संजीवनी बूटी कहां मिलेगी? जाने संजीवनी बूटी का उपयोग

Hanuman Sanjivani Buti

संजीवनी बूटी (Sanjivani Buti) के बारे में कौन नहीं जानता होगा। यह वही बूटी है जिसके कारण लक्ष्मण की प्राण रक्षा हो सकी थी। यदि यह बूटी नहीं होती या इसे समय पर हनुमान जी के द्वारा नहीं लाया जाता तो अनर्थ हो सकता था। वह इसलिए क्योंकि यदि लक्ष्मण वहीं अपने प्राण त्याग देते तो शायद श्रीराम भी उनके साथ देह त्याग कर सकते थे। हालाँकि यह भी सत्य है कि यह सब खेल ईश्वर के द्वारा ही रचा गया है जिसे कोई नहीं बदल सकता है।

ऐसे में आज हम यहाँ उस प्रसंग के बारे में नहीं बल्कि संजीवनी बूटी के बारे में बात करने वाले हैं। यह Sanjeevani Booti बहुत ही चमत्कारिक थी जो लोगों के लिए किसी अमृत से कम नहीं थी। इस लेख में आपको संजीवनी बूटी के फायदे भी जानने को मिलेंगे। तो चलिए इस चमत्कारिक संजीवनी बूटी के बारे में पूरी जानकारी ले ली जाए।

Sanjivani Buti | संजीवनी बूटी

रामायण में जिस संजीवनी बूटी के बारे में बताया गया है, वह इतनी चमत्कारिक थी कि उससे मृत्यु शैय्या पर बैठे व्यक्ति को भी जीवित किया जा सकता था। कहने का अर्थ यह हुआ कि जो व्यक्ति बस मरने ही वाला हो लेकिन उसके प्राण नहीं निकले हो, तो वह भी इस संजीवनी बूटी के प्रभाव से एकदम ठीक हो जाता था।

यही कारण था कि जो लक्ष्मण शक्तिबाण के प्रभाव से बस मृत हो ही चुके थे, वही लक्ष्मण अगले दिन मेघनाद से युद्ध कर उसका वध कर देते हैं। ऐसे में आज हम आपको Sanjivani Buti Ke Fayde तो बताएँगे ही बल्कि साथ ही उसके बारे में मूलभूत जानकारी भी देंगे।

#1. संजीवनी बूटी पर्वत नाम

यह बूटी हिमालय पर्वत के उस पहाड़ पर पाई जाती थी जो कैलाश पर्वत तथा ऋषभ पर्वत के बीच में स्थित था। जब सुषेण वैद्य हनुमान को उसका पता दे रहे होते हैं, तब उनके द्वारा भी यही बताया गया है। वर्तमान में इसका स्थान उत्तराखंड राज्य के चमोली गाँव में द्रोणागिरी गाँव माना जाता है। कुछ लोगों के अनुसार इसका स्थान उड़ीसा का गंधमर्धन पर्वत भी है।

प्रचलित मान्यता के अनुसार यह उत्तराखंड का द्रोणागिरी पर्वत ही है। इसलिए इसे संजीवनी बूटी पर्वत का नाम भी दिया गया है। यहाँ के लोग हनुमान जी की पूजा नहीं करते हैं क्योंकि हनुमान जी केवल संजीवनी बूटी ले जाने की बजाए पूरा का पूरा पर्वत उठा ले गए थे। इस कारण यहाँ के लोग आज तक उनसे नाराज़ हैं।

#2. संजीवनी बूटी के प्रकार

अब उस पर्वत पर केवल संजीवनी बूटी ही नहीं थी बल्कि तीन और बूटियाँ भी थी। उनके नाम हैं विशल्यकारिणी, स्वर्णकारिणी तथा संधानी। यह तीन बूटियाँ भी अत्यंत चमत्कारी थी जिन्हें अलग-अलग उद्देश्यों की पूर्ति के लिए उपयोग में लिया जाता था। आइए एक-एक करके इनके बारे में भी जान लेते हैं।

  • विशल्यकारिणी

इस बूटी को व्यक्ति के घावों पर लगाया जाता था। इसके बाद उसके घाव कुछ ही समय में भर जाते थे। एक तरह से यह मनुष्य के शरीर के किसी भी तरह के घावों को जल्द से जल्द भरने का काम करती थी।

  • स्वर्णकारिणी

यह पहली वाली बूटी से भी ज्यादा शक्तिशाली थी। यदि मनुष्य के शरीर का कोई अंग कट गया है तो उसे जोड़ने के लिए इस बूटी का उपयोग किया जाता था। यह बूटी मनुष्य के अंगों को इस तरह से जोड़ देती थी जैसे कि वे पहले अलग ही ना हुए हो।

