आज हम आपको गौतम ऋषि और अहिल्या की कहानी (Ahilya Ki Kahani) सुनाने वाले हैं। माता अहिल्या का प्रसंग आपने रामायण में देखा होगा जब भगवान श्रीराम अपने चरणों से उनका उद्धार कर देते हैं। अब प्रश्न यह उठता है कि आखिरकार गौतम ऋषि ने अहिल्या को श्राप क्यों दिया? माता अहिल्या से ऐसा क्या पाप हो गया था, जो उन्हें अपने ही पति से पत्थर की मूरत बन जाने का श्राप मिला था।
इस कहानी का संबंध इंद्र देव से भी है। ऐसे में अहिल्या के साथ इंद्र देव को भी श्राप मिला था। इस तरह से एक प्रश्न और उठता है कि गौतम ऋषि ने इंद्र को क्या श्राप दिया था? आज के इस लेख में हम आपके हर प्रश्न का उत्तर अहिल्या की कहानी (Ahilya Story In Hindi) सुनाकर देने वाले हैं।
Ahilya Ki Kahani | गौतम ऋषि और अहिल्या की कहानी
इस कहानी में कई तरह के मोड़ आते हैं व कई भावनाओं का प्रदर्शन होता है। जहाँ एक ओर, छल और ईर्ष्या की भावना है तो वहीं दूसरी ओर, सुंदरता और क्रोध का भी संगम है। प्राचीन काल में जहाँ महिलाओं का पतिव्रत धर्म बहुत मजबूत हुआ करता था, वहीं उनकी एक भूल भयंकर श्राप का कारण भी बन सकती थी।
साथ ही किस तरह से इंद्र देव ने अपनी भावनाओं पर नियंत्रण ना रख पाने के कारण संपूर्ण जगत में अपनी हंसी करवाई और अहिल्या का उद्धार कैसे हुआ, वह भी इसी कथा (Ahilya Story In Hindi) में देखने को मिलता है। चलिए इस रोचक कहानी की शुरुआत करते हैं।
अहिल्या से विवाह की शर्त
अहिल्या भगवान ब्रह्मा की मानस पुत्री थी। वह दिखने में तीनों लोकों में सबसे सुंदर और गुणवान थी। इस कारण देवलोक के सभी देवता, पृथ्वी के सभी मनुष्य और पाताल लोक के राक्षस उनसे विवाह करने को आतुर थे। सभी देवताओं और राजाओं ने अहिल्या से विवाह के लिए भगवान ब्रह्मा जी के सामने अपना-अपना प्रस्ताव रखा।
यह देखकर ब्रह्मा जी ने सभी के सामने यह शर्त रखी कि जो भी सबसे पहले संपूर्ण ब्रह्मांड का चक्कर लगाकर वापस आ जाएगा, उसका विवाह देवी अहिल्या से करवा दिया जाएगा। यह सुनकर इंद्र सहित सभी देवता अपने-अपने वाहनों पर सवार होकर ब्रह्मांड का चक्कर लगाने के लिए दौड़ पड़े।
गौतम ऋषि का अहिल्या से विवाह
जिस समय इंद्र देव व अन्य देवतागण ब्रह्मांड का तेज गति से चक्कर लगा रहे थे, उसी समय गौतम ऋषि अपने आश्रम में पूजा कर रहे थे। वे उस समय गाय माता का पूजन कर रहे थे जो वे प्रतिदिन किया करते थे। गाय माता की पूजा करते समय उन्होंने उसकी परिक्रमा की। उसी समय गाय माता ने बछड़े को जन्म दे दिया।
जब नारद मुनि ने यह दृश्य देखा तो उन्होंने सारी बात भगवान ब्रह्मा जी को बताई। वेदों के अनुसार, यदि व्यक्ति गाय की परिक्रमा कर रहा हो और उसी समय वह बछड़ा दे दे तो यह संपूर्ण ब्रह्माण्ड की परिक्रमा के समतुल्य मानी जाती है। इसलिए ब्रह्मा जी ने देवी अहिल्या का विवाह गौतम ऋषि से करवा दिया।
देव इंद्र की ईर्ष्या
अब गौतम ऋषि व देवी अहिल्या सुखी-सुखी रहने लगे। गौतम ऋषि बहुत महान ऋषि थे तथा उनकी शक्ति व ज्ञान चारों और प्रख्यात था। साथ ही देवी अहिल्या भी एक पतिव्रता स्त्री थी जो अपने पति से अथाह प्रेम करती थी किंतु इंद्र के मन में द्वेष भावना उत्पन्न हो रही थी और वह किसी भी तरह से देवी अहिल्या को प्राप्त करना चाहता था। इसी के लिए देव इंद्र किसी अवसर की तलाश में थे क्योंकि सामने से वे गौतम ऋषि के तपोबल के आगे तुच्छ थे।
