बरसाने की लट्ठमार होली (Lathmar Holi) देश ही नही अपितु विदेशों में भी बहुत प्रसिद्ध हैं। दूर-दूर से लाखों की संख्या में भक्तगण होली पर बरसाने गाँव की लठमार होली देखने आते हैं। यदि आपने भी अभी तक बरसाने की लट्ठमार होली का आनंद नही लिया हैं तो एक बार अवश्य वहां होकर आए।
किंतु सोचने वाली बात यह हैं कि आखिरकार बरसाने की होली (Barsane Ki Holi) की शुरुआत कहाँ से हुई और यह क्यों मनाई जाती हैं। इसी के साथ इसे खेलने की क्या परंपरा हैं और कौन-कौन इसे खेल सकता हैं। आज हम आपको बरसाने की लट्ठमार होली के बारे में संपूर्ण जानकारी देंगे।
Lathmar Holi | बरसाने की लट्ठमार होली
इसकी शुरुआत भगवान श्रीकृष्ण के नटखटपन से शुरू हुई थी। यह तो हम सभी जानते हैं कि मथुरा के कारावास में जन्म लेने के बाद श्रीकृष्ण को उनके पिता वासुदेव नंदगांव में नन्द बाबा के घर छोड़ आये थे। उसके बाद नन्द बाबा और माता यशोदा के घर ही उनका लालन-पोषण हो रहा था।
जब कान्हा थोड़े बड़े हो गए तब उनकी भेंट बरसाने की राधा रानी से हुई। कान्हा वैसे भी आसपास के गांवों में अपने नटखटपन और शरारतों के लिए प्रसिद्ध थे। उनके द्वारा गोपियों को छेड़ना, उनका माखन चुरा लेना और फिर अपनी माता यशोदा से डांट खाना रोजाना की बात थी।
सभी गोपियों में उन्हें सबसे अधिक प्रिय बरसाने की राधा थी। होली से कुछ दिन पहले वे अपने मित्रों के साथ राधा और बरसाने की गोपियों से होली खेलने जाते हैं। उनके पास बहुत सारा गुलाल होता हैं। कान्हा को उनके मित्रों के साथ आता देखकर राधारानी गोपियों संग मिलकर लठ उठा लेती हैं।
जैसे ही कान्हा और उनके मित्र उनके पास रंग डालने आते हैं वैसे ही गोपियों से उन्हें लठ पड़ते हैं। कान्हा लठों के वार से बचते हुए गोपियों पर रंग उड़ाते हैं। इसके बाद हर होली पर कुछ ऐसा ही नजारा देखने को मिलता हैं। बस इसी घटना के बाद नंदगांव के पुरुषों और बरसाने की महिलाओं के द्वारा लठमार होली (Barsane Ki Holi) खेलने की परंपरा चल पड़ी।
बरसाना की होली कौन खेलता हैं?
वैसे तो जिस दिन लट्ठमार होली खेली जाती हैं उस समय बरसाने की गलियों में पैर रखने तक की जगह नही होती क्योंकि लाखों की संख्या में भक्तगण व सैलानी बरसाने पहुँच जाते हैं। पूरे दिन लट्ठमार होली की ही धूम रहती हैं। जहाँ देखों चारों ओर से केवल और केवल रंग-गुलाल ही उड़ते हुए दिखाई देते हैं किंतु लठमार होली हर कोई नही खेल सकता हैं।
इसमें नंदगांव के पुरुष भाग लेते हैं जिन्हें हुरियारे कहा जाता हैं। तो दूसरी ओर बरसाने की महिलाएं भाग लेती हैं जिन्हें हुरियारने कहा जाता हैं। बरसाने की हुरियारने नंदगांव के हुरियारों पर लठ से वार करती हैं जबकि वे स्वयं को लठ के वार से बचाते हुए उन पर रंग डालने का प्रयास करते हैं।
बरसाना की लट्ठमार होली कब होती है?
लठमार होली दो दिनों तक खेली जाती हैं। पहले दिन बरसाने गाँव में और फिर अगले दिन नंदगांव में। वैसे तो बरसाने की लट्ठमार होली ही विश्व प्रसिद्ध हैं। होली से आठ दिन पहले होलाष्टक लग जाते हैं। इसमें पहले दिन बरसाने के ही राधारानी मंदिर में लड्डू होली खेली जाती हैं और उसके अगले दिन लट्ठमार होली। फिर तीसरे दिन नंदगांव में लट्ठमार होली खेली जाती हैं।
वैसे तो सुबह के समय से ही बरसाने में भक्तगण आने शुरू हो जाते हैं और लट्ठमार होली (Lathmar Holi) की धूम शुरू हो जाती हैं। राधारानी के मंदिर में और बाहर रंग उड़ रहे होते हैं लेकिन लठमार होली की शुरुआत शाम के समय होती हैं। उस समय आप बरसाने की महिलाओं को अपने हाथ में मोटे-मोटे बांस के लठ लिए हुए देख सकते हैं जिनसे वे नंदगांव के पुरुषों पर वार करती हुई नज़र आती हैं तो वही नंदगांव के हुरियारे स्वयं को ढाल से बचाते हुए दिखाई देते हैं।
लठमार होली कहाँ होती है?
