गंगा चालीसा हिंदी में – अर्थ, महत्व व लाभ सहित

गंगा चालीसा (Ganga Chalisa)

गंगा चालीसा (Ganga Chalisa): सनातन धर्म में माँ गंगा को सबसे पवित्र नदी माना गया है जिसका उद्गम स्थान गंगोत्री है। गंगोत्री से निकल कर भारत के कई राज्यों में बहती हुई माँ गंगा करोड़ो लोगों के जीवन को संवारने का कार्य करती हैं। हर वर्ष करोड़ो भक्त गंगा नदी में डुबकी लगाने आते हैं। ऐसे में यदि हम अपने घर पर या गंगा माता के घाट पर गंगा चालीसा का पाठ करते हैं तो यह बहुत ही शुभ फल देने वाला होता है।

आज के इस लेख में आपको ना केवल गंगा चालीसा पढ़ने को मिलेगी बल्कि साथ के साथ उसका भावार्थ भी जानने को मिलेगा। यदि गंगा चालीसा अर्थ सहित (Ganga Chalisa In Hindi) जान ली जाए तो उससे हमें गंगा माता के गुणों व महत्व का ज्ञान होता है। अंत में आपको मां गंगा चालीसा के लाभ व महत्व भी जानने को मिलेंगे। आइये पढ़ते हैं गंगा माता की चालीसा।

