नर्मदा चालीसा लिखित में – अर्थ, महत्व व लाभ सहित

नर्मदा चालीसा (Narmada Chalisa)

नर्मदा चालीसा (Narmada Chalisa): हिन्दू धर्म में पर्वतों, नदियों, पशु-पक्षियों, जीव-जंतुओं, पंच-तत्वों इत्यादि को सम्मान की दृष्टि से देखा जाता है। अब नदियाँ जिस भी क्षेत्र से होकर बहती हैं, उस भूभाग में रह रहे लोगों के लिए वह जीवनदायिनी का कार्य करती हैं। इसी में एक नर्मदा नदी है जो मध्यप्रदेश, महाराष्ट्र व गुजरात राज्यों में बहती है। आज के इस लेख में हम आपके साथ नर्मदा चालीसा का पाठ ही करने जा रहे हैं।

इस लेख में आपको केवल नर्मदा चालीसा लिखित में (Narmada Chalisa Lyrics) ही नही मिलेगी अपितु उसका भावार्थ भी जानने को मिलेगा। कहने का तात्पर्य यह हुआ कि आज हम आपके साथ नर्मदा चालीसा हिंदी में भी साझा करेंगे ताकि आप उसका संपूर्ण अर्थ समझ सकें। अंत में हम आपके साथ श्री नर्मदा चालीसा के लाभ व महत्व भी सांझा करेंगे। तो आइये सबसे पहले पढ़ते हैं नर्मदा माता की चालीसा।