बरसाने के राधारानी मंदिर के पास ही रंगीली गलियों में इस लट्ठमार होली को खेला जाता हैं। यह गलियां इतनी संकरी होती हैं कि इसमें हजारों की संख्या में भक्तगण एक ओर से दूसरी और जा रहे होते हैं और चारों ओर से रंग ही रंग उड़ रहे होते हैं।
भक्तों की दो पंक्तियाँ विपरीत दिशा में चल रही होती हैं जो पूरी खचाखच भरी होती हैं। इन गलियों में रंग उड़ना और होली खेलना तो सुबह से ही शुरू हो जाता हैं लेकिन लठमार होली शाम के समय शुरू होती है।
Barsane Ki Holi | बरसाने की होली कैसे खेली जाती है?
इसमें एक दिन पहले बरसाने की हुरियारने नंदगांव जाती हैं और वहां के गोस्वामी समाज को गुलाल भेंट किया जाता हैं और होली खेलने का निमंत्रण दिया जाता हैं। इसे फाग आमंत्रण कहा जाता हैं। इसके बाद उस गुलाल को गोस्वामी समाज में वितरित कर दिया जाता हैं और आमंत्रण को स्वीकार कर लिया जाता हैं। इसके बाद सभी हुरियारने बरसाने गाँव में वापस आ जाती हैं और वहां के श्रीजी मंदिर में इसकी सूचना देती हैं।
फिर शाम के समय नंदगांव के हुरियारे भी बरसना के लोगों को नंदगांव में होली खेलने का निमंत्रण देते हैं और इसे भी स्वीकार कर लिया जाता हैं। इसके अगले दिन नंदगांव के हुरियारे अपने हाथों में रंग व ढाल लिए बरसाने गाँव पहुँच जाते हैं।
उन्हें गोपियों के लठ से बचते हुए और उन पर रंग लगाते हुए, बरसाने के श्रीजी मंदिर के ऊपर ध्वजा लगाना होता हैं। बरसाने की हुरियारने लठ लिए उन्हें रोकने का प्रयास करती हैं। कोई हुरियारनी रंग में रंग जाती हैं तो कोई हुरियारे को लठ से जोर की मार पड़ती हैं।
इस प्रकार पूरे बरसाने में यही चलता हैं और जगह-जगह लठ चलाये जाने और उसके ढाल पर पड़ने की आवाज आती रहती हैं। फिर कुछ इसी प्रकार की होली अगले दिन नंदगांव में खेली जाती हैं जिसमें नंदगाँव की महिलाएं और बरसाने के पुरुष भाग लेते हैं।
बरसाने की लठमार होली की धूम
वैसे तो बरसाने की लट्ठमार होली (Lathmar Holi) के बारे में आप अभी तक ज्यादातर जान ही चुके होंगे लेकिन क्यों ना आपका रोमांच थोड़ा और बढ़ा दिया जाए। जिन्होंने बरसाने की लट्ठमार होली देखी हैं उन्हें तो अच्छे से पता होगा लेकिन जिन्होंने इसे नही देखा हैं वे जान ले कि इसे देखने का आनंद ही अलग हैं।
जिस दिन बरसाने में लट्ठमार होली खेली जानी होती हैं उस दिन की छटा देखते ही बनती हैं। रंगीली गलियों में तो मुख्य उत्सव का आयोजन होता हैं लेकिन उस दिन आपको बरसाने की कोई भी गली ऐसी नही दिखेगी या एक भी घर ऐसा नही दिखेगा जहाँ से रंग ना उड़ रहा हो।
उस दिन आपको बरसाने में ऐसा महसूस ही नही होगा कि कौन यहाँ का हैं और कौन बाहर का। बरसाने के हर घर की छते लोगों से भरी रहती हैं जहाँ पर चढ़कर आप नीचे का नजारा देख सकते हैं। नीचे गलियों में तो भक्तों की भीड़, ढोल-नगाड़ों की आवाज़, चारों ओर उड़ते विभिन्न रंग, हर ओर रंगा हुआ खुश चेहरा, झूमते-नाचते लोग, बस यही देखने को मिलेगा।
इस समय बरसाने में जो आनंद की अनुभूति होती हैं उसे शायद ही हम ऊपर दिए गए शब्दों में पूरी तरह से समेट पाए हो। इसलिये तो आपसे कह रहे हैं कि जीवन में कभी भी बरसाने की होली देखने का अवसर मिले तो इसे देखने से चूकियेगा मत।