इंद्र का छल
एक दिन गौतम ऋषि को हिमालय पर्वत पर 6 माह की तपस्या के लिए जाना था। उन्होंने अपनी पत्नी को सारी बात बताई व हिमालय पर तपस्या के लिए निकल पड़े। जब देव इंद्र को यह पता चला तो वे छल से गौतम ऋषि का रूप धारण कर उनके आश्रम में चले गए। माता अहिल्या अपने पति को इतनी जल्दी वापस आया देखकर आश्चर्यचकित रह गई किंतु उन्होंने सोचा कि शायद उनके पति उनसे दूर नहीं रह सकते इसलिए उन्होंने हिमालय पर तप करने का अपना मन बदल लिया।
इस तरह इंद्र ने देवी अहिल्या के साथ छल से दुराचार किया। इंद्र देवी अहिल्या के प्रेम में इतने आसक्त हो गए थे कि उन्हें समय का भान ही नहीं रहा व इसी प्रकार 6 माह का समय बीत गया। फिर एक दिन गौतम ऋषि अपना तप पूरा कर वापस आए। उस समय इंद्र सो रहे थे व माता अहिल्या पूजा कर रही थी। अपने पति को सामने देखकर अहिल्या स्तंभित रह गई व उन्हें अपने साथ हुए भीषण छल का ज्ञान हुआ।
गौतम ऋषि ने इंद्र को क्या श्राप दिया था?
गौतम ऋषि इंद्र को अपने भेष में देखकर अत्यंत क्रोधित हो गए। इंद्र भी गौतम ऋषि को देखकर इतना डर गए कि वे वहां से तुरंत भाग गए। ऐसे में गौतम ऋषि ने क्रोध में इंद्र को नपुंसक होने का श्राप दे दिया। इसके बाद इंद्र देव की पूरे जगत में हंसाई होने लगी और वे किसी को मुहं दिखाने लायक नहीं रह गए थे।
गौतम ऋषि के श्राप से मुक्त होने के लिए देव इंद्र तमिलनाडु के कन्याकुमारी शहर के एक आश्रम में गए। यह आश्रम पहले ऋषि अत्री व माता अनुसूया का हुआ करता था। यहाँ उन्होंने दिन रात कठोर तपस्या की व अपने द्वारा किए गए कुकर्म का प्रायश्चित किया। अंत में उनका तप सफल हुआ व उन्हें श्राप से मुक्ति मिली। उस स्थल पर आज एक विशाल मंदिर है जिसे सुच्चिन्द्रम मंदिर के नाम से जाना जाता है। इसमें “सुच” का अर्थ शुद्ध होने से है अर्थात इंद्र का शुद्ध होना।
गौतम ऋषि ने अहिल्या को श्राप क्यों दिया?
गौतम ऋषि का क्रोध यहीं पर शांत नहीं हुआ। उन्होंने अपनी पत्नी अहिल्या से कहा कि इतने माह तक तुम्हें कोई पराया पुरुष स्पर्श करता रहा किंतु तुम्हें इसका आभास तक ना हुआ। तुम जिस तरह इतने माह से तन व मन से कठोर बनी रही, उसी तरह अब तुम हमेशा के लिए पत्थर की शिला बनकर कठोर बनी (Ahilya Ki Kahani) रहोगी।
यह सुनकर देवी अहिल्या इतनी ज्यादा विचलित हो गई कि उन्होंने अपने पति से क्षमा याचना की व उन्हें कहा कि आप तो एक सिद्ध पुरुष हैं व आपकी पत्नी के साथ इतने माह तक छल होता रहा तब भी आपको आभास नहीं हुआ तो मैं तो एक साधारण स्त्री हूँ। साथ में मैं एक पतिव्रता स्त्री हूँ और मैंने इंद्र को आप समझकर ही उनके साथ प्रेम किया था। यह सुनकर गौतम ऋषि का गुस्सा थोड़ा शांत हुआ।
वे अपने द्वारा दिया गया श्राप तो वापस नहीं ले सकते थे। अपने द्वारा दिए गए श्राप को समाप्त करने का रहस्य उन्होंने अहिल्या को बताया। इसके अनुसार जब भगवान विष्णु के रूप में भगवान श्रीराम अपने गुरु विश्वामित्र व अनुज लक्ष्मण के साथ इस वन में आएंगे तब उनके चरण स्पर्श से उन्हें श्राप से मुक्ति मिलेगी।
अहिल्या का उद्धार कैसे हुआ?