  • संधानी

संधानी बूटी पहली दोनों बूटी से शक्तिशाली व प्रभावी थी। यदि किसी के शरीर को लकवा मार गया है या वह विकलांग है या विकृत शरीर वाला है तो उसे पूर्ण रूप से ठीक करने की शक्ति इस बूटी में थी।

#3. मृत संजीवनी बूटी

इनमें से चौथी थी मृत संजीवनी बूटी जो लगभग मृत हो चुके व्यक्ति को जीवित कर सकती थी। कहने का तात्पर्य यह हुआ कि इसमें इतनी ज्यादा शक्ति थी कि यदि कोई व्यक्ति बुरी तरह घायल हो गया हो या उसके प्राण निकलने ही वाले हो और उस समय उसे यह बूटी मिल जाए तो उसके प्राण बचाए जा सकते थे।

वैद्यराज सुषेण ने हनुमान जी को यही मृत संजीवनी बूटी लेने के लिए हिमालय भेजा था। इसी का प्रभाव था कि मेघनाद के शक्तिबाण के घाव के बाद भी लक्ष्मण इस बूटी के प्रभाव से एकदम स्वस्थ हो गए थे। वे इतने स्वस्थ हो गए थे कि अगले दिन फिर से मेघनाद से युद्ध करने गए थे और उसका वध कर दिया था।

#4. संजीवनी बूटी कहां मिलेगी?

यह बूटियाँ देवताओं तथा दानवों के द्वारा समुंद्र मंथन के समय निकली थी। संजीवनी बूटी के फायदों को देखते हुए देवताओं ने इसे गलत हाथों में पड़ने से बचाने के लिए हिमालय में छुपा दिया था। इसके बारे में सामान्य लोगों को जानकारी नहीं होती थी और किसी विशेष कार्य के लिए इनका उपयोग किया जा सकता था। ऐसे में आज भी संजीवनी बूटी को उसी रूप में प्राप्त नहीं किया जा सकता है।

हालाँकि त्रेतायुग में जब हनुमान जी लंका से संजीवनी पर्वत को वापस हिमालय रखने जा रहे थे, तब उस पहाड़ के कुछ टुकड़े वहाँ गिर गए थे। इस कारण श्रीलंका के उस स्थान पर आज भी औषधियां उगती हैं जो वहाँ की वनस्पति, मिट्टी, पेड़-पौधों इत्यादि से एकदम भिन्न है। इसका उपयोग कई तरह की आयुर्वेदिक दवाओं को बनाने में किया जाता है।

#5. संजीवनी बूटी का पौधा कैसा होता है?

अब यदि आप संजीवनी बूटी के पौधे के बारे में जानना चाहते हैं तो यह बूटी इतनी ज्यादा चमत्कारी थी कि किसी के पास आते ही यह अपने आप गायब हो जाती थी। इस तरह से यह अपने आपको छुपा लेती थी और किसी को आसानी से दिखती नहीं थी। जब उन्हें यह आभास होता था कि इसका कार्य धर्महेतु किया जा रहा है, तभी यह प्राप्त हो सकती थी अर्थात अपने असली रूप में आती थी।

संजीवनी बूटी के पौधे में से हमेशा एक दिव्य प्रकाश निकलता रहता था जो इसकी मुख्य पहचान था। इसी के द्वारा हनुमान ने इस पहाड़ को पहचाना था जो सुषेण वैद्य ने उन्हें बताया था। हालाँकि हनुमान संजीवनी बूटी के प्रकार देखकर झंझट में पड़ गए थे, इसलिए पूरा का पूरा संजीवनी पर्वत ही उठा लाए थे।

#6. संजीवनी बूटी का उपयोग

भारतीय तथा विदेश के कई वैज्ञानिकों ने संजीवनी बूटी के रहस्य को जानने के लिए कई प्रकार की खोज की। उन्होंने इसके बारे में कई तथ्यों को उजागर किया। उनके अनुसार संजीवनी बूटी के उपयोग सीमित नहीं बल्कि असीमित हैं। चूँकि अभी यह उपलब्ध नहीं है या पहुँच में नहीं है, ऐसे में पक्के तौर पर कुछ कहना सही नहीं रहेगा।

कहते हैं कि संजीवनी विद्या का ज्ञान दैत्यों के गुरु शुक्राचार्य ने भगवान शिव से सीख लिया था। इससे वे देवताओं से युद्ध में मारे गए दैत्यों को पुनः जीवित कर दिया करते थे। देवता भी इसको लेकर बहुत परेशान हो गए थे। इसका मुख्य उपयोग तो लक्ष्मण की प्राण रक्षा के लिए ही किया गया था। उसके अलावा देवतागण इसका उपयोग करते रहते थे।