Ganga Chalisa | गंगा चालीसा

॥ दोहा ॥

जय जय जय जग पावनी जयति देवसरि गंग।
जय शिव जटा निवासिनी अनुपम तुंग तरंग॥

॥ चौपाई ॥

जय जग जननि हरण अघ खानी। आनंद करनि गंग महारानी॥

जय भागीरथी सुरसरि माता। कलिमल मूल दलनि विख्याता॥

जय जय जय हनु सुता अघ हननी। भीषम की माता जग जननी॥

धवल कमल दल सम तनु साजे। लखिशत सरद चंद्र छवि लाजे॥

वाहन मकर विमल शुचि सोहै। अमिय कलश कर लखि मन मोहै॥

जड़ित रत्न कंचन आभूषण। हिय मणि हार, हरणितम दूषण॥

जग पावनि त्रय ताप नसावनि। तरल तरंग तंग मन भावनि॥

जो गणपति अति पूज्य प्रधाना। तिहुं ते प्रथम गंग अस्नाना॥

ब्रह्मा कमण्डल वासिनी देवी। श्री प्रभु पद पंकज सुख सेवी॥

साठि सहस्त्र सगर सुत तारयो। गंगा सागर तीरथ धारयो॥

अगम तरंग उठयो मन भावन। लखि तीरथ हरिद्वार सुहावन॥

तीरथ राज प्रयाग अक्षवट। धरयौ मातु पुनि काशी करवट॥

धनि धनि सुरसरि स्वर्ग की सीढ़ी। तारणि अमित पितृ पद पीढ़ी॥

भागीरथ तप कियो अपारा। दियो ब्रह्म तप सुरसरि धारा॥

जब जग जननी चल्यो हहराई। शम्भु जटा महँ रह्यो समाई॥

वर्ष पर्यंत गंग महारानी। रही शम्भु के जटा भुलानी॥

पुनि भागीरथ शंभुहि ध्यायो। तब इक बूंद जटा से पायो॥

ताते मातु भई त्रय धारा। मृत्यु लोक, नभ अरु पातारा॥

गईं पाताल प्रभावित, नामा। मन्दाकिनी गई गगन ललामा॥

मृत्यु लोक जाह्नवी सुहावनि। कलिमल हरणि अगम जुग पावनि॥

धनि मइया तव महिमा भारी। धर्म धुरि कलि कलुष कुठारी॥

मातु प्रभावित धनि मंदाकिनी। धनि सुरसरित सकल भयनासिनि॥

पान करत निर्मल गंगा जल। पावत मन इच्छित अनंत फल॥

पूर्व जन्म पुण्य जब जागत। तबहिं ध्यान गंगा महं लागत॥

जई पग सुरसरि हेतु उठावहि। तई जगि अश्वमेघ फल पावहि॥

महा पतित जिन काहु न तारे। तिन तारे इक नाम तिहारे॥

शत योजनहुँ से जो ध्यावहिं। निश्चय विष्णु लोक पद पावहिं॥

नाम भजन अगणित अघ नाशै। विमल ज्ञान बल बुद्धि प्रकाशै॥

जिमि धन धर्म अरु दाना। धर्म मूल गंगाजल पाना॥

तव गुण गुणन करत दुख भाजत। गृह गृह सम्पति सुमति विराजत॥

गंगहि नेम सहित नित ध्यावत। दुर्जनहूँ सज्जन पद पावत॥

बुद्धिहीन विद्या बल पावै। रोगी रोगमुक्त ह्वै जावै॥

गंगा गंगा जो नर कहहीं। भूखा नंगा कबहूँ न रहहीं॥

निकसत ही मुख गंगा माई। श्रवण दाबि यम चलहिं पराई॥

महा अघिन अधमन कहँ तारे। भए नर्क के बंद किवारे॥

जो नर जपे गंग शत नामा। सकल सिद्ध पूरण ह्वै कामा॥

सब सुख भोग परम पद पावहिं। आवगमन रहति ह्वै जावहिं॥

धनि मइया सुरसरि सुखदैनी। धनि-धनि तीरथ राज त्रिवेणी॥

ककरा ग्राम ऋषि दुर्वासा। सुन्दरदास गंग कर दासा॥

जो यह पढ़े गंगा चालीसा। मिलै भक्ति अविरल वागीसा॥

॥ दोहा ॥

नित नव सुख सम्पति लहैं, धरैं गंगा का ध्यान।
अन्तसमय सुरपुर बसै, सादर बैठि विमान॥

सम्वत् भुज नभ दिशि, राम जन्म दिन चैत्र।
पूरण चालीसा कियो, हरि भक्तन हित नैत्र॥

Ganga Chalisa In Hindi | गंगा चालीसा अर्थ सहित

॥ दोहा ॥

जय जय जय जग पावनी जयति देवसरि गंग।
जय शिव जटा निवासिनी अनुपम तुंग तरंग॥

हे गंगा माता!! आप इस जगत में सबसे पवित्र हो। आपकी जय हो, जय हो, जय हो। आप तो देवताओं के द्वारा भी पूजनीय हो। आप भगवान शिव की जटाओं में निवास करती हो। आपकी लहरे बहुत ही अनुपम छवि बनाती है।                  

॥ चौपाई ॥

जय जग जननि हरण अघ खानी। आनंद करनि गंग महारानी॥

जय भागीरथी सुरसरि माता। कलिमल मूल दलनि विख्याता॥

जय जय जय हनु सुता अघ हननी। भीषम की माता जग जननी॥

धवल कमल दल सम तनु साजे। लखिशत सरद चंद्र छवि लाजे॥

आप ही अपने भक्तों के पापों को समाप्त कर देती हो और सभी को आनंद प्रदान करती हो। हे गंगा महारानी!! आपकी जय हो। हे भागीरथी माता!! आप तो देवताओं की भी माता हो। आपको इस कलियुग में पापों का नाश करने वाली माना जाता है। हनु की पुत्री व पापों का नाश करने वाली गंगा मैया!! आपकी जय हो, जय हो, जय हो। आप ही भीष्म पितामह की माता हैं। आपका रूप धवल कमल के समान बहुत सुन्दर है जिसे देखकर तो शरद ऋतु के लाखों चन्द्रमा भी शर्मा जाएं।

वाहन मकर विमल शुचि सोहै। अमिय कलश कर लखि मन मोहै॥

जड़ित रत्न कंचन आभूषण। हिय मणि हार, हरणितम दूषण॥

जग पावनि त्रय ताप नसावनि। तरल तरंग तंग मन भावनि॥

जो गणपति अति पूज्य प्रधाना। तिहुं ते प्रथम गंग अस्नाना॥

आपका वाहन मगरमच्छ भी आप पर बहुत सुहाता है। आपके हाथों में अमृत कलश सभी का मन मोह लेता है। आपने रत्नों से जड़ित कई तरह के आभूषण पहने हुए हैं और गले में मणि का हार पहन रखा है जो दोषरहित है। आप ही इस जगत को पवित्र करती हैं और हमारे पापों का नाश कर देती हैं। आपकी लहरे हम सभी का मन मोह लेती है। जिस प्रकार सभी भगवानो में गणेश जी की प्रथम पूजा का विधान है, ठीक उसी तरह सभी नदियों में प्रथम स्नान गंगा नदी का किया जाता है।

