा अपनी विद्या का भार उन पर सौंप देता है। गुरु भी उसे अपना शिष्य मान लेता है तथा उसकी विद्यारंभ शुरू (Vidyarambh Sanskar In Hindi) कर दी जाती है। इसके बाद बच्चे के ब्रह्मचर्य (25 वर्ष की आयु तक) उसके माता-पिता का अधिकार समाप्त हो जाता है तथा वह गुरु की धरोहर होता है।

विद्यारंभ संस्कार कब किया जाता है?

वेदों व शास्त्रों में इसके लिए सही आयु पांच वर्ष निर्धारित की गयी है। इससे पहले वह सामान्य शिष्टाचार अपने घर में रहकर अपने परिजनों तथा माता-पिता से सीखता है। जब उसमे शिक्षा ग्रहण करने की शक्ति आ जाती है तब उसे गुरु को सौंप दिया जाता है। इसके बाद उसे गुरुकुल विद्या ग्रहण करने भेज दिया जाता है। इसलिये इसे बच्चे की पांच वर्ष की आयु हो जाने पर सही माना गया है।

विद्यारंभ संस्कार का दूसरा नाम

Vidyarambh Sanskar का एक और नाम भी है चूँकि यह बच्चे को शुरूआती ज्ञान देना होता है जिसमें उसे भाषा के अक्षरों का ज्ञान करवाया जाता है इस कारण इसे अक्षरारम्भ संस्कार भी कह दिया जाता है ऐसे में यदि आप अक्षरारम्भ संस्कारके बारे में सुने तो समझ जाइये कि वहां विद्यारंभ संस्कार की ही बात हो रही है

विद्यारंभ संस्कार का महत्व

एक समाज को सुशिक्षित करने में विद्या का बहुत बड़ा योगदान होता है। यदि समाज में शिक्षा का अभाव होगा तो वह समाज कुरीतियों, दुष्प्रचार, अराजकता इत्यादि का केंद्र बन जाता है। इसलिये समाज को सही दिशा देने तथा उसके निर्माण के लिए उसे शिक्षा देना अति-आवश्यक होता है।

इसी उद्देश्य के साथ Vidyarambh Sanskar को शुरू किया गया था। जब से समाज में भाषा का विकास हुआ तथा उसे लिखा जाने लगा तब इस संस्कार को मान्यता दी गयी तथा पूरे विधि-विधान के साथ अक्षर का ज्ञान दिया जाने लगा। इसी संस्कार के पश्चात एक बच्चा आगे के अध्ययन तथा उच्च शिक्षा के लिए तैयार होता है। यदि उसे अक्षर इत्यादि का ज्ञान न दिए जाये तो वह आगे वेदों का अध्ययन नही कर पायेगा। इसलिये उसकी शुरूआती शिक्षा का कार्य इसी संस्कार के माध्यम से होता है।

विद्या आरंभ संस्कार से संबंधित प्रश्नोत्तर

प्रश्न: विद्यारंभ संस्कार कैसे किया जाता है?

उत्तर: विद्यारंभ संस्कार को करने की संपूर्ण विधि हमने इस लेख में दी है हालाँकि आज के समय में बच्चों को स्कूल भेजना और उसे अक्षरों का शुरूआती ज्ञान करवाना ही विद्यारंभ संस्कार के नाम से जाना जाता है

प्रश्न: विद्यारंभ मुहूर्त क्या है?

उत्तर: विद्यारंभ संस्कार का शुभ मुहूर्त बसंत पंचमी का दिन होता है यह माँ सरस्वती का दिन होता है और माँ सरस्वती ही विद्या की देवी मानी जाती है बालक के पांच वर्ष की आयु होने पर उसका विद्यारंभ संस्कार किया जाता है

प्रश्न: विद्या प्रारंभ से पहले का संस्कार कौन सा है?

उत्तर: विद्या प्रारंभ से पहले का संस्कार कर्णवेध संस्कार होता है कर्णवेध संस्कार तीन से चार वर्ष की आयु में करवा दिया जाता है जबकि विद्यारंभ पांच वर्ष की आयु में करवाया जाता है

प्रश्न: विद्यारंभम के लिए कौन सा दिन अच्छा है?

उत्तर: विद्यारंभम के लिए बुधवार या गुरुवार के दिन को अच्छा माना जाता है हालाँकि सामान्य तौर पर लोग अपने बच्चों का बसंत पंचमी के दिन विद्यारंभ संस्कार करवाते हैं

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लेखक के बारें में: कृष्णा

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