Narmada Chalisa | नर्मदा चालीसा

॥ दोहा॥

देवि पूजिता नर्मदा, महिमा बड़ी अपार।
चालीसा वर्णन करत, कवि अरु भक्त उदार॥

इनकी सेवा से सदा, मिटते पाप महान।
तट पर कर जप दान नर, पाते हैं नित ज्ञान॥

॥ चौपाई ॥

जय-जय-जय नर्मदा भवानी, तुम्हरी महिमा सब जग जानी।

अमरकण्ठ से निकली माता, सर्व सिद्धि नव निधि की दाता।

कन्या रूप सकल गुण खानी, जब प्रकटीं नर्मदा भवानी।

सप्तमी सूर्य मकर रविवारा, अश्वनि माघ मास अवतारा।

वाहन मकर आपको साजैं, कमल पुष्प पर आप विराजैं।

ब्रह्मा हरि हर तुमको ध्यावैं, तब ही मनवांछित फल पावैं।

दर्शन करत पाप कटि जाते, कोटि भक्त गण नित्य नहाते।

जो नर तुमको नित ही ध्यावै, वह नर रुद्र लोक को जावैं।

मगरमच्छा तुम में सुख पावैं, अंतिम समय परमपद पावैं।

मस्तक मुकुट सदा ही साजैं, पांव पैंजनी नित ही राजैं।

कल-कल ध्वनि करती हो माता, पाप ताप हरती हो माता।

पूरब से पश्चिम की ओरा, बहतीं माता नाचत मोरा।

शौनक ऋषि तुम्हरौ गुण गावैं, सूत आदि तुम्हरौ यश गावैं।

शिव गणेश भी तेरे गुण गावैं, सकल देव गण तुमको ध्यावैं।

कोटि तीर्थ नर्मदा किनारे, ये सब कहलाते दुःख हारे।

मनोकामना पूरण करती, सर्व दुःख माँ नित ही हरतीं।

कनखल में गंगा की महिमा, कुरुक्षेत्र में सरसुति महिमा।

पर नर्मदा ग्राम जंगल में, नित रहती माता मंगल में।

एक बार करके अस्नाना, तरत पीढ़ी है नर नाना।

मेकल कन्या तुम ही रेवा, तुम्हरी भजन करें नित देवा।

जटा शंकरी नाम तुम्हारा, तुमने कोटि जनों को तारा।

समोद्भवा नर्मदा तुम हो, पाप मोचनी रेवा तुम हो।

तुम महिमा कहि नहिं जाई, करत न बनती मातु बड़ाई।

जल प्रताप तुममें अति माता, जो रमणीय तथा सुख दाता।

चाल सर्पिणी सम है तुम्हारी, महिमा अति अपार है तुम्हारी।

तुम में पड़ी अस्थि भी भारी, छुवत पाषाण होत वर वारी।

यमुना में जो मनुज नहाता, सात दिनों में वह फल पाता।

सरसुति तीन दीनों में देतीं, गंगा तुरत बाद ही देतीं।

पर रेवा का दर्शन करके, मानव फल पाता मन भर के।

तुम्हरी महिमा है अति भारी, जिसको गाते हैं नर-नारी।

जो नर तुम में नित्य नहाता, रुद्र लोक में पूजा जाता।

जड़ी बूटियां तट पर राजें, मोहक दृश्य सदा हीं साजें।

वायु सुगंधित चलती तीरा, जो हरती नर तन की पीरा।

घाट-घाट की महिमा भारी, कवि भी गा नहिं सकते सारी।

नहिं जानूँ मैं तुम्हरी पूजा, और सहारा नहीं मम दूजा।

हो प्रसन्न ऊपर मम माता, तुम ही मातु मोक्ष की दाता।

जो मानव यह नित है पढ़ता, उसका मान सदा ही बढ़ता।

जो शत बार इसे है गाता, वह विद्या धन दौलत पाता।

अगणित बार पढ़ै जो कोई, पूरण मनोकामना होई।

सबके उर में बसत नर्मदा, यहां वहां सर्वत्र नर्मदा।

॥ दोहा ॥

भक्ति भाव उर आनि के, जो करता है जाप।
माता जी की कृपा से, दूर होत सन्ताप॥

Narmada Chalisa Lyrics | नर्मदा चालीसा लिखित में – अर्थ सहित

॥ दोहा॥

देवि पूजिता नर्मदा, महिमा बड़ी अपार।
चालीसा वर्णन करत, कवि अरु भक्त उदार॥

इनकी सेवा से सदा, मिटते पाप महान।
तट पर कर जप दान नर, पाते हैं नित ज्ञान॥

हम सभी देवी नर्मदा की पूजा करते हैं, उनकी महिमा अपरंपार है। मैं एक कवि जो कि नर्मदा माता का भक्त हूँ, उनकी चालीसा की रचना करता हूँ। नर्मदा माता की सेवा से हमारे सभी पाप मिट जाते हैं। जो भी नर्मदा के किनारे जाप या दान करता है, उसे परम ज्ञान की प्राप्ति होती है।

॥ चौपाई ॥

जय-जय-जय नर्मदा भवानी, तुम्हरी महिमा सब जग जानी।

अमरकण्ठ से निकली माता, सर्व सिद्धि नव निधि की दाता।

कन्या रूप सकल गुण खानी, जब प्रकटीं नर्मदा भवानी।

सप्तमी सूर्य मकर रविवारा, अश्वनि माघ मास अवतारा।

हे नर्मदा भवानी!! आपकी जय हो, जय हो, जय हो। आपकी महिमा को इस जगत में हर कोई जानता है। आपका उद्गम स्थल अमरकंटक है और आप सभी सिद्धियाँ व निधियां प्रदान करने वाली हो। आप जब कन्या रूप में प्रकट हुई थी तो सभी गुणों को साथ लिए आयी थी। आपका उद्गम आश्विन माघ महीने की सप्तमी को रविवार के दिन सूर्य मकर राशि में हुआ था।

वाहन मकर आपको साजैं, कमल पुष्प पर आप विराजैं।

ब्रह्मा हरि हर तुमको ध्यावैं, तब ही मनवांछित फल पावैं।

दर्शन करत पाप कटि जाते, कोटि भक्त गण नित्य नहाते।

जो नर तुमको नित ही ध्यावै, वह नर रुद्र लोक को जावैं।

आपका वाहन घड़ियाल या मगरमच्छ है और आप कमल पुष्प पर विराजमान रहती हैं। भगवान ब्रह्मा व विष्णु भी आपका ध्यान कर मनवांछित फल प्राप्त करते हैं। आपके दर्शन करने और नर्मदा नदी में डुबकी लगाने से हमारे पाप समाप्त हो जाते हैं। जो मनुष्य प्रतिदिन माँ नर्मदा का ध्यान करता है, उसे रूद्र लोक में स्थान मिलता है।