ब्रह्मा कमण्डल वासिनी देवी। श्री प्रभु पद पंकज सुख सेवी॥

साठि सहस्त्र सगर सुत तारयो। गंगा सागर तीरथ धारयो॥

अगम तरंग उठयो मन भावन। लखि तीरथ हरिद्वार सुहावन॥

तीरथ राज प्रयाग अक्षवट। धरयौ मातु पुनि काशी करवट॥

आप भगवान ब्रह्मा के कमण्डल में निवास करती हो। आप भगवान विष्णु के पैरों की सेवा करती हो अर्थात जो जल उनके पैरों को स्पर्श करता है, वही गंगा जल होता है। आपने ही राजा सागर के साठ हज़ार पुत्रों को गंगासागर में मोक्ष प्रदान किया था। आपकी ऊपर उठती हुई तरंगे मन को भा जाती है और इसी कारण हरिद्वार नगरी बहुत सुन्दर लगती है। आपने ही प्रयाग नगरी को अक्षवट के समान तीर्थों का राजा नियुक्त किया और उसके बाद आप काशी नगरी चली गयी।

धनि धनि सुरसरि स्वर्ग की सीढ़ी। तारणि अमित पितृ पद पीढ़ी॥

भागीरथ तप कियो अपारा। दियो ब्रह्म तप सुरसरि धारा॥

जब जग जननी चल्यो हहराई। शम्भु जटा महँ रह्यो समाई॥

वर्ष पर्यंत गंग महारानी। रही शम्भु के जटा भुलानी॥

स्वयं देवता भी आपको स्वर्ग की सीढ़ियाँ मानते हैं और आपको धन्यवाद कहते हैं। आप ही पितरों को संतोष प्रदान करती हैं। आपको पृथ्वी नगरी पर लाने के लिए भागीरथ से भगवान ब्रह्मा की तपस्या की और तब ब्रह्मा जी ने गंगा नदी को पृथ्वी पर जाने का आदेश दिया। आपका वेग बहुत ही ज्यादा था और यह पृथ्वी सह नहीं सकती थी। इस समस्या को देखकर शिव शंकर ने अपनी जटाएं खोल ली और आपको उसमें समा लिया। इसके बाद आप एक वर्ष तक शिवजी की जटाओं में ही रही।

पुनि भागीरथ शंभुहि ध्यायो। तब इक बूंद जटा से पायो॥

ताते मातु भई त्रय धारा। मृत्यु लोक, नभ अरु पातारा॥

गईं पाताल प्रभावित, नामा। मन्दाकिनी गई गगन ललामा॥

मृत्यु लोक जाह्नवी सुहावनि। कलिमल हरणि अगम जुग पावनि॥

यह देखकर भागीरथ ने फिर से शिवजी की आराधना की, तब जाकर शिवजी ने गंगा की एक बूंद को अपनी जटा से प्रवाहित कर दिया। भगवान शिव की जटा से निकलने के बाद आपकी तीन धाराएँ बन गयी जो पृथ्वी, आकाश व पाताल लोक की ओर चली गयी। पाताल लोक में आपका नाम प्रभावनी, स्वर्ग लोक में आपका नाम मन्दाकिनी तथा पृथ्वी लोक में आप जाह्नवी के नाम से प्रसिद्ध हुई। इस कलियुग में आप पापों का हरण कर जगत को पवित्र करने का कार्य करती हैं।

धनि मइया तव महिमा भारी। धर्म धुरि कलि कलुष कुठारी॥

मातु प्रभावित धनि मंदाकिनी। धनि सुरसरित सकल भयनासिनि॥

पान करत निर्मल गंगा जल। पावत मन इच्छित अनंत फल॥

पूर्व जन्म पुण्य जब जागत। तबहिं ध्यान गंगा महं लागत॥

हे गंगा मैया!! आपकी महिमा अपरंपार है। आप इस सृष्टि में धर्म की रक्षा कर अधर्म का नाश कर देती हो। प्रभावनी माता व मन्दाकिनी के रूप में आप धन्य हो। आप देवलोक में देवताओं के भय का नाश कर देती हो। जो भी गंगाजल को ग्रहण करता है, उसे अपनी इच्छानुसार फल की प्राप्ति होती है। यदि किसी व्यक्ति के पूर्व जन्म के कुछ पुण्य हैं, तभी उसका ध्यान गंगा मैया की भक्ति में लग पाता है।