#7. Sanjivani Buti Ke Fayde | संजीवनी बूटी के फायदे

संजीवनी बूटी के बारे में इतना सब जानने के बाद अब अंत में आप उसके फायदों के बारे में भी जान लेंगे तो बेहतर रहेगा। तो यहाँ हम आपको बता दें कि यह संजीवनी बूटी इतनी ज्यादा फायदेमंद थी कि इससे व्यक्ति के सभी रोग दूर हो जाते थे, अशुद्धियाँ निकल जाती थी, आयु बढ़ जाती थी तथा और भी बहुत कुछ। आइए जान लेते हैं।

  • सभी रोग दूर

यह बूटी इतनी ज्यादा चमत्कारी थी कि इससे व्यक्ति के सभी रोग दूर हो जाते थे। व्यक्ति को चाहे किसी भी तरह का शारीरिक रोग हो, उसे केवल इस बूटी की थोड़ी सी मात्रा लेनी होती थी और वह रोग कुछ ही दिनों में दूर हो जाता था।

  • अशुद्धियाँ निकलना

मनुष्य के शरीर में जितनी भी अशुद्धियाँ हैं जो आगे चलकर विभिन्न प्रकार के रोगों का कारण बन सकती है, वह भी इसके प्रभाव से निकल जाती थी। एक तरह से यह शरीर के सभी विषैले कणों व वायरस को बाहर निकालने का काम करती थी।

  • शक्ति आना

अब यदि मनुष्य के शरीर के सभी रोग दूर हो जाएँगे और अशुद्धियाँ भी निकल जाएंगी तो अवश्य ही उसके शरीर की ऊर्जा सही जगह लगेगी। यही कारण था कि इस संजीवनी बूटी का उपयोग शरीर की ऊर्जा बनाए रखने और शक्ति को असीमित करने के लिए भी किया जाता था।

  • लंबाई बढ़ना

इसके प्रभाव से व्यक्ति के शरीर की लंबाई को भी पहले की तुलना में बढ़ाया जा सकता था। यदि किसी को छोटे शरीर या पतलेपन की समस्या होती थी तो वह संजीवनी बूटी के प्रभाव से ठीक हो जाता था।

  • आयु बढ़ना

संजीवनी बूटी के फायदों में एक मुख्य फायदा यह भी था कि इससे मनुष्य की आयु भी बढ़ जाती थी। अब यदि व्यक्ति का शरीर स्वस्थ रहता है तो अवश्य ही वह पहले की तुलना में ज्यादा समय तक जीवित रहता है। ऐसे में आयु बढ़ाने और रोग ठीक करने में संजीवनी बूटी का उपयोग किया जाता था।

इस तरह से यह संजीवनी बूटी किसी चमत्कारिक औषधि से कम नहीं थी। हालाँकि आज के समय में संजीवनी बूटी कहाँ मिलेगी और किस तरह से इसका लाभ उठाया जा सकता है, यह एक प्रश्न बनकर ही रह गया है। क्या पता, समय के साथ-साथ यह लुप्त हो चुकी हो या इसे कहीं और ले जाया गया हो।

संजीवनी बूटी से संबंधित प्रश्नोत्तर

प्रश्न: संजीवनी बूटी का क्या काम है?

उत्तर: संजीवनी बूटी से व्यक्ति के घावों को भरा जा सकता है, कटे अंगों को जोड़ा जा सकता है और यहाँ तक कि लगभग मृत हो चुके व्यक्ति को भी ठीक किया जा सकता है।

प्रश्न: हनुमान जी संजीवनी बूटी कहाँ से लायी थे?

उत्तर: प्रचलित मान्यताओं के अनुसार हनुमान जी संजीवनी बूटी को उत्तराखंड राज्य के चमोली जिले में स्थित द्रोणागिरी पर्वत से लाए थे।

प्रश्न: संजीवनी बूटी की पहचान कैसे करें?

उत्तर: संजीवनी बूटी का पौधा चमकदार होता है। हालाँकि जब कोई इसके पास आने लगता है तो यह अपने आप को छुपा लेता है। ऐसे में इसे ढूंढा नहीं जा सकता है।

प्रश्न: हनुमान को संजीवनी लाने में कितना समय लगा?

उत्तर: कहते हैं कि हनुमान को संजीवनी लाने में लगभग 2 घंटे का समय लगा। लंका से हिमालय पर्वत की दूरी 4 हज़ार किलोमीटर के आसपास है। ऐसे में हनुमान जी ने 2 घंटे में 8 हज़ार किलोमीटर की यात्रा कर ली थी।

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लेखक के बारें में: कृष्णा

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