वैसे तो रामायण में रावण मेघनाथ संवाद (Ravan Meghnath Samvad) एक बार नहीं कई बार हुआ था लेकिन आज हम उनके अंतिम संवाद के बारे में बात करेंगे। मेघनाथ अत्यंत पराक्रमी योद्धा तो था ही साथ में अपने पिता रावण का भक्त भी था। उसने आज तक अपने पिता की हर आज्ञा का पालन किया था व उनके हर अच्छे-बुरे कर्म में साथ दिया था।
यही कारण था कि जब रावण माता सीता को उठा लाया था व एक-एक करके अपने वीर योद्धाओं को युद्धभूमि में खो रहा था तब सभी ने उसे माता सीता को लौटाने व श्रीराम की शरण में जाने की बात कही थी। रावण को उसकी पत्नी, भाइयों, मंत्रियों, नाना, इत्यादि कई लोगों ने समझाने का प्रयत्न किया था कि माता सीता का अपहरण अनुचित है व प्रभु श्रीराम स्वयं नारायण का रूप हैं।
नारायण से युद्ध करना स्वयं के विनाश को निमंत्रण देना है किंतु रावण के सबसे बड़े पुत्र मेघनाथ ने हमेशा रावण का साथ दिया। उसने कभी भी रावण को माता सीता को लौटाने व श्रीराम की सेवा में जाने को नहीं कहा। हालाँकि अपने अंतिम युद्ध से पहले हुए मेघनाथ रावण संवाद (Meghnath Ravan Samvad) में मेघनाथ भी रावण को माता सीता को लौटाने और श्रीराम की शरण में जाने को कहता हुआ दिखता है लेकिन क्यों? आज हम इसके पीछे का कारण जानेंगे।
Ravan Meghnath Samvad | रावण मेघनाथ संवाद
मेघनाद को स्वयं भगवान ब्रह्मा ने वरदान दिया था कि यदि वह किसी भी युद्ध में जाने से पहले अपनी कुलदेवी निकुंबला के मंदिर में जाकर यज्ञ पूर्ण कर लेगा तो वह अविजयी हो जाएगा। उस युद्ध में उसे परास्त करना असंभव होगा व निश्चित ही उसकी विजय होगी। साथ ही भगवान ब्रह्मा ने मेघनाथ को यह भी बताया था कि जो कोई भी उसके यज्ञ को समाप्त होने से पहले विध्वंश करने में सफल होगा उसी के हाथों उसकी मृत्यु होगी।
अपने अंतिम युद्ध से पहले मेघनाथ माँ निकुंबला के मंदिर में यज्ञ कर रहा था लेकिन श्रीराम के छोटे भाई लक्ष्मण ने विभीषण, हनुमान, सुग्रीव व वानर सेना की सहायता से उस यज्ञ को बीच में ही रुकवा दिया। इसलिए मेघनाथ को इस बात का आभास हो गया था कि आज उसकी मृत्यु लक्ष्मण के हाथों हो सकती है।
मेघनाथ के तीनों अस्त्र विफल होना
निकुंबला यज्ञ के विफल होने के पश्चात भी मेघनाथ युद्धभूमि में गया व लक्ष्मण के साथ युद्ध करने लगा। उसे स्वयं पर पूर्ण विश्वास था क्योंकि उसके पास त्रिदेव के सबसे बड़े अस्त्र ब्रह्मास्त्र, पशुपति व नारायण अस्त्र थे। इनके द्वारा वह किसी पर भी विजय प्राप्त कर सकता था।
उसने एक-एक करके लक्ष्मण पर तीनों अस्त्र छोड़े लेकिन तीनों अस्त्र ही लक्ष्मण के पास जाकर बिना अपना प्रभाव दिखाए वापस लौट आए। यह देखकर मेघनाथ को ज्ञात हो गया कि लक्ष्मण व उसके बड़े भाई श्रीराम कोई साधारण मनुष्य हो ही नहीं सकते। साथ ही जिसके सामने ब्रह्मांड के तीनों अस्त्र निष्प्रभावी हो जाएं वह नारायण के रूप ही हो सकते हैं।
मेघनाथ रावण संवाद
यह ज्ञात होते ही मेघनाथ अंतर्धान होकर रावण के महल में पहुँचा व उसे समझाने का प्रयत्न (Meghnath Ravan Samvad) किया। उसने अपने पिता रावण के समक्ष सभी बातों का उल्लेख किया व श्रीराम के नारायण रूप होने की बात स्वीकार की। उसने पहली बार अपने पिता को माता सीता को लौटा देने व श्रीराम की शरण में जाने को कहा ताकि आगे होने वाले विनाश को टाला जा सके।
मेघनाथ जान गया था कि नारायण से जीतना असंभव है क्योंकि उनसे ज्यादा शक्तिशाली इस ब्रह्मांड में कोई नहीं। यही बात उसने अपने पिता को समझाने की कोशिश की लेकिन रावण नहीं माना। रावण अपने अहंकार में इतना ज्यादा चूर था कि अब उसे अपना पुत्र मेघनाथ भी कायर लगने लगा था।
रावण मेघनाथ संवाद (Ravan Meghnath Samvad) में वह क्षण बहुत ही मार्मिक था जब रावण ने अहंकारवश मेघनाथ को भी कटु वचन कहे तथा कायरता के लिए उसे धिक्कारा। उसने मेघनाथ से कहा कि यदि वह युद्ध से डर गया है तो महल में जाकर आराम करे किंतु वह युद्ध नहीं रोकेगा।
अपने पिता के इन वचनों को सुनकर मेघनाथ अत्यंत विचलित हो गया व उसने युद्धभूमि में जाकर स्वयं नारायण के हाथों मरना चुना। मेघनाथ यह जानता था कि आज उसका अंतिम युद्ध होगा व उसके बाद वह जीवित नहीं रहेगा। लेकिन अपने पिता व लंका के राजा के आदेश अनुसार वह युद्धभूमि में गया व वीरगति को प्राप्त हुआ।
रावण मेघनाथ संवाद से संबंधित प्रश्नोत्तर
प्रश्न: रावण से भी शक्तिशाली कौन था?
उत्तर: रावण से भी अधिक शक्तिशाली उसका पुत्र मेघनाथ था। उसने दो दिन युद्ध में विजय प्राप्त की थी और तीसरे दिन वीरगति को प्राप्त हुआ था।
प्रश्न: रावण कौन सी भाषा बोलता था?
उत्तर: रावण संस्कृत भाषा में वार्तालाप किया करता था। हालाँकि उसे तमिल भाषा का भी ज्ञान था।
प्रश्न: क्या रावण लंका अभी भी है?
उत्तर: रावण की लंका श्रीलंका में एक द्वीप पर आज भी है जिसे देखने हर वर्ष लाखों लोग जाते हैं।
प्रश्न: रावण का असली नाम क्या?
उत्तर: रावण का असली नाम रावण ही है। यह नाम उसे उसके माता-पिता के द्वारा दिया गया था।
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