जई पग सुरसरि हेतु उठावहि। तई जगि अश्वमेघ फल पावहि॥

महा पतित जिन काहु न तारे। तिन तारे इक नाम तिहारे॥

शत योजनहुँ से जो ध्यावहिं। निश्चय विष्णु लोक पद पावहिं॥

नाम भजन अगणित अघ नाशै। विमल ज्ञान बल बुद्धि प्रकाशै॥

गंगा माता की भक्ति की ओर बढ़ाया गया एक-एक कदम, अश्वमेघ यज्ञ के समान फल देने वाला होता है अर्थात हमारी शत्रुओं और संकटों पर विजय होती है। ऐसे पापी जिनका कहीं भी उद्धार नहीं हो सका, वे भी माँ गंगा के नाम के सहारे मोक्ष प्राप्त करते हैं। यदि हम सौ योजन दूर से भी गंगा माँ का ध्यान करते हैं तो हम निश्चित रूप से विष्णु लोक में स्थान पाते हैं। गंगा माता के नाम का भजन करने से हमारे पाप नष्ट हो जाते हैं और हमारे ज्ञान, बुद्धि, शक्ति इत्यादि में वृद्धि होती है।

जिमि धन धर्म अरु दाना। धर्म मूल गंगाजल पाना॥

तव गुण गुणन करत दुख भाजत। गृह गृह सम्पति सुमति विराजत॥

गंगहि नेम सहित नित ध्यावत। दुर्जनहूँ सज्जन पद पावत॥

बुद्धिहीन विद्या बल पावै। रोगी रोगमुक्त ह्वै जावै॥

धर्म का प्रचार व धन का दान बहुत आवश्यक है और उसी तरह धर्म का मूल गंगाजल को ग्रहण करना भी है। जो भी व्यक्ति गंगाजल ग्रहण कर गंगा माता की चालीसा पढ़ता है, उसके सभी दुःख दूर हो जाते हैं और घर में सुख-संपत्ति व शांति आती है। जो भी दुर्जन व्यक्ति माँ गंगा के नाम का ध्यान करता है, उसका मन निर्मल हो जाता है और वह सज्जन व्यक्ति बन जाता है। इसके साथ ही अज्ञानी पुरुष विद्या व शक्ति को प्राप्त करता है तो वहीं रोगग्रस्त व्यक्ति स्वस्थ हो जाता है।

गंगा गंगा जो नर कहहीं। भूखा नंगा कबहूँ न रहहीं॥

निकसत ही मुख गंगा माई। श्रवण दाबि यम चलहिं पराई॥

महा अघिन अधमन कहँ तारे। भए नर्क के बंद किवारे॥

जो नर जपे गंग शत नामा। सकल सिद्ध पूरण ह्वै कामा॥

जो भी व्यक्ति माँ गंगा के नाम का जाप करता है, उसे भोजन, वस्त्र इत्यादि की कमी नहीं रहती है। यदि अंत समय में हमारे मुख से गंगा माता का नाम निकल जाता है तो यमराज भी वहां से कान दबाकर चले जाते हैं। जिन पापियों के लिए नरक के दरवाजे भी बंद थे, वे भी आपकी भक्ति से भवसागर को पार कर गए। जो भी गंगा माता के नाम का सौ बार जाप कर लेता है, उसके सभी काम बन जाते हैं।

सब सुख भोग परम पद पावहिं। आवगमन रहति ह्वै जावहिं॥

धनि मइया सुरसरि सुखदैनी। धनि-धनि तीरथ राज त्रिवेणी॥

ककरा ग्राम ऋषि दुर्वासा। सुन्दरदास गंग कर दासा॥

जो यह पढ़े गंगा चालीसा। मिलै भक्ति अविरल वागीसा॥

गंगा माता के भक्तों को सभी प्रकार के सुख, भोग, यश इत्यादि की प्राप्ति होती है और उनकी सभी तरह की बाधाएं व संकट दूर हो जाते हैं। देवताओं को सुख प्रदान करने वाली गंगा मैया, आपकी जय हो। तीर्थों पर राज करने वाली त्रिवेणी, आप धन्य हैं। दुर्वासा ऋषि के ककरा गाँव में रहने वाला सुन्दरदास, माँ गंगा का सेवक है। जो भी इस गंगा चालीसा का पाठ करता है, उसे गंगा माता की भक्ति प्राप्त होती है।