मगरमच्छा तुम में सुख पावैं, अंतिम समय परमपद पावैं।

मस्तक मुकुट सदा ही साजैं, पांव पैंजनी नित ही राजैं।

कल-कल ध्वनि करती हो माता, पाप ताप हरती हो माता।

पूरब से पश्चिम की ओरा, बहतीं माता नाचत मोरा।

मगरमच्छ नर्मदा नदी में सुख को प्राप्त करता है और अंतिम समय में परमपद को प्राप्त करता है। आपके मस्तक पर मुकुट और पैरों में पैंजनी बंधी हुई है। आपकी लहरे कल-कल की ध्वनि करते हुए बहती है और आप हमारे पाप व पीड़ा हर लेती हो। आपका बहाव पूर्व से पश्चिम दिशा की ओर है और आपको देखकर मोर भी नाच उठते हैं।

शौनक ऋषि तुम्हरौ गुण गावैं, सूत आदि तुम्हरौ यश गावैं।

शिव गणेश भी तेरे गुण गावैं, सकल देव गण तुमको ध्यावैं।

कोटि तीर्थ नर्मदा किनारे, ये सब कहलाते दुःख हारे।

मनोकामना पूरण करती, सर्व दुःख माँ नित ही हरतीं।

शौनक ऋषि माँ नर्मदा की महिमा के गुण गाता है और आपके भक्त आपके यश का ही बखान करते हैं। शिवजी व गणेश भी आपका ही गुण गाते हैं और सभी देवता आपका ध्यान करते हैं। नर्मदा नदी के किनारे करोड़ो तीर्थ हैं जो भक्तों का दुःख दूर करते हैं। हम सभी की मनोकामनाएं माँ नर्मदा की कृपा से पूरी हो जाती हैं और वे हमारे दुःख भी दूर कर देती हैं।

कनखल में गंगा की महिमा, कुरुक्षेत्र में सरसुति महिमा।

पर नर्मदा ग्राम जंगल में, नित रहती माता मंगल में।

एक बार करके अस्नाना, तरत पीढ़ी है नर नाना।

मेकल कन्या तुम ही रेवा, तुम्हरी भजन करें नित देवा।

कनखल में माँ गंगा की और कुरुक्षेत्र में माँ सरस्वती की महिमा है। नर्मदा माता जंगल से होकर बहती हैं और सभी का मंगल करती हैं। एक बार जो नर्मदा में स्नान कर लेता है, उसकी कई पीढ़ियों का उद्धार हो जाता है। आप ही मैखल पर्वत की पुत्री रेवा हो जिनके भजन सभी देवता करते हैं।

जटा शंकरी नाम तुम्हारा, तुमने कोटि जनों को तारा।

समोद्भवा नर्मदा तुम हो, पाप मोचनी रेवा तुम हो।

तुम महिमा कहि नहिं जाई, करत न बनती मातु बड़ाई।

जल प्रताप तुममें अति माता, जो रमणीय तथा सुख दाता।

आपका एक नाम जटा शंकरी भी है जिसने करोड़ो भक्तों का उद्धार किया है। सभी का कल्याण करने वाली और पापों का नाश करने वाली आप ही हो। आपकी महिमा का वर्णन अकेले मुझसे नहीं हो सकता है। आपके जल से करोड़ो भक्तों को सुख व आनंद की प्राप्ति होती है।