फिर एक दिन भगवान विष्णु ने अयोध्या की भूमि पर भगवान श्रीराम के रूप में जन्म लिया। महर्षि विश्वामित्र माता सीता के स्वयंवर में जाने के लिए अपने साथ भगवान श्रीराम व उनके भाई लक्ष्मण को साथ लेकर गए। बीच में यह आश्रम भी आया जो अब उजड़ चुका था। वहां सब कुछ सुनसान देखकर श्रीराम ने विश्वामित्र जी से इसका रहस्य पूछा।
तब विश्वामित्र जी ने उन्हें संपूर्ण कथा सुनाई और माता अहिल्या का उद्धार करने को कहा। उसी समय भगवान श्रीराम ने उस पत्थर की शिला पर अपने चरण स्पर्श किए। श्रीराम के द्वारा पत्थर की शिला को स्पर्श करते ही माता अहिल्या गौतम ऋषि के श्राप से मुक्त होकर पुनः अपने मनुष्य रूप में वापस आ गई। इस तरह माता अहिल्या श्राप मुक्त हुई व मोक्ष को प्राप्त हुई।
निष्कर्ष
इस तरह से आज के इस लेख के माध्यम से आपने गौतम ऋषि और अहिल्या की कहानी (Ahilya Ki Kahani) को जान लिया है। इस कहानी से हमें यह शिक्षा मिलती है कि व्यक्ति को कभी भी पराई स्त्री पर नज़र नहीं रखनी चाहिए अन्यथा इसका परिणाम बहुत ही भयंकर होता है। यह ना केवल उस व्यक्ति के लिए विपरीत परिणाम लेकर आता है बल्कि यह उस पराई स्त्री के जीवन को भी तहस-नहस करके रख देता है।
अहिल्या की कहानी से संबंधित प्रश्नोत्तर
प्रश्न: अहिल्या पूर्व जन्म में कौन थी?
उत्तर: अहिल्या पूर्व जन्म में कुछ नहीं थी। उनका निर्माण भगवान ब्रह्मा ने किया था जो उनकी मानस पुत्री कही जाती है।
प्रश्न: अहिल्या को शाप क्यों मिला?
उत्तर: अहिल्या को अपने पतिव्रत धर्म का पालन नहीं करने के कारण अपने पति गौतम ऋषि से शाप मिला था।
प्रश्न: इंद्र ने अहिल्या को क्यों बहकाया?
उत्तर: इंद्र की नज़र अहिल्या पर तब से थी जब उनका गौतम ऋषि से विवाह भी नहीं हुआ था। ऐसे में एक दिन उसने मौका पाकर अहिल्या को बहलाया था।
प्रश्न: इंद्र ने अहिल्या को क्यों छाला?
उत्तर: इंद्र अहिल्या पर पहले से ही मोहित था। इसलिए एक दिन अवसर पाकर उसने अहिल्या देवी के साथ छल किया था।
प्रश्न: गौतम ऋषि की पत्नी अहिल्या किसकी पुत्री थी?
उत्तर: गौतम ऋषि की पत्नी अहिल्या भगवान ब्रह्मा की मानस पुत्री थी। वह तीनों लोकों में सबसे सुंदर व गुणवान स्त्री थी।
प्रश्न: क्या अहिल्या ने इंद्र को पहचाना?
उत्तर: नहीं, अहिल्या ने इंद्र को नहीं पहचाना था और उसने उसे गौतम ऋषि समझने की भूल की थी।
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