॥ दोहा ॥

नित नव सुख सम्पति लहैं, धरैं गंगा का ध्यान।
अन्तसमय सुरपुर बसै, सादर बैठि विमान॥

सम्वत् भुज नभ दिशि, राम जन्म दिन चैत्र।
पूरण चालीसा कियो, हरि भक्तन हित नैत्र॥

जो भी व्यक्ति गंगा माता का ध्यान करता है, उसे प्रतिदिन ही सुख-संपत्ति की प्राप्ति होती है। वह अपने अंतिम समय में स्वर्ग लोक में निवास करता है और उसे आदर सहित विमान में बिठाकर वहां ले जाया जाता है। चैत्र माह में श्रीराम के जन्मदिन के समय, सम्वत् वर्ष व आकाश दिशा की ओर देखकर, इस गंगा चालीसा को लिखने का कार्य पूरा हुआ था।

गंगा चालीसा का महत्व

मान्यता है कि गंगा नदी में स्नान करने पर मनुष्य के पाप धुल जाते हैं लेकिन आप यह मत सोचिये कि आप बुरे कर्म करते जाएंगे और गंगा स्नान करने पर उन सभी कर्मों के पाप धुल जाएंगे। दरअसल गंगा नदी में स्नान करने पर हमारे केवल वह पाप धुलते हैं जो हमसे अनजाने में हो जाते हैं जबकि जो बुरे कर्म सोच समझकर किये गए हैं, उनका दंड ईश्वर हमें अवश्य देते हैं।

मां गंगा चालीसा (Shri Ganga Chalisa) के माध्यम से यही बताने का प्रयास किया गया है कि यह भारत की सबसे पवित्र नदी ही नहीं है अपितु इसके जल में चमत्कारिक शक्तियां हैं। गंगा चालीसा में माँ गंगा के गुणों, महत्व व पूजा के बारे में विस्तार से जानकारी दी गयी है और यही गंगा जी की चालीसा का महत्व होता है। ऐसे में हमें प्रतिदिन माँ गंगा चालीसा का पाठ करना चाहिए।

गंगा चालीसा के लाभ

गंगा मैया तो सभी की हैं और हर कोई उसमें डुबकी लगा सकता है और माँ के आँचल में समा सकता है। मनुष्य के अंतिम संस्कार के बाद उसके शरीर की राख को गंगा नदी में बहाने की ही परंपरा रही है जिससे कि उसकी आत्मा को शांति व मोक्ष मिल सके। ऐसे में यदि कोई व्यक्ति प्रतिदिन गंगा माँ की चालीसा का पाठ करता है तो उसके मोक्ष मिलने की संभावना बढ़ जाती है।

गंगा चालीसा के माध्यम से व्यक्ति का तन व मन दोनों ही शुद्ध हो जाते हैं। इससे शरीर तो रोग मुक्त रहता ही है बल्कि साथ के साथ उसके मन में भी सकारात्मक विचार आते हैं। गंगा चालीसा के माध्यम से व्यक्ति आत्मिक शांति का अनुभव करता है और उसके मन से तनाव दूर हो जाता है। जो व्यक्ति प्रतिदिन गंगा चालीसा का पाठ करता है, उसे अंत समय में मोक्ष की प्राप्ति होती है।

निष्कर्ष

आज के इस लेख के माध्यम से आपने गंगा चालीसा हिंदी में अर्थ सहित (Ganga Chalisa) पढ़ ली हैं। साथ ही आपने गंगा चालीसा के लाभ और महत्व के बारे में भी जान लिया है। यदि आप हमसे कुछ पूछना चाहते हैं तो नीचे कमेंट कर सकते हैं। हम जल्द से जल्द आपके प्रश्न का उत्तर देने का प्रयास करेंगे।

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लेखक के बारें में: कृष्णा

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