आज हम रामलीला पर निबंध (Ramlila In Hindi) लिखने जा रहे हैं। रामलीला एक ऐसा रंगमंच हैं जिसका प्रस्तुतीकरण आज से ही नही अपितु हजारो वर्षों से होता आ रहा है। पहले यह वाल्मीकि रचित रामायण पर आधारित था तो आजकल इसे तुलसीदास जी द्वारा रचित रामचरितमानस को आधार मानकर आयोजित किया जाता हैं।
रामायण रामलीला (Ramayan Ramleela) केवल एक नाटक नही अपितु जीवन मूल्यों की एक खान हैं जो समाज को संदेश देती हैं। देशभर में हर जगह दशहरा से पहले रामलीला का आयोजन किया जाता हैं, साथ ही विदेशों में भी यह प्रसिद्ध हैं। आइए आज हम रामलीला के बारे में जानते हैं।
रामलीला पर निबंध (Ramlila In Hindi)
रामलीला दो शब्दों के मेल से बना हैं, “राम” व “लीला” अर्थात प्रभु श्रीराम के जीवन पर आधारित कथाओं का नाटक के माध्यम से मंचन। भगवान श्रीराम के जीवन में क्या-क्या घटित हुआ था तथा उससे हमे क्या-क्या संदेश मिलता हैं, बस इन्ही लीलाओं को नाटक के माध्यम से दर्शकों को दिखाया जाता हैं जिसे रामलीला का नाम दिया गया हैं।
ऐसे में आज हम आपको रामलीला के बारे में संपूर्ण जानकारी देने वाले हैं। जैसे कि रामलीला का इतिहास, मंचन, संदेश व महत्व इत्यादि। आइए जाने इसके बारे में।
रामलीला का इतिहास
वैसे तो रामलीला का मंचन हजारो वर्षो से किया जा रहा हैं लेकिन पहले यह वाल्मीकि जी द्वारा रचित रामायण पर आधारित होती थी। सोलहवी शताब्दी में जब से तुलसीदास जी ने अवधि भाषा में रामचरितमानस की रचना की तब से इसका मंचन पहले से और ज्यादा भव्य तरीके से होने लगा।
वाल्मीकि जी द्वारा रचित रामायण संक्षिप्त रामायण थी लेकिन तुलसीदास जी ने इसे विस्तृत करके लिखा जिसमे कुछ और घटनाएँ भी जोड़ी गयी। इसके पश्चात 1625 ईसवीं में तुलसीदास जी की शिष्या मेघा भगत ने इसे वाराणसी के रामनगर में पहली बार मंचन किया जो रामचरितमानस पर आधारित थी। तब से लेकर आज तक इसका मंचन निरंतर रूप से होता आ रहा हैं जिसमे सभी लोग बढ़ चढ़कर भाग लेते हैं व श्रीराम के जीवन मूल्यों व आदर्शों को सीखते हैं।
रामलीला कब होती है?
सामान्यतया रामायण रामलीला (Ramayan Ramleela) का मंचन आश्विन मास के शुक्ल पक्ष की प्रथम तिथि अर्थात शारदीय नवरात्र के शुरू होने से आरंभ हो जाता हैं जिसका समापन दशहरा पर हो जाता हैं। यह कुल मिलाकर करीब दस दिनों का भव्य कार्यक्रम होता हैं। इसे प्रतिदिन शाम के समय आयोजित किया जाता है जो कि लगभग दो से तीन घंटे का कार्यक्रम होता है।
इस समय तक सभी लोग अपने कामकाज से फ्री हो जाते हैं तथा अपने परिवारवालों व बच्चों के साथ रामलीला का आनंद उठाने पहुँचते हैं। प्रतिदिन यह कार्यक्रम दो से तीन घंटे तक का होता हैं तथा अगले दिन फिर उससे आगे का नाट्य रूपांतरण किया जाता हैं। केवल वाराणसी में होने वाली रामलीला सबसे बड़ी होती हैं जो 31 दिनों तक चलती है।
रामलीला कैसे बनती है?