लट्ठमार होली के समय सावधानी
यदि आप बरसाने की होली (Barsane Ki Holi) देखने जा रहे हैं तो कुछ सावधानी भी बरत ले जिससे बाद में आपको परेशानी का सामना ना करना पड़े। दरअसल इस समय वहां बहुत अधिक संख्या में भीड़ होती हैं लेकिन फिर भी आप आनंद उठा सकते हैं। कुछ सावधानियां हैं जिनका आपको ध्यान रखना चाहिए:
- यदि आपको साँस, अस्थमा इत्यादि की कोई गंभीर समस्या हैं तो अपना मुख्य ध्यान रखे क्योंकि यहाँ आपको हर दिशा से रंग ही रंग उड़ते हुए दिखाई देंगे जो आपको साँस लेने में समस्या उत्पन्न कर सकते हैं।
- वैसे तो लठमार होली रंगीली गलियों में खेली जाती हैं लेकिन यहाँ बहुत अधिक संख्या में भीड़ होती हैं और गलियां एकदम संकरी। भीड़ दोनों ओर से जा रही होती हैं व सभी दबे हुए आगे बढ़ते हैं लेकिन कोई अनहोनी नही होती। इन रंगीली गलियों में महिलाएं, बच्चें, वृद्ध, बीमारी व्यक्ति, छोटे कद वाले ना ही जाए, तभी बेहतर रहेगा।
- ऑनलाइन पेमेंट पर निर्भर ना रहे और अपने पास पर्याप्त नकदी रखे। एटीएम पर भी भरोसा ना करे क्योंकि बहुत ज्यादा भीड़ होने के कारण एटीएम में भी नकदी समाप्त हो जाती हैं। इसलिये पहले से ही अपने साथ कैश लेकर चले।
- वहां के पुरुषों और महिलाओं की भाषा में आपको अक्खड़पन देखने को मिलेगा लेकिन इस भाषा पर क्रोध ना करे क्योंकि यही वहां की पहचान हैं। इसके लिए आप भी अक्खडपन में बात कर सकते हैं जिनका वे बुरा नही मानेंगे।
- जहाँ महिलाएं पुरुषों पर लट्ठ बरसा रही होती हैं वहां आप जोश-जोश में उनके पास जाने से बचें क्योंकि वे महिलाएं बिना देखे आपको भी जोर से लट्ठ मार सकती हैं। नंदगांव के जो पुरुष लट्ठ का वार सह रहे हैं उनके पास तो बचने के लिए ढाल भी हैं और कपड़े भी उन्होंने मोटी परत वाले पहने होते हैं लेकिन गलती से यदि आपको लट्ठ पड़ गया तो कई दिनों तक दर्द करेगा।
बरसाने की होली से संबंधित प्रश्नोत्तर
प्रश्न: लठमार होली कहां की प्रसिद्ध है?
उत्तर: लठमार होली मथुरा के बरसाना की सबसे ज्यादा प्रसिद्ध है। यहाँ पर होली से एक सप्ताह पहले ही लठमार होली खेलनी शुरू हो जाती है। इस दौरान बरसाने की महिलाएं नंदगाँव के पुरुषों को लठ मारती है।
प्रश्न: लट्ठमार होली कहाँ की प्रसिद्ध है?
उत्तर: पूरे देश में राधा रानी की जन्मस्थली बरसाना की लट्ठमार होली सबसे ज्यादा प्रसिद्ध है। इसका संबंध श्रीकृष्ण से है। बचपन में जब श्रीकृष्ण बरसाने की राधा और गोपियों पर रंग डालने आते थे तो वे श्रीकृष्ण और उनके साथियों पर लट्ठ बरसाती थी।
प्रश्न: बरसाने की होली कैसे खेली जाती है?
उत्तर: बरसाने में जिस होली की सबसे ज्यादा धूम देखने को मिलती है, वह है यहाँ खेली जाने वाली लट्ठमार होली। इस दिन नंदगांव के पुरुष बरसाने की महिलाओं पर रंग डालने आते हैं तो महिलाएं उन पर लट्ठ चलाती है।
प्रश्न: लट्ठमार होली क्यों मनाई जाती है?
उत्तर: लट्ठमार होली का इतिहास भगवान श्रीकृष्ण से जुड़ा हुआ है। द्वापर युग में जब श्रीकृष्ण बरसाना गाँव में राधा और गोपियों संग होली खेलने जाते थे तो वे कान्हा पर लट्ठ बरसाती थी। बस तभी से आज तक यह लट्ठमार होली मनाई जाती है।
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