चाल सर्पिणी सम है तुम्हारी, महिमा अति अपार है तुम्हारी।

तुम में पड़ी अस्थि भी भारी, छुवत पाषाण होत वर वारी।

यमुना में जो मनुज नहाता, सात दिनों में वह फल पाता।

सरसुति तीन दीनों में देतीं, गंगा तुरत बाद ही देतीं।

आपकी चाल अर्थात नदी का प्रवाह सर्प के जैसा है और आपकी महिमा अपरंपार है। आपके जल के स्पर्श में आकर पत्थर भी धन्य हो जाता है। जो भी व्यक्ति यमुना नदी में स्नान कर लेता है, वह सात दिनों के अंदर फल को प्राप्त कर लेता है। सरस्वती नदी तीन दिन बाद और गंगा माता उसी दिन ही फल दे देती हैं।

पर रेवा का दर्शन करके, मानव फल पाता मन भर के।

तुम्हरी महिमा है अति भारी, जिसको गाते हैं नर-नारी।

जो नर तुम में नित्य नहाता, रुद्र लोक में पूजा जाता।

जड़ी बूटियां तट पर राजें, मोहक दृश्य सदा हीं साजें।

वहीं यदि हम रेवा नदी अर्थात नर्मदा नदी के दर्शन कर लेते हैं तो हमारी सभी इच्छाएं पूर्ण हो जाती हैं। आपकी महिमा का वर्णन तो हम सभी मिलकर करते हैं। जो भी मनुष्य प्रतिदिन नर्मदा नदी में स्नान करता है, उसकी पूजा तो रूद्र लोक में भी होती है। आपके किनारे तो कई प्रकार की जड़ी-बूटियां होती हैं और यह दृश्य हमारे मन को मोह लेता है।

वायु सुगंधित चलती तीरा, जो हरती नर तन की पीरा।

घाट-घाट की महिमा भारी, कवि भी गा नहिं सकते सारी।

नहिं जानूँ मैं तुम्हरी पूजा, और सहारा नहीं मम दूजा।

हो प्रसन्न ऊपर मम माता, तुम ही मातु मोक्ष की दाता।

आपके किनारे तो वायु भी सुगंधित रूप में बहती है जो हर मनुष्य के शरीर की पीड़ा को दूर कर देती है। आपके हर घाट की महिमा अपरंपार है जिसे कवि भी नहीं गा सकता है। मैं तो आपकी पूजा करने की संपूर्ण विधि भी नहीं जानता हूँ और आपके बिना मेरा कोई भी सहारा नहीं है। हे नर्मदा माता!! अब आप मुझ पर प्रसन्न हो जाएं और मुझे मोक्ष प्रदान करें।

जो मानव यह नित है पढ़ता, उसका मान सदा ही बढ़ता।

जो शत बार इसे है गाता, वह विद्या धन दौलत पाता।

अगणित बार पढ़ै जो कोई, पूरण मनोकामना होई।

सबके उर में बसत नर्मदा, यहां वहां सर्वत्र नर्मदा।

जो भी मनुष्य इस नर्मदा चालीसा को प्रतिदिन पढ़ता है, उसका मान-सम्मान प्रतिदिन बढ़ता ही जाता है। जो इस नर्मदा चालीसा को सौ बार पढ़ लेता है, वह विद्या, धन, संपत्ति इत्यादि को पाता है। जो भी इस नर्मदा चालीसा को असंख्य बार पढ़ लेता है, उसकी हरेक मनोकामना पूरी हो जाती है। हे माँ नर्मदा!! आप हम सभी के हृदय में निवास करें और आप हर जगह व्याप्त हैं।

॥ दोहा ॥

भक्ति भाव उर आनि के, जो करता है जाप।
माता जी की कृपा से, दूर होत सन्ताप॥

जो भी भक्ति भाव के साथ माँ नर्मदा चालीसा का जाप करता है, मातारानी की कृपा से उसकी हर पीड़ा, कष्ट, संकट, विपत्ति दूर हो जाती है।