रामलीला का मंचन विभिन्न शहरों तथा गाँवों में अलग-अलग होता हैं। इसमें शहर या गाँव के चर्चित जगह या बड़ा मैदान जिसे सामान्यतया रामलीला मैदान के नाम से ही जाना जाता हैं, वहां किया जाता हैं। गाँवों में भी इसे छौराहे या खुली जगह पर किया जाता है।
इसमें जो कलाकार भूमिका निभाते हैं वे मंडली से होते हैं। इस कार्य को करने के लिए ज्यादा पैसे तो नही मिलते लेकिन बाकि सब सुख-सुविधाएँ मिलती हैं जैसे कि खाना-पीना, रहने का आवास इत्यादि। रामलीला का आयोजन करने के लिए शहर-गाँव के लोग ही पैसो की व्यवस्था करते हैं जो कि एक तरह से दानकार्य ही होता हैं।
कुल मिलकर यह आयोजन सभी लोगो की मिलीझुली भूमिका से मिलकर ही तय होता हैं। इसमें पैसे इकट्ठे करना, जगह को साफ करना, स्टेज इत्यादि का निर्माण करना, दर्शको के बैठने के लिए व्यवस्था करना, रोशनी इत्यादि देखना, कलाकारों को बुलाना इत्यादि सब सम्मिलित हैं।
रामलीला में क्या दिखाया जाता है?
जैसा कि हमने आपको बताया कि रामलीला में श्रीराम के जीवन की मुख्य घटनाओं को नाटक के माध्यम से प्रदर्शित किया जाता हैं। इन घटनाओं में आते हैं:
- प्रभु श्रीराम का जन्म होना,
- गुरुकुल में जाकर शिक्षा ग्रहण करना,
- पुनः अयोध्या लौटना,
- कैकेयी का संताप,
- श्रीराम को लक्ष्मण व सीता सहित चौदह वर्ष का वनवास होना,
- केवट व शबरी प्रसंग,
- सूर्पनखा की नाक काटना,
- माता सीता का हरण होना,
- हनुमान का मिलना,
- सुग्रीव का किष्किन्धा नरेश बनना,
- माता सीता की खोज करना,
- रामसेतु बनाना,
- वानर सेना का लंका पहुंचना,
- कुंभकरण, मेघनाद व रावण का वध होना।
रावण वध दशहरा के दिन किया जाता हैं तथा उसी के साथ रामलीला का समापन हो जाता है। कुछ रामलीलाओं में इसे भगवान श्रीराम के वनवास से शुरू किया जाता हैं जो रावण वध से समाप्त हो जाता हैं। अब यह विभिन्न मंडली तथा व्यवस्था पर निर्भर करता हैं कि वे इसे नाटक के माध्यम से किस रूप में प्रदर्शित करते हैं।
इसे विभिन्न स्थलों तथा राज्यों के अनुसार उनकी बोली, भाषा व हावभाव के अनुसार बदल दिया जाता हैं लेकिन कथा व शिक्षा वही रहती हैं। जैसे कि उत्तर प्रदेश में भोजपुरी तो राजस्थान में राजस्थानी बोली या भाषा के अनुसार। रामलीला पर निबंध (Ramlila In Hindi) लिखते समय आप इसके बारे में अच्छे से लिख सकते हैं।
रामलीला का महत्व
रामलीला का मंचन एक हज़ार वर्ष से भी ज्यादा समय से होता आ रहा हैं। पहले इसके लिए एक अलग उत्साह देखने को मिलता था लेकिन आज की आधुनिकता के समय में ज्यादातर लोगो के पास समय की बहुत कमी हो गयी हैं। आजकल मनुष्य का जीवन केवल भागादौड़ी वाला बनकर रह गया हैं जिसमे आराम के क्षण बहुत कम ही होते हैं।
श्रीराम का जीवन एक ऐसा जीवन हैं जिनके हर पहलु से हमे एक सकारात्मक संदेश व शिक्षा मिलती हैं। उदाहरण के तौर पर:
- एक भव्य नगरी के राजकुमार होते हुए भी श्रीराम का अपने पिता का वचन निभाने के लिए चौदह वर्ष वनों की ठोकरे खाना,
- छोटे भाई लक्ष्मण का अपने भाई के लिए सबकुछ त्यागकर उनके साथ वन में जाना,
- भरत का अपने भाई के लिए अयोध्या का मिले राज का त्याग करना,
- माता सीता का जीवन पर्यंत पत्नी धर्म का पालन करना, इत्यादि।
ऐसी कई और पहलु हैं जो हमे जीवन के कई महत्वपूर्ण संदेश देते हैं। प्राचीन समय में ना तो टीवी होते थे व ना ही मोबाइल। लोग कहानियां सुनाकर या नाटक दिखाकर ही शिक्षा दिया करते थे। इसलिये लोग अपने बच्चों को मुख्य रूप से रामलीला दिखाने लेकर जाते थे जिससे उन्हें जीवन की उत्तम शिक्षा मिल सके।
इसी के साथ रामलीला का महत्व इसलिये भी बढ़ जाता हैं क्योंकि इसमें जनभागीदारी देखने को मिलती थी। यह आवश्यक नही था कि इसमें केवल कलाकार ही नाटक में भाग लेते थे बल्कि आम जनता भी इसमें खुलकर भाग लेती थी। दरअसल जो मुख्य भूमिकाएं होती थी वे कलाकार ही निभाते थे किंतु इसके अलावा श्रीराम या रावण की सेना, राजा के उद्यान का माली बनना जैसे छोटी-मोटी भूमिकाओं में आम दर्शक ही भाग लेते थे। इसमें सभी को बहुत आनंद भी आता था।
आम जनता के द्वारा रामायण रामलीला (Ramayan Ramleela) में भाग लेने के साथ-साथ उनकी भावनाएं भी प्रदर्शित होती थी। जैसे कि जब माता सीता का हरण होता था या श्रीराम व लक्ष्मण मेघनाथ के बाण से मुर्छित हो जाते थे तो जनता भावुक हो जाती थी। उसी प्रकार जब श्रीराम कुंभकरण रावण जैसे राक्षसों का वध करते थे तब जनता उत्साह से भर जाती थी।
इन सभी घटनाओं के कारण रामलीला एक ऐसा नाट्य रूपांतरण था जिसकी ख्याति देश-विदेश में फैल गयी। अब इसका रूपांतरण केवल भारत देश में ही नही अपितु विदेशों में भी किया जाता हैं।
विदेशो में रामलीला का मंचन
रामलीला का मंचन भारत के विभिन्न राज्यों में तो किया ही जाता हैं। इसके साथ ही विदेशों में भी इसकी धूम देखने को मिलती हैं। कुछ देश जो रामलीला का मंचन मुख्य रूप से करते हैं वे हैं:
- बालि
- म्यांमार
- कंबोडिया
- इंडोनेशिया
- मॉरिशस
- फिजी
- मलेशिया
- सिंगापुर
- कैरीबियाई
- अफ्रीका
- श्रीलंका
- थाईलैंड
इसके अलावा इसका मंचन अमेरिका, कनाडा, ऑस्ट्रेलिया, इंग्लैंड, न्यूज़ीलैण्ड इत्यादि देशो में भी किया जाता हैं। इन सभी देशो में थाईलैंड देश की रामलीला बहुत प्रसिद्ध हैं जिसे रामकीर्ति के नाम से जाना जाता हैं। थाईलैंड में रामलीला का मंचन सैकड़ो वर्षो से किया जा रहा हैं। हालाँकि उनकी रामलीला में भूमिका निभाने वाले कलाकारों का रंग-रूप व वेशभूषा थोड़े भिन्न होते हैं लेकिन कथा व शिक्षा वही हैं।
देशभर में प्रसिद्ध रामलीला मंचन
कुछ रामलीलाएं ऐसी हैं जो विश्व प्रसिद्ध हैं तथा जिन्हें देखने दूर-दूर से लोग आते हैं। वे हैं:
- रामनगर, वाराणसी की रामलीला
- दिल्ली की लवकुश मंडली की रामलीला
- चांदनी चौक दिल्ली की रामलीला
- अयोध्या की रामलीला
- लखनऊ की रामलीला इत्यादि।
इस तरह से आज हमने आपको रामलीला पर निबंध (Ramlila In Hindi) दे दिया है। इस निबंध में रामलीला के बारे में शुरू से लेकर अंत तक संपूर्ण जानकारी दे दी गई है। आशा है कि आपको यह निबंध पसंद आया होगा।
रामलीला से संबंधित प्रश्नोत्तर
प्रश्न: रामलीला से आप क्या समझते हैं?
उत्तर: रामलीला का अर्थ होता है भगवान श्रीराम के जीवन से जुड़े घटनाक्रम। इसके माध्यम से भगवान श्रीराम के जन्म से लेकर रावण वध की कहानी का मंचन किया जाता है।
प्रश्न: रामलीला का क्या महत्व है?
उत्तर: रामलीला के माध्यम से लोगों को भगवान श्रीराम के द्वारा दिए गए संदेश समझाए जाते हैं। इससे एक सभ्य समाज का निर्माण होता है जो हर किसी के लिए आवश्यक है।
प्रश्न: रामलीला नाटक क्या है?
उत्तर: रामलीला नाटक के माध्यम से भारत देश के हरेक शहर में भगवान श्रीराम की जीवनी को दर्शाया जाता है। इसके माध्यम से भगवान श्रीराम के संदेशों को लोगों के बीच पहुँचाने का काम होता है।
प्रश्न: राम लीला का क्या अर्थ है?
उत्तर: राम लीला का अर्थ होता है भगवान श्रीराम के जीवन से जुड़ी हरेक घटना का नाटक के माध्यम से वर्णन करना। यह दशहरा से कुछ दिनों पहले शुरू हो जाती है जो दशहरे के बाद तक चलती है।
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