नर्मदा चालीसा का महत्व

नर्मदा माता मध्य प्रदेश राज्य के मैखल पर्वत के अमरकंटक से निकलती हैं।वहां से यह महाराष्ट्र व गुजरात राज्यों में बहती हुई समुंद्र में मिल जाती हैं नर्मदा चालीसा के माध्यम से माँ नर्मदा के गुणों, महत्व व शक्तियों का वर्णन किया गया है। साथ ही उनकी उत्पत्ति, उद्देश्य, पुण्य कर्म तथा आशीर्वाद का वर्णन भी किया गया है। यही नर्मदा चालीसा को लिखने का महत्व है।

नर्मदा माता की चालीसा (Shri Narmada Chalisa) पढ़ने से हमें नर्मदा माता के बारे में संपूर्ण ज्ञान मिलता है। एक तरह से माँ नर्मदा के संपूर्ण जीवनकाल और उद्देश्य पूर्ति के बारे में इसी नर्मदा चालीसा के माध्यम से पता चल जाता है। इसी कारण श्री नर्मदा चालीसा का महत्व अत्यधिक बढ़ जाता है। हमें हर दिन नर्मदा चालीसा का पाठ सच्चे मन के साथ करना चाहिए।

नर्मदा चालीसा के लाभ

नर्मदा माता को भगवान शिव से यह आशीर्वाद मिला था कि वे इस संसार में सभी के पापों का नाश करेंगी। इसी कारण जो भी नर्मदा नदी में स्नान करता है या डुबकी लगाता है, मान्यता है कि उसके द्वारा अनजाने में किये गए सभी पापों का नाश हो जाता है। इसके अलावा नर्मदा नदी को हमेशा सुख व आनंद प्रदान करने वाली देवी भी माना जाता है और यह आशीर्वाद भी उन्हें महादेव ने ही दिया था।

ऐसे में यदि आप सच्चे मन के साथ प्रतिदिन नर्मदा चालीसा का पाठ करते हैं तो आपके मन को शांति व संतोष का अनुभव होता है। आपके द्वारा अनजाने में जो भी पाप या भूल हुई है, वह सभी समाप्त हो जाते हैं और मन निर्मल बनता है। ऐसे में आपको प्रतिदिन नर्मदा चालीसा का पाठ करना चाहिए।

निष्कर्ष

आज के इस लेख के माध्यम से आपने नर्मदा चालीसा लिखित में हिंदी अर्थ सहित (Narmada Chalisa) पढ़ ली हैं। साथ ही आपने नर्मदा चालीसा के लाभ और महत्व के बारे में भी जान लिया है। यदि आप हमसे कुछ पूछना चाहते हैं तो नीचे कमेंट कर सकते हैं। हम जल्द से जल्द आपके प्रश्न का उत्तर देने का प्रयास करेंगे।

नर्मदा चालीसा से संबंधित प्रश्नोत्तर

प्रश्न: नर्मदा जी की पूजा कैसे करें?

उत्तर: यदि आप नर्मदा जी की पूजा करना चाहते हैं तो आपको सुबह जल्दी उठकर, नहा धोकर, माँ नर्मदा के जल से अपने शरीर की शुद्धि कर, नर्मदा चालीसा व आरती का पाठ करना चाहिए।

प्रश्न: नर्मदा जयंती कब आ रही है?

उत्तर: हर वर्ष माघ माह के शुल्क पक्ष की सप्तमी तिथि को नर्मदा जयंती मनाई जाती है जो कि अंग्रेजी कैलेंडर के अनुसार जनवरी-फरवरी माह के बीच में पड़ती है।

प्रश्न: नर्मदा मैया के पति कौन थे?

उत्तर: नर्मदा मैया का विवाह राजकुमार सोनभद्र के साथ तय हुआ था लेकिन कुछ परिस्थितियों के कारण ऐसा हो नहीं पाया था। तत्पश्चात नर्मदा माता आजीवन कुंवारी रही थी।

प्रश्न: भगवान शिव ने नर्मदा को क्या आशीर्वाद दिया?

उत्तर: भगवान शिव ने नर्मदा को हमेशा सुख प्रदान करने वाली और मनुष्यों का पाप नष्ट करने वाली का आशीर्वाद दिया था।

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लेखक के बारें में: कृष्णा

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